वास्तुदेव की विशेषताएँ
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वास्तुदेव की विशेषताएँ

वास्तुदेव की तीन विशेषताएं होती हैं : -

चर वास्तु :
इसमें वास्तु पुरुष की नजर या रुख
(1)भाद्रपद (अगस्त, सितम्बर), आश्विन तथा कार्तिक (अक्टूबर , नवम्बर) महीनों के अवधि में दक्षिण की ओर होता है|
(2) मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसंबर), पौष (दिसंबर – जनवरी), और माघ (जनवरी-फरवरी) महीनों में पश्चिम की ओर होता है|
(3)फाल्गुन (फरवरी – मार्च), चैत्र (मार्च – अप्रैल), और वैशाख (अप्रैल – मई) महीनों में उत्तर की ओर
होता है|
(4) ज्येष्ठ (मई – जून), आषाढ़ (जून – जुलाई), तथा श्रावण (जुलाई – अगस्त) महीनों की अवधि
में पूर्व की ओर होता है|
निर्माण कार्य का आरम्भ या शिलान्यास और मुख्य द्वार की स्थापना ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जो वास्तुपुरुष की दृष्टी या नजर की ओर हो , ताकि मनुष्य उस मकान में शान्ति और सुख से रह सके|

स्थिर वास्तु :
वास्तु पुरुष का सिर सदैव उत्तर-पूर्व की ओर तथा पैर दक्षिण – पश्चिम की ओर रहता है इस बात को ध्यान में रखते हुए मकान का डिजाइन एवं प्लान बनाना चाहिए|

नित्य वास्तु :
प्रत्येक दिन वास्तु पुरुष की नजर सुबह प्रथम तीन घंटे पूर्व की ओर , इसके पश्चात
तीन घंटे दक्षिण की ओर तथा उसके बाद तीन घंटे पश्चिम की ओर तथा अंतिम तीन घंटे उत्तर की ओर
दृष्टी अथवा नजर रहती है| भवन का निर्माण कार्य इसी प्रकार समयानुसार करना चाहिए|

वास्तुपुरुष की तीन अवसरों पर पूजा अर्चना करनी चाहिये
(1) निर्माण कार्य में शिलान्यास करते समय ,
(2)दूसरी बार मुख्य द्ववार लगाते समय ,
(3) तीसरी बार गृह प्रवेश के समय पूजा करनी चाहिये|
गृह प्रवेश उस समय होना चाहिये जब वास्तुपुरुष की नजर उस ओर हो ये शुभ रहता है।
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