06-03-2018, 11:15 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली प्रथम अध्याय भाग १
१- ॐ ह्रीं अर्हं श्रीमते नमः -अनन्तचतुष्टाय रूप अंतरंग एवं अष्ट प्रातिहार्य रूप वहिर्ंग लक्ष्मी के स्वामी होने से ,
२- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंभूवे नमः -किसी गुरु द्वारा उपदेशित नही बल्कि स्वयमेव ही सम्बुद्ध होने से,
३- ॐ ह्रीं अर्हं वृषभाय - नमः -धर्म से सुशोभित होने से,
४- ॐ ह्रीं अर्हं शम्भवाय नमः -अनंत सुख सम्पन्न अथवा संसार के अन्य अनेक प्राणियों को सुख देने से,
५- ॐ ह्रीं अर्हं शंभवे - नमः - परमानन्द सुख देने से शंभु/योगीश्वर ',
६- ॐ ह्रीं अर्हं आत्मभवे - नमः -अपनी आत्मा में ही अपना साक्षात्कार स्वयं करने से,
७- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंप्रभाय नमः - स्वयमेव ही प्रकाशमान होने से,
८- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभु- नमः -समर्थ अथवा सब के स्वामी होने से ',
९- ॐ ह्रीं अर्हं भोक्त्रे नमः - अनंत आत्मोथ सुख का अनुभव करने,
१०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वभुवे नमः -केवलज्ञान की अपेक्षा सर्वत्र व्याप्त अरहवा ध्यानादि से सब जगह प्रत्यक्ष प्रकट होने से,
११- ॐ ह्रीं अर्हं अपुनर्भवाय नमः -पुन:संसार में जन्म नही लेंने से,
१२- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वात्मने नमः -की आत्मा में संसार के समस्त पदार्थ प्रतिबिंबित होने से,
१३- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वलोकेशाय नमः -समस्त लोक के स्वामी होने से, ,
१४- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वतश्चक्षुषे नमः -ज्ञानदर्शन रूपी नेत्र द्वारा संसार में सभी ओर अग्रतिहत होने से ,
१५- ॐ ह्रीं अर्हं अक्षराय नमः -अविनाशी होने से ,
१६- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वविदे नमः -लोक के समस्त पदार्थों के ज्ञाता होने से,
१७- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वविध्येशाय नमः -समस्त विद्याओं के स्वामी होने से ,
१८- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वयोनये नमः -समस्त पदार्थों की उत्पत्ति में कारण अथवा उन के उपदेशक होने से,
१९- ॐ ह्रीं अर्हं अनश्वराय नमः -का स्वरुपकभी अनश्वर होने से ,
२०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वदृश्वने नमः -लोक के समस्त पदार्थों को देखने से,
२१- ॐ ह्रीं अर्हं विभवे नमः -केवलज्ञान की अपेक्षा सर्वत्र व्याप्त हैअथवा सब जीवों को संसार से पार लगाने में सामर्थ्यवान
२३- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वेशाय नमः -समस्त जगत के ईश्वर होने से,
२४- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वलोचनाय नमः -संसार के समस्त पदार्थों के दृष्टा होने से,
२५ - ॐ ह्रीं अर्हं विश्वव्यापिने नमः -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता और उनका ज्ञान सर्वत्र व्याप्त होने से,
२६- ॐ ह्रीं अर्हं विधये नमः -भगवान समीचीन मोक्षमार्ग के विधान के कर्त्ता होने से,
२७- ॐ ह्रीं अर्हं वेधसे नमः -धर्म रूप जगत की सृष्टि करने वाले होने से ,
२८- ॐ ह्रीं अर्हं शाश्वताय नमः -सदैव विध्यमान रहने से शाश्वत,
२९- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वोतमुखाय नमः -के समवशरण में चारों दिशाओं में मुख दिखने से /
३०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वकर्मणे नमः -कर्मभूमि की व्यवस्था करते समय लोगो की आजीविका हेतु;असी ,मसि आदि षट कार्यों के उपदेशक होने से,
३१- ॐ ह्रीं अर्हं जगज्ज्येष्ठाय नमः -जगत में सर्वश्रेष्ठ होने से,
३२- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वमूर्तये नमः -अनन्तगुणमय अथवा समस्त पदार्थों के आकार उनके ज्ञान में प्रतिफलित होने से ,
३३- ॐ ह्रीं अर्हं जिनेश्वराय नमः -कर्म शत्रुओं को जीतने वाले सम्यग्दृष्टि जीवों के ईश्वर होने से ,
३४- ॐ ह्रीं अर्हं विष्वदृशे नमः -का संसार के समस्त पदार्थों का सामान्यावलोकन करने से ,
३५- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वभूतेशाय नमः -समस्त प्राणियों के ईश्वर होने से,
३६- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वज्योतिषे नमः -की केवलज्ञान रुपी ज्योति अखिल संसार में व्याप्त होने से ,
३७- ॐ ह्रीं अर्हं अनीश्वराय नमः -सबके स्वामी होने से किन्तु उनका कोई स्वामी नही होने से
