06-10-2018, 12:27 PM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली दशम अध्याय भाग २
९५१-ॐ ह्रीं अर्हं सुतनवे नमः -उत्तम शरीर के धारक होने से,
९५२-ॐ ह्रीं अर्हं तनुनिर्मुक्ताय नमः -शीघ्र ही शरीर बंधन से रहित होकर मोक्ष प्राप्त करने से करने से,
९५३- ॐ ह्रीं अर्हं सुगताय नमः -प्रशस्त विहायोगगति केउदय में,आकाश में उत्तम गमन करने से/आत्मस्वरूप में तल्लीन रहने से /उत्तमज्ञानमय होने से,
९५४-ॐ ह्रीं अर्हं हतदुर्नयाय नमः -मिथ्यानयों को नष्ट करने से,
९५५-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीशाय नमः -लक्ष्मी के ईश्वर होने से,
९५६-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीश्रितपादाब्जाय नमः -लक्ष्मी द्वारा चरणो की सेवा होने से,:
९५७-ॐ ह्रीं अर्हं वीतये नमः -भयरहित होने से,
९५८-ॐ ह्रीं अर्हं अभयंकराय नमः -दूसरों के भय को नष्ट करने वाले होने से,:
९५९- ॐ ह्रीं अर्हंउत्सन्नदोषाय नमः -समस्त दोषों रहित होने से,
९६०-ॐ ह्रीं अर्हं निर्विघ्नाय नमः -समस्त विघ्नो से रहित
९६१-ॐ ह्रीं अर्हं निश्चलाय नमः -स्थिर होने से,
९६२-ॐ ह्रीं अर्हं लोक वत्सलाय नमः - लोगो के स्नेह पात्र होने से,
९६३-ॐ ह्रीं अर्हं लोकोत्तराय नमः -समस्त लोक में उत्कृष्टतम होने से,
९६४-ॐ ह्रीं अर्हं लोकपतये नमः -तीनों लोक स्वामी होने से,
९६५-ॐ ह्रीं अर्हं लोकचक्षुषे नमः -समस्त लोगो के नेत्रस्वरूप होने से,
९६६-ॐ ह्रीं अर्हं अपारधिये नमः -असीमित बुद्धि के धारक होने से,
९६७-ॐ ह्रीं अर्हं धीरधि ये नमः -सदा स्थिर बुद्धि के धारक होने से,
९६८-ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धसन्मार्गाय नमः -समीचीन मार्ग के ज्ञाता होने से,
९६९- ॐ ह्रीं अर्हं शुद्धाय नमः -कर्ममल रहित होने से,
९७०-ॐ ह्रीं अर्हं सत्यसूनृतपूतवाचे नमः -सत्य एवं पवित्र वचन बोलने से,
९७१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रज्ञापारमिताय नमः -बुद्धि की पराकाष्ठा प्राप्त करने से,
९७२- ॐ ह्रीं अर्हं प्राज्ञाय नमः -अतिशय बुद्धिमा न होने से,
९७३-ॐ ह्रीं अर्हं यतिविषये नमः - कषायों से उपरत होने से,
९७४-ॐ ह्रीं अर्हं नियमितेन्द्रियाय नमः - इन्द्रियों को वश में करने से,
९७५- ॐ ह्रीं अर्हं भदन्ताय नमः -पूज्य होने से,
९७६-ॐ ह्रीं अर्हं भद्रकृते नमः -सब जीवों का भला करने से,
९७७-ॐ ह्रीं अर्हं भद्राय नमः -कल्याणरूप होने से,
९७८-ॐ ह्रीं अर्हं कल्पवृक्षाय नमः -मन वांच्छित वस्तुओं के दाता होने से,
९७९-ॐ ह्रीं अर्हं वरप्रदाय नमः -इच्छित वर प्रदाता होने से,
९८०-ॐ ह्रीं अर्हं समुन्मूलितकर्मारये नमः -कर्म शत्रुओं को मूल से उखाड़ फेंकने से,
९८१-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मकाष्ठाशुशुक्षणये नमः -कर्म रूप ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान होने से,
९८२-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मण्याय नमः - कार्यों को करने में निपुण होने से,
९८३- ॐ ह्रीं अर्हं कर्मठाय नमः -समर्थ होने से,
९८४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रांशवे नमः -उत्कृष्ट /उन्नत होने से,
९८५-ॐ ह्रीं अर्हं हेयादेयविचक्षणाय नमः -हेय और उपादय पदार्थों के विद्वान ज्ञाता होने से,
९८६-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तशक्तये नमः -अनन्तशक्तियों के धारक होने से
९८७-ॐ ह्रीं अर्हं अच्छेद्याय नमः -किसी के द्वारा भी छिन्न भिन्न करने योग्य नही होने से,
