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सम्यग् दर्शन - Printable Version

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सम्यग् दर्शन - scjain - 07-01-2015

सम्यग् दर्शन
 दर्शन का सामान्य भाषा में अर्थ देखना होता है किन्तु यहाँ मोक्ष मार्ग का प्रकरण होने से इसका अर्थ श्रद्धान विशवास से है तत्वार्थ श्रद्धान सम्यग् दर्शनम श्रद्धान में बिंदी है स्पेलिंग मिस्टेक है अर्थात तत्वों पर यथार्त श्रद्धान करना सम्यग् दर्शन है अन्य शब्दों में देव शास्त्र गुरु के प्रति सच्चा विस्वास व् जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे गए सात तत्वों पर यथार्त श्रद्धान सम्यग् दर्शन है सम्यग् दर्शन के चार सोपान है सच्चे देव शास्त्र गुरु - सात तत्व - स्व पर का यथार्त श्रद्धान - आत्मानुभव सम्यक्त्वांचरण जब सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति यथार्त श्रद्धा होगी उनके द्वारा बताये गए सात तत्वों पर श्रद्धा होगी फलस्वरूप स्व पर की भी श्रद्धा होगी इससे आत्मा का ज्ञान होगा और उससे वीतरागता आएगी जब वीतरागता आएगी तो सच्चे सुख मोक्ष की प्राप्ति भी सुनिश्चित है
सम्यग् दर्शन का महत्त्व - मोक्ष मार्ग में सम्यग् दर्शन का महत्त्व सबसे ऊँचा है इससे बिना आगम का ज्ञान चारित्र व्रत तप आदि सब व्यर्थ हैं यह धर्म रूपी पेड़ की जड़ है जिस प्रकार बिना जड़ के पेड़ नहीं हो सकता उसी प्रकार सम्यग् दर्शन के बिना कभी धर्म नहीं हो सकता इसी वजय से सम्यग् दर्शन को मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी कहा गया है
जिस जीव को सम्यग् दर्शन हो जाता है वह नारकी तिर्यञ्च नपुंसक स्त्री नीच कुल बिक्लत्रय दरिद्री भवनवासी व्यंतर ज्योतिषी देवों और सभी प्रकार की देवांगनाओं में जन्म नहीं लेता जिस जीव ने पूर्व कर्मो के कारण सातवें नर्क की आयु का बन्ध किया हो तत् पश्चात उसे सम्यग् दर्शन हो जाये तो वह पहले नर्क तक नहीं जाता और उसे कुछ भवों बाद मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है जिसे सम्यग् दर्शन नहीं हुआ है उसे मोक्ष मिल ही नहीं सकता
सम्यग् दर्शन की योग्यता - सम्यग् दर्शन चारों गतियों के संज्ञी पञ्चइन्द्रिय जीव को ही हो सकता है मनुष्य गति में 8 वर्ष और अन्य गतियों में जन्म के अन्तर्मुर्हत बाद सम्यग् दर्शन प्राप्त करने की योग्यता होतो है क्षायिक सम्यग् दर्शन केवली या श्रुत केवली के पाद मूल में ही प्रकट होता है आजकल केवली व् श्रुत केवली नहीं है इसलिए आज का व्यक्ति क्षायिक सम्यग् दर्शन प्राप्त नहीं कर सकता सच्चे देव शास्त्र गुरु पर श्रद्धान करने से उपशम या क्षयोपशम सम्यग्दर्शन वर्तमान में सम्भव है
सम्यग् दर्शनी की उत्तपत्ति से दो भेद हैं निसर्गज सम्यग् दर्शन अधिगमज सम्यग् दर्शन
सम्यग् दर्शन के दो भेद है व्यवहार सम्यग् दर्शन निश्चय सम्यग् दर्शन
सम्यग् दर्शन के तीन भेद कर्मो के उपशम क्षय और क्षयोपशम की अपेक्षा से तीन भेद भी होते है
सम्यग् दर्शन के आठ अंग निशनकित निकांक्षित निर्विचिकित्तसा अमूढ़ दृष्टि उपगुहन श्थितिकरण वात्सल्य प्रभावना
सम्यग् दर्शन के 25 दोष शंका कांक्षा विचिक्तसा मूढ़ दृष्टि अनुपगुह्नन अस्थितिकरण अवात्सल्य अपर्भावना
आठ मद - ज्ञान पूजा कुल जाती बल ऐशवर्य तप और रूप का मद
6 अनायतन - कुदेव - कुदेव के उपासक कुशास्त्र - कुशास्त्र के उपशक कुगुरु - कुगुरु के उपासक
3 मूढ़ता - लोक मूढ़ता - देव मूढ़ता - गुरु मूढ़ता
ऐसे सम्यग् दर्शन के 25 दोष होते हैं
5 - अतिचार - शंका - कांक्षा - विचिकितत्सा - अन्य दृष्टि प्रसंशा अन्य दृष्टि संस्तव