श्री सुभूषणमति माताजी Subhushanmati Mataji

पूर्व नाम :  ब्र. दीदी भारती जैन

जन्म तिथि : 10 जुलाई, 1957 (तद्नुसार आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी, विक्रम संवत 2014)

जन्म स्थान : गोटेगाँव (श्रीधाम) (जि. नरसिंहपुर) म.प्र.

पिता : श्रावकरत्न श्री भगवान दास जैन (नेता जी)

माता  : गृहणीरत्न श्रीमति शांति जैन

बहिन : श्रीमति कांता जैन (श्री नेमीचंद्र जैन सागर)

भ्राता गण  : श्री संतोष  कुमार  जैन ,   श्री विनोद कुमार जैन

: श्री अरविंद कुमार जैन, स्व. राजेन्द्र कुमार जैन

श्री दीपक कुमार जैन (वर्तमान में पूज्य मुनि 108 श्री अनेकांतसागर जी महाराज)

शिक्षा  : एम.ए.बी.एड (2वर्ष शिक्षण कार्य भी)

व्रत : 26 मार्च 1977, गोटगाँव (श्रीधाम)

व्रत प्रदाता  : पू. मुनि 108 श्री दयासागर जी महाराज

प्रतिमा : 2 प्रतिमा (1977)

: 7 प्रतिमा (1983) फाल्गुन पूर्णिमा 2040

आर्यिका दीक्षा : सलूम्बर (राज.) 9 मई 1985 (ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी, विक्रम संवत् 2042 )

दीक्षा दाता : प्रशांत मूर्ति मुनिरत्न पू. दया सागर जी महा.

प्रेरणा कर्ता  : वर्तमान पट्टाचार्य शिक्षागुरु परम पूज्य अचार्य रत्न 108 श्री अभिनंदनसागर जी महा.

विशेष  : कन्याकुमारी से हिमालय तक पद-बिहार करने वाली देश की प्रथम आर्यिका ।

रचनाएँ   : बाल्यावस्था से अब तक 300 से अधिक कविताएँ और 200 मुक्तक लिखे हैं किन्तु निस्पृह होने के कारण समाज पर प्रकाशन- भार नहीं डाला। इसी तरह 200 से अधिक प्रवचन एवं आलेख अप्रकाशित हैं।

ख्याति : प्रवचन- प्रवीण । दृढ़-चर्या । समयपाबन्द । संयमभारती ।

अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग भावना

अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग भावना का अभ्यास करना चाहिए :- अभीक्ष्ण का अर्थ सदा या निरन्तर ही ज्ञान के अभ्यास में सदा लगे रहना ।आगम उपासीका विदुषी गणिनी आर्यिका रत्न
श्री सुभूषण मति माताजी द्वारा जैन धर्म का महापर्व सोलह कारण भावना के अवसर पर प्रतिदिन कैसे बने भगवान प्रवचन श्रृंखला में प्रतिदिन मानव जीवन की अनुत्तर यात्रा
लोकोत्तर यात्रा के लिए क्या क्या आवश्यक है , प्रवचन के माध्यम से बताया जा रहा है।
पु० गणिनी माताजी ने आज अंतर यात्रा के चौथे दिन की प्रवचन श्रृंखला में बताया कि मानव जीवन पाकर के ही भगवान बन सकते हैं अन्य गति से नहीं ।
भरत क्षेत्र ऐरावत क्षेत्र में 24 तीर्थंकर होते हैं जिनके पांच पांच कल्याणक होते हैं परंतु विदेह क्षेत्र में जो 20 तीर्थंकर होते हैं वह दो या तीन कल्याणा वाले होते हैं ।
मोक्ष की टिकट बनवाने के लिए तीर्थंकर बनने वाले को एक दो दिन का नहीं निरंतर प्रयास करना पड़ता है। जैसे पढ़ने वाले स्टूडेंट जिसके रैंक से पास होना है वह निरंतर पढ़ाई करता है वैसे ही निरंतर ज्ञानोपयोग चाहिए स्वाध्याय मात्र खानापूर्ति के लिए पन्ने पलटना नहीं है। शास्त्र के पढने के साथ-साथ परिणाम भावों को पलटना, जीवन में सरलता सहजता के साथ संयम की साधना भी चाहिए।
हर मानव धनोपयोग , भोगोपयोग को जानता है परंतु ज्ञानोपयोग को नहीं जानता । ज्ञानोपयोग निरंतर होने पर ही सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
शास्त्रों को पढ़ने के पहले जैसे संसार में राग भाव था वैसा ही यदि पढ़ने के बाद भी रहा तो कार्यकारी नहीं है । आगम ग्रंथों को पढ़ने का सार है
परिणामों में विशुद्धि
एवं आचार की वृद्धि।
जिनेंद्र भगवान के वचन परम औषधि है जो विकार भाव का विरेचन कर देते हैं और जो इस अमृत का ज्ञान अमृत का पान करता है वह जन्म जरा मरण से छूटकर अजर अमर हो जाता है ।
पु० माताजी द्वारा
अमृतमय ज्ञान गंगा अविरल बह रही है जो तीर्थंकर ने प्रवाहित की।
हमें इसकी दिशा हमारे चित्त की ओर मोडना है।
मनुष्य जीवन छोटा और धोखे का है। जन्म के साथ ही मरण का वारंट साथ में लेकर आता है।
श्वास श्वास में प्रभु भजलो, व्यर्थ श्वास न खोय
जो विनय पूर्वक धर्म ग्रंथ को पढ़ते हैं वह उनका ज्ञान परंपरा से केवल ज्ञान को प्राप्त करा देता है । अपनी बुद्धि का सदुपयोग मात्र प्रोफेशनल कोर्स में नहीं मोक्ष के कोर्स को पढ़ाने जानने आचरण में लाने में करो।

