06-09-2018, 08:17 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली षष्ठम अध्याय भाग २
५५१-ॐ ह्रीं अर्हं आत्मज्ञाय नमः -आत्नस्वरूप के ज्ञाता होने से ,
५५२-ॐ ह्रीं अर्हं महादेवाय नमः -सभी देवों में प्रधान होने से,
५५३-ॐ ह्रीं अर्हं महेशित्रे नमः -महान सामर्थ्य युक्त होने से ,
५५४-ॐ ह्रीं अर्हं सर्वक्लेशपहाय नमः -समस्रत क्लेशों से मुक्त होने से,
५५५-ॐ ह्रीं अर्हं साधवे नमः -आत्मकल्याण सिद्ध करने से,
५५६-ॐ ह्रीं अर्हं सर्वदोषहराय नमः -समस्त दोषों का निवारण करने से,
५५७-ॐ ह्रीं अर्हं हराय नमः -समस्त पापों का क्षय करने से ,
५५८-ॐ ह्रीं अर्हं असंख्येयाय नमः -असंख्यात गुणों के धारक होने से,
५५९-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रेयात्मने नमः -अपरिमित शक्ति धारक होने से,
५६०-ॐ ह्रीं अर्हं शमात्मने नमः -शांतस्वरूप होने से ,
५६१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशमाकराय नमः -उत्तम शांति के भंडार होने से,
५६२-ॐ ह्रीं अर्हं सर्वयोगीश्वराय नमः -सब मुनियों के स्वामी होने से ,
५६३-ॐ ह्रीं अर्हं अचिन्त्याय नमः -किसी के चिंतवन में नही आने से ,
५६४-ॐ ह्रीं अर्हं श्रुतात्मने नमः -भावश्रुतरूप होने से,
५६५-ॐ ह्रीं अर्हं विष्टरश्रवसे नमः -लोक के समस्त पदार्थों को जानने से ,
५६६-ॐ ह्रीं अर्हं दान्तात्मने नमः -मन को वश में रखने से ,
५६७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मतीर्थेशाय नमः -संयम रूप तीर्थों के स्वामी होने से,
५६८-ॐ ह्रीं अर्हं योगात्माने नमः -योगमय होने से,
५६९-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानसर्वंज्ञाय नमः -ज्ञान द्वारा सब जगह व्याप्त होने से ,
५७०-ॐ ह्रीं अर्हं प्रधानाय नमः -आत्मा का एकाग्रतापूर्वक ध्यान करने अथवा तीनों लोक में प्रमुख होने से ,
५७१-ॐ ह्रीं अर्हं आत्मने नमः -ज्ञानस्वरूप होने से ,
५७२-ॐ ह्रीं अर्हं प्रकृतये नमः -प्रकृष्ट कार्यों के होने से ,
५७३-ॐ ह्रीं अर्हं परमाय नमः -उत्कृष्ट लक्ष्मी के धारक होने से,
५७४- ॐ ह्रीं अर्हं परमोदयाय नमः --उत्कृष्ट उदय अर्थात जन्म या वैभव के धारक होने से ,
५७५-ॐ ह्रीं अर्हं प्रक्षीणबंधाय नमः -कर्म बंधन क्षीण होने से,
५७६-ॐ ह्रीं अर्हं कामरये नमः -कामदेव के शत्रु होने से,
५७७-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमकृते नमः -कल्याणकारी होने से,
५७८-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमशासनाय नमः -मंगलमय उपदेशक होने से,
५७९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रणवाय नमः -ओमकार रूप होने से,
५८०ॐ ह्रीं अर्हं प्रणताय नमः -सबसे नमस्कृत होने से ,
५८१-ॐ ह्रीं अर्हं प्राणाय नमः -जगत के प्राणियों को जीवित रखने से,
