अपने अस्तित्व की अनन्त यात्रा
ये क्षेत्र और काल की अनन्तता सोचते-सोचते फिर इसको ले आओ अपने अस्तित्व के ऊपर। कहा ँ ले आओ? अपने अस्तित्व के ऊपर। कैसे, मैं आत्मा ! मेरा अस्तित्व है! सत्ता गुण से मैं अभि न्न हूँ! मैं आत्म द्रव्य हूँ! और वह आत्म द्रव्य सत्ता गुण के साथ में बिल्कु बिल्कु ल एकमेक है। माने सत्ता कहो, आत्मा कहो कोई अलग अलग चीज़ ें नहीं है। उसी आत्मा के लि ए अब सोचते जाओ ये इससे पहले भी था , इससे पहले भी था , इससे पहले भी था । न कोई सा भी काल था , उस काल में भी था , उस काल में भी था , उस काल में भी था , उस काल में भी था । कौन? कौन दूसरे का नहीं है अपना! समझ आ रहा है? अपना सोचने के बाद में फिर दूसरे का भी सोच लो। आप कहते हो मन नहीं लगता, मन को आप शाश्वत चीजों में लगा दो, मन की इच्छा है दौड़ ने की, उड़ ने की बहुत तीव्र गति से चलने की तो उसको इतना space दे दो, इतना time दे दो कि वह जितनी उसकी गति है, उतनी गति में वह अच्छे ढंग से उड़ सके, अच्छे ढंग से उसमें जा सके। जब आप छोटा-मोटा time देते हो तो वह छोटी मोटी जगाह ों पर होकर आ जाता है, परेशान करता है। जब उसको उड़ा न दे दो लंबी जा-जा, खूब-खूब दूर दौड़ा कर आ, जितनी दूर तू दौड़ सकता है, उतनी दूर दौड़ कर आ। मन को खुली छूट दे दो दौड़ ने के लि ए। फिर देखो कि आपका मन अपने आप शान्त होता है कि नहीं होता है। मन को अलोकाकाश तक पहुँ चा दो, लोकाकाश के बाह र पहुँ चा दो, मन को जो है अनन्त काल तक की या त्रा में डाल दो। मन को अपना अस्तित्व बताने के लि ए उसे नि गोद की या त्रा तक ले जाओ। कहा ँ से अपना अस्तित्व? मतलब है, तो उससे पहले भी लेकि न नि गोद एक ऐसा स्था न है जिसका कोई भी प्रा रम्भ नहीं है। अब जीव है, तो जीव कहा ँ पड़ा हुआ है। इससे पहले अनादि काल से कहा ँ पड़ा था । सबसे ज्या दा time उसने अनन्त काल कहा ँ गुजारा था । सब नि गोद है। जैसे- खदान में पड़ा हुआ पत्थर होता है, तो वहा ँ पत्थर पड़ा है, तो पड़ा है। अब उसे कोई नि कालने वा ला है ही नहीं। पड़ा है तो पड़ा ही है। जब कभी कोई खोदे, जब कोई mines बनाएँ तब जा कर उसमें से कोई पत्थर नि कले और नहीं नि कले तो न नि कले। वह पत्थर धरती के अन्दर कब से पड़ा है, कब से पड़ा है, कब से पड़ा है? अनादि से पड़ा है। उस पत्थर में सोना भी होता है, स्वर्ण पाषाण जिसको बोलते हैं। अब उस पाषाण के अन्दर स्वर्ण कब से पड़ा , कब, कब से पड़ा , कब से पड़ा ?
