03-27-2017, 09:30 AM
चौंसठ ऋद्धियां भाग २
३३.वचनबल ऋद्धि - जीभ, कंठ आदि में शुष्कता एवं थकावट हुए बिना सम्पूर्ण श्रुत का अन्तर्मूहुर्त में ही पाठ कर सकने की शक्ति ।
३४.कायबल ऋद्धि - एक वर्ष, चातुर्मास आदि बहुत लम्बे समय तक कायोत्सर्ग करने पर भी शरीर का बल, कान्ति आदि थोड़ा भी कम न होने एवं तीनों लोकों को कनिष्ठ अंगुली पर उठा सकने की शक्ति ।
३५.कामरूपित्व ऋद्धि - एक साथ अनेक आकारोंवाले अनेक शरीरों को बना सकने की शक्ति ।
३६.वशित्व ऋद्धि - तपके बल से सभी जीवों को अपने वश में कर सकने की शक्ति ।
३७.र्इशत्व ऋद्धि - तीनों लोकों पर प्रभुता प्रकट सकने की शक्ति ।
३८. प्राकाम्य ऋद्धि - जल में पृथ्वी की तरह और पृथ्वी में जल की तरह चल सकने की शक्ति ।
३९. अन्तर्धान ऋद्धि - तुरन्त अदृश्य हो सकने की शक्ति ।
४०. आप्ति ऋद्धि - भूमि पर बैठे हुए ही अंगुली से सुमेरु पर्वत की चोटी, सूर्य, और चन्द्रमा आदि को छू सकने की शक्ति ।
४१. अप्रतिघात ऋद्धि - पर्वतों, दीवारों के मध्य भी खुले मैदान के समान बिना रुकावट आवगमन की शक्ति ।
४२. दीप्त तप ऋद्धि - बड़े-बड़े उपवास करते हुए भी मनोबल, वचन बल, कायबल में वृद्धि, श्वास व शरीर में सुगंधि, तथा महा कान्तिमान शरीर होने की शक्ति ।
४३. तप्त तप ऋद्धि - भोजन से मल, मूत्र, रक्त, मांस, आदि न बनकर गरम कड़ाही में से पानी की तरह उड़ा देने की शक्ति ।
४४. महा उग्र तप ऋद्धि - एक, दो, चार दिन के, पक्ष के, मास के आदि किसी उपवास को धारण कर मरण- पर्यन्त न छोड़ने की शक्ति ।
४५. घोर तप ऋद्धि - भयानक रोगों से पीड़ित होने पर भी उपवास व काय क्लेश आदि से नहीं डिगने की शक्ति ।
४६. घोर पराक्रम तप ऋद्धि - दुष्ट, राक्षस, पिशाच के निवास स्थान, भयानक जानवरों से व्याप्त पर्वत, गुफा, श्मशान, सूने गाँव में तपस्या करने, समुद्र के जल को सुखा देने एवं तीनों लोकों को उठाकर फेंक सकने की शक्ति ।
४७. परमघोर तप ऋद्धि - सिंह-नि:क्रीडित आदि महा-उपवासों को करते रहने की शक्ति ।
४८. घोर ब्रह्मचर्य तप ऋद्धि - आजीवन तपश्चरण में विपरीत परिस्थिति मिलने पर भी स्वप्न में भी ब्रह्मचर्य से न डिगने की शक्ति ।
४९. आमर्ष औषधि ऋद्धि - समीप आकर जिनके बोलने या छूने से ही सब रोग दूर हो जाएँ-ऐसी शक्ति ।
५०. सर्वोषधि ऋद्धि - जिनका शरीर स्पर्श करनेवाली वायु ही समस्त रोगों को दूर कर दे-ऐसी शक्ति ।
५१. आशीर्विषा औैषधि ऋद्धि - जिनके (कर्म उदय से क्रोधपूर्वक) वचन मात्र से ही शरीर में जहर फैल जाए-ऐसी शक्ति ।
५२. आशीर्विषा औषधि ऋद्धि - महाविष व्याप्त अथवा रोगी भी जिनके आशीर्वचन सुनने से निरोग या निर्विष हो जाये-ऐसी शक्ति ।
५३. दृष्टिविषा ऋद्धि - कर्मउदय से (क्रोध पूर्ण) दृष्टि मात्र से ही मृत्युदायी जहर फैल जाए ऐसी शक्ति ।
५४. दृष्टिअविषा (दृष्टिनिर्विष) ऋद्धि - महाविषव्याप्त जीव भी जिनकी दृष्टि से निर्विष हो जाए-ऐसी शक्ति ।
