04-01-2014, 10:48 AM
Vastu Shanti Tips :-
1.When sitting for worship, keep your face towards North-West and sit in that corner to intake air from that direction.
2.Students should be facing east while studying, for Academic Excellence.
3.Bed should not be put under a beam.
4.There should not be five corners in the ceiling of a room.
Efforts should be made a leave the rooms open on North-East side.
5.If north of any house is blocked it blocks prosperity.
6.Water flowing/water fountain from north to east is very good.
7. Triangular shaped plot should not be selected for constructing a building. It is inauspicious.
8. While sleeping head should be kept in the east or south. Never sleep with feet towards south or east.
9. Water tanks on the roof in the south-west direction are auspicious. These should never be placed in north or north-east (eeshan) corner.
10. Pooja room is always best in the north-east corner or near it.
11. Kitchen is always auspicious and best in the south-east (Agney) corner, or adjacent to it.
12. Open space should be kept all around the building.
13. Building should be constructed such that it is higher in the south-west and lower in the north-east. Walls should also be made in this manner.
14. Underground water tank (for storage of water) well, hand-pump, boring etc. should be built in north-east direction only. Height of these water bodies should never be above the plinth level of the main building.
15. The essence of Vaastu Shastra is actually to make the house in total conformity with the utilisation of five basic materials, viz, earth, water, air, fire, space for specific functions in the directions of places determined for the same.
For example, south-east corner is best for fire (kitchen etc.) North-West direction for air and the North-East direction for attaining the bliss for divine favour.
16. If there is a well or any other pit in the south-east, south-west or north-west direction, there will always be quarrels in the family and there will be no peace.
17. West portion of the land should be raised and there should be slope towards the east, which is auspicious.
18. Almirahs, Sofa Set, Table and other heavy items which can be placed permanently at a place, are auspicious if placed in the South-West corner or near it in the west.
19. A temple can have doors on all the four sides.
20. Divide the length of the wall, on the side in which main door is to kept, in nine equal parts; then leaving 5 parts on the right and 3 parts on the left, door should be constructed in the remaining one part or in the 7th part.
21. If living in a newly built house is stared without worshipping Vaastu, several troubles and difficulties arise in the family. Therefore Vaastu Poojan is must.
22. Flow of water and its outlet in the directions other than east, north-west, north-east and north is inauspicious and causes troubles.
23. Toilet (Latrine) is auspicious if constructed in north-west corner. If necessary or in case of lack of space it may be constructed in any direction, but the seat in the toilet should be such that when using the toilet one should face towards south or north only.
24. If extension is to be made, it should be extended in all the sides. Extension only in one side is not auspicious.
25. Door of the stair-case should face either east or south. It will be auspicious if the stairs are constructed in the west or south on the right side.
26.Porch should not touch the North or East compound wall.
27.Anything underground should be in north or east and any thing above ground should be south or west
28.Open space should be North or east.
