06-10-2018, 10:36 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली नवम अध्याय भाग २
८५१-ॐ ह्रीं अर्हं सूर्यकोटिसमप्रभाय नमः -करोड़ो सूर्य के समान देदीप्यमान प्रभा केधारक होने से,
८५२-ॐ ह्रीं अर्हं तपनीयनिभाय नमः -सुवर्म समान भास्वर होने से,
८५३-ॐ ह्रीं अर्हं तुंगाय नमः -ऊँचा शरीर होने से,
८५४-ॐ ह्रीं अर्हं बालर्कारभाय नमः -प्रात:कालीन सूर्य के समान बाल प्रभा के धारक होने से,
८५५-ॐ ह्रीं अर्हं अनलप्रभाय नमः -अग्नि के समान कान्तियुक्त होने से,
८५६-ॐ ह्रीं अर्हं संध्याभ्रवभ्रवे नमः -सांध्यकालीन मेघों के समान सुंदर लगने वाले,
८५७-ॐ ह्रीं अर्हं हेमाभाय नमः -स्वर्ण समान आभा से युक्त ,
८५८-ॐ ह्रीं अर्हं तप्तचामीकरप्रभाय नमः -तपाये स्वर्ण के समान प्रभा युक्त ,
८५९-ॐ ह्रीं अर्हं निष्टप्तकनकच्छायाय नमः -अत्यंत तपाये स्वर्ण के समान कांतिवान,
८६०-ॐ ह्रीं अर्हं कनत्कांचनसन्निभाय नमः -देदीप्यमान स्वर्ण के समान उज्ज्वल होने से ,
८६१-ॐ ह्रीं अर्हं हिरण्यवर्णाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६२-ॐ ह्रीं अर्हं स्वर्णाभाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६३-ॐ ह्रीं अर्हं शातकुंभनिभप्रभाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६४-ॐ ह्रीं अर्हं द्योनाभाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६५-ॐ ह्रीं अर्हं जातरूपाभाय नमः - स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६६-ॐ ह्रीं अर्हं तप्तजाम्बूनदद्युतये नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६७-ॐ ह्रीं अर्हं सुधौतकलधौतश्रीये नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६८-ॐ ह्रीं अर्हं हाटकद्युतये नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रदीप्ताय नमः -देदीप्यमान होने से ,
८७०-ॐ ह्रीं अर्हं शिष्टेष्टाय नमः -शिष्ट अर्थात उत्तम पुरुषों के इष्ट होने से,
८७१-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्टिदाय नमः -पुष्टि दाता होने से,
८७२-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्टाय नमः -बलवान होने से अथवा लाभांतराय कर्म के क्षय होने से प्रत्येक समय प्राप्त होने वाली अनंत शुभ पुद्गल वर्गणाओं से परमौदारिक शरीर के पुष्ट होने से ,
८७३-ॐ ह्रीं अर्हं स्पष्टाय नमः -प्रकट दिखाई देने से,
८७४-ॐ ह्रीं अर्हं स्पष्टाक्षराय नमः -स्पष्ट अक्षर होने क्ससे,
८७५-ॐ ह्रीं अर्हं क्षमाय नमः -समर्थ होने से,
८७६-ॐ ह्रीं अर्हं शत्रुघ्नाय नमः -कर्म रूप शत्रुओं का क्षय करने से,
८७७-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतिघाय नमः -शत्रु रहित होने से,
८७८-ॐ ह्रीं अर्हं अमोघाय नमः -सफल होने से,
८७९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशास्नो नमः -उत्तम उपदेशक होने से,
८८०-ॐ ह्रीं अर्हं शासित्रे नमः -रक्षक होने से,
८८१-ॐ ह्रीं अर्हं स्वभूवे नमः -स्वयं उत्पन्न होने से,
८८२- ॐ ह्रीं अर्हं शांतिनिष्टाय नमः -शांत होने से,
