परमर्षि स्वस्ति (मंगल) विधान भाग ३
#1

सात तप ऋद्धियाँ

दीप्तं च तप्तं च तथा महोग्रं,घोरं तपो घोर परा-क्रमस्थाः|
ब्रह्मापरं घोरगुणं चरंत:,स्वस्ति क्रियासुःपरमर्षयो नः ||८!!
शब्दार्थ-
दीप्तं-दीप्त तप,च -और,तप्तं-तप्ततप,च -और तथा महोग्रं-महातप, उग्रतप,घोरंतपो-घोर तप,घोर पराक्रम-घोर पराक्रम तप,स्थाः-जो स्थित है|
ब्रह्मापरं घोर-अघोर ब्रह्मचर्य ऋद्धि, गुणाश्चरन्तः-इन गुणों का आचरण करने वाले,स्वस्ति-कल्याण,क्रियासुः-करे.परमर्षयो-परम ऋषि,नः-हम सब का कल्याण करे 
अर्थ -सात तप ऋद्धिधारी;दीप्ततप,तप्त तप, महातप,उग्रतप,घोरतप , घोरपराक्रम और घोर ब्रह्मचर्य ऋद्धियों के धारक,इन गुणों का आचरण करने वाले परमऋषि हम सब का कल्याण करे ! 
१-दीप्ततप ऋद्धि-अनेकों उपवास करने पर भी शरीर/चेहरे की काँति वृद्धि गत रहे! हमारी काँति एक दो उपवासोपरान्त ही मंद हो जाती है,चेहरा मुरझाने लगता है किन्तु दीप्ततप ऋद्धिधारीऋषियों के शरीर की कांति अनेकों उपवास करने पर भीबढ़ती ही है!धवलाजी ग्रन्थ में एक प्रसंग आया है कि गणधरदेव सर्वकाल उपवासी होते है,ये कभी आहार लेने नहीं जाते !वे समवशरण में ही दीक्षा लेते है समवशरण में तीर्थंकर भगवान् के साथ वे भी वही विराजमान रहते है,समवशरण में आहार का प्रावधान नही होता, हम और आप जैसे जीवों को भी भूख भी नहीं लगती!गणधर देव दीप्ति तप ऋद्धि से संपन्न होते ही है,वे भगवान के मोक्ष जाने के बाद भी, उपवास रखते है तब भी उनकी कांति बढ़ती ही है !
२-तप्त तप ऋद्धि-धारक ऋषियों का समस्त आहार ग्रहण करने पर भी मल मूत्र,निहार नहीं होता,समस्त आहार रक्त,वीर्य आदि में परिवर्तित होता है !
३-महा तप ऋद्धि-अपने उपवासों को जीवन भर निरंतर बढ़ाते जाना,जैसे ४-५ दिनों के उपवासों को बढ़ाते बढ़ाते १०-१५ और फिर एक माह तक के उपवास करने लगना,पुन:वापिस नहीं लौटना,यह महातप ऋद्धि होती है !
४-उग्रतप ऋद्धि-इस ऋद्धि के धारक ऋषिराज शास्त्रों में बताये गए बड़े बड़े उपवास मुक्तावली,रत्नावली आदि करने की सामर्थ्य रखते है!इनमे एक उपवास एक आहार,फिर दो उपवास एक आहार,तीन उपवास एक आहार, इस प्रकार वृद्धिगत १५ उपवास १ आहार ,१६ उपवास १ आहार,इस प्रकार १९ तक पहुंचे,फिर वापिस आते है-१९ उपवास १ आहार,१८ उपवास १ आहार,१७ उपवास १ आहार,इस प्रकार क्रम से नीचे आते आते एक व्रत और एक उपवास करते है!ये मुक्तावली, रत्नावली आदि उपवास \है !
५-घोरतप ऋद्धि-घोरतप ऋद्धिधारी ऋषिराज बड़े से बड़े उपसर्ग आने पर भी अपनी तपस्या से नहीं डिगते !
६-घोर पराक्रम ऋद्धि-तपस्या के फलस्वरूप इस ऋद्धि धारी ऋषिराज अत्यंत शक्ति शाली हो जाते है,वे चाहे तो समुद्र/पर्वत को उल्टा कर फेंक सकते है!यद्यपि वे ऐसा कभी करते नहीं है फिर भी उनकी शक्ति करने के लिए उल्लेख किया गया है ! 
७-अघोर ब्रह्मचर्य चारित्र ऋद्धि-तप के बल से इस ऋद्धि धारी ऋषिराज की सुन्दर से सुंदर देवांगनाओं के द्वारा भी रंचमात्र वासना जागृत नहीं करी जा सकती,उनके ब्रह्मचर्य व्रत को लेशमात्र विकृत नहीं कर सकता ! 
विशेष -
१-समवशरण में दीप्ति ऋद्धि धारी होने से भूख नहीं लगती किन्तु हमे भी भूख क्यों नहीं लगती ?