जब से पत्थर पड़ा तब से स्वर्ण पड़ा । क्या समझ आ रहा है? अस्तित्व हमारा कब से है? इस बात में यदि हम मन को लगा देते हैं तो मन कि तना भी चंचल हो, मन शान्त हो जाएगा क्योंकि मन को आपने अनन्त की दौड़ दे दी।
मन को स्थि रता के लिए अनन्त विस्ता र चाहिए
जब आप मन को छोटे से नक्शे में घुमाएँगे यह भारत है, ये अमेरि का है, ये चीन है, ये जापान है, ये जर्म नी और आप लौट कर फिर भारत में आ गए तो मन कहेगा बस! इतनी सी दुनिया । मन तुम्हें परेशान करेगा। वह फिर कहेगा पहले इंग्लैंड चलो तो इंग्लैंड हो आए। फिर कहेगा चीन चलो तो चीन हो आए, फिर कहेगा जापान चलो तो जापान हो आए। ऐसे ही घुमाता रहेगा, तुम ऐसे ही घूमते रहोगे। मन को छोटी-छोटी चीजें दोगे तो मन परेशान रहेगा और परेशान करेगा। समझ आ रहा है? मन को क्या पकड़ा दो? जितनी उसकी दौड़ है, उस से बढ़ कर उसको साधन दे दो। जैसे बोलते हैं न कि मानो अपनी गाड़ी में रेस 100 kmph रेस है, 200 की रेस है। अब उसको उसके according platform दे दो। कोई भी उसके अनुसार पथ दे दो, उसको कुछ भी जहा ँ पर दौड़ सके तब उसको ठण्ड क पड़े ड़ेगी। उसको तुम अपनी गलिय ों में थोड़ा -थोड़ा घूमाओगे तो वह तो कभी सन्तु ष्ट नहीं होगा। मन इसीलि ए सन्तु ष्ट नहीं होता, मन इसीलि ए आपका कहीं नहीं लगता क्योंकि आप उसे हमेशा छोटी-छोटी चीजों में बांधकर घूमाते रहते हो और बंधना उसका स्व भाव नहीं है। अब आपने उसको बन्धन में डाल दिया । अब इतना सा तुमने globe दिखा दिया कि बस यह ी दुनिया है, अब इतनी सी दुनिया में मन ने सब दुनिया देख ली तो कहेगा अब क्या करे? समझ आ रहा है? उस दुनिया में तो कुछ है ही नहीं। न उस दुनिया में कोई स्वर ्ग दिखाई दे रहा है, न तो उस दुनिया में कोई सुख का स्था न दिखाई दे रहा है, न कोई सिद्धा लय दिखाई दे रहा है। उस दुनिया में तो कुछ है नहीं और वह दुनिया भी इतनी बड़ी नहीं है कि हम उसको अगर पूरी ढूँढना चाह े या हम उसमें पूरी travel करना चाह े तो कर न सके। वह भी सब हो जाती है। जब आप ही अपने हाथ -पैरों से पूरी दुनिया घूम सकते हो तो अब मन के लि ए तो उससे बड़ी दुनिया चाहि ए कि नहीं चाहि ए। एक सोचने की बात है कि नहीं चाहि ए। जो दुनिया हम अपने हाथ -पैरों से नाप ले रहे हैं, अपने ही साधनों से है, अपने ही planship, इन सब साधनों से नाप ले रहे हैं तो अब मन को तो उससे कुछ और बड़ा चाहि ए। नहीं तो वह मन तुम्हें मार डालेगा। control नहीं करना, मन कभी control में नहीं आता। मन जो चाह ता है उसके अनुसार आपने उसको विषय वस्तु कभी दी ही नहीं। आप उसे control करने के चक्कर में कहीं से उठाकर कहीं लगाते रहे और वह कहीं से उठ करके कहीं लगता रहा । आप उसको परेशान करते रहे, वह तुम्हें परेशान करता रहा । और क्या होता है? तुमने कि सी को जैसे कोई नटखट बच्चा होता है। वो दौड़ ते-दौड़ ते gate के बाह र जा रहा था । तुम उसको उठा लाए, तुमने यहा ँ लाकर फिर पटक दिया माने रख दिया । फिर छोड़ दिया तुमने उसको फिर वह गया , फिर वह गया , फिर वह गया , फिर वह gate गेट के बाह र फिर नि कल गया । तुम उसको फिर पकड़ कर लाए, फिर रख दिया । तुम उसको पकड़ रहे हो, वो तुम को पकड़ रहा है। तुम उसको रोक रहे हो, वह तुम को रोक रहा है। तुम उसको घुमा रहे हो, वह
