06-08-2018, 08:55 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली पंचम अध्याय भाग १
४०१-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीवृक्षलक्षणाय नमः -श्री वृक्ष चिन्ह से चिन्हित होने से,
४०२-ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्मलक्षणाय नमः -सूक्ष्मरूप होने से,
४०३-ॐ ह्रीं अर्हं लक्षण्याय नमः -लक्षणों सहित होने से ,
४०४-ॐ ह्रीं अर्हं शुभलक्षणाय नमः -शरीर में अनेक (१००८) शुभ लक्षण चिन्हित होने से,
४०५-ॐ ह्रीं अर्हं निरीक्षाय नमः -समस्त पदार्थों का निरीक्षण करने वाले होने से /नेत्रेंद्रियों द्वारा दर्शन क्रिया नही करने से ,
४०६-ॐ ह्रीं अर्हं पुण्डरीकाक्षाय नमः - नेत्र पुण्डरीक कमल समान सुंदर होने से
४०७-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्कलाय नमः -आत्मगुणों परिपुष्ट होने से,
४०८-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्करेक्षणाय नमः -कमलदल के समान लम्बे नेत्रों के होने से,
४०९-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धिदाय नमः -सिद्धि देने वाले होने से
४१०-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसंकल्पाय नमः - समस्त विकल्प सिद्ध हो चुकने से
४११-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धात्मने नमः -की आत्मा सिद्धावस्था प्राप्त करने से,
४१२-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसाधनाय नमः - रत्नत्रय रूप मोक्ष साधन प्राप्त होने से,
४१३-ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धबोध्याय नमः -को सब पदार्थों का ज्ञान होने से,
४१४-ॐ ह्रीं अर्हं महाबोधय नमः -की रत्नत्रय रुपी विभूति अत्यंत प्रशंसनीय होने से,
४१५-ॐ ह्रीं अर्हं वर्धमानाय नमः -के गुण उत्तरोत्तर वृद्धि गत होने से,
४१६-ॐ ह्रीं अर्हं महर्द्धिकाय नमः -महा ऋद्धि धारक होने से,
४१७-ॐ ह्रीं अर्हं वेदांगाय नमः -अनुयोग रूपी वेदो के अंग अर्थात कारण होने से,
४१८-ॐ ह्रीं अर्हं वेदविदे नमः -वेदो के ज्ञाता होने से ,,
४१९-ॐ ह्रीं अर्हं वैद्याय नमः -ऋषियों द्वारा जाने होने से,
४२०-ॐ ह्रीं अर्हं जातरूपाय नमः -दिगंबर रूप होने से,
४२१-ॐ ह्रीं अर्हं विदांवराय नमः -जानने वालो में श्रेष्ठ होने से,
४२२-ॐ ह्रीं अर्हं वेदवेद्याय नमः -आगम/केवलज्ञान के द्वाराजानने योग्य होने से]
४२३-ॐ ह्रीं अर्हं स्वसंवेद्याय नमः -अनुभवगम्य होने से ,
४२४-ॐ ह्रीं अर्हं विवेदाय नमः -तीनो(पुरुष,स्त्री,नपुंसक ) वेदों से रहित होने से ',
४२५-ॐ ह्रीं अर्हं वदतांवराय नमः - वक्ताओं में श्रेष्ठ होने से ,
४२६-ॐ ह्रीं अर्हं अनादिनिधनाय नमः -अनादि और अंत रहित होने से,
४२७-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्ताय नमः -ज्ञान के द्वारा अत्यंत स्पष्ट होनेसे ,
४२८-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्तवाचे नमः -वचन अतिशय स्पष्ट होने से,
४२९-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्तशासनाय नमः -का शासन अत्यंत स्पष्ट/प्रकट होने से
४३०-ॐ ह्रीं अर्हं युगादिकृते नमः -कर्मभूमि रूप युग के आदि (आदिनाथ भगवान ) व्यवस्थापक होने से ,
४३१-ॐ ह्रीं अर्हं युगाधाराय नमः -युग की समस्त व्यवस्था करने वाले होने से
४३२-ॐ ह्रीं अर्हं युगादये नमः -आदिनाथ द्वारा कर्मभूमि युग का प्रारम्भ होने से,
