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जिन पूजा - scjain - 04-01-2020

देव दर्शन, जिन पूजा
1.जिनचैत्यालय किसे कहते हैं?
उत्तर- चैत्यालय दो शब्दों से मिल कर बना हैं
चैत्य (प्रतिमा) आलय (रहने का स्थान)
जहां जिन प्रतिमा या मूर्ति विराजमान हो उस पवित्र स्थान को जिन चैत्यालय (मंदिर) कहते हैं।

2.चैत्यालय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर- चैत्यालय दो प्रकार के होते हैं-
अकृत्रिम चैत्यालय-ये चैत्यालय चारों प्रकार के देवों के भवन, प्रासादों व विमानों तथा अन्य स्थल पर मध्य लोक में बिना किसी के बनाए स्वतः अनादि, अनिधन, शाश्वत हैं।
कृत्रिम चैत्यालय-इन्हें मनुष्य निर्मित करते हैं। ये मनुष्य लोक में होते हैं।
3.जिन आगम क्या है?
उत्तर- आप्त के वचनों को आगम कहते हैं।
आगम चार भागों में विभक्त है-
प्रथमानुयोग-पुराण-पुरूष, महापुरूष, तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि का जीवन-दर्शन।
चरणानुयो-मुनि और श्रावक के आचरण का वर्णन।
करणानुयोग-लोक की व्यवस्था, गणित कर्म सिद्धांत का वर्णन।
द्रव्यानुयोग-तत्व, द्रव्य, पदार्थों का वर्णन।
4.आप्त किसे कहते हैं?
उत्तर- जिन्होंने आपने-आप को कर लिया हो प्राप्त, वे कहलाते हैं ‘आप्त’ अर्थात वीतराग, सर्वज्ञ, हितोपदेशी आप्त कहलाते हैं।
5.जिन धर्म क्या है?
उत्तर- संसार में पड़े हुए जीवों की जो चतुर्गति रूप दुखों से रक्षा करके उत्तम स्थान (स्वर्ग, मोक्ष) में जो धरता है वह जिन धर्म है। जिनेन्द्र, द्वारा प्रति पादित सुख पाने के उपाय को िजन धर्म कहते हैं।
6. पूजन का मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर- पूजन का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि एवं पूज्य के गुणों को प्राप्त कर, पूज्यता को उपलब्ध होना है
7. पूजन कितने प्रकार की होती है?
उत्तर- पूजन मुख्य रूप् से दो प्रकार की होती है-
(1) द्रव्य पूजन (2) भाव पूजन
8. द्रव्य पूजन क्या है?
उत्तर- जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नेवेद्य, दीप, धूप, फल आदि अष्ट द्रव्य चढ़ा कर भगवान का गुणानुवाद करना द्रव्य पूजन है।
9.भाव पूजन क्या है?
उत्तर- अष्ट द्रव्य के बिना मन के जिनेन्द्र भगवान के स्तवन, स्तोत्र, भजन, कीर्तन, ध्यान आदि से गुणगान करना भाव पूजन है।
10.द्रव्य पूजन और भाव पूजन करने का अधिकारी कौन है?
उत्तर- द्रव्य पूजन करने का अधिकारी श्रावक है, गृहस्थ है (द्रव्य पूजन में भी भावों की मुख्यता है)। भाव पूजन करने का अधिकारी श्रमण (साधु) है।
11.क्या पूजन के और भी भेद हैं?
उत्तर- जिनागम में पूजन के पांच प्रकार हैं-
(1) नित्यमह पूजन (2) सर्वतोभद्र पूजन (3) कल्पदु्रम पूजन (4) अष्टान्हिका पूजन (5) इन्द्रध्वज पूजन