10-27-2022, 02:16 PM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -9 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -111 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
उप्पादद्ठिदिभंगा विजंते पज्जएसु पज्जाया।
दव्वं हि संति णियदं तम्हा दव्वं हवदि सव्वं // 9 //
आगे उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनों भावोंको द्रव्यसे अभेदरूप सिद्ध करते हैं-[उत्पादस्थितिभङ्गाः] उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य [पर्यायेषु] द्रव्यके पर्यायोंमें [विद्यन्ते रहते हैं, और [हि] निश्चयकरके वे [पर्यायाः] पर्याय [द्रव्ये] द्रव्यमें [सन्ति] रहते हैं। तस्मात ] इस कारणसे [नियतं] यह निश्चय है, कि [सर्व] उत्पादादि सब [द्रव्यं द्रव्य ही [भवति] हैं, जुदे नहीं हैं।
अन्वयार्थ- (उप्पा दट्ठिदि भंगा) उत्पाद, ध्रौ व्य और व्यय (पज्जयेसु) पर्यायो में (विज्जं ते) वर्त ते हैं (पज्जा या) पर्याय ें (णियदं) निय म से (दव्वं हि संति ) द्रव्य में होती है (तम्हा ) इस कारण (सव्वं ) वह सब (दव्वं हवदि ) द्रव्य हैं।
भावार्थ-उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यभाव पर्यायके आश्रित हैं और वे पर्याय द्रव्यके आधार हैं, पृथक् नहीं हैं, क्योंकि द्रव्य पर्यायात्मक है। जैसे वृक्ष स्कंध (पिड), शाखा और मूलादिरूप है, परन्तु ये स्कंध-मूल-शाखादि वृक्षसे जुदा पदार्थ नहीं हैं, इसी प्रकार उत्पादादिकसे द्रव्य पृथक् नहीं है, एक ही है / द्रव्य अंशी है, और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य अंश हैं। जैसे वृक्ष अंशी है, बीज अंकुर वृक्षत्व अंश हैं / ये तीनों अंश उत्पाद-व्यय और ध्रुवपनेको लिये हुए हैं, बीजका नाश अंकुरका उत्पाद और वृक्षत्वका ध्रुवपना है। इसी प्रकार अंशी द्रव्यके उत्पद्यमान विनाशिक और स्थिरतारूप-ये तीन पर्यायरूप अंश हैं, सो उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वसे संयुत हैं / उत्पाद-व्यय-ध्रुवभाव पर्यायोंमें होते हैं / जो द्रव्यमें होवें, तो सबका ही नाश हो जावे / इसीको स्पष्ट रीतिसे दिखाते हैं जो व्यका नाश होवे, तो सब शून्य हो जावे, जो द्रव्यका उत्पाद होवे, तो समय समयमें एक एक द्रव्यके ही नष्ट होता, तो अवश्य ही तीन समय होते, परंतु ऐसा नहीं है" / पर्यायसे उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य होते हैं, इस कारण एक ही समयमें सधते हैं। जैसे दंड, चक्र, सूत, कुंभकारादिके निमित्तसे घटके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही मृत्पिण्डके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें मृत्तिका अपने स्वभावको नहीं छोड़ती है, इसलिये उसी समय ध्रुवपना भी है। इसी प्रकार अंतरंग-बहिरंग कारणोंके होनेपर आगामी पर्यायके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही पूर्व पर्यायके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें द्रव्य अपने स्वभावको छोड़ता नहीं है, इसलिये उसी समय ध्रुव है। जैसे मृत्तिका द्रव्यमें घट, मृपिंड और मृत्तिकाभाव इन पर्यायोंसे एक ही समयमें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य हैं, उसी प्रकार पर्यायोंके द्वारा द्रव्यमें भी जानना चाहिये / पूर्व पर्यायका नाश, उत्तर पर्यायका उत्पाद, और द्रव्यतासे ध्रुवता, ये तीन भाव एक ही समयमें सधते हैं। हाँ, यदि द्रव्य ही उपजता, विनशता, तो एक समय अवश्य ही नहीं सधता, परंतु पर्यायकी अपेक्षा अच्छी तरह सधते हैं, कोई शंका नहीं रहती। और जैसे घट, मृत्पिड, मृत्तिकाभावरूप उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य मृत्तिकासे जुदे पदार्थ नहीं हैं, मृत्तिकारूप ही हैं, उसी प्रकार उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ये द्रव्यसे जुदा नहीं उत्पन्न होनेसे अनन्त द्रव्य हो जावें, और जो द्रव्य ध्रुव होवे, तो पर्यायका नाश होवे, और पर्यायके नाशसे द्रव्यका भी नाश हो जावे / इसलिये उत्पादादि द्रव्यके आश्रित नहीं हैं, पर्यायके आश्रित हैं। पर्याय उत्पन्न भी होते हैं, नष्ट भी होते हैं, और वस्तुकी अपेक्षा स्थिर भी रहते हैं / इस कारण वे पर्यायमें हैं, पर्याय द्रव्यसे जुदे नहीं हैं, द्रव्य ही हैं। पर्यायकी अपेक्षा द्रव्योंमें उत्पादादिक तीन भाव जानना चाहिये /
गाथा -10 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -112 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
समवेदं खलु दव्वं संभवठिदिणाससण्णिदद्वेहिं /
एकम्मि चेव समये तम्हा दव्वं खु तत्तिदयं // 10 //
आगे इन उत्पादादिकोंमें समय भेद नहीं है, एक ही समयमें द्रव्यसे अभेदरूप होते हैं, यह प्रगट करते हैं-[द्रव्यं] वस्तु [संभवस्थितिनाशसंज्ञिताथैः] उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य नामक भावोंसे [खला निश्चयकर [समवेतं] एकमेक है, जुदी नहीं है, [च] और वह [एकस्मिन् एव समये] एक ही समयमें उनसे अभेदरूप परिणमन करती है। [तस्मात् ] इस कारण [खलु] निश्चयकरके [तत् त्रितयं] वह उत्पादादिकत्रिक [द्रव्यं] द्रव्यस्वरूप है-एक ही है /
