08-31-2016, 09:35 AM
जैन धर्म के बेसिक्स
प्रिय एवम आदरणीय धर्मानुरागीयों ,
जयजिनेंद्रदेवकी !
मैं आज से जैन धर्म के बेसिक्स की श्रृंखला में पोस्टिंगआरम्भ कर रहा हूँ जो स्वाध्याय अथवा रूचि के अभाव में उन्की जानकारी से अनभिज्ञ रह गए है!आप सभी से विनम्र निवेदन है की रूचिपूर्वक इन्हें जानकर अपनी शंकाये इनके संदर्भ में रखिये जिससे दो तरफ परस्पर सम्वाद होकर विषय रुचिकार बन जाए !
इसी श्रंखला में आज जैन धर्म की ध्वाजा के सन्दर्भ में जानकारी से आरम्भ करते है !
जैनधर्म के मूल चिन्ह
१- जैन धर्म की ध्वजा -
जैन धर्म का ध्वज; क्रमश: लाल,पीले ,सफेद,हरे और नीले रंगों की पट्टियों का है,बीच मे नारंगी रंग का स्वस्तिक चिन्ह,जीव/आत्मा का चतुर्गतियों;देव,नरक,मनुष्य,तिर्यंच मे भ्रमण के सूचक है! उसके ऊपर तीन बिंदु त्रिलोक/अथवा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तथा अर्ध चन्द्र सिद्धालय को दर्शाते है!चन्द्रमा के ऊपर एक बिंदु सिद्धात्माओं का प्रतीक है हमारे २४ तीर्थंकरों के शरीर का वर्ण भी इन्ही रंग का था;
चंद्रप्रभजी और पुष्प दन्तजी का सफेद,मुनिसुव्रतनाथजी नेमिनाथजी का नीला, पद्मप्रभजी-वासुपूज्यजी का लाल,सुपार्श्वनाथ जी-पार्श्वनाथ जी का हरा,और
१६तीर्थंकरों का स्वर्णीय/पीलाथा!
ध्वज के पांच रूंग क्रमश;पंच परमेष्टियों और पञ्च महाव्रतों के सूचक है
सिद्धपरमेष्ठी-लाल,(अघातिया कर्म की निर्जरा का प्रतिक) (सत्य )
आचार्य परमेष्ठी-पीला (शिष्यो के प्रति वात्सल्य का प्रतिक) (अचौर्य )
अरिहंत परमेष्ठी-सफ़ेद,(घतिया कर्म का नाश करने पर शुद्ध निर्मलता का प्रतिक ) (अहिंसा )
उपाध्याय परमेष्ठी-हरा,(प्रेम -विश्वास-अप्तता का प्रतिक) (ब्रह्मचर्य )
साधू परमेष्ठी-(साधना में लींन/वाह्य वातावरण से अप्रभावी होने और मुक्ति की और कदम बढ़ाने का प्रतिक) नीला (अपरिग्रह
स्फटिकश्वेत-रक्त च पीत-श्याम -निभ तथा ।एततपंचपरमेष्ठि पंचवर्ण-यथाक्रमम्।।
अर्थात: स्फटिक के सामान सफेद लाल पीत श्याम (हरा) और नीला (काला) ये पाँच वर्ण पंच परमेष्ठी के प्रतिक है
- मानसार 55/44
शान्तो श्वेत जये श्याम,भद्रे रक्तमभये हरित ।पीत घनादिस लाभे, पंचवर्ण तु सिद्द्ये ।।
अर्थात : श्वेत वर्ण शांति का प्रतिक,श्याम वर्ण विजय का प्रतिक,रक्त वर्ण कल्याणक का कारक,हरित वर्ण अभय को दर्शाता है ,पीत वर्ण धनादि के लाभ का दर्शक है
*इस प्रकार पांचों वर्ण सिध्दि के कारन है*-उमास्वामी श्रावकाचार 138 पृष्ठ 55
प्रिय एवम आदरणीय धर्मानुरागीयों ,
जयजिनेंद्रदेवकी !
आज जैन धर्म के बेसिक्स की श्रृंखला में अहिंसा के प्रतीक चिन्ह के विषय में स्वाध्याय करते है!आप सभी से विनम्र निवेदन है की रूचिपूर्वक इन्हें जानकर अपनी शंकाये इनके संदर्भ में रखिये जिससे दो तरफ परस्पर सम्वाद होकर विषय रुचिकार बन जाए !
जैन धर्म में 'अहिंसा'' का प्रतीक चिन्ह
(त्रिलोक के निम्नचित्र में चक्र सहित हाथ अहिंसा का प्रतीक चिन्ह है -
हाथ निर्भयता का प्रतीक है,उसकी मध्यस्थ चक्र,संसार एवं धर्म चक्र प्रदर्शित करता है संसारचक्र को अपने कल्याण हेतु हमें मुख्यतः अहिंसा धर्मचक्र के माध्यम से तोडना है !चक्र के मध्यस्थ अहिंसा लिखा है जिस के माध्यम से २४ तीर्थंकरों (आरे-२४ तीर्थंकरों के प्रतीक है )ने संसार चक्र को भंग कर मोक्ष प्राप्त किया है!