तुम को घुमा रहा है। तुम सोच रहे हो हम उसका मन लगा रहे हैं, हम अपना मन लगा रहे हैं। कहा ँ लगा रहे हो मन? नहीं समझ आ रहा है? तुम सोच रहे हो हम बच्चे को था म रहे हैं। कहा ँ था म रहे हैं बच्चे को? कहा ँ पकड़ रहे हो बच्चे को? बच्चा तुम्हें पकड़ रहा है। जब तुमने उसे अन्दर ला कर पुनः छोड़ा और वो पुनः दौड़ रहा है, तो तुम्हा री दृष्टि तो उधर ही है न कि यह फिर से उस गेट के बाह र न चला जाए। तुम फिर उसके पीछे दौड़े ड़े तो तुम उसके पीछे दौड़ रहे हो कि नहीं। तुम क्या सोच रहे हो? हम उसको बार-बार अपने स्था न पर ला रहे हैं, हम उसको बार-बार अपने स्था न पर रख रहे हैं और वह तुम्हें बार-बार अपने स्था न पर ले जा रहा है। तुम्हें तो gate के बाह र नहीं जाना था । उसके कारण से तुम भी जा रहे हो gate के बाह र। वो बार-बार तुम्हें अपने स्था न पर ले जा रहा है।
द्रव्य का स्वभाव अपने सत्ता गुण से अभिन्न है।
यही मशक्कत जिन्दगी भर करते रहोगे तो कभी भी आप मन का स्व भाव समझे बि ना मन के लि ए कुछ नहीं कर पाओगे। मन को लगाना, मन को टिकाना यह सब बातें तब होती हैं जब हमें पता हो मन का स्व भाव क्या है? इसलि ए मन को पहले अच्छे ढंग से घुमाना सीखो। उतनी चीजों में मन मत घुमाओ जितनी चीज़ ें हम जानते हैं। उसमें घुमाओ जिसके माध्य म से हमारी जानकारी जो श्रुतज्ञा न के माध्य म से आ रही है उसमें मन को घुमाओ। जो आँखों से दिख रहा है, उसमें मन को मत घुमाओ। जो श्रुतज्ञा न के माध्य म से मन जानेगा उसमें मन को घुमाओ। जैसे दुनिया केवल इतनी है जितनी हमने globe में कैद कर दी। अगर इसमें मन को घुमाओगे तो मन कभी भी नहीं टिकेगा। इतनी दुनिया तो जब हम अपने हाथ -पैरों से पूरी कर रहे हैं, नाप ले रहे हैं तो मन के लि ए तो और बड़ी चीज है। उसे तो और बड़ी दुनिया चाहि ए घूमने के लि ए और वह आपके पास है नहीं। वो हमारे पास है। हमारे पास से मतलब एक बड़ी दुनिया जिसमें आप मन को घुमा सको। वो कि सके पास है? जिसके पास श्रुतज्ञा न होगा, जिसके पास जिनवा णी का ज्ञा न होगा, जिसके पास लोक-अलोक का ज्ञा न होगा, वह ी दुनिया में मन को घुमा सकेगा। तीन लोक का ज्ञा न तो रखो। कहा ँ हैं तीन लोक? आपके यहा ँ तो एक ही लोक है। तीन काल की बात तो करते हो लेकि न तीन लोक का कोई ज्ञा न नहीं। जब काल तीन हैं तो लोक भी तो तीन हैं और तीन काल में भी आपको कुछ past का पता नहीं है। कि तना सा पता है 5000 वर्ष पहले की बात या ज्या दा से ज़्या दा 100000 वर्ष पहले की बात और कि तनी बात ज्या दा बोले दस लाख वर्ष पहले की बात। ऐसा बोल