29. घर का मेन गेट और किचन आमने-सामने न बनाएं क्योंकि ये पाचन सम्बन्धी बीमारियों को जन्म देने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। यदि किचन का स्थान परिवर्तन करना सम्भव ना हो तो दरवाजे पर चिक या परदा लगा दें।
30.घर का द्वार धरातल से नीचा ना हो।
31. देवालय का द्वार लकड़ी का बनवाएं।
32. मान-सम्मान चाहते हैं तो प्रवेश द्वार को साफ-सुथरा व सजा कर रखें।
33.दंपति का बेडरूम उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से कटा हो तो पति-पत्नी में से किसी एक को सेहत संबंधी परेशानी बनी रहती है। छोटा सा शीशा टांग देने से दंपति ऊर्जावान अनुभव करने लगता है।
34. रसोई घर में गुड़ अवश्य रखें इससे घर में सुख-शान्ति आती है।
35. ऑफिस में आप स्वंय को निर्णय लेने में सक्षम न पाएं तो अपनी कुर्सी दीवार के साथ लगा कर बैठे। इससे निर्णय लेने की क्षमता तो बढ़ेगी ही सफलता आपके कदम चूमेगी।
36. जब मकान बनाना आरंभ करें तो सबसे पहले बोरिंग,चौकीदार का कमरा फिर बाहरी दीवार बनवायें। ऐसा करने से काम समय पर पूरा होता है और कोई विलंब नहीं आता।
37. डबलबेड के लिए सिंगल गद्दा उपयोग में लाएं।
38. मां अन्नपूर्णा की कृपा चाहते हैं तो रसोई घर में पवित्रता व स्वच्छता बना कर रखें।
39. घर में रखी जाने वाली धार्मिक पुस्तकों, बच्चों की किताबों व व्यापार में उपयोग होने वाले रजिस्टर इत्यादि पर शुभ चिन्ह अवश्य बनाएं।
40. जगह का ढलान उत्तर अथवा पूर्व दिशा में हो तथा मकान के चारों ओर घेराव की दीवार में पश्चिम दक्षिण दिशा की दीवार मोटी व ऊंची होना चाहिए।
41. मोरी अथवा नाली के पानी की निकासी उत्तर या पूर्व दिशा में हो।
42. मुख्य दरवाजा उत्तर अथवा पूर्व दिशा में पूरी लम्बाई के नौ भाग करके 7वें भाग में अथवा दाईं ओर से 5वां भाग व बाईं ओर से 3 भाग छोड़कर शेष चौथे भाग में हो।
43.कुआं, बोरिंग, हैंडपम्प, पानी का रख-रखाव, पूजा, मनोरंजन स्थल, जन स्थल, कोषागार, स्वागत कक्ष उत्तर/ पूर्व ईशान्य में हो।
44. रसोई घर, रेडियो, टी.वी., हीटर, जैनरेटर, विद्युत के मुख्य उपकरण, स्विच बोर्ड, फ्रिज, आग्रेय दक्षिण पूर्व कोण में हों।
45 शयन कक्ष, शौचालय, शस्त्रागार, भारी, वजनी सामान, अलमारी, फर्नीचर, सोफा सैट दक्षिण पश्चिम दिशा में हों।
46. भोजनकक्ष, अध्ययन कक्ष, पश्चिम में हों।
47. धनागार, पशुस्थल, नौकरों का निवास स्थान, साइकिल, कार, वाहन का स्थान, वायव्य अर्थात उत्तर, पश्चिम कोण में हो।
48. भंडारगृह उत्तर दिशा में हो।
49. छत पर टैंकी दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण) में हो लेकिन सैप्टिक टैंक, भूमिगत नाली अथवा गड्ढा न हो।
50.सीढ़ी दक्षिण दिशा में हो तथा चढ़ाव के समय मुख उत्तर या दक्षिण दिशा में हो।
51. घर के उत्तर/ पूर्व में बड़े पेड़ न होकर दक्षिण/पश्चिम में हों।
52. गृह का विस्तार चारों ओर से करें।
53. मुख्य द्वार से बाहर निकलते समय दाहिनी ओर घड़ी के कांटे की दिशा में खुलना चाहिए।
54. कमरों के बीच का भाग खुला हो।
55. घर में तिजोरी, द्रव्य संग्रह पूर्व अथवा उत्तरमुखी होना चाहिए और व्यापारिक संस्थानों में कैश काऊंटर का उत्तर की ओर मुंह हो।
56.हाल में टैलीफोन उत्तर दिशा में रखें।
