03-27-2017, 09:20 AM
चौंसठ ऋद्धिया
१. केवलज्ञान बुद्धि ऋद्धि - सभी द्रव्यों के समस्त गुण एवं पर्यायें एक साथ देखने व जान सकने की शक्ति ।
२. मन:पर्ययज्ञान बुद्धि ऋद्धि - अढ़ार्इ द्वीपों के सब जीवों के मन की बात जान सकने की शक्ति ।
३. अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धि - द्रव्य, क्षेत्र, काल की अवधि (सीमाओं) में विद्यमान पदार्थो को जान सकने की शक्ति ।
४. कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि - जिसप्रकार भंडार में हीरा, पन्ना, पुखराज, चाँदी, सोना आदि पदार्थ जहाँ जैसे रख दिए जावें, बहुत समय बीत जाने पर भी वे जैसे के तैसे, न कम न अधिक, भिन्न-भिन्न उसी स्थान पर रखे मिलते हैं; उसीप्रकार सिद्धान्त, न्याय, व्याकरणादि के सूत्र, गद्य, पद्य, ग्रन्थ जिस प्रकार पढ़े थे, सुने थे, पढ़ाये अथवा मनन किए थे, बहुत समय बीत जाने पर भी यदि पूछा जाए, तो न एक भी अक्षर घटकर, न बढ़कर, न पलटकर, भिन्न-भिन्न ग्रन्थों को उसीप्रकार सुना सकें ऐसी शक्ति ।
५. एक-बीज बुद्धि ऋद्धि - ग्रन्थों के एक बीज (अक्षर, शब्द, पद) को सुनकर पूरे ग्रंथ के अनेक प्रकार के अर्थो को बता सकने की शक्ति ।
६. संभिन्न संश्रोतृत्व बुद्धि ऋद्धि - बारह योजन लम्बे नौ योजन चौड़े क्षेत्र में ठहरनेवाली चक्रवर्ती की सेना के हाथी, घोड़े, ऊँट, बैल, पक्षी, मनुष्य आदि सभी की अक्षर-अनक्षररूप नानाप्रकार की ध्वनियों को एक साथ सुनकर अलग-अलग सुना सकने की शक्ति ।
७. पदानुसारिणी बुद्धि ऋद्धि - ग्रन्थ के आदि के, मध्य के या अन्त के किसी एक पद को सुनकर सम्पूर्ण-ग्रन्थ को कह सकने की शक्ति ।
८. दूरस्पर्शन बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात योजन दूरवर्ती पदार्थ का स्पर्शन कर सकने की शक्ति जबकि सामान्य मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूरी के पदार्थो का स्पर्शन जान सकता है ।
९. दूर-श्रवण बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात योजन दूरवर्ती शब्द सुन सकने की शक्ति; जबकि सामान्य मनुष्य अधिकतम बारह योजन तक के दूरवर्ती शब्द सुन सकता है ।
१०. दूर-आस्वादन बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात् योजन दूर स्थित पदार्थों के स्वाद जान सकने की शक्ति; जबकि मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूर स्थित पदार्थो के रस जान सकता है ।
११. दूर-घ्राण बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात् योजन दूर स्थित पदार्थो की गंध जान सकने की शक्ति; जबकि मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूर स्थित पदार्थो की गंध ले सकता है ।
१२. दूर-अवलोकन बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से लाखों योजन दूर स्थित पदार्थों को देख सकने की शक्ति; जबकि मनुष्य अधिकतम सैंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन दूर स्थित पदार्थो को देख सकता है ।
१३.प्रज्ञाश्रमणत्व बुद्धि ऋद्धि - पदार्थो के अत्यन्त सूक्ष्म तत्त्व जिनको केवली एवं श्रुतकेवली ही बतला सकते हैं; द्वादशांग, चौदह पूर्व पढ़े बिना ही बतला सकने की शक्ति ।
१४.प्रत्येक-बुद्ध बुद्धि ऋद्धि - अन्य किसी के उपदेश के बिना ही ज्ञान, संयम, व्रतादि का निरूपण कर सकने की शक्ति ।
१५.दशपूर्वित्व बुद्धि ऋद्धि - दस पूर्वो के ज्ञान के फल से अनेक महा विद्याओं के प्रकट होने पर भी चारित्र से चलायमान नहीं होने की शक्ति ।
१६.चतुर्दशपूर्वित्व बुद्धि ऋद्धि - चौदह पूर्वो का सम्पूर्ण श्रुतज्ञान धारण करने की शक्ति ।