८८३-ॐ ह्रीं अर्हं मुनिज्येष्ठाय नमः -मुनियो मे श्रेष्टम होने से ,
८८४-ॐ ह्रीं अर्हं शिवतातये नमः -कल्याण परम्परा के प्राप्त होने से,
८८५-ॐ ह्रीं अर्हं शिवप्रदाय नमः -कल्याण अथवा मोक्ष प्रदाता होने से
८८६-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिदाय नमः -शांति प्रदाता होने से
८८७-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिकृते नमः -शांति के कर्ता होने से,
८८८-ॐ ह्रीं अर्हं शांतये नमः -शांत स्वरुप होने से,
८८९-ॐ ह्रीं अर्हं कांतिमते नमः -कांतियुक्त होने से,
८९०-ॐ ह्रीं अर्हं कामितप्रदाय नमः -इच्छित पदार्थों के प्रदाता होने से,
८९१-ॐ ह्रीं अर्हं श्रेयो निधये नमः - कल्याण के भंडार होने से,
८९२-ॐ ह्रीं अर्हं अधिष्ठानाय नमः -धर्म के आधार होने से,
८९३-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतिष्ठाताय नमः -अन्यकृत प्रतिष्ठा से रहित होने से ,
८९४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रतिष्ठिताय नमः -प्रतिष्ठा अर्थात कीर्ति से युक्त होने से
८९५-ॐ ह्रीं अर्हं सुस्थिराय नमः -अतिशय स्थिर होने से ,
८९६-ॐ ह्रीं अर्हं स्थविराय नमः -समवशरण में गमन रहित होने से ,
८९७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थाणवे नमः -अचल होने से,
८९८-ॐ ह्रीं अर्हं प्रथीयसे नमः -अत्यंत विस्तृत होने से,
८९९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रथिताय नमः -प्रसिद्ध होने से ,
९००- ॐ ह्रीं अर्हं पृथवे नमः -ज्ञानादि गुणों की अपेक्षा महान होने से,
८५१-ॐ ह्रीं अर्हं सूर्यकोटिसमप्रभाय नमः -करोड़ो सूर्य के समान देदीप्यमान प्रभा केधारक होने से,
८५२-ॐ ह्रीं अर्हं तपनीयनिभाय नमः -सुवर्म समान भास्वर होने से,
८५३-ॐ ह्रीं अर्हं तुंगाय नमः -ऊँचा शरीर होने से,
८५४-ॐ ह्रीं अर्हं बालर्कारभाय नमः -प्रात:कालीन सूर्य के समान बाल प्रभा के धारक होने से,
८५५-ॐ ह्रीं अर्हं अनलप्रभाय नमः -अग्नि के समान कान्तियुक्त होने से,
८५६-ॐ ह्रीं अर्हं संध्याभ्रवभ्रवे नमः -सांध्यकालीन मेघों के समान सुंदर लगने वाले,
८५७-ॐ ह्रीं अर्हं हेमाभाय नमः -स्वर्ण समान आभा से युक्त ,
८५८-ॐ ह्रीं अर्हं तप्तचामीकरप्रभाय नमः -तपाये स्वर्ण के समान प्रभा युक्त ,
८५९-ॐ ह्रीं अर्हं निष्टप्तकनकच्छायाय नमः -अत्यंत तपाये स्वर्ण के समान कांतिवान,
८६०-ॐ ह्रीं अर्हं कनत्कांचनसन्निभाय नमः -देदीप्यमान स्वर्ण के समान उज्ज्वल होने से ,
८६१-ॐ ह्रीं अर्हं हिरण्यवर्णाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६२-ॐ ह्रीं अर्हं स्वर्णाभाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६३-ॐ ह्रीं अर्हं शातकुंभनिभप्रभाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६४-ॐ ह्रीं अर्हं द्योनाभाय नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६५-ॐ ह्रीं अर्हं जातरूपाभाय नमः - स्वर्ण समान वर्ण होने से,