57. पूजा स्थान में महाभारत के रथ, फोटो, प्राणी पक्षी के चित्र अथवा वास्तु पुरुष की प्रतिमा न रखें।
58. प्रात और संध्या के समय घर में दीपक अवश्य जलाएं।
59. धन का संग्रह न हो पा रहा हो तो ”ऊँ श्रीं नमः” मंत्र का जाप करें एवं सूखे मेवे का भोग लक्ष्मी जी को लगाएं।
60.घर का मुख्य द्वार सदैव पूर्व या उत्तर में ही बनाएं अगर ऐसा संभव न हो तो घर के मुख्य द्वार पर ‘स्वास्तिक’ की प्राण प्रतिष्ठा करवाएं। इससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
61.तुलसी को भगवान श्री कृष्ण ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है। अपने घर की रक्षा के लिए घर के मुख्य द्वार पर तुलसी के पौधे की प्राण प्रतिष्ठा करवाएं। सुबह उसमें जल अर्पित करें तथा शाम को दीपक जलाएं।
62. घर में सुख शांति चाहते हैं तो किसी देवी-देवता की एक से अधिक स्वरूप, मूर्ति या तस्वीर घर में न रखें।
63.संध्या समय कम से कम 15 मिनट पूरे घर की लाइट अवश्य जलाएं।
64.बिजली के स्विच, मोटर, मेन मीटर, टी.वी., कम्प्यूटर आदि आग्नेय कोण में ही होने चाहिए इससे आर्थिक लाभ सुगमता से होता है।
65.मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए चंदन से बनी अगरबत्ती जलाएं। इससे मानसिक बेचैनी कम होती है।
66. परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए पूरे परिवार का चित्र लकड़ी के एक फ़्रेम में जड़वाकर घर में पूर्वी दीवार पर लटकाएं।
67. घर की बैठक में जहां घर के सदस्य आमतौर पर एकत्र होते हैं, वहां बांस का पौधा लगाना चाहिए। पौधे को बैठक के पूर्वी कोने में गमले में रखें।
68. घर या वास्तु के मुख्य दरवाजे में देहरी (दहलीज) लगाने से अनेक अनिष्टकारी शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पातीं व दूर रहती हैं।
69. प्रतिदिन सुबह मुख्य द्वार के सामने हल्दी, कुमकुम व गोमूत्र मिश्रित गोबर से स्वस्तिक, कलश आदि आकारों में रंगोली बनाकर देहरी (दहलीज) एवं रंगोली की पूजा कर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि 'हे ईश्वर ! आप मेरे घर व स्वास्थ्य की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करें।'
70.प्रवेश-द्वार के ऊपर नीम, आम, अशोक आदि के पत्ते का तोरण (बंदनवार) बाँधना मंगलकारी है।
वास्तु कि मुख्य द्वार के सामने भोजन-कक्ष, रसोईघर या खाने की मेज नहीं होनी चाहिए।
71.मुख्य द्वार के अलावा पूजाघर, भोजन-कक्ष एवं तिजोरी के कमरे के दरवाजे पर भी देहरी (दहलीज) अवश्य लगवानी चाहिए।
72. भूमि-पूजन, वास्तु-शांति, गृह-प्रवेश आदि सामान्यतः शनिवार एवं मंगलवार को नहीं करने चाहिए।
गृहस्थियों को शयन-कक्ष में सफेद संगमरमर नहीं लगावाना चाहिए| इसे मन्दिर मे लगाना उचित है क्योंकि यह पवित्रता का द्योतक है।
73. कार्यालय के कामकाज, अध्ययन आदि के लिए बैठने का स्थान छत की बीम के नीचे नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे मानसिक दबाव रहता है।
74. बीम के नीचे वाले स्थान में भोजन बनाना व करना नहीं चाहिए। इससे आर्थिक हानि हो सकती है। बीम के नीचे सोने से स्वास्थ्य में गड़बड़ होती है तथा नींद ठीक से नहीं आती।
75. जिस घर, इमारत आदि के मध्य भाग (ब्रह्मस्थान) में कुआँ या गड्ढा रहता है, वहाँ रहने वालों की प्रगति में रूकावट आती है एवं अनेक प्रकार के दुःखों एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है।
