देव दर्शन स्त्रोत्रम्
#1

 
देव दर्शन स्त्रोत्रम्




दर्शनं देव देवस्य , दर्शनं पाप नाशनम I
दर्शनं स्वर्ग सोपानम , दर्शनं मोक्ष साधनं IIII
दर्शनेन जिनेंद्राणां, साधुनां वन्दनेन I
चिरं तिष्ठति पापं , छिद्रहस्ते यथोदकं IIII
यह नमस्कार किसे किया है ?
नमस्कार देव को कहा है I
नमस्कार साधू को भी कहा है I
देव किसे कहा है ?
जिनेद्र भगवान को देव कहा है I
देव के दर्शन करनेसे
. पापोंका नाश होता है I
. स्वर्ग की प्राप्ति होती है I
. मोक्ष की प्राप्ति होती है I
वीतरागमुखं दृष्ट्वा,पद्मरागसमप्रभम I
नैकजन्मकृतं पापं, दर्शनें विनश्यति IIII
दर्शनं जिनसूर्यस्य , संसारध्वांतनाशनं I
बोधनं चित्तपद्मस्य, समस्तार्थप्रकाशनं IIII
दर्शनं जिनचन्द्रस्य , सद्धर्मामृतवर्षणम् 
जन्मदाहविनाशाय , वर्धनम सुखवारिधे IIII
# जिनेद्र भगवान कैसे है ?
@ जिनेन्द्र भगवान वीतरागी है I
वे रागद्वेष आदि १८ दोषोंसे रहित है इसलिए उन्हें
वीतरागी कहा है I
@
जिनेद्र भगवान् सर्वज्ञ है I
केवलज्ञान के प्राप्ति से भगवान सब पदार्थोंको 
उनके त्रैकालिक पर्यायों सहित युगपत जानते है I
@
जिनेद्र भगवान हितोपदेशी है
सब जीवोंको इहपरलोक में कल्याणकारी मोक्षमार्ग
का उपदेश देते है इसलिए उन्हें हितोपदेशी कहा है I
जीवादी तत्त्व प्रतिपादकाय ,
सम्यक्त्व मुख्याष्टगुणाश्रयाय I
प्रशांत रुपाय दिगम्बराय ,
देवाधीदेवाय नमो जिनाय IIII
दर्शन का एक अर्थ श्रद्धान भी है I
जीवादी सात तत्व , छः द्रव्य , नौ पदार्थ आदि का 
उपदेश अरिहंत भगवान करते है I
यह उपदेश परंपरा से शास्त्रों में पाया जाता है I
उन्ही शास्त्रोंका सच्चे गुरु हमें उपदेश करते है I
व्यवहार से सच्चे देव , शास्त्र और गुरु के श्रधान को
को सम्यक दर्शन कहा है I
यह सच्चे देव शास्त्र और गुरु का श्रद्धान जीव आदि
सात तत्वोंको कारण भुत है I
इसलिए सात तत्वोंके श्रद्धान को भी सम्यक दर्शन 
कहा है I
चिदानंन्दैकरुपाय, जिनाय परमात्मने I
परमात्मप्रकाशाय , नित्यं सिधात्मने नमः IIII
यह तत्वोंका श्रद्धान से हमें जीव याने आत्मा की पहचान होती है
यह आत्मा चिदानंद स्वरुप है I ये हम सब जीवों में है I
निश्चय से हमारी आत्मा सिद्ध परमेष्टि समान परमात्म स्वरुप है I
मैं आत्मा हूँ I मुझमे परमात्मा बसा हुआ है I
पुद्गालादी द्रव्य पर है I मैं तो शुद्ध आत्मस्वरुप हूँ I
इस श्रद्धान को निश्चय से सम्यक दर्शन कहा है I
मेरा रोज का देव दर्शन जिनेद्र भगवान को नमस्कार है I
वैसे वह मुझमे बसे परमात्म स्वरुप आत्मा को भी है I
यही सही अर्थ में नमस्कार है , दर्शन या श्रदधान है I
यही सम्यक दर्शन है I
अरिहंत भगवान की वीतरागी प्रतिमाका दर्शन करते हुए हमें ये सोचना है की ….
हे भगवन आपका वर्तमान स्वरुप मेरा भविष्य का स्वरुप हो
आपने कहे उपदेश पर सम्यक श्रद्धा रखकर मैं
मोक्षमार्ग पर चलके अपना कल्याण करूँगा I
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम I
तस्मात् कारुण्य भावेन रक्ष रक्ष जिनेश्वर IIII
नहीं त्राता नहीं त्राता नहीं त्राता जगत्रये I
वीतरागात् परो देवो , भूतो भविष्यति IIII 
जिनेर्भक्तिजिनेर्भक्ति , जिनेर्भक्ति र्दिनेदिने I
सदामेऽस्तू सदामेऽस्तू , सदामेऽस्तू भवे भवे II१०II
जिनधर्म विनिर्मुक्तो, मा भुवं चक्रवर्त्यपी I
संचितोपीदरिद्रोऽपि जिन धर्मानुवासितः II११II
जन्मजन्मकृतं पापं , जन्मकोटिमुपार्जितम I
जन्म मृत्यु जरा रोगो हन्यते जिनदर्शनात II१२II
ऐसे अरिहंत भगवान को मैं शरण जाता हूँ ! और कोई शरण जाने योग्य नहीं !
अर्थात मैं अपने में बसे सिद्ध परमेष्टि स्वरुप परमात्मा को शरण जाता हूँ !
अरिहंत भगवान के दर्शन करनेसे मेरा जन्म , जरा और मृत्यु का नाश हो जायेगा !
अर्थात अपने आत्मा का दर्शन करनेसे और उसमे स्थित होने से मेरा जन्म , जरा , मृत्यु
का विनाश हो जायेगा !
Reply


Forum Jump:


Users browsing this thread: 1 Guest(s)