५५. क्ष्वेलौषधि ऋद्धि - जिनके थूक, कफ आदि से लगी हुर्इ हवा के स्पर्श से ही रोग दूर हो जाए-ऐसी शक्ति ।
५६. विडौषधि ऋद्धि - जिनके मल (विष्ठा) से स्पर्श की हुर्इ वायु ही रोगनाशक हो-ऐसी शक्ति ।
५७. जलौषधि ऋद्धि - जिनके शरीर के जल (पसीने) में लगी हुर्इ धूल ही महारोगहारी हो ऐसी शक्ति ।
५८. मलौषधि ऋद्धि - जिनके दांत, कान, नाक, नेत्र आदि का मैल ही सर्व रोगनाशक होता है, उसे मलौषधि ऋद्धि कहते हैं ।
५९. क्षीरस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही दूध के समान गुणकारी हो जाए अथवा जिनके वचन सुनने से क्षीण-पुरुष भी दूध-पान के समान बल को प्राप्त करे ऐसी शक्ति ।
६०. घृतस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही घी के समान बलवर्षक हो जाए अथवा जिनके वचन घृत के समान तृप्ति करें ऐसी शक्ति ।
६१. मधुस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही मधुर हो जाए अथवा जिनके वचन सुनकर दु:खी प्राणी भी साता का अनुभव करें ऐसी शक्ति ।
६२. अमृतस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही अमृत के समान पुष्टि कारक हो जाए अथवा जिनके वचन अमृत के समान आरोग्य कारी हों ऐसी शक्ति ।
६३. अक्षीणसंवास ऋद्धि - ऐसी ऋद्धिधारी जहाँ ठहरे हों, वहाँ चक्रवर्ती की विशाल सेना भी बिना कठिनाई के ठहर सके-ऐसी शक्ति ।
६४. अक्षीण महानस ऋद्धि - इस ऋद्धि के धारी जिस चौके में आहार करे-वहाँ चक्रवर्ती की सेना के लिये भी भोजन कम न पड़े-ऐसी शक्ति ।
३३.वचनबल ऋद्धि - जीभ, कंठ आदि में शुष्कता एवं थकावट हुए बिना सम्पूर्ण श्रुत का अन्तर्मूहुर्त में ही पाठ कर सकने की शक्ति ।
३४.कायबल ऋद्धि - एक वर्ष, चातुर्मास आदि बहुत लम्बे समय तक कायोत्सर्ग करने पर भी शरीर का बल, कान्ति आदि थोड़ा भी कम न होने एवं तीनों लोकों को कनिष्ठ अंगुली पर उठा सकने की शक्ति ।
३५.कामरूपित्व ऋद्धि - एक साथ अनेक आकारोंवाले अनेक शरीरों को बना सकने की शक्ति ।
३६.वशित्व ऋद्धि - तपके बल से सभी जीवों को अपने वश में कर सकने की शक्ति ।
३७.र्इशत्व ऋद्धि - तीनों लोकों पर प्रभुता प्रकट सकने की शक्ति ।
३८. प्राकाम्य ऋद्धि - जल में पृथ्वी की तरह और पृथ्वी में जल की तरह चल सकने की शक्ति ।
३९. अन्तर्धान ऋद्धि - तुरन्त अदृश्य हो सकने की शक्ति ।
४०. आप्ति ऋद्धि - भूमि पर बैठे हुए ही अंगुली से सुमेरु पर्वत की चोटी, सूर्य, और चन्द्रमा आदि को छू सकने की शक्ति ।
४१. अप्रतिघात ऋद्धि - पर्वतों, दीवारों के मध्य भी खुले मैदान के समान बिना रुकावट आवगमन की शक्ति ।
४२. दीप्त तप ऋद्धि - बड़े-बड़े उपवास करते हुए भी मनोबल, वचन बल, कायबल में वृद्धि, श्वास व शरीर में सुगंधि, तथा महा कान्तिमान शरीर होने की शक्ति ।
४३. तप्त तप ऋद्धि - भोजन से मल, मूत्र, रक्त, मांस, आदि न बनकर गरम कड़ाही में से पानी की तरह उड़ा देने की शक्ति ।
४४. महा उग्र तप ऋद्धि - एक, दो, चार दिन के, पक्ष के, मास के आदि किसी उपवास को धारण कर मरण- पर्यन्त न छोड़ने की शक्ति ।
