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दर्शन विधि (Darshan Vidhi) - Printable Version

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दर्शन विधि (Darshan Vidhi) - scjain - 08-20-2014

मंदिर जी में प्रवेश करते समय  ध्यान रखने योग्य बाते -
१-सबसे पहिले मंदिर जी के परिसर में पहुँच कर पैर धोये,मुख की शुद्धि  ठन्डे जल से करे!मंदिर जी में प्रवेश कर मुख्य द्वार के दरवाजे/दहलीज को हाथ से स्पर्श कर,हाथ से  अपने मस्तक को स्पर्श करे क्योकि मंदिर जी भी जैनियों के पूजनीय नव देवताओं में,एक देवता-(जिनचैत्यलय) है! फिर तीन बार निसहि: का उच्चारण करे !
१-निसहि: का अर्थ है कि,मैं समस्त सांसारिक विकल्पों का त्याग कर मंदिर जी में प्रवेश कर रहा हूँ !
२-निसहि: से तात्पर्य है कि यदि मंदिर जी में कोई देवता आदि दर्शन कर रहे तो मेरे आने से उन्हें बाधा नहीं हो 
३-निसहि:से तात्पर्य जिनालय को नमस्कार हो,नमस्कार हो !
२-मंदिर जी में प्रसन्नतापूर्वक प्रवेश कर ३ बार घंटा बजाकर मन को  एकाग्रचित करे!घंटा बजाना समवशरण में बाजा बजाने का प्रतीक है!यह मांगलिक है,मंगल नाद है!प्रतिमाजी को बार२ एकाग्रचित  हो कर प्रसन्नता पूर्वक  देखे,मुस्कराते हुए प्रणाम करे !फिर ॐ(पञ्चपरमेष्ठी)जयहो!जयहो! जयहो!नमोस्तु,नमोस्तु,नमोस्तु   बोले!
३-णमोकार मंत्र शुद्ध,अर्थ समझते हुए  धीरे धीरे,ऐसे  बोले जिस से अन्य भक्तों कि पूजा में विघ्न नहीं पड़े !
४-दर्शन करते समय भगवान् जी के दाहिनी हाथ की ओर,दोनों पंजो की दूरी ४-५ अंगुल की  रखकर, खड़े होये   क्योकि सामने से दर्शन करने का विधान नहीं है और आशीर्वाद भगवान् सीधे हाथ से देते है!जो ४-५ अंगुल से अधिक पैरों के बीच  दूरी रखकर दर्शन करते हैवे आचार्यों के अनुसार अज्ञानी है!(हाथ जोड़े हुए,उठे हुए),कर्थं  पुतिका मुद्रा कहते है !
५- देवदर्शन करते समय,आप किसी अन्य  भक्त के दर्शन करने में बाधक नहीं होने चाहिए अन्यथा आपके दर्शनावरणीय कर्म का आस्रव/बंध होगा !
६- दर्शन आँखे बंद करके नहीं करने चाहिए अन्यथा वीतराग मुद्रा का  दर्शन नही होगा ! 
७- फिर चत्तारिदंडक,चत्तारि मंगल  बोले !
८-ऐसे पञ्च णमो यारो------ बोले !
९-२४ तीर्थंकरों के नाम बोले !
१०-भगवान् के समक्ष पांच अर्घ्य के  पुंज ;पांच परमेष्ठी के समक्ष ,जिनवाणी के समक्ष ४ अर्घ्य के  पुंज; प्रथमा नुयोग,करणानुयोग,चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग और मुनि श्री के समक्ष ३ पुंज अर्घ्य के उनके समयग्दर्शन, सम्यगज्ञान और समयगचारित्र  के लिए अर्पित करे!
११-देव शास्त्र गुरु,सिद्ध भगवान्,चौबीस तीर्थंकर भगवान्,मूल नायक भगवान्  का अर्घ्य अर्पित करे !
१२- भगवान् की ३ प्रदिक्षणाये लगाए!मंदिर जी में प्रतिमाये साक्षात् समवशरण का प्रतीक है,जिसमे अरिहंत भगवान् विराजमान है !पहली परिक्रमा में ,हम दाहिने  हाथ खड़े होकर तीन बार आवर्त कर एक  नमोस्तु करेंगे,फिर भगवान् के पीछे जायेंगे तीन आवर्त और एक नमोस्तु करेंगे ,इसी तरह भगवान् के बाए और सामने भी ३ आवर्त और एक नमोस्तु करें!दूसरी परिक्रमा में बेदी के  चारों कोनो में नमोस्तु करे ,तीसरी  में भी नमोस्तु करना है !परिक्रमा करते समय कोई अच्छी स्तुति बोल सकते है;प्रभु पतित पावन,मै अपावन --बोले।यदि याद हो तो दर्शन पाठ की स्तुति' सकल देव' बोले जो कि लघु समयसार है !तीन परिक्रमाएं, केवल  दिन में,भगवान् के समवशरण में चारों दिशाओं में विराजमान  भगवान के मुखों के दर्शन के लिए,और रत्नत्रय की प्राप्ति के लिए,ले !रात्रि में परिक्रमाएं नहीं लगाते जिससे हम दिखाई नहीं देने वाले जीवो  की  अनावश्यक हिंसा से बच सके!
१३-परिक्रमा के पश्चात भगवान् को पंचांग नमस्कार करे !
१४-महिलाओं को गौवासन से जबकि पुरषों  को पंचांग  नमस्कार करना चाहिए!आचार्यों ने लिखा है कि यदि महिलाये अज्ञानता वश यदि  पुरुषवत नमस्कार करती है तो वे दंड की पात्र  है !
१४-मंदिर जी में मौजे पहिनकर नहीं जाना चाहिए  क्योकि वे अशुद्ध होते है !
१५-गंधोदक ग्रहण करने की विधि-
गंधोदक भगवान् के अभिषेक से प्राप्त सुगन्धित पवित्र  जल है !हाथ को धोकर चम्मच अथवा कन्नी अंगुली को छोड़कर अगली दो अँगुलियों से थोडा सा गंधोदक लेकर मस्तक,नेत्र, कंठ  एवं हृदय पर धारण करे !गंधोदक लेते समय निम्न मंत्र बोले-
"निर्मलं निर्मले करणं ,पवित्रं  पापनाशनम् !
जिन गन्धोदकम् बंदे अष्ट कर्म विनाशनम्' !!
अर्थात यह निर्मल है,निर्मल करने वाला है,पवित्र है और पापों को नष्ट करने वाला है,ऐसे जिन गंधोदक कि मै वंदना करता हूँ,यह मनुष्य के अष्टकर्मो का नाशक है!गंधोदक अत्यंत महिमावान है!मैना सुंदरी जी के  द्वारा  श्रीपालजी  के शरीर पर गंधोदक छिड़कने से उनके कुष्ट रोग का निवारण हो गया था !
गंधोदक लेते समय ध्यान रखने योग्य विशेष बात है-अंगुली से एक बार गंधोदक कटोरे में से लेने के बाद पुन: वही अंगुली पुन: गंधोदक लेने के लिए,बिना धोये,गंदक के कटोरे मे डालना अनुचित है क्योकि शरीर का स्पर्श करने से वे अशुद्ध हो जाती है!


RE: दर्शन विधि (Darshan Vidhi) - sumit patni - 08-22-2014

why to devote rice and not any other thing. Chawal kyun chadhyaein