राजा श्रेणीक सपने में प्रश्न करते और भगवान महावीर से उत्तर प्राप्त कर लेते। कारण राजा श्रेणीक प्रति पल ज्ञानोपयोग में रमा करते।
जब रोम रोम मे़, स्वांस जैसा समा जावे सम्यक ज्ञान
तो जान लेना तुमको मिलने वाले हैं अब भगवान
चंद पलो के लिए सब भावना में बह गए।
मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मैं हूँ वह है भगवान।
उत्तम भावना भाते सब गणिनी श्री सुभूषणमति माँ के जयकार उच्चारण करते निजधाम को बढ़ चले।
दूरियाँ सब पाट कर
जल में बसै कमोदिनी, चंदा बसै अकास ।
जो है जाको भावता, सो ताही के पास ॥

1 अगस्त 2019

35 वें अभीनंदिनीय वर्षा योग हेतु साबला में विराजमान गणिनी आर्यिकारत्न, प्रशांत मुर्ति
श्री सुभूषण मति माताजी ने धर्म सभा में बैठी भव्य आत्माओं को संबोधित करते हुए कहा कि – खेत में बीज बोने से पहले हल या ट्रैक्टर चलाकर मिट्टी को मृदु बना लिया जाता है । उसी प्रकार आपने (भव्य जीवों ने) भी देव , शास्त्र , गुरु की श्रद्धा करके मन की कलुषता को धोकर अपने चिंतन को इतना मृदु कर लिया है की आस्था के बीज रोपण (वपन ) किया जा सके ।
लोक व्यवहार के लिए भी कलुषता का उपशमन बहुत आवश्यक है। अनादि काल से कषायों के कितने संस्कार है कि प्रवचन सुनने से 100% नष्ट नहीं हो सकती । इसलिए कषाया को सीमित करने का तो अतिरिक्त प्रयास करें। जैसे बिना संगीत, -वाद्य के नृत्यकार के शरीर में स्फुर्ती नहीं आ सकती अर्थात वह नृत्य नहीं कर सकता। वैसे ही केवली भगवान के पादमुल के बिना परिणाम में इतनी विशुद्धि नहीं आ सकती की कषाय को नष्ट कर सकें।
जैसे बुखार ( Fiver ) आने से पहले शरीर में टूटन, सिरदर्द आदि- आदि अनेक लक्षण दिखाई देने लगते हैं । उसी प्रकार सम्यक दृष्टि के लक्षण भी उसके आचरण से झलकने लगते हैं।
प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव सम्यक दृष्टि का मुख्य लक्षण है। ध्यान रखना जैसे दरिया और समंदर में अंतर है
वैसे ही मित्रता और मैत्री भाव में भी अंतर।
मित्रता का दायरा सीमित होता है परंतु मैत्री का दायरा अत्यंत विशाल । प्राणी मात्र के दुख निवारण की चिंता, प्राणी मात्र कैसे सुखी हो जाए इस प्रकार का चिंतवन मैत्री कहलाता है जैसे सागर का कोई छोर नहीं वैसे मैत्री का कोई छोर नहीं। मित्रता प्रेम लाती है मैत्री वात्सल्य। प्राणी मात्र के कल्याण की भावना जब बलवती हो जाती है , तभी तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है। समंदर में प्राणी मात्र के लिए लहरें उठती है। आकाश की सीमा के अंत तक आपका चिंतन विशाल होना चाहिए।
माताजी जिनवाणी से चुन कर लाई
भव सागर से पार पाने की दवाई
सब बढ़े निजधाम को
लिए पवित्र भाव को
जयकारों के साथ श्रद्धा से नमन कर
अनन्तानुबंधी कषाय को मेटने के लिए क्षमा भाव के साथ
जैसा भी हो सम्बन्ध बनाये रखिये।
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये।।