76. घर का ब्रह्मस्थान परिवार का एक उपयोगी मिलन स्थल है, जो परिवार को एक डोर में बाँधे रखता है।
यदि ब्रह्मस्थान की चारों सीमारेखाओं की अपेक्षा उसका केन्द्रीय भाग नीचा हो या केन्द्रीय भाग पर कोई वजनदार वस्तु रखी हो तो इसको बहुत अशुभ व अनिष्टकारी माना जाता है। इससे आपकी आंतरिक शक्ति में कमी आ सकती है व इसे संततिनाशक भी बताया गया है।
ब्रह्मस्थान में क्या निर्माण करने से क्या लाभ व क्या हानियाँ होती हैं, इसका विवरण इस प्रकार हैः
बैठक कक्ष- परिवार के सदस्यों में सामंजस्य
भोजन कक्ष- गृहस्वामी को समस्याएँ, गृहनाश
सीढ़ियाँ – मानसिक तनाव व धन नाश
लिफ्ट – गृहनाश
शौचालय – धनहानि एवं स्वास्थ्य हानि
परिभ्रमण स्थान – उत्तम
77. गृहस्वामी द्वारा ब्रह्मस्थान पर रहने, सोने या फैक्ट्री, दफ्तर, दुकान आदि में बैठने से बाकी सभी लोग उसके कहे अनुसार कार्य करते हैं और आज्ञापालन में विरोध नहीं करते। अपने अधीन कर्मचारी को इस स्थान पर नहीं बैठाना चाहिए, अन्यथा उसका प्रभाव आपसे अधिक हो जायेगा। इस स्थान को कभी भी किराये पर नहीं देना चाहिए।
78. नैर्ऋत्य दिशा में यदि शौचालय अथवा रसोईघर का निर्माण हुआ हो तो गृहस्वामी को सदैव स्वास्थ्य-संबंधी मुश्किलें रहती हैं। अतः इन्हें सर्वप्रथम हटा लेना चाहिए। चीनी 'वायु-जल' वास्तुपद्धति'फेंगशुई' के मत से यहाँ गहरे पीले रंग का 0 वाट का बल्ब सदैव जलता रखने से इस दोष का काफी हद तक निवारण सम्भव है।
79. ईशान रखें नीचा, नैर्ऋत्य रखें ऊँचा।
यदि चाहते हों वास्तु से अच्छा नतीजा।।
80. शौचकूप (सैप्टिक टैंक) उत्तर दिशा के मध्यभाग में बनाना सर्वोचित रहता है। यदि वहाँ सम्भव न हो तो पूर्व के मध्य भाग में बना सकते हैं परंतु वास्तु के नैर्ऋत्य, ईशान, दक्षिण, ब्रह्मस्थल एवं अग्नि भाग में सैप्टिक टैंक बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए।
81. प्लॉट या मकान के नैर्ऋत्य कोने में बना कुआँ अथवा भूमिगत जल की टंकी सबसे ज्यादा हानिकारक होती है। इसके कारण अकाल मृत्यु, हिंसाचार, अपयश, धन-नाश, खराब प्रवृत्ति, आत्महत्या, संघर्ष आदि की सम्भावना बहुत ज्यादा होती है।
82. परिवार के सदस्यों में झगड़े होते हों तो परिवार का मुख्य व्यक्ति रात्रि को अपने पलंग के नीचे एक लोटा पानी रख दे और सुबह गुरुमंत्र अथवा भगवन्नाम का उच्चारण करके वह जल पीपल को चढ़ायें। इससे पारिवारिक कलह दूर होंगे, घर में शांति होगी।
83. झाड़ू और पोंछा ऐसी जगह पर नहीं रखने चाहिए कि बार-बार नजरों में आयें। भोजन के समय भी यथासंभव न दिखें, ऐसी सावधानी रखें।
84. घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए रोज पोंछा लगाते समय पानी में थोड़ा नमक मिलायें। इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव घटता है। एक डेढ़ रूपया किलो खड़ा नमक मिलता है उसका उपयोग कर सकते हैं।
85. घर में टूटी-फूटी अथवा अग्नि से जली हुई प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसी मूर्ति की पूजा करने से गृहस्वामी के मन में उद्वेग या घर-परिवार में अनिष्ट होता है।
1.When sitting for worship, keep your face towards North-West and sit in that corner to intake air from that direction.