१७.प्रवादित्व बुद्धि ऋद्धि - क्षुद्र वादी तो क्या, यदि इन्द्र भी शास्त्रार्थ करने आए, तो उसे भी निरुत्तर कर सकने की शक्ति ।
१८.अष्टांग महानिमित्त-विज्ञत्व बुद्धि ऋद्धि - अन्तरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न (तिल), स्वप्न-इन आठ महानिमित्तों के अर्थ जान सकने की शक्ति ।
१९. जंघा चारण ऋद्धि - पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर आकाश में, जंघा को बिना उठाये सैकड़ों योजन गमन कर सकने की शक्ति ।
२०. अनल (अग्नि-शिखा) चारण ऋद्धि - अग्निकायिक जीवों की विराधना किये बिना अग्निशिखा पर गमन सकने की शक्ति ।
२१.श्रेणीचारण ऋद्धि - सब जाति के जीवों की रक्षा करते हुए पर्वत श्रेणी पर गमन कर सकने की शक्ति ।
२२.फलचारण ऋद्धि - किसी भी प्रकार से जीवों की हानि नहीं हो, इस हेतु फलों पर चल सकने की शक्ति ।
२३.अम्बुचारण ऋद्धि - जीव-हिंसा किये बिना पानी पर चलने की शक्ति ।
२४.तन्तुचारण ऋद्धि - मकड़ी के जाले के समान तन्तुओं पर भी उन्हें तोड़े बिना चल सकने की शक्ति ।
२५.पुष्पचारण ऋद्धि - फूलों में स्थित जीवों की विराधना किये बिना उन पर गमन कर सकने की शक्ति ।
२६.बीजांकुरचारण ऋद्धि - बीजरूप पदार्थों एवं अंकुरों पर उन्हें किसी प्रकार हानि पहुंचाये बिना गमन कर सकने की शक्ति ।
२७.नभचारण ऋद्धि - कायोत्सर्ग की मुद्रा में पद्मासन या खडगासन में आकाश गमन कर सकने की शक्ति ।
२८.अणिमा ऋद्धि - अणु के समान छोटा शरीर कर सकने की शक्ति ।
२९.महिमा ऋद्धि - सुमेरु पर्वत के समान बड़ा शरीर बना सकने की शक्ति ।
३०.लघिमा ऋद्धि - वायु से भी हल्का शरीर बना सकने की शक्ति ।
३१.गरिमा ऋद्धि - वज्र से भी भारी शरीर बना सकने की शक्ति ।
३२.मनबल ऋद्धि - अन्तर्मुहूर्त में ही समस्त द्वादशांग के पदों को विचार सकने की शक्ति ।
१. केवलज्ञान बुद्धि ऋद्धि - सभी द्रव्यों के समस्त गुण एवं पर्यायें एक साथ देखने व जान सकने की शक्ति ।
२. मन:पर्ययज्ञान बुद्धि ऋद्धि - अढ़ार्इ द्वीपों के सब जीवों के मन की बात जान सकने की शक्ति ।
३. अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धि - द्रव्य, क्षेत्र, काल की अवधि (सीमाओं) में विद्यमान पदार्थो को जान सकने की शक्ति ।
४. कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि - जिसप्रकार भंडार में हीरा, पन्ना, पुखराज, चाँदी, सोना आदि पदार्थ जहाँ जैसे रख दिए जावें, बहुत समय बीत जाने पर भी वे जैसे के तैसे, न कम न अधिक, भिन्न-भिन्न उसी स्थान पर रखे मिलते हैं; उसीप्रकार सिद्धान्त, न्याय, व्याकरणादि के सूत्र, गद्य, पद्य, ग्रन्थ जिस प्रकार पढ़े थे, सुने थे, पढ़ाये अथवा मनन किए थे, बहुत समय बीत जाने पर भी यदि पूछा जाए, तो न एक भी अक्षर घटकर, न बढ़कर, न पलटकर, भिन्न-भिन्न ग्रन्थों को उसीप्रकार सुना सकें ऐसी शक्ति ।
५. एक-बीज बुद्धि ऋद्धि - ग्रन्थों के एक बीज (अक्षर, शब्द, पद) को सुनकर पूरे ग्रंथ के अनेक प्रकार के अर्थो को बता सकने की शक्ति ।
६. संभिन्न संश्रोतृत्व बुद्धि ऋद्धि - बारह योजन लम्बे नौ योजन चौड़े क्षेत्र में ठहरनेवाली चक्रवर्ती की सेना के हाथी, घोड़े, ऊँट, बैल, पक्षी, मनुष्य आदि सभी की अक्षर-अनक्षररूप नानाप्रकार की ध्वनियों को एक साथ सुनकर अलग-अलग सुना सकने की शक्ति ।
७. पदानुसारिणी बुद्धि ऋद्धि - ग्रन्थ के आदि के, मध्य के या अन्त के किसी एक पद को सुनकर सम्पूर्ण-ग्रन्थ को कह सकने की शक्ति ।
८. दूरस्पर्शन बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात योजन दूरवर्ती पदार्थ का स्पर्शन कर सकने की शक्ति जबकि सामान्य मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूरी के पदार्थो का स्पर्शन जान सकता है ।
