10-16-2014, 08:40 AM
साधू परमेष्ठी के छह आवश्यक -
१-समता- अर्थात अच्छा हो या बुरा,सर्दी हो या गर्मी,परिणामों में उनके राग द्वेष दोनों नहीं होते !समता भाव से सब सहन करते है!
२- वंदना-एक तीर्थंकर,एक आचार्य ,एक परमेष्ठी की स्तुति करते है!
३-स्तुति-२४ तीर्थंकर भगवानों का स्तवन करते है ,उसे स्तुति कहते है!
४-प्रतिक्रमण-अपने द्वारा दिनभर में किये गए दोष है, वे सारे दोष मिथ्या हो, निरंतर वे ऐसा चिंतवन रखते है, यह उनका प्रतिक्रमण आवश्यक है!अपने व्रतों को निर्दोष पालन के लिए,उनमे नित्य लगे दोषों को दूर करने के लिए जो कार्य रोज किये जाते है वे आवश्यक कहलाते है!
५-प्रत्याख्यान- जो दोष हुए हो वे दुबारा न हो, ऐसा अपना मन में निश्चय करना प्रत्याख्यान अवश्यक है
६-कायोत्सर्ग-शरीर की चिंता नहीं करते हुए घंटो तक एकसन्न में बैठकर जाप देना,ध्यान लगाना,तपश्चर्ण करना ,कायोत्सर्ग आवश्यक है सर्दी -गर्मी की चिंता नहीं करते! गर्मी में भी पहाड़पर जाकर पत्थर की शिला पर बैठ कर तप करते है।
१-समता- अर्थात अच्छा हो या बुरा,सर्दी हो या गर्मी,परिणामों में उनके राग द्वेष दोनों नहीं होते !समता भाव से सब सहन करते है!
२- वंदना-एक तीर्थंकर,एक आचार्य ,एक परमेष्ठी की स्तुति करते है!
३-स्तुति-२४ तीर्थंकर भगवानों का स्तवन करते है ,उसे स्तुति कहते है!
४-प्रतिक्रमण-अपने द्वारा दिनभर में किये गए दोष है, वे सारे दोष मिथ्या हो, निरंतर वे ऐसा चिंतवन रखते है, यह उनका प्रतिक्रमण आवश्यक है!अपने व्रतों को निर्दोष पालन के लिए,उनमे नित्य लगे दोषों को दूर करने के लिए जो कार्य रोज किये जाते है वे आवश्यक कहलाते है!
५-प्रत्याख्यान- जो दोष हुए हो वे दुबारा न हो, ऐसा अपना मन में निश्चय करना प्रत्याख्यान अवश्यक है
६-कायोत्सर्ग-शरीर की चिंता नहीं करते हुए घंटो तक एकसन्न में बैठकर जाप देना,ध्यान लगाना,तपश्चर्ण करना ,कायोत्सर्ग आवश्यक है सर्दी -गर्मी की चिंता नहीं करते! गर्मी में भी पहाड़पर जाकर पत्थर की शिला पर बैठ कर तप करते है।