01-03-2024, 03:48 PM
जैनधर्म/संस्कृति में ८४ अंक का बड़ा महत्त्व है। इसका महत्त्व और उपयोगिता निम्न विवरण से प्रकट होती है।
१. बड़वानी बावनगजाजी की भगवान ऋषभदेव की मूर्ति ८४ फुट ऊँची खड़गासन मुद्रा में स्थित है।
२. ८४ फुट में १००८ इंच होते हैं। तीर्थकर भगवान के आगे १००८ लिखा जाता है जो तीर्थकरों के १००८ गुणों/नामों का सूचक है।
३. तीर्थकर ऋषभदेव की आयु ८४ लाख पूर्व वर्ष की थी। ४. तीर्थंकर ऋषभदेव के वृषभसेन, कुम्भ, दृढरथ आदि ८४
गणधर थे जो सप्तऋिद्धिधारी थे और ८४००० ऋषि थे। ५. दिगम्बर मुद्राधारी जैन साधु पाँच महाव्रतों के धारी होते हैं।
इस महाव्रतों के ८४ लाख उत्तर गुण होते हैं। ६. जीवों की ८४ लाख योनियाँ होती है।
७. आचार्य कुन्दकुन्द देव ने प्राकृत भाषा में ८४ पाहुड़ लिखे,
जो द्वितीय श्रुत स्कंध के नाम से जाने जाते हैं। ८. भरत चक्रवर्ती के सैन्य बल में ८४ लाख हाथी और ८४ करोड़ पैदल सैनिक थे।
६. जैन समाज में ८४ उपजातियाँ हैं।
१०. जैन संख्या में ८४ लाख वर्षों का एक पूर्वाग होता है। चौरासी लाख का वर्ग करने पर जो संख्या आती है वह पूर्व कहलाती है (८४०००००४८४००००० = ७०५६००००००००००) इस संख्या में एक करोड़ का गुणा करने पर जो लब्ध आये वह एक पूर्व कोटी कहलाता है। पूर्व की संख्या में ८४ का गुणा करने पर जो लब्ध आये उसे पूर्वाग कहते हैं। पूर्वाग में पूर्वाग अर्थात् ८४ लाख का गुणा करने से पर्व कहलाता है। इसके आगे जो नयुतांग, नयुत, कुमुदांग, कुमुद आदि संख्याएँ कही है उनके लिये भी यही क्रम से गुणाकार करना चाहिये।
'अनादि निधन जैनागम में रूढ़ संख्याएँ इस प्रकार है पूर्वाग, पूर्व, पर्वाग, पर्व, नयुतांग, नयुत, कुमांदांग, कुमुद, पद्यांग, पद्य, नलिनांग, नलिन, कमलांग, कमल, तुट्यंग, तुटिक, अट्टांग, अटट, अममांग, अमम, हाहांग, हाहा, हूहम, हूहू, लतांग, लता, महालतांग, महालता, शिरा-प्रकांम्पित, हस्त ग्रहलेख और अचल में सब उक्त संख्याओं के नाम हैं जो कि कालद्रव्य की पर्याय हैं। यह सब संख्याएँ हैं-संख्यात के भेद हैं। इसके आगे संख्या से रहित हैं-असंख्यात है।'
(आदिपुराण भाग-१, पर्व-३ श्लोक २१८-२२७)
१. बड़वानी बावनगजाजी की भगवान ऋषभदेव की मूर्ति ८४ फुट ऊँची खड़गासन मुद्रा में स्थित है।
२. ८४ फुट में १००८ इंच होते हैं। तीर्थकर भगवान के आगे १००८ लिखा जाता है जो तीर्थकरों के १००८ गुणों/नामों का सूचक है।
३. तीर्थकर ऋषभदेव की आयु ८४ लाख पूर्व वर्ष की थी। ४. तीर्थंकर ऋषभदेव के वृषभसेन, कुम्भ, दृढरथ आदि ८४
गणधर थे जो सप्तऋिद्धिधारी थे और ८४००० ऋषि थे। ५. दिगम्बर मुद्राधारी जैन साधु पाँच महाव्रतों के धारी होते हैं।
इस महाव्रतों के ८४ लाख उत्तर गुण होते हैं। ६. जीवों की ८४ लाख योनियाँ होती है।
७. आचार्य कुन्दकुन्द देव ने प्राकृत भाषा में ८४ पाहुड़ लिखे,
जो द्वितीय श्रुत स्कंध के नाम से जाने जाते हैं। ८. भरत चक्रवर्ती के सैन्य बल में ८४ लाख हाथी और ८४ करोड़ पैदल सैनिक थे।
६. जैन समाज में ८४ उपजातियाँ हैं।
१०. जैन संख्या में ८४ लाख वर्षों का एक पूर्वाग होता है। चौरासी लाख का वर्ग करने पर जो संख्या आती है वह पूर्व कहलाती है (८४०००००४८४००००० = ७०५६००००००००००) इस संख्या में एक करोड़ का गुणा करने पर जो लब्ध आये वह एक पूर्व कोटी कहलाता है। पूर्व की संख्या में ८४ का गुणा करने पर जो लब्ध आये उसे पूर्वाग कहते हैं। पूर्वाग में पूर्वाग अर्थात् ८४ लाख का गुणा करने से पर्व कहलाता है। इसके आगे जो नयुतांग, नयुत, कुमुदांग, कुमुद आदि संख्याएँ कही है उनके लिये भी यही क्रम से गुणाकार करना चाहिये।
'अनादि निधन जैनागम में रूढ़ संख्याएँ इस प्रकार है पूर्वाग, पूर्व, पर्वाग, पर्व, नयुतांग, नयुत, कुमांदांग, कुमुद, पद्यांग, पद्य, नलिनांग, नलिन, कमलांग, कमल, तुट्यंग, तुटिक, अट्टांग, अटट, अममांग, अमम, हाहांग, हाहा, हूहम, हूहू, लतांग, लता, महालतांग, महालता, शिरा-प्रकांम्पित, हस्त ग्रहलेख और अचल में सब उक्त संख्याओं के नाम हैं जो कि कालद्रव्य की पर्याय हैं। यह सब संख्याएँ हैं-संख्यात के भेद हैं। इसके आगे संख्या से रहित हैं-असंख्यात है।'
(आदिपुराण भाग-१, पर्व-३ श्लोक २१८-२२७)