2.Students should be facing east while studying, for Academic Excellence.
3.Bed should not be put under a beam.
4.There should not be five corners in the ceiling of a room.
Efforts should be made a leave the rooms open on North-East side.
5.If north of any house is blocked it blocks prosperity.
6.Water flowing/water fountain from north to east is very good.
7. Triangular shaped plot should not be selected for constructing a building. It is inauspicious.
8. While sleeping head should be kept in the east or south. Never sleep with feet towards south or east.
9. Water tanks on the roof in the south-west direction are auspicious. These should never be placed in north or north-east (eeshan) corner.
10. Pooja room is always best in the north-east corner or near it.
11. Kitchen is always auspicious and best in the south-east (Agney) corner, or adjacent to it.
12. Open space should be kept all around the building.
13. Building should be constructed such that it is higher in the south-west and lower in the north-east. Walls should also be made in this manner.
14. Underground water tank (for storage of water) well, hand-pump, boring etc. should be built in north-east direction only. Height of these water bodies should never be above the plinth level of the main building.
15. The essence of Vaastu Shastra is actually to make the house in total conformity with the utilisation of five basic materials, viz, earth, water, air, fire, space for specific functions in the directions of places determined for the same.
For example, south-east corner is best for fire (kitchen etc.) North-West direction for air and the North-East direction for attaining the bliss for divine favour.
16. If there is a well or any other pit in the south-east, south-west or north-west direction, there will always be quarrels in the family and there will be no peace.
17. West portion of the land should be raised and there should be slope towards the east, which is auspicious.
18. Almirahs, Sofa Set, Table and other heavy items which can be placed permanently at a place, are auspicious if placed in the South-West corner or near it in the west.
19. A temple can have doors on all the four sides.
20. Divide the length of the wall, on the side in which main door is to kept, in nine equal parts; then leaving 5 parts on the right and 3 parts on the left, door should be constructed in the remaining one part or in the 7th part.
21. If living in a newly built house is stared without worshipping Vaastu, several troubles and difficulties arise in the family. Therefore Vaastu Poojan is must.
22. Flow of water and its outlet in the directions other than east, north-west, north-east and north is inauspicious and causes troubles.
23. Toilet (Latrine) is auspicious if constructed in north-west corner. If necessary or in case of lack of space it may be constructed in any direction, but the seat in the toilet should be such that when using the toilet one should face towards south or north only.
24. If extension is to be made, it should be extended in all the sides. Extension only in one side is not auspicious.
25. Door of the stair-case should face either east or south. It will be auspicious if the stairs are constructed in the west or south on the right side.
26.Porch should not touch the North or East compound wall.
27.Anything underground should be in north or east and any thing above ground should be south or west
28.Open space should be North or east.