भावार्थ-यहाँ कोई वितर्क करे, कि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य एक समयवर्ती हैं यह सिद्धान्त ठीक नहीं हैं, इन तीनोंका समय जुदा जुदा है, क्योंकि जो समय उत्पादका है, वह उत्पाद ही से व्याप्त है, वह ध्रौव्य-व्ययका समय नहीं है / जो ध्रौव्यका समय है, वह उत्पाद-व्ययके मध्य है, इससे भी जुदा ही समय है / और जो नाशका समय है, उस समय उत्पाद-ध्रौव्य नहीं हो सकते / इस कारण यह समय भी पृथक् है / इस प्रकार इनके समय पृथक् पृथक् संभव होते हैं; सो इस कुतर्कका समाधान आचार्य महाराज इस प्रकार करते हैं कि, "जो द्रव्य आपही उत्पन्न होता, आप ही स्थिर होता, आप ही नष्ट होता, तो अवश्य ही तीन समय होते, परंतु ऐसा नहीं है" / पर्यायसे उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य होते हैं, इस कारण एक ही समयमें सधते हैं। जैसे दंड, चक्र, सूत, कुंभकारादिके निमित्तसे घटके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही मृत्पिण्डके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें मृत्तिका अपने स्वभावको नहीं छोड़ती है, इसलिये उसी समय ध्रुवपना भी है। इसी प्रकार अंतरंग-बहिरंग कारणोंके होनेपर आगामी पर्यायके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही पूर्व पर्यायके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें द्रव्य अपने स्वभावको छोड़ता नहीं है, इसलिये उसी समय ध्रुव है। जैसे मृत्तिका द्रव्यमें घट, मृपिंड और मृत्तिकाभाव इन पर्यायोंसे एक ही समयमें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य हैं, उसी प्रकार पर्यायोंके द्वारा द्रव्यमें भी जानना चाहिये / पूर्व पर्यायका नाश, उत्तर पर्यायका उत्पाद, और द्रव्यतासे ध्रुवता, ये तीन भाव एक ही समयमें सधते हैं। हाँ, यदि द्रव्य ही उपजता, विनशता, तो एक समय अवश्य ही नहीं सधता, परंतु पर्यायकी अपेक्षा अच्छी तरह सधते हैं, कोई शंका नहीं रहती। और जैसे घट, मृत्पिड, मृत्तिकाभावरूप उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य मृत्तिकासे जुदे पदार्थ नहीं हैं, मृत्तिकारूप ही हैं, उसी प्रकार उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ये द्रव्यसे जुदा नहीं हैं, द्रव्यस्वरूप ही हैं |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
यह गाथा बहुत अच्छी गाथा है। कुछ नया भाव इस गाथा में लि खा है। ‘उप्पा दट्ठिदि भंगा’ ‘उप्पा द’ माने उत्पा द, ‘ठिदि ’ माने स्थिति और ‘भंग’ माने विनाश। उत्पा द, स्थिति , जिसे हम ध्रौ व्य कहते हैं और ‘भंग’ या नी विनाश, जिसे हम व्यय कहते हैं। यह सब एक ही नाम है, एक ही पर्यायवा ची शब्द हैं। ये ‘विज्जं ते’ रहते हैं। कहा ँ रहते हैं? ‘पज्जे सु’ ये सभी पर्याय ों में रहते हैं। या नी उत्पा द, स्थिति और व्यय- जो ये तीनों धर्म होते हैं, ये तीनों धर्म कि समें होते हैं? पर्याय ों में विद्यमान रहते हैं। ‘पज्जा या दव्वं हि संति ’ और पर्याय निय म से द्रव्य ही होते हैं। पर्याय निय म से द्रव्य में ही होती हैं। माने जो बहुत सारी पर्याय हो गई, वह ी निय म से द्रव्य हो जाता है। ‘तम्हा दव्वं हवदि सव्वं ’ इसीलि ए द्रव्य ही सब कुछ होता है माने सब कुछ पर्याय द्रव्य में ही हुआ करती है।
पर्यायों के समूह को द्रव्य कहते हैं
यह समझने की कोशि श करें कि पर्याय उत्पाद, स्थिति और भंग, ये तीनों ही रूप होती हैं। यानि उत्पा द भी पर्याय है, व्यय भी पर्याय है और स्थिति भी पर्याय है। उत्पा द में भी पर्याय है, व्यय में भी पर्याय है और स्थिति में भी पर्याय है। समझ आ रहा है? क्या कहते हैं? ये सब पर्याय ों में रहते हैं। ये तीनों धर्म होते हैं- उत्पाद, व्यय और ध्रौ व्य। स्थिति का मतलब क्या हो गया ? ध्रौ व्य। ध्रुवपना, ध्रुवत्व। ये तीनों ही धर्म है, जो वस्तु में प्रति समय घटित होते हैं। ये तीनों ही धर्म कि स में होते हैं? पर्याय ों में होते हैं। इस चीज को या द रखना। उत्पा द, व्यय और ध्रौ व्य, तीनों कि स में होते हैं? पर्याय ों में होते हैं, पर्याय में होते हैं और पर्याय ही द्रव्य कहलाता है। क्यों कहलाता है? जो पर्याय ों का समूह है, वह ही द्रव्य है क्योंकि अनेक पर्याय ों के समूह से ही द्रव्य बनता है। द्रव्य का मतलब क्या हो गया ? जो पर्याय ों का समूह है, विस्ता र है, उस सबको मि ला दिया जाए तो वह ही द्रव्य होता है। उस पर्याय समूह रूप द्रव्य को ही यहा ँ पर सब कुछ कहा गया है। माने वह द्रव्य जो होता है, वो अनेक पर्याय ों का समुदाय है और वह ी द्रव्य के रूप में आ जाता है। जैसे कि एक
कोई भी अंश होता है और एक अंशी होता है। अंशी का मतलब अंश को धारण करने वा ला और अंश माने उसका एक-एक portion। जैसे कि एक गोला है और वह गोला जिसमें कि 360 डि ग्री का पूरा का पूरा angle बन जाता है। अब उस गोले का जो पूरा का पूरा परि णमन है, वह ही उसका द्रव्य है। उस द्रव्य का एक-एक अंश, एक-एक कोण, जो हम नापेंगे एक-एक point, वे उसके क्या हो गए? अंश हो गए। अंशी क्या हो गया ? पूरा गोला हो गया । उसका एक-एक कोण एक डि ग्री का, दो डि ग्री का, तीन डि ग्री का, जो भी उसमें कोण बनते चले जाएँगे। वह क्या हो गया ? वह उसका अंश हो गया । अंशों का ही समूह अंशी होता है और अंशी में ही अंश होते हैं। अंशों के समूह में कमी कर दी जाएगी तो अंशी पूर्ण नहीं होगा। अंशी, अंशों के समूह के बि ना नहीं होगा। इसी तरह से पर्याय ों का समूह द्रव्य है। पर्याय ों के समूह के साथ ही द्रव्य का कहना होता है, द्रव्य का सद्भाव होता है। वह ी यहा ँ कहा जा रहा है कि पर्याय , जो समूह रूप में होती है, वह ी द्रव्य कहलाती है।
