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उपाध्याय परमेष्ठी के २५ मूल गुण - Printable Version

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उपाध्याय परमेष्ठी के २५ मूल गुण - scjain - 10-09-2014

उपाध्याय परमेष्ठी के २५ मूल गुण -

११ अंग और १४ पूर्वों का ज्ञान,साधू परमेष्ठी के २८ मूल गुणों के साथ उपाध्याय परमेष्ठी के मूल गुण है !

११ अंग-

१-आचारांग,२-सूत्रकृतांग,३-स्थानांग,४-समावायांग,५-व्याख्याप्रज्ञप्ति,६-ज्ञातृधर्मकथांग,७-उपासकाध्यानांग , ८-अंत: कृद्दशांग,९-अनुत्तरौपपादिकदशांग,१०-प्रश्नव्याकरणांग,११-विपाक सूत्र।
१२ -अंग दृष्टिवाद अंग पञ्च भेदों सहित है !जिसका एक भेद पूर्वांग ,१४ भेदों सहित है !

१४-पूर्व-

१-उत्पाद,२-अग्रयाणी,३-वीर्यप्रवाद,४--अस्तिनादप्रवाद,५-ज्ञानप्रवाद,६-सत्यप्रवाद,७-आत्मप्रवाद,८-कर्म प्रवाद, ९-प्रत्याख्यान,१०-विद्यानुवाद,११-कल्याणवाद,१२-प्राणवाद १३-क्रियावशाल,१४-लोक बिंदुसार ।
व र्मान में,काल के प्रभाव से दिगंबर जैन धर्म की मान्यता अनुसार अधिकांशत: श्रुत लोप हो गया है
इसलिए २५ मूल गुण धारी उपाध्याय परमेष्ठी वर्तमान मे नहीं होते !उपचार से जिन मुनिराज को
आचार्य परमेष्ठी,संघ के मुनियों को पढ़ने -पढ़ाने का दायित्व देते है वे उपाध्याय परमेष्ठी कहलाते है !