४३३-ॐ ह्रीं अर्हं जगदादिजाय नमः -जगत के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से,
४३४-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्राय नमः -ने अपने प्रभाव/ऐश्वर्य से इन्द्रों को अतिक्रांत कर दिया है अत:
४३५-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्रियाय नमः -इन्द्रिय गोचर नही होने से ,
४३६-ॐ ह्रीं अर्हं धीन्द्राय नमः - बुद्धि के स्वामी होने से,,
४३७-ॐ ह्रीं अर्हं महेंद्राय नमः -परम ऐश्वर्य को अनुभव होने से,
४३८-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्रियार्थदृशे नमः -अतीन्द्रिय सूक्ष्म,अंतरित,दूरार्थ ) पदार्थों देखने से,
४३९-ॐ ह्रीं अर्हं अनिन्द्रियाय नमः -इन्द्रियों से रहित होने से
४४०-ॐ ह्रीं अर्हं अहमिन्द्राच्र्याय नमः -अहमिन्द्र द्वारा पूजित होने से,
४४१-ॐ ह्रीं अर्हं महेंद्रमहिताय नमः -बड़े बड़े इन्द्रों द्वारा पूजित होने से ,
४४२-ॐ ह्रीं अर्हं महते नमः -स्वयं विशालतम होने से,
४४३- ॐ ह्रीं अर्हं उद्भवाय नमः -संसार में उत्कृष्टतम होने से
४४४- ॐ ह्रीं अर्हं कारणाय नमः -मोक्ष के कारण होने से,
४४५- ॐ ह्रीं अर्हं कर्त्रे नमः - शुद्ध भावों करने से ,
४४६- ॐ ह्रीं अर्हं पारगाय नमः -संसार रूपी सागर को पार करने वाले होने से,
४४७- ॐ ह्रीं अर्हं भवतारकाय नमः -भव्य जीवों को संसार सागर से तारने वाले होने से ,',
४४८- ॐ ह्रीं अर्हं अगाह्याय नमः -किसी के द्वारा अवगाहन करने योग्य नही होने से ,/के गुणों को कोई नही समझ सकने से,
४४९-ॐ ह्रीं अर्हं गहनाय नमः -का स्वरुप अतिशय गंभीर या कठिन होने से ,
४५०- ॐ ह्रीं अर्हं गुह्माय नमः -गुप्त रूप होने से,
४०१-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीवृक्षलक्षणाय नमः -श्री वृक्ष चिन्ह से चिन्हित होने से,
४०२-ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्मलक्षणाय नमः -सूक्ष्मरूप होने से,
४०३-ॐ ह्रीं अर्हं लक्षण्याय नमः -लक्षणों सहित होने से ,
४०४-ॐ ह्रीं अर्हं शुभलक्षणाय नमः -शरीर में अनेक (१००८) शुभ लक्षण चिन्हित होने से,
४०५-ॐ ह्रीं अर्हं निरीक्षाय नमः -समस्त पदार्थों का निरीक्षण करने वाले होने से /नेत्रेंद्रियों द्वारा दर्शन क्रिया नही करने से ,
४०६-ॐ ह्रीं अर्हं पुण्डरीकाक्षाय नमः - नेत्र पुण्डरीक कमल समान सुंदर होने से
४०७-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्कलाय नमः -आत्मगुणों परिपुष्ट होने से,
४०८-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्करेक्षणाय नमः -कमलदल के समान लम्बे नेत्रों के होने से,
४०९-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धिदाय नमः -सिद्धि देने वाले होने से
४१०-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसंकल्पाय नमः - समस्त विकल्प सिद्ध हो चुकने से
४११-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धात्मने नमः -की आत्मा सिद्धावस्था प्राप्त करने से,
४१२-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसाधनाय नमः - रत्नत्रय रूप मोक्ष साधन प्राप्त होने से,
४१३-ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धबोध्याय नमः -को सब पदार्थों का ज्ञान होने से,
४१४-ॐ ह्रीं अर्हं महाबोधय नमः -की रत्नत्रय रुपी विभूति अत्यंत प्रशंसनीय होने से,