समाधान-समवशरण में विराजमान भगवान् विभूति संपन्न है उनके नि कट जो भी जाता है उसके कोई बाधा नहीं रहती इसलिए जितने समय (महीनो) भी समवशरण में बैठेंने पर भूख,प्यास,थकान,पसीना, मल, मूत्र,नींद आदि कोई बाधा नहीं आती!कर्म उदय के योग्य जब उन्हें द्रव्य, क्षेत्र ,भाव और काल मिलता है तब वे उदय में आकर फल देते है!चूँकि भगवान् विराजमान रहते है कर्मो के उदय के योग्य द्रव्य,क्षेत्र और काल नहीं मिलता,हम भगवान् के समक्ष उनमे ही मग्न रहते है!यह उनके समक्ष विराजमान होने का प्रताप है!निद्रा दर्शनावरणीय कर्म का उदय आया किन्तु सामने भगवान् विराजमान है इसलिए नींद ही नहीं आयेगी !
२- बड़े बड़े उपवास का फल-इनसे महान पदो चक्रवर्ती,नारायण,प्रतिनारा यण,बलभद्र तीर्थंकर पद की प्राप्ति होती है!रत्नावलि,मुक्तावलि उपवास रखने वाले मुनिराज त्रेसठ श्लाखा पुरूष बनते हैं 
दस औषधि ऋद्धियाँ
आमर्ष-सर्वौषधयस्तथाशी,र्विषाविषा दृष्टिविषाविषाश्च |
स-खिल्ल-विड्ज्जल-मलौषधीशा ,स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः !!९!!
शब्दार्थ-आमर्ष-आमर्ष औषध,सर्वौषध-सर्वौषधयस्तथ +आशीर्विषाविषा -आशिर्विषाविष(औषध ऋद्धि ),आशिर्विष(रस ऋ द्धि) , दृष्टिविषाविषाश्च {दृष्टिविष(रस ऋद्धि)+दृष्टि अविष(औषध ऋद्धि )}सखिल्-खिल औषधि , विड्ज्जल-विडौषध,जल औषधि,मलौषधीशाः-मलौषधि, स्वस्ति-कल्याण, क्रियासुः-करे, परमर्षयो-परम ऋषि, नः-हम सब का !
अर्थ-औषध ऋद्धिया-आमर्ष औषध,सर्वौर्षध ,आशिर्विषाविष औषध,दृष्टि विषाविषा औषध,क्ष्वेलौषधि (खिल औषधि),विडौषध ऋद्धि, जल्लौषधी, मलौषधि और आस्थि विष रस ऋद्धि ,दृष्टि विष रस ऋद्धि, धारक परम ऋषि हम सब का कल्याण करे !
१-आमर्ष औषध ऋद्धि:-जिनके शरीर को स्पर्श करती वायु के स्पर्श से ही रोग ठीक हो जाए!वे आमर्षऔषध ऋद्धिधारीऋषि होते है!रोगी का शरीर, आमर्ष औषध ऋद्धिधारी ऋषिराज के शरीर को स्पर्श करती, वायु का स्पर्श करते ही निरोगी हो जाता है ! 
२-सर्वौषध ऋद्धि-जिन ऋषि राज के बालो/नाखून के छूने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है वे सर्वौषध ऋद्धि धारी होते है !
३ आशिर्विषाविष औषधऋद्धि-जिन ऋषिराज के आशीर्वाद(कहने मात्र) से ही विष निर्विष हो जाए,आशिर्विषाविष औषध ऋद्धि धारी होते है !
४-दृष्टि विषाविष औषध ऋद्धि-जिन ऋषि राज की दृष्टि मात्र से रोगी का विष निर्विष हो जाता है वे दृष्टि विषाविषा औषध ऋद्धि धारक होते है !
५-क्ष्वेलौषध(खिल्ल) ऋद्धि-जिन ऋषिराज के कफ.नाक,थूक आदि के स्पर्श से ही रोगी निरोगी हो जाता है वे क्ष्वेलौषध(खिल्ल)ऋद्धिधारी होते है !
६-विडौषध ऋद्धि-जिन ऋषिराज के मल मूत्र आदि के स्पर्श से रोग दूर हो जाता है वे विडौषध ऋद्धि धारी होते है !
७-जल्लौषधी ऋद्धि-जिनऋषि राज के पसीने के स्पर्श से रोग दूर हो जाए वे जल्लौषधी ऋद्धिधारी होते है !
८-मलौषधी ऋद्धि-जिनऋषिराज के नाक कान थूक आदि के मल का स्पर्श औषधि का कार्य करने से रोग दूर हो जाता है वे मलौषधी ऋद्धि धारी होते है !