८६६-ॐ ह्रीं अर्हं तप्तजाम्बूनदद्युतये नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६७-ॐ ह्रीं अर्हं सुधौतकलधौतश्रीये नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६८-ॐ ह्रीं अर्हं हाटकद्युतये नमः -स्वर्ण समान वर्ण होने से
८६९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रदीप्ताय नमः -देदीप्यमान होने से ,
८७०-ॐ ह्रीं अर्हं शिष्टेष्टाय नमः -शिष्ट अर्थात उत्तम पुरुषों के इष्ट होने से,
८७१-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्टिदाय नमः -पुष्टि दाता होने से,
८७२-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्टाय नमः -बलवान होने से अथवा लाभांतराय कर्म के क्षय होने से प्रत्येक समय प्राप्त होने वाली अनंत शुभ पुद्गल वर्गणाओं से परमौदारिक शरीर के पुष्ट होने से ,
८७३-ॐ ह्रीं अर्हं स्पष्टाय नमः -प्रकट दिखाई देने से,
८७४-ॐ ह्रीं अर्हं स्पष्टाक्षराय नमः -स्पष्ट अक्षर होने क्ससे,
८७५-ॐ ह्रीं अर्हं क्षमाय नमः -समर्थ होने से,
८७६-ॐ ह्रीं अर्हं शत्रुघ्नाय नमः -कर्म रूप शत्रुओं का क्षय करने से,
८७७-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतिघाय नमः -शत्रु रहित होने से,
८७८-ॐ ह्रीं अर्हं अमोघाय नमः -सफल होने से,
८७९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशास्नो नमः -उत्तम उपदेशक होने से,
८८०-ॐ ह्रीं अर्हं शासित्रे नमः -रक्षक होने से,
८८१-ॐ ह्रीं अर्हं स्वभूवे नमः -स्वयं उत्पन्न होने से,
८८२- ॐ ह्रीं अर्हं शांतिनिष्टाय नमः -शांत होने से,
८८३-ॐ ह्रीं अर्हं मुनिज्येष्ठाय नमः -मुनियो मे श्रेष्टम होने से ,
८८४-ॐ ह्रीं अर्हं शिवतातये नमः -कल्याण परम्परा के प्राप्त होने से,
८८५-ॐ ह्रीं अर्हं शिवप्रदाय नमः -कल्याण अथवा मोक्ष प्रदाता होने से
८८६-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिदाय नमः -शांति प्रदाता होने से
८८७-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिकृते नमः -शांति के कर्ता होने से,
८८८-ॐ ह्रीं अर्हं शांतये नमः -शांत स्वरुप होने से,
८८९-ॐ ह्रीं अर्हं कांतिमते नमः -कांतियुक्त होने से,
८९०-ॐ ह्रीं अर्हं कामितप्रदाय नमः -इच्छित पदार्थों के प्रदाता होने से,
८९१-ॐ ह्रीं अर्हं श्रेयो निधये नमः - कल्याण के भंडार होने से,
८९२-ॐ ह्रीं अर्हं अधिष्ठानाय नमः -धर्म के आधार होने से,
८९३-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतिष्ठाताय नमः -अन्यकृत प्रतिष्ठा से रहित होने से ,
८९४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रतिष्ठिताय नमः -प्रतिष्ठा अर्थात कीर्ति से युक्त होने से
८९५-ॐ ह्रीं अर्हं सुस्थिराय नमः -अतिशय स्थिर होने से ,
८९६-ॐ ह्रीं अर्हं स्थविराय नमः -समवशरण में गमन रहित होने से ,
८९७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थाणवे नमः -अचल होने से,
८९८-ॐ ह्रीं अर्हं प्रथीयसे नमः -अत्यंत विस्तृत होने से,
८९९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रथिताय नमः -प्रसिद्ध होने से ,
९००- ॐ ह्रीं अर्हं पृथवे नमः -ज्ञानादि गुणों की अपेक्षा महान होने से,