उत्पा द, व्यय, ध्रौ व्य- तीनों चीजें पर्या यों में रहती हैं
अब हम इसको इस तरीके से और समझें कि यहा ँ पर तीनों चीजों को पर्याय कहा जा रहा है; उत्पा द को भी, स्थिति को भी और व्यय को भी। बहुत पहले मैंने इस विषय की चर्चा की थी, द्रव्य-गुण-पर्याय की व्याख्या करते हुए की थी। उस समय लोगों के लि ए यह प्रश्न उठ गया था कि ये ध्रौ व्य पर्याय कैसे हो सकती है? उस समय पर हमने कहा था कि ध्रौ व्य भी पर्याय होती है। ध्रौ व्य भी पर्यायार् थिक नय से पर्याय को ग्रह ण करता है और ध्रौ व्य भी उसकी एक पर्याय रूप अंश ही हैं। कई लोगों को यह बात समझ नहीं आयी कि ध्रौ व्य तो द्रव्य होता है, तो ध्रौ व्य पर्याय कैसे हो गई? अब यहा ँ लि खा हुआ है, इसको देखो। ‘उप्पा दट्ठिदि भंगा विज्जं ते पज्जयेसु’ लि खा है न। ये तीनों ही चीजें कि स में रहती है? पर्याय ों में रहती है। यह नहीं कहा कि उत्पा द और व्यय तो पर्याय ों में है और ध्रौ व्यपना द्रव्य में है। ऐसा नहीं है। ये तीनों ही चीजें पर्याय है। इनको अपने दिमाग में उतारना पड़े ड़ेगा। उत्पा द और व्यय पर्याय है, यह तो समझ में आता है कि एक पर्याय नष्ट हुई, दूसरी पर्याय उत्प न्न हो गई तो पर्याय का उत्पा द हुआ और पर्याय का विनाश हो गया । ये ध्रौ व्य भी पर्याय में ही होता है। क्या समझ आया ? इसको समझने की कोशि श करो क्योंकि ध्रौ व्य का मतलब है- उस द्रव्य का, द्रव्यपना। जिसे हम क्या बोलते हैं? द्रव्यपना। पना समझते हो? पना माने? उसका जो रस होता है, उसका जो सार होता है, उसको पना कहते हैं। जैसे- नीम के वृक्ष का बीज है, तो बीज में भी आपको वृक्ष पना नजर आएगा। अब वह नीम का बीज होगा, बीज से अंकुर बनेगा तो बीज नष्ट हो गया । अंकुर का उत्पा द हो गया तो बीज का व्यय हुआ। अंकुर का उत्पा द हुआ, बीज से अंकुर बन गया लेकि न उस दोनों के बीच में जो वृक्ष पना है, नीम का भाव , नीम का वृक्ष त्व है, वह वैसा का वैसा ही रहेगा। मतलब अगर आप उस बीजपने को देखेंगे तो उसमें नीम का वृक्ष पना, वृक्ष का भाव उसके बीजत्व में भी दिखाई देगा और उसके अंकुर में भी दिखाई देगा। अब दिखाई देने से मतलब यह सोच सकते हो। अगर आपको कभी taste करना पड़े ड़े तो देखना कभी नीम के बीज का taste कैसा होता है? मीठा होगा? कड़वा होगा? मतलब उसका अगर बीज है, तो बीज में भी नीम की तरह ही उसमें कड़वा पन आएगा। जब अंकुर के रूप में उत्प न्न होगा तो अंकुर में भी वह ी कड़वा पन आएगा तो इसी को कहते है, पना। पना माने उसका जो रस है, वह उसके साथ में जुड़ा हुआ है और वह ी रस ध्रौ व्य कहलाता है, ध्रौ व्यपने का भाव । वह ी आचार्य यहा ँ कह रहे हैं कि जैसे उत्पा द में पर्याय है या यूँ कहे कि पर्याय में उत्पा द है और व्यय में पर्याय है या पर्याय में व्यय है, दोनों एक ही बात है। इसी तरीके से उसमें जो ध्रौ व्य भाव है, स्थिति पने का भाव है, उसमें भी पर्याय है और पर्याय में ही ध्रौ व्य है। समझ आ रहा है? धीरे-धीरे आएगा, कोशि श करो क्योंकि अभी तक हमने क्या समझ रखा है कि ध्रौ व्य भाव जो है, वह द्रव्य होता है। यहा ँ यह कह रहे हैं, ध्रौ व्यपना भी पर्याय में है क्योंकि उसमें जो वृक्ष पने का भाव जुड़ा हुआ है, वह वृक्ष पने का भाव है। वृक्ष नहीं है, वह अभी। वृक्ष वह कब कहलाएगा? जब उस बीज से अंकुर, अंकुर से पौधा, पौधा से शाखाएँ बनेंगी, उपशाखाएँ बनेंगी। फिर उसमें फल लगेंगे। उसमें फिर वृक्ष की नि बौरी आएँगी। जब पत्ते आ जाएँगे, कोंपले आ जाएँगी तब वह वृक्ष कहलाय ेगा। वह उसका एक सम्पूर्ण द्रव्य कहलाएगा। उससे पहले अगर हम उस वृक्ष को देखते हैं तो वह पर्याय ों के समूह के रूप में ही देख पाएँगे। अनेक पर्याय ों का समूह रूप जो वृक्ष होता है, उस वृक्ष में ये तीनों चीजें होती हैं, बीज भी, अंकुर भी और उसके साथ में उसका वृक्ष पना भी।
ध्रौ व्यपना पर्या य के साथ बढ़ता जाता है
अब आप इस वृक्ष को देखो तो उसमें देखो, वृक्ष पना कहा ँ तक व्याप्त है? वृक्ष पना पूरे वृक्ष में व्याप्त है। उसकी एक पत्ती भी है, कोंपल भी है, नि बौरी भी है, तो उसमें भी वृक्ष पना, ये उसी वृक्ष का अंश है। ये सब कि सके हैं? ये सब उसी वृक्ष के अवयव है, उसी एक वृक्ष के अंश है। क्या समझ आया ? वृक्ष पना सब में व्याप्त है। नि बौरी को भी हम उस वृक्ष का ही अंश कहेंगे, कोंपल होगी उसको भी, पत्ता होगा उसको भी हम उस नीम के वृक्ष का अंश कहेंगे, वृक्ष पना सब में है। जो वृक्ष है, वह वृक्ष का भाव हो गया - द्रव्य रूप में। उसके जितने भी अवयव है, वे सब हो गई उसकी पर्याय । जो बीज से लेकर पूरे वृक्ष बनने तक व्याप्त हैं और उसी व्याप्त पने में उत्पा द भी है, व्यय भी है और ध्रौ व्य भी है। ध्रौ व्यत्वपना भी उसमें व्याप्त रहता है। उत्पा द एक का होता है, व्यय दूसरी का हो जाता है लेकि न ध्रौ व्यपना उसमें व्याप्त रहता है। वह भी उसकी पर्याय के साथ ही रहता है क्योंकि जब बीज से अंकुर बना तो वह अंकुरपने की पर्याय तक ध्रौ व्यत्वपना रहा । फिर अंकुर और पौधे के रूप में वृद्धि को प्राप्त हुआ तो उसकी पर्याय और बढ़ गई, उसमें ध्रौ व्यत्वपना और बढ़ गया । फिर वह आगे एक पौधा बना और आगे स्कन्ध बना तो उसका वह ध्रौ व्यपना और बढ़ गया । इस तरह से उसका वह ध्रौ व्यपना भी उस पर्याय के साथ ही बढ़ता चला जाता है। क्या मतलब हुआ? मतलब यह हुआ कि पर्याय भी ध्रौ व्यपने के साथ चलती है और ध्रुवता भी उसकी पर्याय में ही रहती है। समझ आ रहा है? ध्रौ व्यपना समझो। ध्रौ व्यत्व, वृक्ष त्व, यूँ समझो। इसी उदाह रण से समझो जैसे कि बीज, अंकुर और वृक्ष त्व, उसमें जो वृक्ष पना है, वह वृक्ष पना तो बीज में भी है। बीज में भी वृक्ष है कि नहीं? बीज में वृक्ष छि पा है। फिर अंकुर में आ गया तो अंकुर में भी वृक्ष पना आ गया और बड़ा हुआ, पौधा बन गया तो उसमें भी वृक्ष पना आ गया । फिर उसके आगे स्कन्ध आदि पर्याय बनी तो उसमें भी वृक्ष पना बना रहा । वृक्ष पना जो है, वह उसका ध्रौ व्यपना है; यह कहने का मतलब है। पर्याय ों का विनाश हो रहा है, पर्याय ों का ही उत्पा द हो रहा है और पर्याय ों के रूप में ही वह ध्रौ व्यपना बना हुआ है क्योंकि अभी वह पूरा द्रव्य नहीं बन गया । क्या समझ आ रहा है? उस द्रव्य में ये तीनों चीजें होंगी। ये तीनों उसके अंश हो गए। उत्पा द, व्यय और ध्रौ व्यपना उसी द्रव्य के अंश हो गए। द्रव्य उन तीनों की मि ली हुई चीज कहलाय ी। एक चीज का नाम द्रव्य नहीं है। केवल ध्रौ व्यपने का नाम द्रव्य नहीं है, उत्पा दपने का नाम द्रव्य नहीं है और व्ययपने का नाम भी द्रव्य नहीं हैं। क्योंकि एकपने का नाम द्रव्य हो जाएगा तो क्या होगा? मान लो आपने कहा कि उत्पा द ही द्रव्य है। यदि द्रव्य का उत्पा द हो गया तो एक साथ जो उत्पा द होगा, उसी को द्रव्य कहोगे। नाश होगा तो उसको द्रव्य नहीं कहोगे। फिर क्या होगा? फिर द्रव्य हमेशा आपको अनन्त उत्पा द की पर्याय ों के रूप में दिखाई देगा। अतः यह दोष आ जाएगा। अगर हमने केवल नाश को ही द्रव्य माना। द्रव्य का नाश होता है। यदि द्रव्य का नाश हो जाय ेगा तो द्रव्य का नाश होने पर उसका कोई उत्पा द नहीं होगा। फिर तो शून्यता आ जाएगी। द्रव्य का नाश होने पर सब शून्य हो जाएगा, कोई भी द्रव्य नहीं कहलाएगा। समझ आ रहा है?
द्रव्य का नहीं पर्याय का उत्पाद व व्यय होता है
शोर-गुल में भी समझना पड़ता है, थोड़ा-थोड़ा। वह भी उत्पाद, व्यय, ध्रौ व्य है। कोई नयी आवा ज आयी, उत्पा द हुआ, पुरानी आवा ज जो चल रही थी वह थोड़ी सी विनष्ट हो गयी, वह उसका व्यय हो गया और आवा ज तो सामान्य रूप से जो चल रही थी, आवा जपना वह तो चल ही रहा है। हर चीज से समझ सकते हो। आपको तो ठीक है, mike वा ले को भी समझ आ रहा है। कि सी को भी समझ में आ सकता है, इसमें कुछ है ही नहीं। एक चीज जब उत्प न्न हो रही है, वह भी पर्याय है। द्रव्य नहीं उत्पन्न हो रहा है। उत्प न्न क्या हो रहा है? पर्याय ही उत्प न्न हो रही है, पर्याय ही नष्ट हो रही है और पर्याय ही ध्रौ व्यपने में बनी रहती है। द्रव्य नष्ट नहीं होता। अगर द्रव्य नष्ट हो गया तो सब शून्य हो जाएगा। द्रव्य का ही उत्पा द होगा तो द्रव्य ही उत्प न्न होता चला जाएगा। फिर द्रव्य अनन्त हो जाएगा। एक ही द्रव्य अनन्त रूप में हो जाएगा। पर्याय अनन्त नहीं होगी, फिर द्रव्य ही अनन्त हो जाएगा अगर द्रव्य ही उत्प न्न होता चला गया । द्रव्य ही ध्रुव रह गया तो कोई भी उसमें परिवर्त न नहीं हो पाएगा क्योंकि परिवर्त न में हमने क्या बताया ? एक भाव का अभाव । माने एक चीज का नाश, एक चीज की उत्पत्ति । यह तभी होगी जब वह पर्याय में ध्रौ व्यपना मानेंगे। द्रव्य में अगर हमने ध्रौ व्य माना कि द्रव्य ध्रुव रहा तो फिर हम यह कह ही नहीं सकते कि इसमें पर्याय उत्प न्न हुई और यह पर्याय नष्ट हो गई और कोई नई चीज बन गई। ध्रौ व्यपना तभी बनेगा जब हम उसको पर्याय में माने कि पर्याय में ध्रुवपना है। बीज और वृक्ष समझ में आया कि नहीं? अब दूध और दही से समझने की कोशि श करो। दूध भी एक पर्याय है और दही भी एक पर्याय है। दूध की पर्याय का नाश हुआ, दही की पर्याय का उत्पा द हुआ लेकि न दुग्धपना, दुग्धता का भाव , जिसे गौरस बोलते हैं। यह आम का रस नहीं है, यह पपीते का रस नहीं है, ये गौरस है, ये गाय के दूध का ही बना हुआ दही है। यह कहलाएगा गौरस, गोरसपने का भाव दूध में भी है और दही में भी है। वह दूध की पर्याय
इस वीडियो में प्रत्येक द्रव्य में सत् रूप, उसमें प्रति समय होने वाला उत्पाद और व्यय बताया गया है।
◼ उत्पाद,व्यय एवम ध्रौव्य ये तीनों धर्म पर्याय में विद्यमान रहते हैं।
◼ उत्पाद भी एक पर्याय है व्यय भी एक पर्याय है एवम ध्रौव्य भी एक पर्याय है अर्थात् द्रव्य अनेक पर्यायों का समुदाय है।
◼ पर्यायों का समूह ही द्रव्य कहलाता है क्योंकि अनेक पर्यायों के समूह से मिलकर ही द्रव्य बनता है।
◼ कुछ लोगों के मन में प्रश्न उठता है ध्रौव्य तो एक द्रव्य होता है । यह पर्याय कैसे हो सकती है? इसका निराकरण भी इस गाथा के माध्यम से हो जाता है।
◼ सत् द्रव्य का लक्षण है।
◼ पर्याय मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है, एक अन्वय रूप और दूसरी व्यतिरेक रूप।
◼ उत्पाद एवं व्यय हमें दिखाई देते है लेकिन ध्रौव्य हमे देखना पड़ता है।