29. घर का मेन गेट और किचन आमने-सामने न बनाएं क्योंकि ये पाचन सम्बन्धी बीमारियों को जन्म देने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। यदि किचन का स्थान परिवर्तन करना सम्भव ना हो तो दरवाजे पर चिक या परदा लगा दें।
30.घर का द्वार धरातल से नीचा ना हो।
31. देवालय का द्वार लकड़ी का बनवाएं।
32. मान-सम्मान चाहते हैं तो प्रवेश द्वार को साफ-सुथरा व सजा कर रखें।
33.दंपति का बेडरूम उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से कटा हो तो पति-पत्नी में से किसी एक को सेहत संबंधी परेशानी बनी रहती है। छोटा सा शीशा टांग देने से दंपति ऊर्जावान अनुभव करने लगता है।
34. रसोई घर में गुड़ अवश्य रखें इससे घर में सुख-शान्ति आती है।
35. ऑफिस में आप स्वंय को निर्णय लेने में सक्षम न पाएं तो अपनी कुर्सी दीवार के साथ लगा कर बैठे। इससे निर्णय लेने की क्षमता तो बढ़ेगी ही सफलता आपके कदम चूमेगी।
36. जब मकान बनाना आरंभ करें तो सबसे पहले बोरिंग,चौकीदार का कमरा फिर बाहरी दीवार बनवायें। ऐसा करने से काम समय पर पूरा होता है और कोई विलंब नहीं आता।
37. डबलबेड के लिए सिंगल गद्दा उपयोग में लाएं।
38. मां अन्नपूर्णा की कृपा चाहते हैं तो रसोई घर में पवित्रता व स्वच्छता बना कर रखें।
39. घर में रखी जाने वाली धार्मिक पुस्तकों, बच्चों की किताबों व व्यापार में उपयोग होने वाले रजिस्टर इत्यादि पर शुभ चिन्ह अवश्य बनाएं।
40. जगह का ढलान उत्तर अथवा पूर्व दिशा में हो तथा मकान के चारों ओर घेराव की दीवार में पश्चिम दक्षिण दिशा की दीवार मोटी व ऊंची होना चाहिए।
41. मोरी अथवा नाली के पानी की निकासी उत्तर या पूर्व दिशा में हो।
42. मुख्य दरवाजा उत्तर अथवा पूर्व दिशा में पूरी लम्बाई के नौ भाग करके 7वें भाग में अथवा दाईं ओर से 5वां भाग व बाईं ओर से 3 भाग छोड़कर शेष चौथे भाग में हो।
43.कुआं, बोरिंग, हैंडपम्प, पानी का रख-रखाव, पूजा, मनोरंजन स्थल, जन स्थल, कोषागार, स्वागत कक्ष उत्तर/ पूर्व ईशान्य में हो।
44. रसोई घर, रेडियो, टी.वी., हीटर, जैनरेटर, विद्युत के मुख्य उपकरण, स्विच बोर्ड, फ्रिज, आग्रेय दक्षिण पूर्व कोण में हों।
45 शयन कक्ष, शौचालय, शस्त्रागार, भारी, वजनी सामान, अलमारी, फर्नीचर, सोफा सैट दक्षिण पश्चिम दिशा में हों।
46. भोजनकक्ष, अध्ययन कक्ष, पश्चिम में हों।
47. धनागार, पशुस्थल, नौकरों का निवास स्थान, साइकिल, कार, वाहन का स्थान, वायव्य अर्थात उत्तर, पश्चिम कोण में हो।
48. भंडारगृह उत्तर दिशा में हो।
49. छत पर टैंकी दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण) में हो लेकिन सैप्टिक टैंक, भूमिगत नाली अथवा गड्ढा न हो।
50.सीढ़ी दक्षिण दिशा में हो तथा चढ़ाव के समय मुख उत्तर या दक्षिण दिशा में हो।
51. घर के उत्तर/ पूर्व में बड़े पेड़ न होकर दक्षिण/पश्चिम में हों।
52. गृह का विस्तार चारों ओर से करें।
53. मुख्य द्वार से बाहर निकलते समय दाहिनी ओर घड़ी के कांटे की दिशा में खुलना चाहिए।
54. कमरों के बीच का भाग खुला हो।
55. घर में तिजोरी, द्रव्य संग्रह पूर्व अथवा उत्तरमुखी होना चाहिए और व्यापारिक संस्थानों में कैश काऊंटर का उत्तर की ओर मुंह हो।
56.हाल में टैलीफोन उत्तर दिशा में रखें।
