जिनेन्द्र देव के दर्शन करना श्रावक का प्रथम मूलगुण है।
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अध्यात्म योग
आचार्य पूज्यपादस्वामी द्वारा विरचित इष्टोपदेश पर मुनि श्री प्रणम्यसागरजी के प्रवचनों का संग्रह, अतिशयक्षेत्र बिजोलियाजी, 2016
यस्य स्वयं स्वभावाप्तिरभावे कृत्स्नकर्मणः। तस्मै सञ्ज्ञानरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने ॥१॥

आचार्य उस आत्मा को नमस्कार करते हैं जिसने स्वभाव की प्राप्ति कर ली हो।
स्वभाव की प्राप्ति करने के लिए 'पर' की भी कोई आवश्यकता नहीं है।
जैसे पाषाण के अन्दर प्रतिमा छिपी हुई है वैसे ही हमारे अन्दर परमात्मा छिपा है
मन की एकाग्रता, ध्यान की परिणति कर्म काटने के औजार हैं।

देवदर्शन का फल

श्रावक को सबसे पहले देवदर्शन, गुरुदर्शन की बात कही गई। आचार्यों ने उस दर्शन की कितनी महिमा लिखी है। तुम्हें ध्यान होना नहीं है सो सबसे पहले तुम भगवान का दर्शन करो, पूजा करो। आचार्य कहते हैं जब तुमने अपने घर पर बैठ कर यह विचार बना लिया कि मुझे भगवान के दर्शन करने के लिए जाना है तो तुम्हें एक उपवास का फल मिल जाता है। जो लिखा है वो बता रहा हूँ, तुम्हें मिलता है या नहीं वो भगवान जाने। लेकिन आपने घर बैठे मन बना लिया, ध्यान में आ गया तो एक उपवास का फल मिल जाता है। जब आपने भगवान के दर्शन के लिए थोड़ा सा उद्यम किया आपको दो उपवास का फल मिला। जब आपने थोड़ी सी और तैयारी की तो तीन उपवास का फल मिला। जैसे आपने चलना प्रारम्भ किया, आपको चार उपवास का फल मिला। इतना भगवान के दर्शन का फल, अभी तो आये नहीं पास में, जब आप थोड़ी दूर आ गये रास्ते में आपको पाँच उपवास का फल मिला। जब आपको जिन भवन दिखाई दिया तो छह उपवास का फल मिल गया, जैसे ही आप भगवान या जिनभवन के पास आने लग गये या आ गये तो आपको एक पक्ष यानि 15 दिन के उपवास के फल का जो पुण्य लगता है, वो आपको लगेगा और आपने दहलीज पर पैर रखा तो आपको एक महीने के उपवास का फल मिलेगा। आप भगवान की वेदी के पास गये, उनकी परिक्रमा लगाई आचार्य कहते हैं आपको एक वर्ष के उपवास का फल मिलेगा। जब आपने भगवान के नयनों से दर्शन किये तो आपको 100 वर्षों के उपवास का फल मिल गया और जब आपने भगवान की स्तुति की तो आपको अनन्त अनन्त पुण्य की प्राप्ति हो गई। ऐसे भगवान के दर्शन का फल श्रावकों के लिए लिखा गया है कि आप जब भगवान जिनदेव का दर्शन करते हैं तो आपको पुण्य फल मिलता है। आप को लग रहा होगा महाराज यह सब शास्त्रों की बातें है, Reality (वास्तविकता) तो कुछ है नहीं अगर इतना पुण्य फल मिलता है तो रोजाना भगवान के दर्शन करते हैं, और पूजन करते हैं खूब खूब देर तक करते हैं, हमें तो बहुत पुण्य की प्राप्ति हो रही होगी। अगर हो भी रही होगी तो आपके लिए कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं है, आपके काम में आयेगी। लेकिन उस पुण्य की प्राप्ति के लिए जो प्रयास करने को कहा गया है उस प्रयास की जो विधि है वो विधि आपसे शायद ही पूरी हो पाती हो। पहली बात तो यह कि दर्शन करने वाले श्रावक के लिए कहा गया है कि भगवान के दर्शन करने के लिए पैदल जायें।

भगवान् के दर्शन में आह्लाद भाव ही आपके अन्दर विशुद्धि का भाव पैदा करेगा।

For more detail ... अध्यात्म योग गाथा 1 
English Translation .... Adhyatm Yog Gatha 1


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Manish Jain Luhadia 
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