31 जुलाई 2019

बिन पानी सांसें रुकीं, सबका जीवन है अधीर पानी जैसी प्रीत करे आप से, मीट जावे भव पीर
साबला ग्राम की फिजा महकने लगी माता जी की वाणी से चिड़िया भी चहकने लगी

35 वें अभीनंदनीय चतुर्मास हेतु साबला में ससंघ विराजमान आर्यिका रत्न
श्री सूभूषण मती माताजी ने अपनी धीर गंभीर शैली में धर्म सभा को संबोधित करते हुए बताया
आदमी को जब प्यास उत्पन्न होती है तो वह मार्ग टटोलता है।
प्यासा पानी के पास जाता है
और जब परमात्मा बनने की प्यास उत्पन्न नहीं हुई हो तो परमात्मा बनने का मार्ग भी रत्नत्रय ( मोक्ष मार्ग) भी ना तो खोजता है न हीं उस पर चलने का प्रयास करता है। बहार
🦚अँधा क्या जाने बसंत की बहार ? 🦚
जैसे सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिए सांसारिक रिश्तो का स्वागत सम्मान देते हो तो आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए समीचिन श्रद्धा का भी बहुत ही उत्कंठा से स्वागत करो।
पूज्या माताजी स्पष्ट किया
ध्यान रखना सम्यक दर्शन पालन करते हुए भी गृहस्थ धन भी कमाता है और परिवार भी वृद्धि करता है अंतर इतना आता है कि गृहस्थ से सद् गृहस्थ बनो।

किसान का बीज नहीं श्रद्धा फलित होती है
श्रावक तो जन्म लेने से बन जाते है अब प्रयास करना है सुश्रावक बनने का। जिसे अपने कर्तव्य का बोध होता है। इसलिए एक महायोजना (master Plan) जरूर बनाएं। अपनी जिंदगी में
सम्यक दर्शन प्राप्ति का ।

जैसे विज्ञान व व्यवहार में सिद्धान्त (थ्योरी )के बाद व्यवहार ( प्रैक्टिकल ) करना आवश्यक होता है । उसी प्रकार आपने जिंदगी में सम्यक दर्शन प्राप्ति का प्रथमानुयोग, करणानुयोग से जो सम्यक दर्शन के बारे में जाना है तो चरणानुयोग के अनुसार आपके आचरण में भी वह सम्यकत्व झलकना चाहिए।
जैसे आदमी की चाल ढाल में उसकी रईसी झलकती है
जो खानदानी रईस हैं वो मिज़ाज़ रखते हैं नरम अपना
वैसे ही आपके आचरण से , वाणी से, भावना से, व्यवहार में ,व्यापार में , रिश्तो में भी आपका सम्यकत्व झलकना चाहिए। और जब हमारा आचार व्यवहार व्यापार में धार्मिक संस्कार आ जाते हैं तो परिवार और समाज में विसंवाद नहीं होता है। आज शिक्षा तो बढ़ गई है परंतु संस्कार घट रहे हैं ।
Carrier बढा culture लोप हुआ।
आज की शिक्षा धन अर्जन की कला (रोबोट जैसा) तो सिखा देती है। परंतु
जीवन जीने की कला नहीं सिखा पाती । यह मिलताहै गुरु संग सतसंग में।
इस प्रकार आत्मा के साथ साथ व्यवहारिक जीवन के लिए भी धर्म अति आवश्यक है तो सम्यकत्व पूर्वक धर्म का पालन करके एक अच्छा श्रावक बनने का प्रयास अवश्य करें।
जाग जाग जाग चेतन बहु काल सो लिए। जय जिनेंद्र जय जिनेंद्र जय जिनेंद्र बोलिए

30 जुलाई 2019

तन का बैरी कोई नहीं जो मन सीतल होये तु आपा को डारी दे, दया करै सब कोई।
समीचीन श्रद्धा कैसे प्राप्त होती है विषय पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए अपनी ओजस्वी वाणी में गणिनी आर्यिका रत्न श्री सुभूषण मति माताजी ने कहा समीचीन श्रद्धा धर्म का आधार है । श्रेष्ठता के प्रति अटूट आस्था जो भक्ति में रुपान्तरित हो – श्रद्धा कहा जाता है।