◼ उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य को गुरुवर ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से समझाया है।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -9 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -111 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
उप्पादद्ठिदिभंगा विजंते पज्जएसु पज्जाया।
दव्वं हि संति णियदं तम्हा दव्वं हवदि सव्वं // 9 //
आगे उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनों भावोंको द्रव्यसे अभेदरूप सिद्ध करते हैं-[उत्पादस्थितिभङ्गाः] उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य [पर्यायेषु] द्रव्यके पर्यायोंमें [विद्यन्ते रहते हैं, और [हि] निश्चयकरके वे [पर्यायाः] पर्याय [द्रव्ये] द्रव्यमें [सन्ति] रहते हैं। तस्मात ] इस कारणसे [नियतं] यह निश्चय है, कि [सर्व] उत्पादादि सब [द्रव्यं द्रव्य ही [भवति] हैं, जुदे नहीं हैं।
अन्वयार्थ- (उप्पा दट्ठिदि भंगा) उत्पाद, ध्रौ व्य और व्यय (पज्जयेसु) पर्यायो में (विज्जं ते) वर्त ते हैं (पज्जा या) पर्याय ें (णियदं) निय म से (दव्वं हि संति ) द्रव्य में होती है (तम्हा ) इस कारण (सव्वं ) वह सब (दव्वं हवदि ) द्रव्य हैं।
भावार्थ-उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यभाव पर्यायके आश्रित हैं और वे पर्याय द्रव्यके आधार हैं, पृथक् नहीं हैं, क्योंकि द्रव्य पर्यायात्मक है। जैसे वृक्ष स्कंध (पिड), शाखा और मूलादिरूप है, परन्तु ये स्कंध-मूल-शाखादि वृक्षसे जुदा पदार्थ नहीं हैं, इसी प्रकार उत्पादादिकसे द्रव्य पृथक् नहीं है, एक ही है / द्रव्य अंशी है, और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य अंश हैं। जैसे वृक्ष अंशी है, बीज अंकुर वृक्षत्व अंश हैं / ये तीनों अंश उत्पाद-व्यय और ध्रुवपनेको लिये हुए हैं, बीजका नाश अंकुरका उत्पाद और वृक्षत्वका ध्रुवपना है। इसी प्रकार अंशी द्रव्यके उत्पद्यमान विनाशिक और स्थिरतारूप-ये तीन पर्यायरूप अंश हैं, सो उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वसे संयुत हैं / उत्पाद-व्यय-ध्रुवभाव पर्यायोंमें होते हैं / जो द्रव्यमें होवें, तो सबका ही नाश हो जावे / इसीको स्पष्ट रीतिसे दिखाते हैं जो व्यका नाश होवे, तो सब शून्य हो जावे, जो द्रव्यका उत्पाद होवे, तो समय समयमें एक एक द्रव्यके ही नष्ट होता, तो अवश्य ही तीन समय होते, परंतु ऐसा नहीं है" / पर्यायसे उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य होते हैं, इस कारण एक ही समयमें सधते हैं। जैसे दंड, चक्र, सूत, कुंभकारादिके निमित्तसे घटके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही मृत्पिण्डके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें मृत्तिका अपने स्वभावको नहीं छोड़ती है, इसलिये उसी समय ध्रुवपना भी है। इसी प्रकार अंतरंग-बहिरंग कारणोंके होनेपर आगामी पर्यायके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही पूर्व पर्यायके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें द्रव्य अपने स्वभावको छोड़ता नहीं है, इसलिये उसी समय ध्रुव है। जैसे मृत्तिका द्रव्यमें घट, मृपिंड और मृत्तिकाभाव इन पर्यायोंसे एक ही समयमें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य हैं, उसी प्रकार पर्यायोंके द्वारा द्रव्यमें भी जानना चाहिये / पूर्व पर्यायका नाश, उत्तर पर्यायका उत्पाद, और द्रव्यतासे ध्रुवता, ये तीन भाव एक ही समयमें सधते हैं। हाँ, यदि द्रव्य ही उपजता, विनशता, तो एक समय अवश्य ही नहीं सधता, परंतु पर्यायकी अपेक्षा अच्छी तरह सधते हैं, कोई शंका नहीं रहती। और जैसे घट, मृत्पिड, मृत्तिकाभावरूप उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य मृत्तिकासे जुदे पदार्थ नहीं हैं, मृत्तिकारूप ही हैं, उसी प्रकार उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ये द्रव्यसे जुदा नहीं उत्पन्न होनेसे अनन्त द्रव्य हो जावें, और जो द्रव्य ध्रुव होवे, तो पर्यायका नाश होवे, और पर्यायके नाशसे द्रव्यका भी नाश हो जावे / इसलिये उत्पादादि द्रव्यके आश्रित नहीं हैं, पर्यायके आश्रित हैं। पर्याय उत्पन्न भी होते हैं, नष्ट भी होते हैं, और वस्तुकी अपेक्षा स्थिर भी रहते हैं / इस कारण वे पर्यायमें हैं, पर्याय द्रव्यसे जुदे नहीं हैं, द्रव्य ही हैं। पर्यायकी अपेक्षा द्रव्योंमें उत्पादादिक तीन भाव जानना चाहिये /
गाथा -10 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -112 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
समवेदं खलु दव्वं संभवठिदिणाससण्णिदद्वेहिं /
एकम्मि चेव समये तम्हा दव्वं खु तत्तिदयं // 10 //
आगे इन उत्पादादिकोंमें समय भेद नहीं है, एक ही समयमें द्रव्यसे अभेदरूप होते हैं, यह प्रगट करते हैं-[द्रव्यं] वस्तु [संभवस्थितिनाशसंज्ञिताथैः] उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य नामक भावोंसे [खला निश्चयकर [समवेतं] एकमेक है, जुदी नहीं है, [च] और वह [एकस्मिन् एव समये] एक ही समयमें उनसे अभेदरूप परिणमन करती है। [तस्मात् ] इस कारण [खलु] निश्चयकरके [तत् त्रितयं] वह उत्पादादिकत्रिक [द्रव्यं] द्रव्यस्वरूप है-एक ही है /
