08-06-2014, 08:51 AM
गुणस्थान :-
मोह और योग के कारण होने वाले आत्मा के परिणामों के तारतम्य (उतार चढाव) को गुणस्थान कहते है!मोहनीयकर्म के; दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय कर्मों के कारण ही जीव के परिणाम बनते है,अन्यों कर्मों से नहीं! सम्यक्त्व और चारित्र के सन्दर्भ में जीव के परिणामों की विशुद्धता और संख्या की हीनाधिकता की अभिव्यक्ति गुणस्थानों से होती है! गुणस्थान निगोदिया,एकेन्द्रिय-से पंचेन्द्रिय तक,मुनिराज,केवली,प्रत्येक जीव के होता है!गुणस्थान जीव में दर्शनमोह और चारित्रमोह के कारण होते है! षटखंडागम महान शास्त्र के अनुसार,इनके १४ भेद है! षटखंडागम के टीकाकार,आचार्य वीरसैन की धवला जी के आधार से आचार्य नेमचंद चक्रव्रती ने गोम्मटसार जीवकाण्ड की रचना करी जिसमे गुणस्थानों का बहुत अच्छा वर्णन किया है!
१-मिथ्यात्व २-सासदन सम्यग्दृष्टि ,३-सम्यकमिथ्यात्व,४-अविरतसम्यगदृष्टि.५-देश विरत /संयातासंयत,६-प्रमतविरत,७-अप्रमत विरत ८-अपूर्वकरण,९-अनिवृत्तिरण,१०-सूक्ष्म साम्पराय.११-उपशांत मोह,१२-क्षीणमोह ,१३ -योग केवली,१४-अयोग केवली !
इन मे पहले चार गुणस्थान का वर्णन दर्शनमोह अर्थात सम्यक्त्व ,५वे -१२ वे गुणस्थान तक चारित्रमोह अर्थात चारित्र के क्षय/ क्षयोपशम होने वाले चारित्र और १३वे,१४वे गुण स्थान का योग की अपेक्षा से किया गया है!
जीवों के परिणाम प्रति समय बदलते है इसलिए असंख्यात,अनंत भेदों के होते है ,उन्हें समझाने के लिए आचार्यों ने १४ गुणस्थानों में विभाजित कर दिया!जैसे मिथ्यादृष्टि जीव के अनेक प्रकार के परिणाम होते है,उन सबको उन्होंने मिथ्यात्व नामक प्रथम गुणस्थान में समावेशित कर दिया!
वर्तमान के पंचम काल में तिर्यन्चों में पहले से पांचवे गुणस्थान तक और मनुष्यों में पहले से सात गुणस्थान हो सकते है!सातवें गुण स्थान से ऊपर जाने के लिए इस समय मनुष्यों के पास शारीरिक शक्ति /सहनन उपलब्द्ध नहीं है!नरक/ देवगति में पहले से चतुर्थ, तिर्यंच में पहले से पांच गुणस्थान और मनुष्यगति में पहले से १४ गुणस्थान होते है!
गुणस्थानों का परिचय कुछ विद्वानों के अनुसार,गणित से सम्बंधित होने के कारण करुयोणानुयोग में होना चाहिए क्योकि करण का अर्थ गणित है किन्तु कुछ आचार्यो /विद्वानों का मत है की गुणस्थान जीव के परिणामों से सम्बंधित है इसलिए द्रव्यानुयोग में होना चाहिए!इसका सही परिचय द्रव्यानुयोग में बनेगा!षट्खंडागम,धवला जी,गोम्मेटसार जीव काण्ड आदि ग्रन्थ द्रव्यानुयोग के अंतर्गत है!
मोह और योग के कारण होने वाले आत्मा के परिणामों के तारतम्य (उतार चढाव) को गुणस्थान कहते है!मोहनीयकर्म के; दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय कर्मों के कारण ही जीव के परिणाम बनते है,अन्यों कर्मों से नहीं! सम्यक्त्व और चारित्र के सन्दर्भ में जीव के परिणामों की विशुद्धता और संख्या की हीनाधिकता की अभिव्यक्ति गुणस्थानों से होती है! गुणस्थान निगोदिया,एकेन्द्रिय-से पंचेन्द्रिय तक,मुनिराज,केवली,प्रत्येक जीव के होता है!गुणस्थान जीव में दर्शनमोह और चारित्रमोह के कारण होते है! षटखंडागम महान शास्त्र के अनुसार,इनके १४ भेद है! षटखंडागम के टीकाकार,आचार्य वीरसैन की धवला जी के आधार से आचार्य नेमचंद चक्रव्रती ने गोम्मटसार जीवकाण्ड की रचना करी जिसमे गुणस्थानों का बहुत अच्छा वर्णन किया है!
१-मिथ्यात्व २-सासदन सम्यग्दृष्टि ,३-सम्यकमिथ्यात्व,४-अविरतसम्यगदृष्टि.५-देश विरत /संयातासंयत,६-प्रमतविरत,७-अप्रमत विरत ८-अपूर्वकरण,९-अनिवृत्तिरण,१०-सूक्ष्म साम्पराय.११-उपशांत मोह,१२-क्षीणमोह ,१३ -योग केवली,१४-अयोग केवली !
इन मे पहले चार गुणस्थान का वर्णन दर्शनमोह अर्थात सम्यक्त्व ,५वे -१२ वे गुणस्थान तक चारित्रमोह अर्थात चारित्र के क्षय/ क्षयोपशम होने वाले चारित्र और १३वे,१४वे गुण स्थान का योग की अपेक्षा से किया गया है!
जीवों के परिणाम प्रति समय बदलते है इसलिए असंख्यात,अनंत भेदों के होते है ,उन्हें समझाने के लिए आचार्यों ने १४ गुणस्थानों में विभाजित कर दिया!जैसे मिथ्यादृष्टि जीव के अनेक प्रकार के परिणाम होते है,उन सबको उन्होंने मिथ्यात्व नामक प्रथम गुणस्थान में समावेशित कर दिया!
वर्तमान के पंचम काल में तिर्यन्चों में पहले से पांचवे गुणस्थान तक और मनुष्यों में पहले से सात गुणस्थान हो सकते है!सातवें गुण स्थान से ऊपर जाने के लिए इस समय मनुष्यों के पास शारीरिक शक्ति /सहनन उपलब्द्ध नहीं है!नरक/ देवगति में पहले से चतुर्थ, तिर्यंच में पहले से पांच गुणस्थान और मनुष्यगति में पहले से १४ गुणस्थान होते है!
गुणस्थानों का परिचय कुछ विद्वानों के अनुसार,गणित से सम्बंधित होने के कारण करुयोणानुयोग में होना चाहिए क्योकि करण का अर्थ गणित है किन्तु कुछ आचार्यो /विद्वानों का मत है की गुणस्थान जीव के परिणामों से सम्बंधित है इसलिए द्रव्यानुयोग में होना चाहिए!इसका सही परिचय द्रव्यानुयोग में बनेगा!षट्खंडागम,धवला जी,गोम्मेटसार जीव काण्ड आदि ग्रन्थ द्रव्यानुयोग के अंतर्गत है!