सम्यक दर्शन आत्मशक्ति व्यक्त करने वाला और अपने में परमात्मा खोजने की कला दिखला देता है सम्यक दर्शन

देव , शास्त्र , गुरु पर श्रद्धा करके जो सम्यक दर्शन प्राप्त किया है उसे मन रूपी पात्र को पहले स्वच्छ करें फिर उस पवित्र पात्र में रखना चाहिए।
आहार देने के लिए , पूजन के लिए सभी कार्यों के लिए सर्वप्रथम मन की शुद्धि आवश्यक है । जहां मन में कलुषता होती है वहाँ
सम्यक दर्शन की प्राप्ति नहीं होती और प्राप्त सम्यक दर्शन भी छूट जाता है । इसलिए हमे सर्वप्रथम मन को धोना है । बाह्य शरीर के मल को धोते-धोते अंतर का मल बढ़ता जा रहा है । ध्यान रखना जिसका बदन साफ़ है उसे ही इत्र की खुशबू आती है ।
परंतु जिसका शरीर ही गंदा है उन्हें तो इत्र की खुशबू भी नहीं आती। इसी प्रकार जिसका मन साफ है उसे ही सम्यक दर्शन की खुशबू आ सकती है परंतु जिसका मन पवित्र नहीं है उन्हें सम्यक दर्शन की खुशबू आ ही नहीं सकती ।
प्राणी अपने प्रभु से पूछे किस विधी पाऊँ तोहे
प्रभु कहे तु मन को पा ले, पा जयेगा मोहे
इसकी मन की पवित्रता को जानने के लिए न कोई Eco (ईको) की जाती है और ना Endoscopy ( एंडोस्कोपी की- आपको स्वयं को ही थर्मामीटर दे दिया –आचार्यों ने
पुज्या माताजी ने बताया,
स्वयं के रोग का कारण स्वयं तलाशे और स्वयं ईलाज कर उपर उठे।
सबसे पहले जो आपकी श्रद्धा की हत्या कर देता है उस शत्रु को पहचानो। आपके शत्रु है
अनंतानुबंधी कषाय
यदि कषाय शांत हो और मन प्रसन्न हो तो विष खाने पर भी पेट में जाकर अमृत बन सकता है। और यदि कषाय काम कर रही तो अमृत भी विष का काम करता है।
। जो आपको अनंत संसार में बांधकर रखती है। चाहे वह राग रूप हो या द्वेष रूप। ध्यान रखना द्वेष रूप कषाय तो जल्दी छोड़ देते हैं परंतु राग रूपी कषाय को छोड़ना बहुत कठिन है।
लोक में मान व राग को सब चाहते

आचार्यों ने कहा कषाय करना ही नहीं और हो जावे तो अपनी कषायों को 6 महीने से अधिक अपने पास मत रहने दो ।
अपने घर में रहकर मुनीमजी बन कर रहो मालिक बनकर और कृतित्व बुद्धि लेकर ना चले बल्कि
कर्तव्य बुद्धि बनाएं।
कीचड़ होता पानी से और कीचड़ धुलता पानी से
इसी प्रकार कषाय होते मन से और मिटते भी मन से।
माताजी की वाणी से हो रहा देखो अजीब खेल
बिना धोये,धुलता जाता , भक्तो के मन का मेल
गुरु चरणो में वंदन गाते
जिनवाणी को शीश नवाते जयकारों के साथ
अपने अपने घर को जाते

3 जनवरी 2019

आज दिनांक 3 जनवरी 2019 को वाग्देवी सुता गणिनी आर्यिका रत्न 105
श्री सुभूषण मति माताजी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा- यह नगरी अत्यंत पुण्य धरा है , जहां तपस्वी आचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांति सागर जी से परम्परा के वर्तमान सप्तम पट्टाचार्य श्रीअनेकांत सागर जी सभी आचार्य भगवन्तोके चरण रज से पवित्र एवं चातुर्मास की साक्षी तथा अनेकानेक अन्य संतों का सानिध्य जिस सप्तरंगी कांठल नगरी प्रतापगढ को प्राप्त वह किसी देव भूमि से कम नहीं है।