भावार्थ-यहाँ कोई वितर्क करे, कि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य एक समयवर्ती हैं यह सिद्धान्त ठीक नहीं हैं, इन तीनोंका समय जुदा जुदा है, क्योंकि जो समय उत्पादका है, वह उत्पाद ही से व्याप्त है, वह ध्रौव्य-व्ययका समय नहीं है / जो ध्रौव्यका समय है, वह उत्पाद-व्ययके मध्य है, इससे भी जुदा ही समय है / और जो नाशका समय है, उस समय उत्पाद-ध्रौव्य नहीं हो सकते / इस कारण यह समय भी पृथक् है / इस प्रकार इनके समय पृथक् पृथक् संभव होते हैं; सो इस कुतर्कका समाधान आचार्य महाराज इस प्रकार करते हैं कि, "जो द्रव्य आपही उत्पन्न होता, आप ही स्थिर होता, आप ही नष्ट होता, तो अवश्य ही तीन समय होते, परंतु ऐसा नहीं है" / पर्यायसे उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य होते हैं, इस कारण एक ही समयमें सधते हैं। जैसे दंड, चक्र, सूत, कुंभकारादिके निमित्तसे घटके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही मृत्पिण्डके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें मृत्तिका अपने स्वभावको नहीं छोड़ती है, इसलिये उसी समय ध्रुवपना भी है। इसी प्रकार अंतरंग-बहिरंग कारणोंके होनेपर आगामी पर्यायके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही पूर्व पर्यायके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें द्रव्य अपने स्वभावको छोड़ता नहीं है, इसलिये उसी समय ध्रुव है। जैसे मृत्तिका द्रव्यमें घट, मृपिंड और मृत्तिकाभाव इन पर्यायोंसे एक ही समयमें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य हैं, उसी प्रकार पर्यायोंके द्वारा द्रव्यमें भी जानना चाहिये / पूर्व पर्यायका नाश, उत्तर पर्यायका उत्पाद, और द्रव्यतासे ध्रुवता, ये तीन भाव एक ही समयमें सधते हैं। हाँ, यदि द्रव्य ही उपजता, विनशता, तो एक समय अवश्य ही नहीं सधता, परंतु पर्यायकी अपेक्षा अच्छी तरह सधते हैं, कोई शंका नहीं रहती। और जैसे घट, मृत्पिड, मृत्तिकाभावरूप उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य मृत्तिकासे जुदे पदार्थ नहीं हैं, मृत्तिकारूप ही हैं, उसी प्रकार उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ये द्रव्यसे जुदा नहीं हैं, द्रव्यस्वरूप ही हैं |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
यह गाथा बहुत अच्छी गाथा है। कुछ नया भाव इस गाथा में लि खा है। ‘उप्पा दट्ठिदि भंगा’ ‘उप्पा द’ माने उत्पा द, ‘ठिदि ’ माने स्थिति और ‘भंग’ माने विनाश। उत्पा द, स्थिति , जिसे हम ध्रौ व्य कहते हैं और ‘भंग’ या नी विनाश, जिसे हम व्यय कहते हैं। यह सब एक ही नाम है, एक ही पर्यायवा ची शब्द हैं। ये ‘विज्जं ते’ रहते हैं। कहा ँ रहते हैं? ‘पज्जे सु’ ये सभी पर्याय ों में रहते हैं। या नी उत्पा द, स्थिति और व्यय- जो ये तीनों धर्म होते हैं, ये तीनों धर्म कि समें होते हैं? पर्याय ों में विद्यमान रहते हैं। ‘पज्जा या दव्वं हि संति ’ और पर्याय निय म से द्रव्य ही होते हैं। पर्याय निय म से द्रव्य में ही होती हैं। माने जो बहुत सारी पर्याय हो गई, वह ी निय म से द्रव्य हो जाता है। ‘तम्हा दव्वं हवदि सव्वं ’ इसीलि ए द्रव्य ही सब कुछ होता है माने सब कुछ पर्याय द्रव्य में ही हुआ करती है।
पर्यायों के समूह को द्रव्य कहते हैं
यह समझने की कोशि श करें कि पर्याय उत्पाद, स्थिति और भंग, ये तीनों ही रूप होती हैं। यानि उत्पा द भी पर्याय है, व्यय भी पर्याय है और स्थिति भी पर्याय है। उत्पा द में भी पर्याय है, व्यय में भी पर्याय है और स्थिति में भी पर्याय है। समझ आ रहा है? क्या कहते हैं? ये सब पर्याय ों में रहते हैं। ये तीनों धर्म होते हैं- उत्पाद, व्यय और ध्रौ व्य। स्थिति का मतलब क्या हो गया ? ध्रौ व्य। ध्रुवपना, ध्रुवत्व। ये तीनों ही धर्म है, जो वस्तु में प्रति समय घटित होते हैं। ये तीनों ही धर्म कि स में होते हैं? पर्याय ों में होते हैं। इस चीज को या द रखना। उत्पा द, व्यय और ध्रौ व्य, तीनों कि स में होते हैं? पर्याय ों में होते हैं, पर्याय में होते हैं और पर्याय ही द्रव्य कहलाता है। क्यों कहलाता है? जो पर्याय ों का समूह है, वह ही द्रव्य है क्योंकि अनेक पर्याय ों के समूह से ही द्रव्य बनता है। द्रव्य का मतलब क्या हो गया ? जो पर्याय ों का समूह है, विस्ता र है, उस सबको मि ला दिया जाए तो वह ही द्रव्य होता है। उस पर्याय समूह रूप द्रव्य को ही यहा ँ पर सब कुछ कहा गया है। माने वह द्रव्य जो होता है, वो अनेक पर्याय ों का समुदाय है और वह ी द्रव्य के रूप में आ जाता है। जैसे कि एक
कोई भी अंश होता है और एक अंशी होता है। अंशी का मतलब अंश को धारण करने वा ला और अंश माने उसका एक-एक portion। जैसे कि एक गोला है और वह गोला जिसमें कि 360 डि ग्री का पूरा का पूरा angle बन जाता है। अब उस गोले का जो पूरा का पूरा परि णमन है, वह ही उसका द्रव्य है। उस द्रव्य का एक-एक अंश, एक-एक कोण, जो हम नापेंगे एक-एक point, वे उसके क्या हो गए? अंश हो गए। अंशी क्या हो गया ? पूरा गोला हो गया । उसका एक-एक कोण एक डि ग्री का, दो डि ग्री का, तीन डि ग्री का, जो भी उसमें कोण बनते चले जाएँगे। वह क्या हो गया ? वह उसका अंश हो गया । अंशों का ही समूह अंशी होता है और अंशी में ही अंश होते हैं। अंशों के समूह में कमी कर दी जाएगी तो अंशी पूर्ण नहीं होगा। अंशी, अंशों के समूह के बि ना नहीं होगा। इसी तरह से पर्याय ों का समूह द्रव्य है। पर्याय ों के समूह के साथ ही द्रव्य का कहना होता है, द्रव्य का सद्भाव होता है। वह ी यहा ँ कहा जा रहा है कि पर्याय , जो समूह रूप में होती है, वह ी द्रव्य कहलाती है।