दे, अरे! उससे पहले भी कुछ होगा न! हम दस अरब भी बोल दें, दस खरब भी बोल दें! हजार, करोड़ , अरब, खरब सब बोल दें। अगर उसके बाव जूद भी तो कुछ तो होगा। शुरुआत कहा ँ से हुई? time जब भी कोई भी शुरू नहीं कर सकता तो उस time में रहने वा ली चीजें भी कैसे शुरू हो सकती हैं। Beyond time and beyond the space. हर चीज सीमा से परे है और हर समय से परे है। अपना अस्तित्व जब तक हम इस रूप में स्वी कार नहीं करेंगे तब तक कभी भी हम अपने आप पर विश्वा स नहीं कर पाएँगे। हम भले ही दस बार पढ़ ले इसको कि द्रव्य का स्व भाव अपने सत्ता गुण से अभि न्न है। मतलब उसी के साथ मि ला हुआ है माने द्रव्य जो है, वह ी सत्ता है। अब हमें अपनी सत्ता को पकड़ ना है, अपनी सत्ता को महसूस करना है। कैसे महसूस करना? उस सत्ता को अगर हम इसी तरह से काल की सीमा से परे ले जाकर समझेंगे तब हमें अपनी सत्ता महसूस होगी कि मेरी सत्ता है। तब भी थी अब भी है। क्या समझ आ रहा है? जब सत्ता है, तो द्रव्य है। द्रव्य है, तो गुण हैं। गुण हैं तो पर्याय है। ये सब आगे आने वा ला है। अपनी सत्ता को स्वी कार करना, existence अपना स्वी कार करना, यह ी द्रव्य का अपना स्व भाव है और इसी द्रव्य के स्व भाव को स्वी कार करने के लि ए आपको अपना मन थोड़ा सा लंबी या त्रा पर लगाना पड़े ड़ेगा। छोटी या त्रा पर लगाने से मन कभी भी टिकेगा नहीं। अतः लंबी या त्रा क्या कहलाएगी? अनादि कहने से काम नहीं चलेगा, आप बैठ जाओ शान्ति से और मन के लि ए बताते चले जाओ कि तू इससे पहले भी था , तू इससे पहले भी था , तू तब भी था , तू तब भी था , तू तब भी था । कौन? मन नहीं, मन से कहो कि तेरा ये जो आत्मा है वह इससे पहले भी था , इससे पहले भी था और इसको हर क्षेत्र में घूमाओ। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जिस क्षेत्र में यह ना रहा हो। हर क्षेत्र में, चाह े कोई सा भी क्षेत्र आपको या द आ जाए दुनिया के हर कोने कोने में जो है मन से कह दो कि देख तेरा जो अस्तित्व है, आत्मा के साथ है, वहा ँ भी था , वहा ँ भी था , वहा ँ भी था । मन को बताना है केवल अपनी आत्मा का अस्तित्व पहले वहा ँ भी था , वहा ँ भी था , वहा ँ भी था । मन हो या न हो लेकि न आत्मा तो था क्योंकि आत्मा का स्व भाव मन से जुड़ा हुआ है। ऐसा नहीं जैसा आत्मा का अपने सत्ता गुण से जुड़ा हुआ उसका स्व भाव है। आत्मा तो एक अपने अस्तित्व स्व भाव के साथ परि पूर्ण है लेकि न मन आत्मा की एक पर्याय है और वह पर्याय , वह परि णति जब कभी उत्प न्न होती है। जो मन की पर्याय का आत्मा के साथ रहना है, वो हमेशा का रहना नहीं है कि जब-जब आत्मा था तब-तब मन था । ऐसा नहीं है। जब-जब मन है तब-तब आत्मा अवश्य है। समझ आ रहा है न? ये भी logic होते हैं। जब-जब आत्मा है तब-तब मन हो ऐसी बात नहीं है लेकि न जब-जब मन है तब-तब आत्मा अवश्य है क्योंकि आत्मा की पर्याय मन है। बि ना आत्मा के मन हो नहीं