५८२-ॐ ह्रीं अर्हं प्राणदाय नमः -समस्त जीवों के प्राणदाता/रक्षक होने से ,
५८३-ॐ ह्रीं अर्हं प्रण्तेश्वराय नमः -भव्य जीवों के स्वामी होने से ,
५८४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रमाणाय नमः -ज्ञानमय होने से ,
५८५-ॐ ह्रीं अर्हं प्रणिधये नमः -अनंतज्ञानादि निधियों के होने से,
५८६-ॐ ह्रीं अर्हं दक्षाय नमः -समर्थ अर्थात प्रवीण होने से,
५८७-ॐ ह्रीं अर्हं दक्षिणाय नमः -सरल होने से,
५८८-ॐ ह्रीं अर्हं अध्वर्यवे नमः -ज्ञानरूप यज्ञ करने से,
५८९-ॐ ह्रीं अर्हं अध्वराय नमः -समीचीन मार्ग के दर्शकहोने से ,
५९०-ॐ ह्रीं अर्हं आनन्दाय नमः -सदैव सुखरूप रहने से ,
५९१-ॐ ह्रीं अर्हं नन्दनाय नमः -सबको आनंद प्रदान करने से,
५९२-ॐ ह्रीं अर्हं नन्दाय नमः -सदा समृद्धिमान होते रहने से,
५९३-ॐ ह्रीं अर्हं वन्द्याय नमः -इन्द्रादि द्वारा वंदनीय होने से,
५९४-ॐ ह्रीं अर्हं अनिन्द्याय नमः -निंदा रहित होने से,
५९५-ॐ ह्रीं अर्हं अभिनंदनाय नमः -प्रशंशनीय होने से,
५९६-ॐ ह्रीं अर्हं कामघ्ने नमः -कामदेव को नष्ट करने से,
५९७-ॐ ह्रीं अर्हं कामदाय नमः -अभिलषित पदार्थों के देने से,
५९८-ॐ ह्रीं अर्हं काम्याय नमः -सबके द्वारा चाहने योग्य है।,
५९९-ॐ ह्रीं अर्हं कामधेनवे नमः -सबके मनोरथ पूर्ण करने वाले होने से,
६००-ॐ ह्रीं अर्हं अरिंजयाय नमः -कर्मशत्रुओं विजय प्राप्त करने से,
५५१-ॐ ह्रीं अर्हं आत्मज्ञाय नमः -आत्नस्वरूप के ज्ञाता होने से ,
५५२-ॐ ह्रीं अर्हं महादेवाय नमः -सभी देवों में प्रधान होने से,
५५३-ॐ ह्रीं अर्हं महेशित्रे नमः -महान सामर्थ्य युक्त होने से ,
५५४-ॐ ह्रीं अर्हं सर्वक्लेशपहाय नमः -समस्रत क्लेशों से मुक्त होने से,
५५५-ॐ ह्रीं अर्हं साधवे नमः -आत्मकल्याण सिद्ध करने से,
५५६-ॐ ह्रीं अर्हं सर्वदोषहराय नमः -समस्त दोषों का निवारण करने से,
५५७-ॐ ह्रीं अर्हं हराय नमः -समस्त पापों का क्षय करने से ,
५५८-ॐ ह्रीं अर्हं असंख्येयाय नमः -असंख्यात गुणों के धारक होने से,
५५९-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रेयात्मने नमः -अपरिमित शक्ति धारक होने से,
५६०-ॐ ह्रीं अर्हं शमात्मने नमः -शांतस्वरूप होने से ,
५६१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशमाकराय नमः -उत्तम शांति के भंडार होने से,
५६२-ॐ ह्रीं अर्हं सर्वयोगीश्वराय नमः -सब मुनियों के स्वामी होने से ,
५६३-ॐ ह्रीं अर्हं अचिन्त्याय नमः -किसी के चिंतवन में नही आने से ,
५६४-ॐ ह्रीं अर्हं श्रुतात्मने नमः -भावश्रुतरूप होने से,
५६५-ॐ ह्रीं अर्हं विष्टरश्रवसे नमः -लोक के समस्त पदार्थों को जानने से ,
५६६-ॐ ह्रीं अर्हं दान्तात्मने नमः -मन को वश में रखने से ,
