Bhaktambar stotra 19 to 24 with meaning and riddhi mantra -
Nidhi Ajmera - 06-17-2021
किं शर्वरीषु शशिनाह्नि विवस्वता वा, युष्मन्मुखेन्दु- दलितेषु तमःसु नाथ!
निष्पन्न - शालि-वन-शालिनी जीव-लोके, कार्य कियज्जल - धरै-र्जल-भार-नम्रै :: ॥
नाथ आपका मुख मण्डल जब तम का नाशक है।
तब दिन में रवि रात्रि में शशि क्यों आवश्यक है ?
फसल धान्य की पकी हुई जब खेतों में चहुँ ओर ।
तब जलपूरित मेघ व्यर्थ जो शोर मचाते घोर ।।
मुझे प्रयोजन मात्र आपसे जग से कुछ ना काम ।
आत्म प्रकाशी आदीश्वर को बारम्बार प्रणाम ।
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है।
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (19)
ॐ ह्रीं अर्हम् सर्व विक्रिया बुद्धि ऋद्धये सर्व विक्रिया बुद्धि ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । ( 19 )
ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाश, नैवं तथा हरि -हरादिषु नायकेषु।
तेजःस्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काच -शकले किरणाकुलेऽपि
स्वाभाविक ज्योतिर्मय मणि में जो कान्ति होती।
चमकदार वह काँच खण्ड में कभी नहीं होती।।
जो कैवल्यज्ञान प्रभुवर में स्व-पर प्रकाशी है।
वैसा ज्ञान नहीं हरिहर में ये जग-वासी हैं ।।
प्रभु ज्ञान का अनन्तवाँ भी भाग नहीं इनमें।
कैसे तुलना करें अल्पमति जन में और जिन में ।।
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है।
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (20)
ॐ ह्रीं अर्हम् नभ स्थल गामि चारण क्रिया ऋद्धये नभ स्थल गामि चारण क्रिया ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (20)
मन्ये वरं हरि- हरादय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति ।
किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः, कश्चिन्मनो हरति नाथ ! भवान्तरेऽपि ॥
हरिहरादि अच्छे हैं ऐसा मानूँ मैं जिनराज ।
क्योंकि उन्हें देखकर मन सन्तुष्ट आपमें नाथ ।।
प्रभु आपके दर्शन से क्या लाभ मुझे होगा ?
अन्य देव भव-भव में अब ना मन हर पायेगा।।
ब्याजोक्ति इस अलंकार में कहना यह चाहूँ।
सर्वश्रेष्ठ प्रभु मात्र आपको त्रियोग से ध्याऊँ ।।
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है।
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। ( 21 )
ॐ ह्रीं अर्हम् जल चारण क्रिया ऋद्धये जल चारण बुद्धि क्रिया ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । ( 21 )
स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता।
सर्वा दिशो दधति भानि सहस्र-रश्मि, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशु-जालम् ॥
जग में कई सैंकड़ो नारी पुत्र जन्म देती।
किन्तु आपसे सुत की माँ सामान्य नहीं होती।।
एकमात्र ही मरूदेवी माँ महान् कहलायी।
प्रथम तीर्थकर जिनशासन की शान पुत्र पायी ।।
पूर्व दिशा ही एक अनोखी दिनकर उदित करे।
सभी दिशा-विदिशाएँ ग्रह तारों को प्रकट करें ।।
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है।
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (22)
ॐ ह्रीं अर्हम् जंघा चारण क्रिया ऋद्धये जंघा चारण बुद्धि क्रिया ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । ( 22 )
त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस मादित्य- वर्ण- ममलं तमसः पुरस्तात् ।
त्वामेव सम्य- गुपलभ्य जयन्ति मृत्युं, नान्य: शिव: शिवपदस्य मुनीन्द्र! पन्थाः ॥
नाथ आपको मुनिजन माने परम पुरूष महान् ।
मोह तमस निर्मुक्त विमल रवि से भी तेजोमान।।
सम्यक् उपासना करके वे मृत्युंजयी होते ।
नाथ आपको तज कर सुखकर शिव पथ ना पाते ।।
वीतराग जिनवर की भक्ति मुक्ति का पथ है।
मोक्ष महल तक जाने का यह ही सम्यक् रथ है ।।
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है।
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है ।। ( 23 )
ॐ ह्रीं अर्हम् फल पुष्प पत्र चारण क्रिया ऋद्धये फल पुष्प पत्र चारण क्रिया ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (23)
त्वा-मव्ययं विभु-मचिन्त्य-मसंख्य-माद्यं, ब्रह्माणमीश्वर- मनन्त- मनङ्ग- केतुम् ।
योगीश्वरं विदित- योग- मनेक- मेकं, ज्ञान स्वरूप - ममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥
सज्जन कहें आपको अव्यय विभो अचिन्तय अनन्त ।
ब्रह्मा ईश्वर आद्य अमल औ असंख्य हो भगवन्त ।
मदन विजेता योगीश्वर प्रभु एकानेक जिनेश ।
ज्ञान स्वरूपी विदित योग हो आदिनाथ परमेश।।
समवसरण में सहस्त्र नाम से भक्ति इन्द्र करें।
अल्प शक्तिधर अल्प नाम से हम गुणगान करें ।।
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है।
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है। (24)
ॐ ही अर्हम् अग्नि धूम चारण क्रिया ऋद्धये अग्नि धूम चारण किया ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि। (24)
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Nidhi Ajmera - 06-09-2023
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