रस ऋद्धियाँ -
१-आशिर्विष रस ऋद्धि -जिन ऋषि राज के किसी के लिए कहने मात्र से उस पर विष चढ़ कर वह मर जाए वे आशिर्विष रस ऋद्धिधारी होते है
२-दृष्टिविष रस ऋद्धि -जिन ऋषिराज के किसी को देखने मात्र से उस पर विष चढ़ कर वह मर जाए वे दृष्टिविष रस ऋद्धिधारी होते है आमर्षौषधि,सर्वौषधि,आशीर्विषौषधि,आशीअर्विषौषधि,दृष्ट विषौषधि, दृष्टिअविषौषधि,(खिल्ल) क्ष्वलौषधि, विडौषधि,जलौषधि और मलौषधि ऋद्धियों के धारी परम ऋषि हमारा मंगल करें |
चार रस ऋद्धियाँ एवं दो अक्षीण ऋद्धियाँ
क्षीरं स्रवंतोऽत्र घृतं स्रवंतः, मधु स्रवंतोऽप्यमृतं स्रवंतः |
अक्षीणसंवास-महानसाश्च स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः !!१०!!
शब्दार्थ -क्षीरं स्रवंतोऽत्र-क्षीर स्रावी (रस) ऋद्धि घृतं-घी,स्रवंतो-स्रावी(रस )ऋद्धि, मधुस्रवंतो-मधुस्रावी(रस) रिद्धि,ऽप्यमृतं अमृत,स्रवंतः-स्रावी ऋद्धि
अक्षीण-संवास-अक्षीण संवास और अक्षीण महानसाश्च स्वस्ति क्रियाषु परमर्षयो नः
अर्थ-क्षीरस्रावी,घृतस्रावी,मधुस्रावी और अमृतस्रावी रसऋद्धि,अक्षीण-संवास और अक्षीण महानस,क्षेत्रीय ऋद्धि सहित ६४ ऋद्धि धारी परम ऋषि राज हम सब का कल्याण करे !
१-क्षीरस्रावीऋद्धि-क्षीरस्रावी ऋद्धिधारी परमऋषि के हाथ में सूखा दलीया देने पर हाथ में आते ही दूध में डूबा हुआ जैसे हो जाता है,दूध जैसे शक्ति देने वाला हो जाता है!आचार्यों ने यह भी लिखा है कि जिनके प्रवचन सुनने से ऐसा आनंद और बल मिले जैसे दूध पीने से मिलता है,वे क्ष्रीरस्रावी ऋद्धि धारी होते है !
२-घृतस्रावीऋद्धि-घृतस्रावी ऋद्धिधारी परमऋषि के हाथ में सूखी रोटी देने पर,हाथ में पहुँचते ही घी में डूबी जैसी हो जाती है!आचार्यों ने यह भी लिखा है कि जिनके प्रवचन सुनने से ऐसा आनंद और बल मिले जैसे घी के सेवन से मिलता है,वे घृतस्रावी ऋद्धिधारी होते है!
३-मधुस्रावीऋद्धि-मधुस्रावी ऋद्धिधारी परमऋषि के हाथ में रुखा,स्वाद रहित दलिये जैसे वस्तु देने पर,हाथ में आते ही मीठा हो जाता है!आचार्यों ने यह भी लिखा है कि जिनके प्रवचन सुनने से मधु जैसे मिठास मिले ,वे क्ष्रीर स्रावी ऋद्धि धारी होते है !
४-अमृतस्रावी ऋद्धि-अमृतस्रावी ऋद्धिधारी परमऋषि के हाथ में यदि विष भी दे दिया जाए तो वह अमृत बन जाता है!आचार्यों ने लिखा है कि जिनके प्रवचन सुनने से अमृत जैसे आनंद मिलता है,अमृतस्रावी ऋद्धिधारी होते है 
क्षेत्र ऋद्धि -
१-अक्षीण संवास क्षेत्र ऋद्धि-अक्षीण संवास ऋद्धिधारी परमऋषि के प्रताप से छोटे से कमरे में कितने भी प्राणी समा जाते है किन्तु स्थान कि कमी नहीं होती!उद्धाहरण के लिए इस ऋद्धिधारी ऋषि के प्रताप से १०'x १०'के कमरे में ५००० व्यक्ति भी आराम से,बिना एक दुसरे से कन्धा स्पर्श करे समा जायेगे!२००-४०० व्यक्ति और आने पर भी उसमे समा जायेंगे!
२-अक्षीणमहानस क्षेत्रऋद्धि-अक्षीणमहानस क्षेत्र ऋद्धिधारी परमऋषि के प्रताप से जो वस्तु उन्होंने आहार में ली हो उसका अट्टूट हो जाना अर्थात समाप्त नहीं होना!उद्धाहरण के लिए इस ऋद्धिधारी ऋषि को एक जग से दूध पिलाये,तो उस जग का दूध कितने भी व्यक्तियों को पिलाने पर भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होगा 
इन ६४ ऋद्धि धारी परम ऋषि राज हम सब का कल्याण करे !
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