प्रिय एवम आदरणीय धर्मानुरागीयों ,
जयजिनेंद्रदेवकी !
मैं आज से जैन धर्म के बेसिक्स की श्रृंखला में पोस्टिंगआरम्भ कर रहा हूँ जो स्वाध्याय अथवा रूचि के अभाव में उन्की जानकारी से अनभिज्ञ रह गए है!आप सभी से विनम्र निवेदन है की रूचिपूर्वक इन्हें जानकर अपनी शंकाये इनके संदर्भ में रखिये जिससे दो तरफ परस्पर सम्वाद होकर विषय रुचिकार बन जाए !
इसी श्रंखला में आज जैन धर्म की ध्वाजा के सन्दर्भ में जानकारी से आरम्भ करते है !
जैनधर्म के मूल चिन्ह
१- जैन धर्म की ध्वजा -
जैन धर्म का ध्वज; क्रमश: लाल,पीले ,सफेद,हरे और नीले रंगों की पट्टियों का है,बीच मे नारंगी रंग का स्वस्तिक चिन्ह,जीव/आत्मा का चतुर्गतियों;देव,नरक,मनुष्य,तिर्यंच मे भ्रमण के सूचक है! उसके ऊपर तीन बिंदु त्रिलोक/अथवा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तथा अर्ध चन्द्र सिद्धालय को दर्शाते है!चन्द्रमा के ऊपर एक बिंदु सिद्धात्माओं का प्रतीक है हमारे २४ तीर्थंकरों के शरीर का वर्ण भी इन्ही रंग का था;
चंद्रप्रभजी और पुष्प दन्तजी का सफेद,मुनिसुव्रतनाथजी नेमिनाथजी का नीला, पद्मप्रभजी-वासुपूज्यजी का लाल,सुपार्श्वनाथ जी-पार्श्वनाथ जी का हरा,और
१६तीर्थंकरों का स्वर्णीय/पीलाथा!
ध्वज के पांच रूंग क्रमश;पंच परमेष्टियों और पञ्च महाव्रतों के सूचक है
सिद्धपरमेष्ठी-लाल,(अघातिया कर्म की निर्जरा का प्रतिक) (सत्य )
आचार्य परमेष्ठी-पीला (शिष्यो के प्रति वात्सल्य का प्रतिक) (अचौर्य )
अरिहंत परमेष्ठी-सफ़ेद,(घतिया कर्म का नाश करने पर शुद्ध निर्मलता का प्रतिक ) (अहिंसा )
उपाध्याय परमेष्ठी-हरा,(प्रेम -विश्वास-अप्तता का प्रतिक) (ब्रह्मचर्य )
साधू परमेष्ठी-(साधना में लींन/वाह्य वातावरण से अप्रभावी होने और मुक्ति की और कदम बढ़ाने का प्रतिक) नीला (अपरिग्रह
स्फटिकश्वेत-रक्त च पीत-श्याम -निभ तथा ।एततपंचपरमेष्ठि पंचवर्ण-यथाक्रमम्।।
अर्थात: स्फटिक के सामान सफेद लाल पीत श्याम (हरा) और नीला (काला) ये पाँच वर्ण पंच परमेष्ठी के प्रतिक है
- मानसार 55/44
शान्तो श्वेत जये श्याम,भद्रे रक्तमभये हरित ।पीत घनादिस लाभे, पंचवर्ण तु सिद्द्ये ।।
अर्थात : श्वेत वर्ण शांति का प्रतिक,श्याम वर्ण विजय का प्रतिक,रक्त वर्ण कल्याणक का कारक,हरित वर्ण अभय को दर्शाता है ,पीत वर्ण धनादि के लाभ का दर्शक है
*इस प्रकार पांचों वर्ण सिध्दि के कारन है*-उमास्वामी श्रावकाचार 138 पृष्ठ 55
प्रिय एवम आदरणीय धर्मानुरागीयों ,
जयजिनेंद्रदेवकी !
आज जैन धर्म के बेसिक्स की श्रृंखला में अहिंसा के प्रतीक चिन्ह के विषय में स्वाध्याय करते है!आप सभी से विनम्र निवेदन है की रूचिपूर्वक इन्हें जानकर अपनी शंकाये इनके संदर्भ में रखिये जिससे दो तरफ परस्पर सम्वाद होकर विषय रुचिकार बन जाए !
जैन धर्म में 'अहिंसा'' का प्रतीक चिन्ह
(त्रिलोक के निम्नचित्र में चक्र सहित हाथ अहिंसा का प्रतीक चिन्ह है -
हाथ निर्भयता का प्रतीक है,उसकी मध्यस्थ चक्र,संसार एवं धर्म चक्र प्रदर्शित करता है संसारचक्र को अपने कल्याण हेतु हमें मुख्यतः अहिंसा धर्मचक्र के माध्यम से तोडना है !चक्र के मध्यस्थ अहिंसा लिखा है जिस के माध्यम से २४ तीर्थंकरों (आरे-२४ तीर्थंकरों के प्रतीक है )ने संसार चक्र को भंग कर मोक्ष प्राप्त किया है!