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परमर्षि स्वस्ति (मंगल) विधान भाग २ - Printable Version

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परमर्षि स्वस्ति (मंगल) विधान भाग २ - scjain - 04-26-2016

चार विक्रिया ऋद्धि और तीन बल ऋद्धियाँ का वर्णन निम्न काव्य में है 

'अणिम्नि दक्षाः कुशलाः महिम्नि,लघिम्नि शक्ताः कृतिनो गरिम्णि |
मनो-वपुर्वाग्बलिनश्च नित्यं, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः'||६!!
शब्दार्थ-अणिम्नि दक्षाः-अणिमा(अनु के सामान छोटा बनने में) ऋद्धि में दक्ष-सामर्थ्य है,कुशलाः-कुशल है,महिम्नि-महिमा (समेरू पर्वत के सामान बड़ा करने)ऋद्धि में,लघिम्नि-लघिमा(अपने शरीर को रुई से भी हल्का करने में) ऋद्धि की,शक्ताः-शक्ति वाले है,कृतिनो-को करने वाले/संपन्न है,गरिम्णि-गरिमा(अपने शरीर को वज्र से भी अधिक भारी करने की क्षमता) ऋद्धि,मनो-मनो बल(द्वादशांग के अरबों पदों का चिंतवन अन्त र्मुर्हत में करने की सामर्थ्य होना)ऋद्धि,वपु-काय बल(शरीर में अपार शक्ति आना),वाग-वचन,बलिनश्च-और बल (द्वादशांग के अरबों पदों को अन्तर्मुर्हत में बोलने की क्षमता होना)ऋद्धि,नित्यं-सदा धारण करने वाले स्वस्ति-कल्याण,क्रियासुः-करे,परमर्षयो-परम ऋषी राज,नः-हम सब का कल्याण करे !
अर्थ-अणिमा,महिमा,लघिमा,गरिमा,मनोबल,वचनबल,कायबल ऋद्धियों के अखण्ड धारक परम ऋषिगण हमारा मंगल करें!
१-अणिमा विक्रियाऋद्धि-अपना शरीर अणु के समान सूक्ष्म बनाने में दक्ष ऋषिराज अणिमा विक्रिया ऋद्धिधारी होते है ! 
२-महिमा विक्रिया ऋद्धिधारी-अपना शरीर समेरूपर्वत समान विशाल बनाने में दक्ष ऋषिराज,महिमा विक्रियाऋद्धि धारी होते है !
३-लघिमा विक्रिया ऋद्धिधारी-अपने शरीर को रुई से हल्का करने में दक्ष ऋषिराज लघिमा विक्रिया ऋद्धिधारी होते है ! 
४-गरिमा विक्रिया ऋद्धिधारी-अपने शरीर को वज्र सामान अत्यंत भारी करने में दक्ष ऋषिराज गरिमा विक्रिया ऋद्धिधारी होते है!विष्णु कुमार मुनिराज को ये ४ विक्रिया ऋद्धियाँ थी ! 
५-मनोबल ऋद्धिधारी-११ अंगों और १४ पूर्वों अर्थात द्वादशांग का चिंतन अन्तर्मुहत में करने में सामर्थ्यवान ऋषिराज मनोबल ऋद्धिधरी होते है !
६-कायबल ऋद्धिधारी -शरीर में अद्भुत शक्ति आना !
बाली मुनिराज कैलाश पर्वत पर खड़गासन में ध्यानस्त खड़े हुए थे!दशानन,रावण का राजा बाली की बहिन से विवाह के सन्दर्भ में कोई द्वेष हो गया था!वह मंदोदरी के साथ पर्वत के ऊपर से विमान से जा रहा था , उसका विमान रुक गया,उन्होंने नीचे तपस्या में लीन बाली मुनिराज को देखा जिन्होंने अपनी बहन को मुझे देने से इंकार किया था!चलो मै इन से अब बदला लेता हूँ!दशानन ने कैलाश पर्वत पर उतरते ही,उसकी जड़ में घुस गए!उसमे घुस कर उन्होंने पर्वत को उठाया!बाली मुनिराज ने विचार किया कि यदि इसने इस पहाड़ को उठाकर फेंका तो भरत महाराज द्वारा बनाये चैत्यालय नष्ट हो जायेंगे,इस पर्वत के सभी जीव नष्ट हो जायेंगे तो उन्होंने जीवों और मंदिर की रक्षा हेतु अपने पैर के अंगूठे को जरा सा दबाया,बाली कायबल ऋद्धिधारी थे जिससे वह पहाड़ जो दशानन ने उठाया था नीचे दबने लगा अर्थात ऋषिराज की ऋद्धियों का कोई नहीं रुका वट कर सकता!इस पर्वत के नीचे रावण दबने लगा जिससे वह चिल्लाया, बचाओ बचाओ!तब मंदोदरी ने समझ लिया कि ऋद्धिधारी बाली जी ने पर्वत को अपने अंगूठे से दबाया होगा!वह बाली मुनिराज के चरणो पर गिर कर अपने पति की रक्षा के लिए याचना करने लगी!फिर मुनि बाली ने अपना अंगूठा ढीला किया जिससे पर्वत पूर्व स्थान पर आ गया!अब रावण मुनिराज के सामने रोया!यहाँ से दशानन का नाम रावण,रोने वाला पड़ा!और