धर्म सभा को संबोधित करते हुए माताजी ने सोने की कला को समझा आर्यिका रत्न
श्री सुभूषणमती माताजी ने कहा प्रतिदिन सभी सोते हैं और जागते हैं पर कुछ ऐसे विशेष व्यक्ति होते हैं जो स्वयं जागते हैं और जीवन में दूसरों को जगाते हैं, सिर्फ तन से नहीं मन से भी जगाते हैं। पूज्य माताजी ने समझाया दिन में कोई ऐसा काम मत करो जिससे रात में नींद ना आवे और रात में कोई ऐसा काम मत करो जिससे सुबह उठकर मुंह दिखाने काबिल भी ना रहें।
सोते समय दिन भर की क्रियाओं का चिंतन करें ।
सोते समय कपड़े ढीले पहनते हो तो अपने मन को भी ढिला करो क्योंकि अहंकारी व्यक्ति जीवन में अपने अपराध कभी नहीं देख पाता है । किसी बात को सुनकर बडा पेट रखो बात को पचाना सीखोगे तो सुंदरकांड होगा वरना लंकाकांड हो जाएगा और तुम्हारी सोने की नगरी जलकर खाक हो जावेगी।

जैसे पुराना ,गंदा कपड़ा उतार देते हैं, उसी प्रकार कषाया को भी उतार फैंको। दुबारा मत अपनाओ। मन रूपी कपड़े को चिंतन रूपी मशीन में बस दो मिनट झकोर कर सम्यक ज्ञान से सुखा लो, चारित्र की चमक आ जावेगी।
अच्छा व्यापारी अपना हिसाब रोज का रोज मिलाता है इसी तरीके से आप भी अपने पाप और पुण्य के हिसाब को प्रतिदिन मिलाकर समझ लिया करो
माताजी ने कहा
रात में देखे सपने नहीं पूरे होते हैं सपने वे पूरे होते हैं जो जागते हुए दिन में देखें और उसे पाने के लिए हमें रात में निंद नहीं आवे।
सभी भक्त किसी सुखद सपने में खो रहे थे और समय ने अपना डंका बजा दिया

2 जनवरी 2019

जीवन में ऐसे ही आज 2 जनवरी को प्रातः आगमिक , वात्सल्य मूर्ति गणिनी आर्यिका
श्री सुभूषण मती माता जी ने थर्मल नगरी प्र ता प गड को परिभाषित किया
प्र _ प्रकष्ट रूप से, ता_ ताप प_ पाप जंहा गड जावे अर्थात नष्ट हो जावे, एसी पुण्यशाली नगरी यह है। माताजी ने सांकेतिक भाषा में कहा जिनके मन काले होते हैं उनका वर्ष भी काली रात में प्रारंभ होता है।
जिनका मन साफ होता है उनका नया दिन भी प्रातः काल की सुंदर रश्मि ओं के साथ होता है। जिन्हें महावीर नव वर्ष की तुलना में कैलेंडर पलटने का नववर्ष सुंदर लगता है वह समझ लेंवे कैलेंडर के पन्ने पलटने से जीवन में नवीनता नहीं आएगी जीवन में नवीनता लाने के लिए हमारे
मन के पन्ने को पलटना पड़ेगा
जिंदगी में अहंकार और मम् कार को धूल में डालना पड़ेगा कैलेंडर बदलने के स्थान पर अपने मन के चिंतन की धारा को बदलो , अन्तरंग की आत्मा से दर्शन करें , उसे धवल बनावो अर्थात सम्यकत्व की ओर मोड़ो तब जीवन की कालीमा हटेगी और व्हाइट मनी सा उजाला सवेरा सम्यक दर्शन का प्रस्फुटित होवेगा।
सार गर्भित वाणी में माताजी ने कहा
तमन्नाओं को इच्छाओं को मेटना स्वयं को बदलना है स्वयं को
प्रयास करना है स्वयं को और आनंद पाना है स्वयं को
अतः स्वयं के आनंद के लिए प्रयास प्रारंभ कर देना
संवेदनशील सभा को पुज्य माताजी ने सचेत किया
जिवन मिला है कर्म काटने केलिए इसे समय काटने में व्यर्थ मत गंवा देना।
सारगर्भित वाणी से मंत्रमुग्ध होकर सभी भक्त गण सभा में इस तरह बैठे थे , कि घर की याद भूल गए , परंतु समय की सुईया आगे चल रही थी सबने जय घोष के साथ में निज धाम को प्रस्थान किया कल और रसपान की आस लिए।

Bhaktamar shikshan shivir at Shri Parshrvnath Digambar Jain Mandir Jaipur 2012

भक्तामर शिक्षण शिविर – श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर जयपुर 2012

Diksha jayanti Arag , Miraj, Sangli district, Maharashtra -1999

Jambudeep Vidan Athni taluk, Belgaum district, Karnataka , Sirguppi 1998

Sarvtobhadra aradhana – Kalghatgi (Kannada: ಕಲಘಟಗಿ ) Dharwad district, Karnataka. 18 Jan 1996

1 thought on “गणिनी आर्यिका रत्न 105 श्री सुभूषणमति माताजी

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