10-26-2022, 03:25 PM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -8 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -110 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
ण भयो भंगविहीणो भंगो वा णत्थि संभवविहीणो।
उप्पादो वि य भंगो ण विणा धोव्वेण अत्थेण // 8 //
अब कहते हैं, कि उत्पाद, व्यय, और ध्रौव्य ये आपसमें पृथक् नहीं हैं, एक ही हैं-[भङ्गविहीनः] व्यय रहित [भवः] उत्पाद [न] नहीं होता, [वा] तथा [संभवविहीनः] उत्पाद रहित [भङ्गः] व्यय [नास्ति नहीं होता, [च] और [उत्पादः] उत्पाद [अपि] तथा [भङ्गः] व्यय ये दोनों [विना ध्रौव्येण अर्थेण] नित्य स्थिररूप पदार्थक विना [न] नहीं होते। भावार्थउत्पाद व्ययके विना नहीं होता, व्यय उत्पादके विना नहीं होता, उत्पाद और व्यय ये दोनों ध्रौव्यके विना नहीं होते, तथा ध्रौव्य उत्पाद व्ययके विना नहीं होता / इस कारण जो उत्पाद है, वही व्यय है, जो व्यय है, वही उत्पाद है, जो उत्पाद व्यय है, वही ध्रुवता है। इस कथनको दृष्टान्तसे दिखाते हैंजैसे जो घड़ेका उत्पाद है, वही मिट्टीके पिंडका व्यय (नाश) है, क्योंकि एक पर्यायका उत्पाद (उत्पन्न होना) दूसरे पर्यायके नाशसे होता है / जो घड़े और पिंडका उत्पाद और व्यय है वही मिट्टीकी ध्रुवता है, क्योंकि पर्यायके विना द्रव्यकी स्थिति देखनेमें नहीं आती / जो माटीकी ध्रुवता है, वही घड़े और पिंडका उत्पाद-व्यय है, क्योंकि द्रव्यकी थिरताके विना पर्याय हो नहीं सकते / इस कारण ये तीनों एक हैं / ऐसा न मानें, तो वस्तुका स्वभाव तीन लक्षणवाला सिद्ध नहीं हो सकता / जो केवल उत्पाद ही माना जाय, तो दो दोष लगते हैं-एक तो कार्यकी उत्पत्ति न होवे, दूसरे असत्का उत्पाद हो जाय / यही दिखाते हैं-~-घड़ेका जो उत्पाद है वह मृत्पिण्डके व्ययसे है, यदि केवल उत्पाद ही माना जावे, व्यय न मानें, तो उत्पादके कारणके अभावसे घड़ेकी उत्पत्ति ही न हो सके, और जिस तरह घट-कार्य नहीं हो सकता, वैसे सब पदार्थ भी उत्पन्न नहीं हो सकते / यह पहला दूषण है / दूसरा दोष दिखाते हैं-जो ध्रुवपना सहित वस्तुके विना उत्पाद हो सके, तो असत् वस्तुका उत्पाद हो जाना चाहिये, ऐसा होनेपर आकाशके फूल भी उत्पन्न होने लगेंगे / और जो केवल व्यय ही मानेंगे, तो भी दो दूषण आवेंगे। एक तो नाश ही का अभाव हो जावेगा, क्योंकि मृत्पिडका नाश घड़ेके उत्पन्न होनेसे है, अर्थात् यदि केवल नाश ही मानेंगे, तो नाशका अभाव सिद्ध होगा, क्योंकि नाश उत्पादके विना नहीं होता / दूसरे, सत्का नाश होवेगा, और सत्के नाश होनेसे ज्ञानादिकका भी नाश होकर धारणा न होगी। और केवल ध्रुवके नाश माननेसे भी दो दूषण लगते हैं / एक तो पर्यायका नाश होता है, दूसरे, अनित्यको नित्यपना होता है / जो पर्यायका नाश होगा, तो पर्यायके विना द्रव्यका अस्तित्व नहीं है, इसलिये द्रव्यके नाशका प्रसंग आता है, जैसे मृत्तिकाका पिंड घटादि पर्यायोंके विना नहीं होता / और जो अनित्यको नित्यत्व होगा, तो मनकी गतिको भी नित्यता होगी। इसलिये इन सब कारणोंसे यह बात सिद्ध हुई, कि केवल एकके माननेसे वस्तु सिद्ध नहीं होती है। इसलिये आगामी पर्यायका उत्पाद, पूर्व पर्यायका व्यय, मूलवस्तुकी स्थिरता, इन तीनोंकी एकतासे ही द्रव्यका लक्षण निर्विघ्न सधता है |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
◼ इस वीडियो के माध्यम से हम द्रव्य में(जीव/अजीव) उत्पाद,व्यय,ध्रौव्य के बारे में समझेंगे।किसी भी द्रव्य में उतपत्ति, नाश एवम निरन्तरता सदा विद्यमान रहती है यदि बदलती है तो वह है उसकी पर्याय जो हमें दिखती है।
◼ कर्म सिद्धान्त जो कहता है कि केवल कर्म ही जीव के साथ जाते है इस गाथा के माध्यम से हम कर्म सिद्धान्त को भली भांति समझ सकते है।
◼ क्या आत्मा भटकती है?क्या वास्तव में भूत होते है? इस गाथा को सुनने के बाद हमें स्पष्ट हो जाएगा कि आत्मा कभी भटकती नहीं है।वह तो आयु पूर्ण होने से पहले ही नई पर्याय के लिए आयु कर्म बन्ध कर लेती है।