९८८-ॐ ह्रीं अर्हं त्रिपुरारये नमः -जन्म,जरा,एवं मरण ,तीनों का नाश करने से,
९८९-ॐ ह्रीं अर्हं त्रिलोचनाय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९०-ॐ ह्रीं अर्हं त्रिनेत्राय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९१-ॐ ह्रीं अर्हं त्रयंबकाय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९२-ॐ ह्रीं अर्हं त्रयक्षाय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९३-ॐ ह्रीं अर्हं केवलज्ञानविक्षणाय नमः -केवल ज्ञान रुपी नेत्रों सहित त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,,
९९४-ॐ ह्रीं अर्हं समन्तभद्राय नमः -सब ओर मंगलरूप होने से,
९९५-ॐ ह्रीं अर्हं शांतारये नमः -कर्मरूप शत्रुओं के शांत होने से,
९९६-ॐ ह्रीं अर्हं धर्माचार्याय नमः -धर्म व्यवस्थापक होने से,
९९७-ॐ ह्रीं अर्हं दयानिधये नमः -दया के भंडार के भंडार होने से
९९८- ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्मदर्शिने नमः -सूक्ष्म पदार्थों को देखने से,
९९९-ॐ ह्रीं अर्हं जितानङ्गाय नमः -काम देव को जीतने से,
१०००-ॐ ह्रीं अर्हं कृपालवे नमः -कृपयुक्त होने से,
१००१-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मदेशकाय नमः -धर्म के उपदेशकहोने से,
१००२-ॐ ह्रीं अर्हं शुभंयवे नमः -शुभयुक्त होने से,
१००३-ॐ ह्रीं अर्हं सुखसाद्भूताय नमः -सुख के आधीनहोने से,,
१००४-ॐ ह्रीं अर्हं पुण्यराशये नमः - पुण्य के समूह होने से,
१००५-ॐ ह्रीं अर्हं अनामयाय नमः -रोगरहित होने से,,
१००६-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मपालाय नमः -धर्म के रक्षक होने से,
१००७-ॐ ह्रीं अर्हं जगत्पालाय नमः -जगत के रक्षक होने से,,
१००८-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मसाम्राज्यनायकाय नमः -धर्मरूपी साम्राज्य से कहलाते है!
९५१-ॐ ह्रीं अर्हं सुतनवे नमः -उत्तम शरीर के धारक होने से,
९५२-ॐ ह्रीं अर्हं तनुनिर्मुक्ताय नमः -शीघ्र ही शरीर बंधन से रहित होकर मोक्ष प्राप्त करने से करने से,
९५३- ॐ ह्रीं अर्हं सुगताय नमः -प्रशस्त विहायोगगति केउदय में,आकाश में उत्तम गमन करने से/आत्मस्वरूप में तल्लीन रहने से /उत्तमज्ञानमय होने से,
९५४-ॐ ह्रीं अर्हं हतदुर्नयाय नमः -मिथ्यानयों को नष्ट करने से,
९५५-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीशाय नमः -लक्ष्मी के ईश्वर होने से,
९५६-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीश्रितपादाब्जाय नमः -लक्ष्मी द्वारा चरणो की सेवा होने से,:
९५७-ॐ ह्रीं अर्हं वीतये नमः -भयरहित होने से,
९५८-ॐ ह्रीं अर्हं अभयंकराय नमः -दूसरों के भय को नष्ट करने वाले होने से,:
९५९- ॐ ह्रीं अर्हंउत्सन्नदोषाय नमः -समस्त दोषों रहित होने से,
९६०-ॐ ह्रीं अर्हं निर्विघ्नाय नमः -समस्त विघ्नो से रहित
९६१-ॐ ह्रीं अर्हं निश्चलाय नमः -स्थिर होने से,
९६२-ॐ ह्रीं अर्हं लोक वत्सलाय नमः - लोगो के स्नेह पात्र होने से,
९६३-ॐ ह्रीं अर्हं लोकोत्तराय नमः -समस्त लोक में उत्कृष्टतम होने से,
९६४-ॐ ह्रीं अर्हं लोकपतये नमः -तीनों लोक स्वामी होने से,
९६५-ॐ ह्रीं अर्हं लोकचक्षुषे नमः -समस्त लोगो के नेत्रस्वरूप होने से,
९६६-ॐ ह्रीं अर्हं अपारधिये नमः -असीमित बुद्धि के धारक होने से,
९६७-ॐ ह्रीं अर्हं धीरधि ये नमः -सदा स्थिर बुद्धि के धारक होने से,
९६८-ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धसन्मार्गाय नमः -समीचीन मार्ग के ज्ञाता होने से,
९६९- ॐ ह्रीं अर्हं शुद्धाय नमः -कर्ममल रहित होने से,