57. पूजा स्थान में महाभारत के रथ, फोटो, प्राणी पक्षी के चित्र अथवा वास्तु पुरुष की प्रतिमा न रखें।
58. प्रात और संध्या के समय घर में दीपक अवश्य जलाएं।
59. धन का संग्रह न हो पा रहा हो तो ”ऊँ श्रीं नमः” मंत्र का जाप करें एवं सूखे मेवे का भोग लक्ष्मी जी को लगाएं।
60.घर का मुख्य द्वार सदैव पूर्व या उत्तर में ही बनाएं अगर ऐसा संभव न हो तो घर के मुख्य द्वार पर ‘स्वास्तिक’ की प्राण प्रतिष्ठा करवाएं। इससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
61.तुलसी को भगवान श्री कृष्ण ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है। अपने घर की रक्षा के लिए घर के मुख्य द्वार पर तुलसी के पौधे की प्राण प्रतिष्ठा करवाएं। सुबह उसमें जल अर्पित करें तथा शाम को दीपक जलाएं।
62. घर में सुख शांति चाहते हैं तो किसी देवी-देवता की एक से अधिक स्वरूप, मूर्ति या तस्वीर घर में न रखें।
63.संध्या समय कम से कम 15 मिनट पूरे घर की लाइट अवश्य जलाएं।
64.बिजली के स्विच, मोटर, मेन मीटर, टी.वी., कम्प्यूटर आदि आग्नेय कोण में ही होने चाहिए इससे आर्थिक लाभ सुगमता से होता है।
65.मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए चंदन से बनी अगरबत्ती जलाएं। इससे मानसिक बेचैनी कम होती है।
66. परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए पूरे परिवार का चित्र लकड़ी के एक फ़्रेम में जड़वाकर घर में पूर्वी दीवार पर लटकाएं।
67. घर की बैठक में जहां घर के सदस्य आमतौर पर एकत्र होते हैं, वहां बांस का पौधा लगाना चाहिए। पौधे को बैठक के पूर्वी कोने में गमले में रखें।
68. घर या वास्तु के मुख्य दरवाजे में देहरी (दहलीज) लगाने से अनेक अनिष्टकारी शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पातीं व दूर रहती हैं।
69. प्रतिदिन सुबह मुख्य द्वार के सामने हल्दी, कुमकुम व गोमूत्र मिश्रित गोबर से स्वस्तिक, कलश आदि आकारों में रंगोली बनाकर देहरी (दहलीज) एवं रंगोली की पूजा कर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि 'हे ईश्वर ! आप मेरे घर व स्वास्थ्य की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करें।'
70.प्रवेश-द्वार के ऊपर नीम, आम, अशोक आदि के पत्ते का तोरण (बंदनवार) बाँधना मंगलकारी है।
वास्तु कि मुख्य द्वार के सामने भोजन-कक्ष, रसोईघर या खाने की मेज नहीं होनी चाहिए।
71.मुख्य द्वार के अलावा पूजाघर, भोजन-कक्ष एवं तिजोरी के कमरे के दरवाजे पर भी देहरी (दहलीज) अवश्य लगवानी चाहिए।
72. भूमि-पूजन, वास्तु-शांति, गृह-प्रवेश आदि सामान्यतः शनिवार एवं मंगलवार को नहीं करने चाहिए।
गृहस्थियों को शयन-कक्ष में सफेद संगमरमर नहीं लगावाना चाहिए| इसे मन्दिर मे लगाना उचित है क्योंकि यह पवित्रता का द्योतक है।
73. कार्यालय के कामकाज, अध्ययन आदि के लिए बैठने का स्थान छत की बीम के नीचे नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे मानसिक दबाव रहता है।
74. बीम के नीचे वाले स्थान में भोजन बनाना व करना नहीं चाहिए। इससे आर्थिक हानि हो सकती है। बीम के नीचे सोने से स्वास्थ्य में गड़बड़ होती है तथा नींद ठीक से नहीं आती।
