दानम दुर्गति नाशय - उपाध्याय श्री 108 वृषभानंद जी मुनिराज प्रवचन 3 aug 2024
#1

उपाध्याय श्री 108 वृषभानंद जी मुनिराज 
प्रवचन 3 aug 2024 थड़ी मार्केट, मानसरोवर जयपुर

दानम दुर्गति नाशय शील सद गति कारणं
तप कर्म विनाशाय भावना भव नासिनी


दानम् दुर्गतिनाशय: दान (चैरिटी) दुर्गति (कष्टों) को नष्ट करता है, कठिनाइयों और दुखों को दूर करता है।
शील सद्गति कारणम्: अच्छा आचरण (शिष्टता) सद्गति (अच्छी नियति) का कारण है।
तप कर्म विनाशाय: तप (अनेक कठिन साधनाएं) कर्म ( पिछले पापों ) का नाश करते हैं।
भावना भव नासिनी: शुद्ध विचार और भावनाएं जन्म और मृत्यु के चक्र (संसार) का नाश करती हैं।

यह श्लोक दान, शिष्टता, तप और शुद्ध विचारों के गुणों को दर्शाता है, और यह बताता है कि ये कार्य और गुण दुखों को दूर करते हैं, अच्छी नियति को लाते हैं, पिछले पापों का नाश करते हैं, और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाते हैं।

Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
Email: manish@frontdesk.co.in
Tel: +91 141 6693948
Reply


Forum Jump:


Users browsing this thread: 1 Guest(s)