उत्पा द, व्यय, ध्रौ व्य- तीनों चीजें पर्या यों में रहती हैं
अब हम इसको इस तरीके से और समझें कि यहा ँ पर तीनों चीजों को पर्याय कहा जा रहा है; उत्पा द को भी, स्थिति को भी और व्यय को भी। बहुत पहले मैंने इस विषय की चर्चा की थी, द्रव्य-गुण-पर्याय की व्याख्या करते हुए की थी। उस समय लोगों के लि ए यह प्रश्न उठ गया था कि ये ध्रौ व्य पर्याय कैसे हो सकती है? उस समय पर हमने कहा था कि ध्रौ व्य भी पर्याय होती है। ध्रौ व्य भी पर्यायार् थिक नय से पर्याय को ग्रह ण करता है और ध्रौ व्य भी उसकी एक पर्याय रूप अंश ही हैं। कई लोगों को यह बात समझ नहीं आयी कि ध्रौ व्य तो द्रव्य होता है, तो ध्रौ व्य पर्याय कैसे हो गई? अब यहा ँ लि खा हुआ है, इसको देखो। ‘उप्पा दट्ठिदि भंगा विज्जं ते पज्जयेसु’ लि खा है न। ये तीनों ही चीजें कि स में रहती है? पर्याय ों में रहती है। यह नहीं कहा कि उत्पा द और व्यय तो पर्याय ों में है और ध्रौ व्यपना द्रव्य में है। ऐसा नहीं है। ये तीनों ही चीजें पर्याय है। इनको अपने दिमाग में उतारना पड़े ड़ेगा। उत्पा द और व्यय पर्याय है, यह तो समझ में आता है कि एक पर्याय नष्ट हुई, दूसरी पर्याय उत्प न्न हो गई तो पर्याय का उत्पा द हुआ और पर्याय का विनाश हो गया । ये ध्रौ व्य भी पर्याय में ही होता है। क्या समझ आया ? इसको समझने की कोशि श करो क्योंकि ध्रौ व्य का मतलब है- उस द्रव्य का, द्रव्यपना। जिसे हम क्या बोलते हैं? द्रव्यपना। पना समझते हो? पना माने? उसका जो रस होता है, उसका जो सार होता है, उसको पना कहते हैं। जैसे- नीम के वृक्ष का बीज है, तो बीज में भी आपको वृक्ष पना नजर आएगा। अब वह नीम का बीज होगा, बीज से अंकुर बनेगा तो बीज नष्ट हो गया । अंकुर का उत्पा द हो गया तो बीज का व्यय हुआ। अंकुर का उत्पा द हुआ, बीज से अंकुर बन गया लेकि न उस दोनों के बीच में जो वृक्ष पना है, नीम का भाव , नीम का वृक्ष त्व है, वह वैसा का वैसा ही रहेगा। मतलब अगर आप उस बीजपने को देखेंगे तो उसमें नीम का वृक्ष पना, वृक्ष का भाव उसके बीजत्व में भी दिखाई देगा और उसके अंकुर में भी दिखाई देगा। अब दिखाई देने से मतलब यह सोच सकते हो। अगर आपको कभी taste करना पड़े ड़े तो देखना कभी नीम के बीज का taste कैसा होता है? मीठा होगा? कड़वा होगा? मतलब उसका अगर बीज है, तो बीज में भी नीम की तरह ही उसमें कड़वा पन आएगा। जब अंकुर के रूप में उत्प न्न होगा तो अंकुर में भी वह ी कड़वा पन आएगा तो इसी को कहते है, पना। पना माने उसका जो रस है, वह उसके साथ में जुड़ा हुआ है और वह ी रस ध्रौ व्य कहलाता है, ध्रौ व्यपने का भाव । वह ी आचार्य यहा ँ कह रहे हैं कि जैसे उत्पा द में पर्याय है या यूँ कहे कि पर्याय में उत्पा द है और व्यय में पर्याय है या पर्याय में व्यय है, दोनों एक ही बात है। इसी तरीके से उसमें जो ध्रौ व्य भाव है, स्थिति पने का भाव है, उसमें भी पर्याय है और पर्याय में ही ध्रौ व्य है। समझ आ रहा है? धीरे-धीरे आएगा, कोशि श करो क्योंकि अभी तक हमने क्या समझ रखा है कि ध्रौ व्य भाव जो है, वह द्रव्य होता है। यहा ँ यह कह रहे हैं, ध्रौ व्यपना भी पर्याय में है क्योंकि उसमें जो वृक्ष पने का भाव जुड़ा हुआ है, वह वृक्ष पने का भाव है। वृक्ष नहीं है, वह अभी। वृक्ष वह कब कहलाएगा? जब उस बीज से अंकुर, अंकुर से पौधा, पौधा से शाखाएँ बनेंगी, उपशाखाएँ बनेंगी। फिर उसमें फल लगेंगे। उसमें फिर वृक्ष की नि बौरी आएँगी। जब पत्ते आ जाएँगे, कोंपले आ जाएँगी तब वह वृक्ष कहलाय ेगा। वह उसका एक सम्पूर्ण द्रव्य कहलाएगा। उससे पहले अगर हम उस वृक्ष को देखते हैं तो वह पर्याय ों के समूह के रूप में ही देख पाएँगे। अनेक पर्याय ों का समूह रूप जो वृक्ष होता है, उस वृक्ष में ये तीनों चीजें होती हैं, बीज भी, अंकुर भी और उसके साथ में उसका वृक्ष पना भी।
ध्रौ व्यपना पर्या य के साथ बढ़ता जाता है
अब आप इस वृक्ष को देखो तो उसमें देखो, वृक्ष पना कहा ँ तक व्याप्त है? वृक्ष पना पूरे वृक्ष में व्याप्त है। उसकी एक पत्ती भी है, कोंपल भी है, नि बौरी भी है, तो उसमें भी वृक्ष पना, ये उसी वृक्ष का अंश है। ये सब कि सके हैं? ये सब उसी वृक्ष के अवयव है, उसी एक वृक्ष के अंश है। क्या समझ आया ? वृक्ष पना सब में व्याप्त है। नि बौरी को भी हम उस वृक्ष का ही अंश कहेंगे, कोंपल होगी उसको भी, पत्ता होगा उसको भी हम उस नीम के वृक्ष का अंश कहेंगे, वृक्ष पना सब में है। जो वृक्ष है, वह वृक्ष का भाव हो गया - द्रव्य रूप में। उसके जितने भी अवयव है, वे सब हो गई उसकी पर्याय । जो बीज से लेकर पूरे वृक्ष बनने तक व्याप्त हैं और उसी व्याप्त पने में उत्पा द भी है, व्यय भी है और ध्रौ व्य भी है। ध्रौ व्यत्वपना भी उसमें व्याप्त रहता है। उत्पा द एक का होता है, व्यय दूसरी का हो जाता है लेकि न ध्रौ व्यपना उसमें व्याप्त रहता है। वह भी उसकी पर्याय के साथ ही रहता है क्योंकि जब बीज से अंकुर बना तो वह अंकुरपने की पर्याय तक ध्रौ व्यत्वपना रहा । फिर अंकुर और पौधे के रूप में वृद्धि को प्राप्त हुआ तो उसकी पर्याय और बढ़ गई, उसमें ध्रौ व्यत्वपना