75. जिस घर, इमारत आदि के मध्य भाग (ब्रह्मस्थान) में कुआँ या गड्ढा रहता है, वहाँ रहने वालों की प्रगति में रूकावट आती है एवं अनेक प्रकार के दुःखों एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है।
76. घर का ब्रह्मस्थान परिवार का एक उपयोगी मिलन स्थल है, जो परिवार को एक डोर में बाँधे रखता है।
यदि ब्रह्मस्थान की चारों सीमारेखाओं की अपेक्षा उसका केन्द्रीय भाग नीचा हो या केन्द्रीय भाग पर कोई वजनदार वस्तु रखी हो तो इसको बहुत अशुभ व अनिष्टकारी माना जाता है। इससे आपकी आंतरिक शक्ति में कमी आ सकती है व इसे संततिनाशक भी बताया गया है।
ब्रह्मस्थान में क्या निर्माण करने से क्या लाभ व क्या हानियाँ होती हैं, इसका विवरण इस प्रकार हैः
बैठक कक्ष- परिवार के सदस्यों में सामंजस्य
भोजन कक्ष- गृहस्वामी को समस्याएँ, गृहनाश
सीढ़ियाँ – मानसिक तनाव व धन नाश
लिफ्ट – गृहनाश
शौचालय – धनहानि एवं स्वास्थ्य हानि
परिभ्रमण स्थान – उत्तम
77. गृहस्वामी द्वारा ब्रह्मस्थान पर रहने, सोने या फैक्ट्री, दफ्तर, दुकान आदि में बैठने से बाकी सभी लोग उसके कहे अनुसार कार्य करते हैं और आज्ञापालन में विरोध नहीं करते। अपने अधीन कर्मचारी को इस स्थान पर नहीं बैठाना चाहिए, अन्यथा उसका प्रभाव आपसे अधिक हो जायेगा। इस स्थान को कभी भी किराये पर नहीं देना चाहिए।
78. नैर्ऋत्य दिशा में यदि शौचालय अथवा रसोईघर का निर्माण हुआ हो तो गृहस्वामी को सदैव स्वास्थ्य-संबंधी मुश्किलें रहती हैं। अतः इन्हें सर्वप्रथम हटा लेना चाहिए। चीनी 'वायु-जल' वास्तुपद्धति'फेंगशुई' के मत से यहाँ गहरे पीले रंग का 0 वाट का बल्ब सदैव जलता रखने से इस दोष का काफी हद तक निवारण सम्भव है।
79. ईशान रखें नीचा, नैर्ऋत्य रखें ऊँचा।
यदि चाहते हों वास्तु से अच्छा नतीजा।।
80. शौचकूप (सैप्टिक टैंक) उत्तर दिशा के मध्यभाग में बनाना सर्वोचित रहता है। यदि वहाँ सम्भव न हो तो पूर्व के मध्य भाग में बना सकते हैं परंतु वास्तु के नैर्ऋत्य, ईशान, दक्षिण, ब्रह्मस्थल एवं अग्नि भाग में सैप्टिक टैंक बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए।
81. प्लॉट या मकान के नैर्ऋत्य कोने में बना कुआँ अथवा भूमिगत जल की टंकी सबसे ज्यादा हानिकारक होती है। इसके कारण अकाल मृत्यु, हिंसाचार, अपयश, धन-नाश, खराब प्रवृत्ति, आत्महत्या, संघर्ष आदि की सम्भावना बहुत ज्यादा होती है।
82. परिवार के सदस्यों में झगड़े होते हों तो परिवार का मुख्य व्यक्ति रात्रि को अपने पलंग के नीचे एक लोटा पानी रख दे और सुबह गुरुमंत्र अथवा भगवन्नाम का उच्चारण करके वह जल पीपल को चढ़ायें। इससे पारिवारिक कलह दूर होंगे, घर में शांति होगी।
83. झाड़ू और पोंछा ऐसी जगह पर नहीं रखने चाहिए कि बार-बार नजरों में आयें। भोजन के समय भी यथासंभव न दिखें, ऐसी सावधानी रखें।
84. घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए रोज पोंछा लगाते समय पानी में थोड़ा नमक मिलायें। इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव घटता है। एक डेढ़ रूपया किलो खड़ा नमक मिलता है उसका उपयोग कर सकते हैं।
85. घर में टूटी-फूटी अथवा अग्नि से जली हुई प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसी मूर्ति की पूजा करने से गृहस्वामी के मन में उद्वेग या घर-परिवार में अनिष्ट होता है।