४५. घोर तप ऋद्धि - भयानक रोगों से पीड़ित होने पर भी उपवास व काय क्लेश आदि से नहीं डिगने की शक्ति ।
४६. घोर पराक्रम तप ऋद्धि - दुष्ट, राक्षस, पिशाच के निवास स्थान, भयानक जानवरों से व्याप्त पर्वत, गुफा, श्मशान, सूने गाँव में तपस्या करने, समुद्र के जल को सुखा देने एवं तीनों लोकों को उठाकर फेंक सकने की शक्ति ।
४७. परमघोर तप ऋद्धि - सिंह-नि:क्रीडित आदि महा-उपवासों को करते रहने की शक्ति ।
४८. घोर ब्रह्मचर्य तप ऋद्धि - आजीवन तपश्चरण में विपरीत परिस्थिति मिलने पर भी स्वप्न में भी ब्रह्मचर्य से न डिगने की शक्ति ।
४९. आमर्ष औषधि ऋद्धि - समीप आकर जिनके बोलने या छूने से ही सब रोग दूर हो जाएँ-ऐसी शक्ति ।
५०. सर्वोषधि ऋद्धि - जिनका शरीर स्पर्श करनेवाली वायु ही समस्त रोगों को दूर कर दे-ऐसी शक्ति ।
५१. आशीर्विषा औैषधि ऋद्धि - जिनके (कर्म उदय से क्रोधपूर्वक) वचन मात्र से ही शरीर में जहर फैल जाए-ऐसी शक्ति ।
५२. आशीर्विषा औषधि ऋद्धि - महाविष व्याप्त अथवा रोगी भी जिनके आशीर्वचन सुनने से निरोग या निर्विष हो जाये-ऐसी शक्ति ।
५३. दृष्टिविषा ऋद्धि - कर्मउदय से (क्रोध पूर्ण) दृष्टि मात्र से ही मृत्युदायी जहर फैल जाए ऐसी शक्ति ।
५४. दृष्टिअविषा (दृष्टिनिर्विष) ऋद्धि - महाविषव्याप्त जीव भी जिनकी दृष्टि से निर्विष हो जाए-ऐसी शक्ति ।
५५. क्ष्वेलौषधि ऋद्धि - जिनके थूक, कफ आदि से लगी हुर्इ हवा के स्पर्श से ही रोग दूर हो जाए-ऐसी शक्ति ।
५६. विडौषधि ऋद्धि - जिनके मल (विष्ठा) से स्पर्श की हुर्इ वायु ही रोगनाशक हो-ऐसी शक्ति ।
५७. जलौषधि ऋद्धि - जिनके शरीर के जल (पसीने) में लगी हुर्इ धूल ही महारोगहारी हो ऐसी शक्ति ।
५८. मलौषधि ऋद्धि - जिनके दांत, कान, नाक, नेत्र आदि का मैल ही सर्व रोगनाशक होता है, उसे मलौषधि ऋद्धि कहते हैं ।
५९. क्षीरस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही दूध के समान गुणकारी हो जाए अथवा जिनके वचन सुनने से क्षीण-पुरुष भी दूध-पान के समान बल को प्राप्त करे ऐसी शक्ति ।
६०. घृतस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही घी के समान बलवर्षक हो जाए अथवा जिनके वचन घृत के समान तृप्ति करें ऐसी शक्ति ।
६१. मधुस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही मधुर हो जाए अथवा जिनके वचन सुनकर दु:खी प्राणी भी साता का अनुभव करें ऐसी शक्ति ।
६२. अमृतस्रावी ऋद्धि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही अमृत के समान पुष्टि कारक हो जाए अथवा जिनके वचन अमृत के समान आरोग्य कारी हों ऐसी शक्ति ।
६३. अक्षीणसंवास ऋद्धि - ऐसी ऋद्धिधारी जहाँ ठहरे हों, वहाँ चक्रवर्ती की विशाल सेना भी बिना कठिनाई के ठहर सके-ऐसी शक्ति ।
६४. अक्षीण महानस ऋद्धि - इस ऋद्धि के धारी जिस चौके में आहार करे-वहाँ चक्रवर्ती की सेना के लिये भी भोजन कम न पड़े-ऐसी शक्ति ।