और बढ़ गया । फिर वह आगे एक पौधा बना और आगे स्कन्ध बना तो उसका वह ध्रौ व्यपना और बढ़ गया । इस तरह से उसका वह ध्रौ व्यपना भी उस पर्याय के साथ ही बढ़ता चला जाता है। क्या मतलब हुआ? मतलब यह हुआ कि पर्याय भी ध्रौ व्यपने के साथ चलती है और ध्रुवता भी उसकी पर्याय में ही रहती है। समझ आ रहा है? ध्रौ व्यपना समझो। ध्रौ व्यत्व, वृक्ष त्व, यूँ समझो। इसी उदाह रण से समझो जैसे कि बीज, अंकुर और वृक्ष त्व, उसमें जो वृक्ष पना है, वह वृक्ष पना तो बीज में भी है। बीज में भी वृक्ष है कि नहीं? बीज में वृक्ष छि पा है। फिर अंकुर में आ गया तो अंकुर में भी वृक्ष पना आ गया और बड़ा हुआ, पौधा बन गया तो उसमें भी वृक्ष पना आ गया । फिर उसके आगे स्कन्ध आदि पर्याय बनी तो उसमें भी वृक्ष पना बना रहा । वृक्ष पना जो है, वह उसका ध्रौ व्यपना है; यह कहने का मतलब है। पर्याय ों का विनाश हो रहा है, पर्याय ों का ही उत्पा द हो रहा है और पर्याय ों के रूप में ही वह ध्रौ व्यपना बना हुआ है क्योंकि अभी वह पूरा द्रव्य नहीं बन गया । क्या समझ आ रहा है? उस द्रव्य में ये तीनों चीजें होंगी। ये तीनों उसके अंश हो गए। उत्पा द, व्यय और ध्रौ व्यपना उसी द्रव्य के अंश हो गए। द्रव्य उन तीनों की मि ली हुई चीज कहलाय ी। एक चीज का नाम द्रव्य नहीं है। केवल ध्रौ व्यपने का नाम द्रव्य नहीं है, उत्पा दपने का नाम द्रव्य नहीं है और व्ययपने का नाम भी द्रव्य नहीं हैं। क्योंकि एकपने का नाम द्रव्य हो जाएगा तो क्या होगा? मान लो आपने कहा कि उत्पा द ही द्रव्य है। यदि द्रव्य का उत्पा द हो गया तो एक साथ जो उत्पा द होगा, उसी को द्रव्य कहोगे। नाश होगा तो उसको द्रव्य नहीं कहोगे। फिर क्या होगा? फिर द्रव्य हमेशा आपको अनन्त उत्पा द की पर्याय ों के रूप में दिखाई देगा। अतः यह दोष आ जाएगा। अगर हमने केवल नाश को ही द्रव्य माना। द्रव्य का नाश होता है। यदि द्रव्य का नाश हो जाय ेगा तो द्रव्य का नाश होने पर उसका कोई उत्पा द नहीं होगा। फिर तो शून्यता आ जाएगी। द्रव्य का नाश होने पर सब शून्य हो जाएगा, कोई भी द्रव्य नहीं कहलाएगा। समझ आ रहा है?
द्रव्य का नहीं पर्याय का उत्पाद व व्यय होता है
शोर-गुल में भी समझना पड़ता है, थोड़ा-थोड़ा। वह भी उत्पाद, व्यय, ध्रौ व्य है। कोई नयी आवा ज आयी, उत्पा द हुआ, पुरानी आवा ज जो चल रही थी वह थोड़ी सी विनष्ट हो गयी, वह उसका व्यय हो गया और आवा ज तो सामान्य रूप से जो चल रही थी, आवा जपना वह तो चल ही रहा है। हर चीज से समझ सकते हो। आपको तो ठीक है, mike वा ले को भी समझ आ रहा है। कि सी को भी समझ में आ सकता है, इसमें कुछ है ही नहीं। एक चीज जब उत्प न्न हो रही है, वह भी पर्याय है। द्रव्य नहीं उत्पन्न हो रहा है। उत्प न्न क्या हो रहा है? पर्याय ही उत्प न्न हो रही है, पर्याय ही नष्ट हो रही है और पर्याय ही ध्रौ व्यपने में बनी रहती है। द्रव्य नष्ट नहीं होता। अगर द्रव्य नष्ट हो गया तो सब शून्य हो जाएगा। द्रव्य का ही उत्पा द होगा तो द्रव्य ही उत्प न्न होता चला जाएगा। फिर द्रव्य अनन्त हो जाएगा। एक ही द्रव्य अनन्त रूप में हो जाएगा। पर्याय अनन्त नहीं होगी, फिर द्रव्य ही अनन्त हो जाएगा अगर द्रव्य ही उत्प न्न होता चला गया । द्रव्य ही ध्रुव रह गया तो कोई भी उसमें परिवर्त न नहीं हो पाएगा क्योंकि परिवर्त न में हमने क्या बताया ? एक भाव का अभाव । माने एक चीज का नाश, एक चीज की उत्पत्ति । यह तभी होगी जब वह पर्याय में ध्रौ व्यपना मानेंगे। द्रव्य में अगर हमने ध्रौ व्य माना कि द्रव्य ध्रुव रहा तो फिर हम यह कह ही नहीं सकते कि इसमें पर्याय उत्प न्न हुई और यह पर्याय नष्ट हो गई और कोई नई चीज बन गई। ध्रौ व्यपना तभी बनेगा जब हम उसको पर्याय में माने कि पर्याय में ध्रुवपना है। बीज और वृक्ष समझ में आया कि नहीं? अब दूध और दही से समझने की कोशि श करो। दूध भी एक पर्याय है और दही भी एक पर्याय है। दूध की पर्याय का नाश हुआ, दही की पर्याय का उत्पा द हुआ लेकि न दुग्धपना, दुग्धता का भाव , जिसे गौरस बोलते हैं। यह आम का रस नहीं है, यह पपीते का रस नहीं है, ये गौरस है, ये गाय के दूध का ही बना हुआ दही है। यह कहलाएगा गौरस, गोरसपने का भाव दूध में भी है और दही में भी है। वह दूध की पर्याय
इस वीडियो में प्रत्येक द्रव्य में सत् रूप, उसमें प्रति समय होने वाला उत्पाद और व्यय बताया गया है।
◼ उत्पाद,व्यय एवम ध्रौव्य ये तीनों धर्म पर्याय में विद्यमान रहते हैं।
◼ उत्पाद भी एक पर्याय है व्यय भी एक पर्याय है एवम ध्रौव्य भी एक पर्याय है अर्थात् द्रव्य अनेक पर्यायों का समुदाय है।
◼ पर्यायों का समूह ही द्रव्य कहलाता है क्योंकि अनेक पर्यायों के समूह से मिलकर ही द्रव्य बनता है।
◼ कुछ लोगों के मन में प्रश्न उठता है ध्रौव्य तो एक द्रव्य होता है । यह पर्याय कैसे हो सकती है? इसका निराकरण भी इस गाथा के माध्यम से हो जाता है।
◼ सत् द्रव्य का लक्षण है।
◼ पर्याय मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है, एक अन्वय रूप और दूसरी व्यतिरेक रूप।
◼ उत्पाद एवं व्यय हमें दिखाई देते है लेकिन ध्रौव्य हमे देखना पड़ता है।
◼ उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य को गुरुवर ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से समझाया है।