◼ भूत ,पिशाच आदि व्यन्तर जाति के देव होते हैं जो कि देव पर्याय का बन्ध करके व्यन्तर बन जाते हैं।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -8 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -110 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
ण भयो भंगविहीणो भंगो वा णत्थि संभवविहीणो।
उप्पादो वि य भंगो ण विणा धोव्वेण अत्थेण // 8 //
अब कहते हैं, कि उत्पाद, व्यय, और ध्रौव्य ये आपसमें पृथक् नहीं हैं, एक ही हैं-[भङ्गविहीनः] व्यय रहित [भवः] उत्पाद [न] नहीं होता, [वा] तथा [संभवविहीनः] उत्पाद रहित [भङ्गः] व्यय [नास्ति नहीं होता, [च] और [उत्पादः] उत्पाद [अपि] तथा [भङ्गः] व्यय ये दोनों [विना ध्रौव्येण अर्थेण] नित्य स्थिररूप पदार्थक विना [न] नहीं होते। भावार्थउत्पाद व्ययके विना नहीं होता, व्यय उत्पादके विना नहीं होता, उत्पाद और व्यय ये दोनों ध्रौव्यके विना नहीं होते, तथा ध्रौव्य उत्पाद व्ययके विना नहीं होता / इस कारण जो उत्पाद है, वही व्यय है, जो व्यय है, वही उत्पाद है, जो उत्पाद व्यय है, वही ध्रुवता है। इस कथनको दृष्टान्तसे दिखाते हैंजैसे जो घड़ेका उत्पाद है, वही मिट्टीके पिंडका व्यय (नाश) है, क्योंकि एक पर्यायका उत्पाद (उत्पन्न होना) दूसरे पर्यायके नाशसे होता है / जो घड़े और पिंडका उत्पाद और व्यय है वही मिट्टीकी ध्रुवता है, क्योंकि पर्यायके विना द्रव्यकी स्थिति देखनेमें नहीं आती / जो माटीकी ध्रुवता है, वही घड़े और पिंडका उत्पाद-व्यय है, क्योंकि द्रव्यकी थिरताके विना पर्याय हो नहीं सकते / इस कारण ये तीनों एक हैं / ऐसा न मानें, तो वस्तुका स्वभाव तीन लक्षणवाला सिद्ध नहीं हो सकता / जो केवल उत्पाद ही माना जाय, तो दो दोष लगते हैं-एक तो कार्यकी उत्पत्ति न होवे, दूसरे असत्का उत्पाद हो जाय / यही दिखाते हैं-~-घड़ेका जो उत्पाद है वह मृत्पिण्डके व्ययसे है, यदि केवल उत्पाद ही माना जावे, व्यय न मानें, तो उत्पादके कारणके अभावसे घड़ेकी उत्पत्ति ही न हो सके, और जिस तरह घट-कार्य नहीं हो सकता, वैसे सब पदार्थ भी उत्पन्न नहीं हो सकते / यह पहला दूषण है / दूसरा दोष दिखाते हैं-जो ध्रुवपना सहित वस्तुके विना उत्पाद हो सके, तो असत् वस्तुका उत्पाद हो जाना चाहिये, ऐसा होनेपर आकाशके फूल भी उत्पन्न होने लगेंगे / और जो केवल व्यय ही मानेंगे, तो भी दो दूषण आवेंगे। एक तो नाश ही का अभाव हो जावेगा, क्योंकि मृत्पिडका नाश घड़ेके उत्पन्न होनेसे है, अर्थात् यदि केवल नाश ही मानेंगे, तो नाशका अभाव सिद्ध होगा, क्योंकि नाश उत्पादके विना नहीं होता / दूसरे, सत्का नाश होवेगा, और सत्के नाश होनेसे ज्ञानादिकका भी नाश होकर धारणा न होगी। और केवल ध्रुवके नाश माननेसे भी दो दूषण लगते हैं / एक तो पर्यायका नाश होता है, दूसरे, अनित्यको नित्यपना होता है / जो पर्यायका नाश होगा, तो पर्यायके विना द्रव्यका अस्तित्व नहीं है, इसलिये द्रव्यके नाशका प्रसंग आता है, जैसे मृत्तिकाका पिंड घटादि पर्यायोंके विना नहीं होता / और जो अनित्यको नित्यत्व होगा, तो मनकी गतिको भी नित्यता होगी। इसलिये इन सब कारणोंसे यह बात सिद्ध हुई, कि केवल एकके माननेसे वस्तु सिद्ध नहीं होती है। इसलिये आगामी पर्यायका उत्पाद, पूर्व पर्यायका व्यय, मूलवस्तुकी स्थिरता, इन तीनोंकी एकतासे ही द्रव्यका लक्षण निर्विघ्न सधता है |
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
◼ इस वीडियो के माध्यम से हम द्रव्य में(जीव/अजीव) उत्पाद,व्यय,ध्रौव्य के बारे में समझेंगे।किसी भी द्रव्य में उतपत्ति, नाश एवम निरन्तरता सदा विद्यमान रहती है यदि बदलती है तो वह है उसकी पर्याय जो हमें दिखती है।
◼ कर्म सिद्धान्त जो कहता है कि केवल कर्म ही जीव के साथ जाते है इस गाथा के माध्यम से हम कर्म सिद्धान्त को भली भांति समझ सकते है।
◼ क्या आत्मा भटकती है?क्या वास्तव में भूत होते है? इस गाथा को सुनने के बाद हमें स्पष्ट हो जाएगा कि आत्मा कभी भटकती नहीं है।वह तो आयु पूर्ण होने से पहले ही नई पर्याय के लिए आयु कर्म बन्ध कर लेती है।
◼ भूत ,पिशाच आदि व्यन्तर जाति के देव होते हैं जो कि देव पर्याय का बन्ध करके व्यन्तर बन जाते हैं।