सकता। इसी का न्याय ग्र न्थों में जो logic वा ले ग्रन्थ होते हैं, उनमें जहा ँ-जहा ँ धुआँ है, वहा ँ-वहा ँ अग् नि है। लेकि न जहा ँ-जहा ँ अग् नि है, वहा ँ-वहा ँ धुआँ हो जरूरी नहीं है। इसी तरीके से जब हर चीज निय मबद्धता के साथ चलती है, तो उससे हम समझ सकते हैं कि हमारी आत्मा का अस्तित्व कि सी भी काल की मर्या दा से जुड़ा हुआ नहीं, कि सी भी क्षेत्र की मर्या दा से जुड़ा हुआ नहीं है।
जीव ने अनन्त काल से पंच परावर्त न किया है
आप ये देखें कि यह तीन लोक जिसमें की ये जीव घूमता है और उस लोक के जितने भी space point हैं, स्था न, प्रदेश या क्षेत्र हैं, उस स्था न में ऐसा एक भी स्था न नहीं है जहा ँ पर इस जीव ने न जन्म लिया हो या न ही मरण किया हो। ये कहा गया है। कि स में? आगम में! समझ आ रहा है? हर स्था न पर इस आत्मा ने जन्म भी लिया है। जीव ने और हर स्था न पर इसने मरण भी किया है। इसी को बोलते हैं- क्षेत्र परावर्त न। पंच परावर्त न सुने हैं- द्रव्य परावर्त न, क्षेत्र परावर्त न, काल परावर्त न, भव परावर्त न और भाव परावर्त न। ये परावर्त न का मतलब है कि ऐसा कोई भी वह परिवर्त न का क्रम नहीं बचा जिसमें इस जीव ने अपनी सहभागि ता न दर्ज करा ली हो। जीव ने अपनी सहभागि ता हर द्रव्य के साथ दर्ज करा ली है। हर द्रव्य के साथ रह चुका है, हर क्षेत्र में रह चुका है, हर काल में रह चुका है, हर भव में रह चुका है, हर भाव में रह चुका है और जब सब में पूरा करके पुनः फिर उसी में रहना शुरू कर देता है तब इसको जो है एक परावर्त न बोलते हैं। कैसा सब में पूरा करके मतलब इस जीव की कि सी भी एक स्था न से इसकी या त्रा शुरू करो। जैसे- क्षेत्र परावर्त न है, तो इसकी या त्रा कहा ँ से शुरू की जाती है? जो पूरा लोक है उसका मध्य भाग जो होता है वह सुमेरु पर्व त का स्था न कहलाता है और उसमें भी जो पूरा मध्य भाग आता है वह सुमेरु पर्व त के नीचे एक आठ प्रदेश होते हैं, जो पूरे उस 14 राजु के मध्य भाग वा ले आठ प्रदेश कहलाते हैं। वहा ँ से इस जीव को बि ठाकर एक-एक प्रदेश बढ़ा ते, बढ़ा ते, बढ़ा ते, बढ़ा ते हर एक प्रदेश पर जन्म ले रहा है। एक तो असंख्या त प्रदेश जितना घेर रहा है, घेर रहा है। फिर उसके साथ एक point बढ़ाया फिर उसमें भी उसने जन्म लिया , मरण किया वो भी असंख्या त बार जन्म किया , मरण किया । फिर एक क्षेत्र बढ़ाया , एक प्रदेश बढ़ाया , फिर 1 point बढ़ाया । ऐसे 1 point बढ़ा ते, बढ़ा ते, बढ़ा ते पूरे लोक का क्षेत्र नाप लो। जहा ँ पर जीव ने जन्म भी लिया , एक-एक point पर और मरण भी किया । जब पूरा क्षेत्र नप जाए तब समझ लेना एक परावर्त न पूरा हो गया फिर वह ी से फिर शुरू कर देना। अब वो कहानिया ँ तो बहुत सारी रहती है लेकि न यह basic story है जो सबके साथ चलती है। महा राज के साथ नहीं, सबके साथ चलती है। पंच परावर्त न सबने कर लि ए हैं। कोई भी जीवात्मा ऐसा नहीं होता जिसने ये पंच