श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली अष्टम अध्याय भाग १ - Printable Version
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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली अष्टम अध्याय भाग १ -
scjain - 06-10-2018
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली अष्टम अध्याय भाग १
७०१-ॐ ह्रीं अर्हं वृहद्बृहस्पतये नमः -इन्द्रों के गुरु होने से,
७०२-ॐ ह्रीं अर्हं वाग्मिने नमः -प्रशस्त वचनों के धारक होने से,
७०३-ॐ ह्रीं अर्हं वाचस्पतये नमः -वचनों के स्वामी होने से।,
७०४-ॐ ह्रीं अर्हं उदारधिये नमः -उत्कृष्ट बुद्धि धारक होने से,
७०५-ॐ ह्रीं अर्हं मनीषिणे नमः -शक्तियों युक्त होने से ,
७०६-ॐ ह्रीं अर्हं धिषणाय नमः -चतुर्यपूर्ण बुद्धि युक्त होने से,
७०७-ॐ ह्रीं अर्हं धीमते नमः -धारणपुट बुद्धि युक्त होने से,
७०८-ॐ ह्रीं अर्हं शेमुषीशाय नमः -बुद्धि के स्वामी होने से,
७०९-ॐ ह्रीं अर्हं गिराम्पतये नमः -समस्त वचनों के स्वामी होने से ,
७१०-ॐ ह्रीं अर्हं नैकरूपाय नमः -अनेकरूप होने से,
७११-ॐ ह्रीं अर्हं नयोत्तुंगाय नमः -नयो द्वारा उत्कृष्टावस्था प्राप्त करने से,
७१२-ॐ ह्रीं अर्हं नैकात्मने नमः -अनेक गुणों के धारक ,
७१३-ॐ ह्रीं अर्हं नैकधर्मकृतये नमः -वस्तु के अनेक धर्मों के उपदेशक,
७१४-ॐ ह्रीं अर्हं अविज्ञेयाय नमः -साधारण पुरुषों द्वारा जानने के अयोग्य होने से,
७१५-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतकर्यात्मने नमः - तर्क-वितर्क रहित स्वरुप युक्त होने से ,
७१६-ॐ ह्रीं अर्हं कृतज्ञाय नमः -समस्त कृतज्ञ जानने से,
७१७-ॐ ह्रीं अर्हं कृतलक्षणाय नमः - समस्त पदार्थों का लक्षणस्वरूप बताने से,
७१८-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानगर्भाय नमः -अंतरंग में ज्ञान होने से,
७१९-ॐ ह्रीं अर्हं दयागर्भाय नमः - दयालु हृदय होने से,
७२०-ॐ ह्रीं अर्हं रत्नगर्भाय नमः -रत्नत्रय युक्त होने से अथवा गर्भकल्याणक में रत्नवृष्टि होने से,
७२१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रभास्वराय नमः -देदीप्यमान होने से,
७२२-ॐ ह्रीं अर्हं पद्मगर्भाय नमः -कमलाकार गर्भाशय में स्थित होने से,
७२३-ॐ ह्रीं अर्हं जगद्गर्भाय नमः -ज्ञान में के प्रतिबिंबित होने से,
७२४-ॐ ह्रीं अर्हं हेमगर्भाय नमः -गर्भवास के समय पृथिवी के स्वर्णमय अथवा सुवर्णमय वृष्टि होने से,
७२५-ॐ ह्रीं अर्हं सुदर्शनाय नमः -सुंदर दर्शन होने से,
७२६-ॐ ह्रीं अर्हं लक्ष्मीवते नमः -अंतरंग एवं बहिरंग लक्ष्मी से युक्त होने से,
७२७- ॐ ह्रीं अर्हं त्रिदशाध्यक्षाय नमः -देवों के स्वामी होने से,
७२८-ॐ ह्रीं अर्हं दृढीयसे नमः -अत्यंत दृढ होने से,
७२९-ॐ ह्रीं अर्हं इनाय नमः -सबके स्वामी होने से,
७३०-ॐ ह्रीं अर्हं ईशित्रे नमः - सामर्थ्यशाली होने से,
७३१-ॐ ह्रीं अर्हं मनोहराय नमः -भव्यजीवों का मन हरण करने से,
७३२-ॐ ह्रीं अर्हं मनोज्ञांगाय नमः - सुंदर अंगों के धारक होने से,
७३३-ॐ ह्रीं अर्हं धीराय नमः -धैर्यवान होने से,
७३४-ॐ ह्रीं अर्हं गम्भीरशासनाय नमः -शासन की गंभीरता से,
७३५-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मयूपाय नमः -धर्म स्तम्भरूप होने से,
७३६-ॐ ह्रीं अर्हं दयायागाय नमः -द्यारूप यज्ञ के करने वाले होने से,
७३७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मनेमये नमः -धर्मरूपी रथ की चक्रधारा होने से,
७३८-ॐ ह्रीं अर्हं मुनीश्वराय नमः - मुनियों के स्वामी होने से,
७३९-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मचक्रायुधाय नमः -धर्मचक्ररूपी शस्त्र के धारक होने से,
७४०-ॐ ह्रीं अर्हं देवाय नमः -आत्मगुणों में क्रीड़ा करने से,
७४१-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मघ्ने नमः -कर्मों के क्षय करने से,
७४२-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मघोषणाय नमः - धर्म उपदेशक होने से ,
७४३-ॐ ह्रीं अर्हं अमोघवाचे नमः -के वचन व्यर्थ नही जाने से,
७४४-ॐ ह्रीं अर्हं अमोघाज्ञाय नमः - की आज्ञा निष्फल नही होने से,
७४५-ॐ ह्रीं अर्हं निर्मलाय नमः - मलरहित होने से,
७४६- ॐ ह्रीं अर्हं अमोघशासनाय नमः -का शासन सदा सफल होने से,
७४७-ॐ ह्रीं अर्हं सुरूपाय नमः -सुंदर होने से,
७४८- ॐ ह्रीं अर्हं सुभगाय नमः -ऐश्वर्य युक्त होने से,
७४९- ॐ ह्रीं अर्हं त्यागिने नमः -समस्त पर का त्याग करने से,
७५०- ॐ ह्रीं अर्हं समयज्ञाय नमः -सिद्धांत,समय अथवा आचार्य के ज्ञाता होने से,