५६७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मतीर्थेशाय नमः -संयम रूप तीर्थों के स्वामी होने से,
५६८-ॐ ह्रीं अर्हं योगात्माने नमः -योगमय होने से,
५६९-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानसर्वंज्ञाय नमः -ज्ञान द्वारा सब जगह व्याप्त होने से ,
५७०-ॐ ह्रीं अर्हं प्रधानाय नमः -आत्मा का एकाग्रतापूर्वक ध्यान करने अथवा तीनों लोक में प्रमुख होने से ,
५७१-ॐ ह्रीं अर्हं आत्मने नमः -ज्ञानस्वरूप होने से ,
५७२-ॐ ह्रीं अर्हं प्रकृतये नमः -प्रकृष्ट कार्यों के होने से ,
५७३-ॐ ह्रीं अर्हं परमाय नमः -उत्कृष्ट लक्ष्मी के धारक होने से,
५७४- ॐ ह्रीं अर्हं परमोदयाय नमः --उत्कृष्ट उदय अर्थात जन्म या वैभव के धारक होने से ,
५७५-ॐ ह्रीं अर्हं प्रक्षीणबंधाय नमः -कर्म बंधन क्षीण होने से,
५७६-ॐ ह्रीं अर्हं कामरये नमः -कामदेव के शत्रु होने से,
५७७-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमकृते नमः -कल्याणकारी होने से,
५७८-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमशासनाय नमः -मंगलमय उपदेशक होने से,
५७९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रणवाय नमः -ओमकार रूप होने से,
५८०ॐ ह्रीं अर्हं प्रणताय नमः -सबसे नमस्कृत होने से ,
५८१-ॐ ह्रीं अर्हं प्राणाय नमः -जगत के प्राणियों को जीवित रखने से,
५८२-ॐ ह्रीं अर्हं प्राणदाय नमः -समस्त जीवों के प्राणदाता/रक्षक होने से ,
५८३-ॐ ह्रीं अर्हं प्रण्तेश्वराय नमः -भव्य जीवों के स्वामी होने से ,
५८४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रमाणाय नमः -ज्ञानमय होने से ,
५८५-ॐ ह्रीं अर्हं प्रणिधये नमः -अनंतज्ञानादि निधियों के होने से,
५८६-ॐ ह्रीं अर्हं दक्षाय नमः -समर्थ अर्थात प्रवीण होने से,
५८७-ॐ ह्रीं अर्हं दक्षिणाय नमः -सरल होने से,
५८८-ॐ ह्रीं अर्हं अध्वर्यवे नमः -ज्ञानरूप यज्ञ करने से,
५८९-ॐ ह्रीं अर्हं अध्वराय नमः -समीचीन मार्ग के दर्शकहोने से ,
५९०-ॐ ह्रीं अर्हं आनन्दाय नमः -सदैव सुखरूप रहने से ,
५९१-ॐ ह्रीं अर्हं नन्दनाय नमः -सबको आनंद प्रदान करने से,
५९२-ॐ ह्रीं अर्हं नन्दाय नमः -सदा समृद्धिमान होते रहने से,
५९३-ॐ ह्रीं अर्हं वन्द्याय नमः -इन्द्रादि द्वारा वंदनीय होने से,
५९४-ॐ ह्रीं अर्हं अनिन्द्याय नमः -निंदा रहित होने से,
५९५-ॐ ह्रीं अर्हं अभिनंदनाय नमः -प्रशंशनीय होने से,
५९६-ॐ ह्रीं अर्हं कामघ्ने नमः -कामदेव को नष्ट करने से,
५९७-ॐ ह्रीं अर्हं कामदाय नमः -अभिलषित पदार्थों के देने से,
५९८-ॐ ह्रीं अर्हं काम्याय नमः -सबके द्वारा चाहने योग्य है।,
५९९-ॐ ह्रीं अर्हं कामधेनवे नमः -सबके मनोरथ पूर्ण करने वाले होने से,
६००-ॐ ह्रीं अर्हं अरिंजयाय नमः -कर्मशत्रुओं विजय प्राप्त करने से,