९. दूर-श्रवण बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात योजन दूरवर्ती शब्द सुन सकने की शक्ति; जबकि सामान्य मनुष्य अधिकतम बारह योजन तक के दूरवर्ती शब्द सुन सकता है ।
१०. दूर-आस्वादन बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात् योजन दूर स्थित पदार्थों के स्वाद जान सकने की शक्ति; जबकि मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूर स्थित पदार्थो के रस जान सकता है ।
११. दूर-घ्राण बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात् योजन दूर स्थित पदार्थो की गंध जान सकने की शक्ति; जबकि मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूर स्थित पदार्थो की गंध ले सकता है ।
१२. दूर-अवलोकन बुद्धि ऋद्धि - दिव्य मतिज्ञान के बल से लाखों योजन दूर स्थित पदार्थों को देख सकने की शक्ति; जबकि मनुष्य अधिकतम सैंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन दूर स्थित पदार्थो को देख सकता है ।
१३.प्रज्ञाश्रमणत्व बुद्धि ऋद्धि - पदार्थो के अत्यन्त सूक्ष्म तत्त्व जिनको केवली एवं श्रुतकेवली ही बतला सकते हैं; द्वादशांग, चौदह पूर्व पढ़े बिना ही बतला सकने की शक्ति ।
१४.प्रत्येक-बुद्ध बुद्धि ऋद्धि - अन्य किसी के उपदेश के बिना ही ज्ञान, संयम, व्रतादि का निरूपण कर सकने की शक्ति ।
१५.दशपूर्वित्व बुद्धि ऋद्धि - दस पूर्वो के ज्ञान के फल से अनेक महा विद्याओं के प्रकट होने पर भी चारित्र से चलायमान नहीं होने की शक्ति ।
१६.चतुर्दशपूर्वित्व बुद्धि ऋद्धि - चौदह पूर्वो का सम्पूर्ण श्रुतज्ञान धारण करने की शक्ति ।
१७.प्रवादित्व बुद्धि ऋद्धि - क्षुद्र वादी तो क्या, यदि इन्द्र भी शास्त्रार्थ करने आए, तो उसे भी निरुत्तर कर सकने की शक्ति ।
१८.अष्टांग महानिमित्त-विज्ञत्व बुद्धि ऋद्धि - अन्तरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न (तिल), स्वप्न-इन आठ महानिमित्तों के अर्थ जान सकने की शक्ति ।
१९. जंघा चारण ऋद्धि - पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर आकाश में, जंघा को बिना उठाये सैकड़ों योजन गमन कर सकने की शक्ति ।
२०. अनल (अग्नि-शिखा) चारण ऋद्धि - अग्निकायिक जीवों की विराधना किये बिना अग्निशिखा पर गमन सकने की शक्ति ।
२१.श्रेणीचारण ऋद्धि - सब जाति के जीवों की रक्षा करते हुए पर्वत श्रेणी पर गमन कर सकने की शक्ति ।
२२.फलचारण ऋद्धि - किसी भी प्रकार से जीवों की हानि नहीं हो, इस हेतु फलों पर चल सकने की शक्ति ।
२३.अम्बुचारण ऋद्धि - जीव-हिंसा किये बिना पानी पर चलने की शक्ति ।
२४.तन्तुचारण ऋद्धि - मकड़ी के जाले के समान तन्तुओं पर भी उन्हें तोड़े बिना चल सकने की शक्ति ।
२५.पुष्पचारण ऋद्धि - फूलों में स्थित जीवों की विराधना किये बिना उन पर गमन कर सकने की शक्ति ।
२६.बीजांकुरचारण ऋद्धि - बीजरूप पदार्थों एवं अंकुरों पर उन्हें किसी प्रकार हानि पहुंचाये बिना गमन कर सकने की शक्ति ।
२७.नभचारण ऋद्धि - कायोत्सर्ग की मुद्रा में पद्मासन या खडगासन में आकाश गमन कर सकने की शक्ति ।
२८.अणिमा ऋद्धि - अणु के समान छोटा शरीर कर सकने की शक्ति ।
२९.महिमा ऋद्धि - सुमेरु पर्वत के समान बड़ा शरीर बना सकने की शक्ति ।
३०.लघिमा ऋद्धि - वायु से भी हल्का शरीर बना सकने की शक्ति ।
३१.गरिमा ऋद्धि - वज्र से भी भारी शरीर बना सकने की शक्ति ।
३२.मनबल ऋद्धि - अन्तर्मुहूर्त में ही समस्त द्वादशांग के पदों को विचार सकने की शक्ति ।