७-वचन बल-द्वादशांग के समस्त,११२ करोड़ों ५७ लाख ५ पदों को अन्त र्मुहूर्त में बोलने की सामर्थ्य वाले ऋषि वचन बल ऋद्धिधारी होते है!गणधर देव मन,वचन और काय बल ऋद्धि के धारी होते है! 
ये चार विक्रिया ऋद्धिधारी और तीन बल ऋद्धिधारी ऋषिराज हम सब का कल्याण करे! 
शेष-सात विक्रिया ऋद्धियाँ-
सकामरुपित्व-वशित्वमैश्यं, प्राकाम्यमन्तर्द्धि मथाप्तिमाप्ताः |
तथाऽप्रतीघातगुणप्रधानाः,स्वस्ति क्रियासुःपरमर्षयो नः ||७!!
शब्दार्थ-सकाम-कामरुपित्व,वशित्वमैश्यं-वशित्वम्,ऐशयम्-ईशत्व, प्राकाम्य-प्राकामयम्,अन्तर्द्धिम्थ-अन्तर्धान,आप्तिम्-आप्ति,आप्ताः |तथा-और, अप्रतीघात-अप्रतिघात,गुणप्रधानाः-गुणों के प्रधान,स्वस्ति -कल्याण, क्रियासुः-करे, परमर्षयो-परमऋषि , नः-हम सब का 
अर्थ-कामरूपित्व,वशित्व,ईशत्व,प्राकाम्य,अन्तर्धान,आप्ति और अप्रति घात गुणों में प्रधान,सात विक्रिया ऋद्धिधारी;परम ऋषि हम सब का कल्याण करे! 
१-काम रूपित्व विक्रिया ऋद्धि-अपनी इच्छानुसार अनेक प्रकार के शरीर ;जैसे शेर,हाथी,सूक्ष्म, बादरादि जीव बनाने की सामर्थ्य होना !
२-वशिस्त्वं विक्रिया ऋद्धि-सब को अपने वश में करने की सामर्थ्य होना !
३-ईशत्वं विक्रियाऋद्धि-प्रभुता संपन्न होना;जो देखे वही आपके समक्ष झुक जाए !
४-प्राकाम्य विक्रिया ऋद्धि-पृथ्वी के ऊपर जल की तरह और जल के ऊपर पृथ्वी की तरह चलने की क्षमता होना !
५-अन्तर्धान विक्रिया ऋद्धि-बैठे बैठे गायब होने की क्षमता होना !
६-आप्ति विक्रिया ऋद्धि-यही बैठे बैठे चंद्रमा,तारों के विमान को स्पर्श करने की सामर्थ्य होना !
७-अप्रतिघात विक्रिया ऋद्धि-मार्ग में पर्वत की बाधा आने पर उन के अंदर से बाधा रहित पार करने की सामर्थ्य होना!
विशेष-१-विक्रिया ऋद्धिधारी ऋषियों का शरीर-विक्रिया संपन्न,औदारिक शरीर होता है!उन के शरीर में विक्रिया करने की क्षमता होती है,किन्तु उत्पाद जन्म वाले ,देवों और नारकीयों के भांति वैक्रियिक शरीर नहीं होता है!
२-क्या ऋद्धिधारी ऋषियों का ऋद्धियों के प्रयोग करने पर उनका भावलिंग विधिवत रहता है ?
समाधान-ऋद्धियों का प्रयोग दो समय में किया जाता है!
१-किसी संकट के आने पर अथवा समेरू पर्वत पर तीर्थंकर बालक का अभि षेक हो रहा हो,ऐसे प्रसंगों में ऋद्धियों के प्रयोग में कोई आपत्ति नहीं होती!जैसे विष्णुकुमार महान ऋषि ने अपने सह धर्मी ७०० मुनियों कि रक्षा के लिए महिमा ऋद्धि का प्रयोग कर के दो पग में समेरुपर्वत तक लोक नाप कर उन की रक्षा करी थी!यहाँ विष्णु कुमार ऋषिराज का भावलिंग सुरक्षित रहा !
२-यदि कोई ऋषि इन ऋद्धियों को प्राप्त करके सांसारिक कार्यों में लगते है तो निश्चितरूप से उनका भावलिंग समाप्त हो कर वे द्रव्यलिंगी होता है !
३-अवधिज्ञानी,मन:पर्ययज्ञानी,केवलज्ञानी,चारणऋद्धधारी अपनी ऋद्धि यों का प्रयोग करते ही है,इसमें कोई आपत्ति नहीं है !