९७०-ॐ ह्रीं अर्हं सत्यसूनृतपूतवाचे नमः -सत्य एवं पवित्र वचन बोलने से,
९७१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रज्ञापारमिताय नमः -बुद्धि की पराकाष्ठा प्राप्त करने से,
९७२- ॐ ह्रीं अर्हं प्राज्ञाय नमः -अतिशय बुद्धिमा न होने से,
९७३-ॐ ह्रीं अर्हं यतिविषये नमः - कषायों से उपरत होने से,
९७४-ॐ ह्रीं अर्हं नियमितेन्द्रियाय नमः - इन्द्रियों को वश में करने से,
९७५- ॐ ह्रीं अर्हं भदन्ताय नमः -पूज्य होने से,
९७६-ॐ ह्रीं अर्हं भद्रकृते नमः -सब जीवों का भला करने से,
९७७-ॐ ह्रीं अर्हं भद्राय नमः -कल्याणरूप होने से,
९७८-ॐ ह्रीं अर्हं कल्पवृक्षाय नमः -मन वांच्छित वस्तुओं के दाता होने से,
९७९-ॐ ह्रीं अर्हं वरप्रदाय नमः -इच्छित वर प्रदाता होने से,
९८०-ॐ ह्रीं अर्हं समुन्मूलितकर्मारये नमः -कर्म शत्रुओं को मूल से उखाड़ फेंकने से,
९८१-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मकाष्ठाशुशुक्षणये नमः -कर्म रूप ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान होने से,
९८२-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मण्याय नमः - कार्यों को करने में निपुण होने से,
९८३- ॐ ह्रीं अर्हं कर्मठाय नमः -समर्थ होने से,
९८४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रांशवे नमः -उत्कृष्ट /उन्नत होने से,
९८५-ॐ ह्रीं अर्हं हेयादेयविचक्षणाय नमः -हेय और उपादय पदार्थों के विद्वान ज्ञाता होने से,
९८६-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तशक्तये नमः -अनन्तशक्तियों के धारक होने से
९८७-ॐ ह्रीं अर्हं अच्छेद्याय नमः -किसी के द्वारा भी छिन्न भिन्न करने योग्य नही होने से,
९८८-ॐ ह्रीं अर्हं त्रिपुरारये नमः -जन्म,जरा,एवं मरण ,तीनों का नाश करने से,
९८९-ॐ ह्रीं अर्हं त्रिलोचनाय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९०-ॐ ह्रीं अर्हं त्रिनेत्राय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९१-ॐ ह्रीं अर्हं त्रयंबकाय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९२-ॐ ह्रीं अर्हं त्रयक्षाय नमः -त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९९३-ॐ ह्रीं अर्हं केवलज्ञानविक्षणाय नमः -केवल ज्ञान रुपी नेत्रों सहित त्रिकालवर्ती पदार्थों के ज्ञाता होने से,,
९९४-ॐ ह्रीं अर्हं समन्तभद्राय नमः -सब ओर मंगलरूप होने से,
९९५-ॐ ह्रीं अर्हं शांतारये नमः -कर्मरूप शत्रुओं के शांत होने से,
९९६-ॐ ह्रीं अर्हं धर्माचार्याय नमः -धर्म व्यवस्थापक होने से,
९९७-ॐ ह्रीं अर्हं दयानिधये नमः -दया के भंडार के भंडार होने से
९९८- ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्मदर्शिने नमः -सूक्ष्म पदार्थों को देखने से,
९९९-ॐ ह्रीं अर्हं जितानङ्गाय नमः -काम देव को जीतने से,
१०००-ॐ ह्रीं अर्हं कृपालवे नमः -कृपयुक्त होने से,
१००१-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मदेशकाय नमः -धर्म के उपदेशकहोने से,
१००२-ॐ ह्रीं अर्हं शुभंयवे नमः -शुभयुक्त होने से,
१००३-ॐ ह्रीं अर्हं सुखसाद्भूताय नमः -सुख के आधीनहोने से,,
१००४-ॐ ह्रीं अर्हं पुण्यराशये नमः - पुण्य के समूह होने से,
१००५-ॐ ह्रीं अर्हं अनामयाय नमः -रोगरहित होने से,,
१००६-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मपालाय नमः -धर्म के रक्षक होने से,
१००७-ॐ ह्रीं अर्हं जगत्पालाय नमः -जगत के रक्षक होने से,,
१००८-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मसाम्राज्यनायकाय नमः -धर्मरूपी साम्राज्य से कहलाते है!