४१५-ॐ ह्रीं अर्हं वर्धमानाय नमः -के गुण उत्तरोत्तर वृद्धि गत होने से,
४१६-ॐ ह्रीं अर्हं महर्द्धिकाय नमः -महा ऋद्धि धारक होने से,
४१७-ॐ ह्रीं अर्हं वेदांगाय नमः -अनुयोग रूपी वेदो के अंग अर्थात कारण होने से,
४१८-ॐ ह्रीं अर्हं वेदविदे नमः -वेदो के ज्ञाता होने से ,,
४१९-ॐ ह्रीं अर्हं वैद्याय नमः -ऋषियों द्वारा जाने होने से,
४२०-ॐ ह्रीं अर्हं जातरूपाय नमः -दिगंबर रूप होने से,
४२१-ॐ ह्रीं अर्हं विदांवराय नमः -जानने वालो में श्रेष्ठ होने से,
४२२-ॐ ह्रीं अर्हं वेदवेद्याय नमः -आगम/केवलज्ञान के द्वाराजानने योग्य होने से]
४२३-ॐ ह्रीं अर्हं स्वसंवेद्याय नमः -अनुभवगम्य होने से ,
४२४-ॐ ह्रीं अर्हं विवेदाय नमः -तीनो(पुरुष,स्त्री,नपुंसक ) वेदों से रहित होने से ',
४२५-ॐ ह्रीं अर्हं वदतांवराय नमः - वक्ताओं में श्रेष्ठ होने से ,
४२६-ॐ ह्रीं अर्हं अनादिनिधनाय नमः -अनादि और अंत रहित होने से,
४२७-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्ताय नमः -ज्ञान के द्वारा अत्यंत स्पष्ट होनेसे ,
४२८-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्तवाचे नमः -वचन अतिशय स्पष्ट होने से,
४२९-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्तशासनाय नमः -का शासन अत्यंत स्पष्ट/प्रकट होने से
४३०-ॐ ह्रीं अर्हं युगादिकृते नमः -कर्मभूमि रूप युग के आदि (आदिनाथ भगवान ) व्यवस्थापक होने से ,
४३१-ॐ ह्रीं अर्हं युगाधाराय नमः -युग की समस्त व्यवस्था करने वाले होने से
४३२-ॐ ह्रीं अर्हं युगादये नमः -आदिनाथ द्वारा कर्मभूमि युग का प्रारम्भ होने से,
४३३-ॐ ह्रीं अर्हं जगदादिजाय नमः -जगत के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से,
४३४-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्राय नमः -ने अपने प्रभाव/ऐश्वर्य से इन्द्रों को अतिक्रांत कर दिया है अत:
४३५-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्रियाय नमः -इन्द्रिय गोचर नही होने से ,
४३६-ॐ ह्रीं अर्हं धीन्द्राय नमः - बुद्धि के स्वामी होने से,,
४३७-ॐ ह्रीं अर्हं महेंद्राय नमः -परम ऐश्वर्य को अनुभव होने से,
४३८-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्रियार्थदृशे नमः -अतीन्द्रिय सूक्ष्म,अंतरित,दूरार्थ ) पदार्थों देखने से,
४३९-ॐ ह्रीं अर्हं अनिन्द्रियाय नमः -इन्द्रियों से रहित होने से
४४०-ॐ ह्रीं अर्हं अहमिन्द्राच्र्याय नमः -अहमिन्द्र द्वारा पूजित होने से,
४४१-ॐ ह्रीं अर्हं महेंद्रमहिताय नमः -बड़े बड़े इन्द्रों द्वारा पूजित होने से ,
४४२-ॐ ह्रीं अर्हं महते नमः -स्वयं विशालतम होने से,
४४३- ॐ ह्रीं अर्हं उद्भवाय नमः -संसार में उत्कृष्टतम होने से
४४४- ॐ ह्रीं अर्हं कारणाय नमः -मोक्ष के कारण होने से,
४४५- ॐ ह्रीं अर्हं कर्त्रे नमः - शुद्ध भावों करने से ,
४४६- ॐ ह्रीं अर्हं पारगाय नमः -संसार रूपी सागर को पार करने वाले होने से,
४४७- ॐ ह्रीं अर्हं भवतारकाय नमः -भव्य जीवों को संसार सागर से तारने वाले होने से ,',
४४८- ॐ ह्रीं अर्हं अगाह्याय नमः -किसी के द्वारा अवगाहन करने योग्य नही होने से ,/के गुणों को कोई नही समझ सकने से,
४४९-ॐ ह्रीं अर्हं गहनाय नमः -का स्वरुप अतिशय गंभीर या कठिन होने से ,
४५०- ॐ ह्रीं अर्हं गुह्माय नमः -गुप्त रूप होने से,