परावर्त न का पूरा का पूरा परि णाम न कर लिया हो और यह पंच परावर्त न उसके इस रूप में होते रहते हैं। अगर वह नहीं करेगा तो कहा ँ होगा? या तो नि गोद में पड़ा रहेगा, नहीं करेगा तो वह ीं पड़ा रहेगा। नहीं तो पंच परावर्त न हर भव के साथ में त्र स पर्याय के आने पर हो ही जाते हैं। यह समझने की चीज है कि यह क्षेत्र परावर्त न इतना बड़ा है। चलो हम कहते हैं आप अपने उस globe को जो आपने अपने सामने रख रखा है, अपनी दुनिया समझ रखा है, उसी पर चलो। एक-एक point पर मन को घुमाते हुए देखते जाओ कि पहले आत्मा यहा ँ पर भी जन्म ले चुका, यहा ँ पर भी जन्म ले चुका, यहा ँ पर भी जन्म ले चुका, यहा ँ पर भी जन्म ले चुका है। आप पूरे भारत को भी नहीं पूरा पाओगे मतलब इतना बड़ा क्षेत्र है कि आप बैठे-बैठे सुबह से शाम तक अपना पूरा का पूरा time एक-एक क्षेत्र के चिन्तन में लगा दोगे तो भी पूर्ति र्ति नहीं होगी और फिर सारा देश, विदेश, जल, सागर हर स्था न पर आत्मा का जन्म होना और हर स्था न पर आत्मा का मरण होना लेकि न उसके अस्तित्व का, उस द्रव्य का कभी भी विनाश नहीं होगा। तब आपको इस द्रव्य पर विश्वा स होगा जो यहा ँ बताया जा रहा है।
मन को स्थिर करने से धर्म ध्यान होगा
अभी आप पढ़ लेते हो परन्तु विश्वा स में नहीं आ रहा है कि द्रव्य अपने अस्तित्व के साथ है। अपने सत्ता गुण के साथ हमेशा विद्यमान है। यह चिन्तन करने से ही आपकी श्रद्धा का विषय बनेगा और यह चिन्तन करोगे तो जैसे मैं बता रहा हूँ, तीन लोक के अन्दर जितने भी असंख्या त द्वी प-समुद्र हैं, नरक हैं, स्वर ्ग हैं, उन सब पर अपना चिन्तन ले जाओ कि हर एक point पर मेरा आत्मा जन्म ले चुका, मरण कर चुका, फिर भी मेरी आत्मा का अस्तित्व कभी भी समाप्त नहीं हुआ और न होगा। यह ी मेरी आत्मा का द्रव्य है, यह ी मेरी अपनी सत्ता है, यह ी मेरा अपना अस्तित्व है। यह सारा का सारा चिन्तन आपको कैसा लग रहा है। महा राज! फिजूल की बातों में उलझाने से मन को क्या मि लेगा? बेवजह time खराब करते रहो बैठे-बैठे आप भी कर रहे हो और हमारा भी करवा रहे हो। ऐसा ही सोचने में आ रहा है क्या ? जब तक आप इस रूप में time खराब नहीं करोगे तब तक आपको time की कीमत भी समझ में नहीं आएगी। जिसे आप फिजूल समझ रहे हो वह ी वस्तु तः धर्म -ध्या न है। यह सब क्या है? यह धर्म -ध्या न है और तुम जो कर रहे हो वह बच्चों वा ला खेल है। क्या कर रहे हो? मन तू इसमें लग जा, मन तू उसमें लग जा, मन तू पूजा में लग जा कि णमोकार में लग जा, भक्ता म्बर में लग जा, इस स्तोत्र में लग जा, उसमें लग जा, वह कभी नहीं लगने वा ला। ये सब आपका बच्चों जैसा खेल है। मन को कि समें लगाओ? जो यह तीन लोक में भरी पड़ी हुई शाश्वत चीजें हैं इसमें लगाओ। इसमें अगर मन लगेगा तो यह आपका धर्म -ध्या न कहलाय ेगा। अरे! यह लगने के लि ए कुछ करना ही नहीं। तीन लोक का नक्शा अपने दिमाग में लाकर एक-एक point पर मन को बि ठाते चले जाओ। अब तू यहा ँ से आ गया , यहा ँ भी जन्म ले लिया , मरण कर लिया । थोड़ा और खि सक जा, यहा ँ जन्म ले लिया , मरण कर लिया । फिर यहा ँ से थोड़ा और हट जा। क्या रुक-रुक कर रहे हो? चलो ठीक है नहीं रुका। कहा ँ गया ? ठीक है, तू सीधा चला गया । छूटा, कहा ँ गया ? सीधा लोक के अग्र भाग पर पहुँ च गया । चल ठीक है, वह ीं रुक जा। अब चल वहा ँ से, वहा ँ से खि सक गया । फिर चल कर आ गया । चलकर कहा ँ आ गया ? मध्य लोक में आ गया । जंबूद्वी प में आ गया । फिर हाथ से नि कल गया । जंबूद्वी प से नि कला घूमता-घूमता, फिर हाथ से नि कल गया । जंबूद्वी प से फिर नि कला, फिर कहा ँ गया ? चलो! मानुषोत्त र पर्व त पर चला गया । मानुषोत्त र पर्व त पर, वहा ँ से उसको घुमाते-घुमाते वह फिर चला गया । फिर कहा ँ चला गया ? असंख्या त द्वी प समुद्र में चला गया । स्वय ंभूरमण समुद्र में चला गया । उसको ले जाओ, जहा ँ जा रहा है, जाने दो। लेकि न उसे इतना एक विस्ता र तो दे दो जहा ँ पर वह घूमता रहे, आप बैठे रहो, बस देखते रहो, उसे और कुछ मत कहना। उसे केवल यह कहना कि तू यहा ँ पर भी जन्म ले चुका, यहा ँ पर भी मरण कर चुका। जहा ँ जाना है, जाओ। अब कहा ँ जा रहा है? कहा ँ लग रहा है? इस घर में, अपनी कोठी में। देख! इस कोने में भी तू जन्म ले चुका, मरण कर चुका। इस कोठी के इस कोने में यह ी आत्मा जन्म ले चुका, मरण कर चुका। बोलो-बोलो कहा ँ जा रहा है मन? बता दुकान में, चलो दुकान में। ले जाओ दुकान में भी एक-एक point पर। जितना भी क्षेत्र दुकान का है, एक-एक point पर यहा ँ पर भी तू कोई न कोई नि गोद जीव बन करके, कीड़ा बनकर जन्म ले चुका, मरण कर चुका। सब कर चुका। अरे! करना-धरना कुछ नहीं तुम्हें तो बातें करना है। थकान हो जाएगी, थक जाने दो! थक कर कहा ँ जाएगा? आएगा तो अपने पास ही न कहा ँ जाएगा? उसकी डोर तो अपने ही पास है। आत्मा के बि ना तो मन का कोई अस्तित्व नहीं है कि कहीं बाह र नि कल जाएगा, या थक कर कहीं बाह र टूट कर गि र पड़े ड़ेगा। आएगा तो लौट कर यही न। जब थक जाएगा तो कहाँ जाएगा? बच्चा खेल रहा है। अब उसको थका दिया । चल वहाँ से वहाँ दौड़ , वहाँ से वहाँ दौड़ , वहाँ से वहा ँ दौड़ तो दौड़ ते-दौड़ ते थकेगा, आप उसको पकड़ रहे थे। वो बार-बार इधर दौड़ रहा था , बार-बार उधर दौड़ रहा था । आप फिर कहते हैं यहीं बैठ जा, फिर वह ीं पहुँ च गया । मना करता हूँ, वहा ँ मत जाया कर, फिर वह ीं बैठ गया । फिर बुला लिया फिर वह ी पहुँ चा दिया । अब उसको इतना दौड़ा दो कि वह थक करके सो जाए। तुम अपना काम करते रहोगे, नहीं समझ आ रहा ? control-control क्या होता है? control भी बच्चों वा ला control है। वह तुम्हें control कर रहा है। उसको इतना दौड़ा दो, इतना थका दो कि उसके बाद में जब वह सो जाए तो तुम्हें फिर अपनी आत्मा का ध्या न लग जाए।
Manish Jain Luhadia
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