३८ ॐ ह्रीं अर्हं जिनाय नमः - के घातिया कर्मरूपी शत्रुओं पर विजयी होने से,
३९- ॐ ह्रीं अर्हं विष्णवे नमः -का कर्मरूपी शत्रुओं को जीतना ही शील / से ,
४०- ॐ ह्रीं अर्हं अमेयात्मने नमः -की आत्मा अर्थात उनके अनंत गुणों को किसी के द्वारा भी नही जान सकने से ,
४१- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वरीशाय नमः -पृथिवी के ईश्वर होने से,
४२- ॐ ह्रीं अर्हं जगतपतये नमः -तीनों लोको के स्वामी होने से ,
४३- ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तजिते नमः -अनंत संसार/मिथ्या दर्शन पर विजेता होने से,
४४- ॐ ह्रीं अर्हं अचिन्त्यात्मने नमः -की आत्मा का चिंतवन मन से भी नही किया जा सकने से ,
४५- ॐ ह्रीं अर्हं भव्यबन्धवे नमः -भव्य जीवों के हितैषी होने से ,
४६- ॐ ह्रीं अर्हं अबन्धनाय नमः -कर्म बंध से रहित होने से,
४७- ॐ ह्रीं अर्हं युगादिपुरुषाय नमः -कर्मभूमि रुपी युग में प्रारम्भ में उत्पन्न होने से,
४८- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मणे नमः -के केवलज्ञानादि गुण वृह्णं अर्थात वृद्धि को प्राप्तहोने से ,
४९- ॐ ह्रीं अर्हं पंच ब्रह्माय नमः -पंचपरमेष्ठी स्वरुप होने से ,
५०- ॐ ह्रीं अर्हं शिवाय नमः -आनंद स्वरुप होने से ,
१- ॐ ह्रीं अर्हं श्रीमते नमः -अनन्तचतुष्टाय रूप अंतरंग एवं अष्ट प्रातिहार्य रूप वहिर्ंग लक्ष्मी के स्वामी होने से ,
२- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंभूवे नमः -किसी गुरु द्वारा उपदेशित नही बल्कि स्वयमेव ही सम्बुद्ध होने से,
३- ॐ ह्रीं अर्हं वृषभाय - नमः -धर्म से सुशोभित होने से,
४- ॐ ह्रीं अर्हं शम्भवाय नमः -अनंत सुख सम्पन्न अथवा संसार के अन्य अनेक प्राणियों को सुख देने से,
५- ॐ ह्रीं अर्हं शंभवे - नमः - परमानन्द सुख देने से शंभु/योगीश्वर ',
६- ॐ ह्रीं अर्हं आत्मभवे - नमः -अपनी आत्मा में ही अपना साक्षात्कार स्वयं करने से,
७- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंप्रभाय नमः - स्वयमेव ही प्रकाशमान होने से,
८- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभु- नमः -समर्थ अथवा सब के स्वामी होने से ',
९- ॐ ह्रीं अर्हं भोक्त्रे नमः - अनंत आत्मोथ सुख का अनुभव करने,
१०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वभुवे नमः -केवलज्ञान की अपेक्षा सर्वत्र व्याप्त अरहवा ध्यानादि से सब जगह प्रत्यक्ष प्रकट होने से,
११- ॐ ह्रीं अर्हं अपुनर्भवाय नमः -पुन:संसार में जन्म नही लेंने से,
१२- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वात्मने नमः -की आत्मा में संसार के समस्त पदार्थ प्रतिबिंबित होने से,
१३- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वलोकेशाय नमः -समस्त लोक के स्वामी होने से, ,
१४- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वतश्चक्षुषे नमः -ज्ञानदर्शन रूपी नेत्र द्वारा संसार में सभी ओर अग्रतिहत होने से ,
१५- ॐ ह्रीं अर्हं अक्षराय नमः -अविनाशी होने से ,
१६- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वविदे नमः -लोक के समस्त पदार्थों के ज्ञाता होने से,
१७- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वविध्येशाय नमः -समस्त विद्याओं के स्वामी होने से ,
१८- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वयोनये नमः -समस्त पदार्थों की उत्पत्ति में कारण अथवा उन के उपदेशक होने से,
१९- ॐ ह्रीं अर्हं अनश्वराय नमः -का स्वरुपकभी अनश्वर होने से ,
२०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वदृश्वने नमः -लोक के समस्त पदार्थों को देखने से,
२१- ॐ ह्रीं अर्हं विभवे नमः -केवलज्ञान की अपेक्षा सर्वत्र व्याप्त हैअथवा सब जीवों को संसार से पार लगाने में सामर्थ्यवान
२३- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वेशाय नमः -समस्त जगत के ईश्वर होने से,
२४- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वलोचनाय नमः -संसार के समस्त पदार्थों के दृष्टा होने से,
२५ - ॐ ह्रीं अर्हं विश्वव्यापिने नमः -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता और उनका ज्ञान सर्वत्र व्याप्त होने से,
२६- ॐ ह्रीं अर्हं विधये नमः -भगवान समीचीन मोक्षमार्ग के विधान के कर्त्ता होने से,
२७- ॐ ह्रीं अर्हं वेधसे नमः -धर्म रूप जगत की सृष्टि करने वाले होने से ,
२८- ॐ ह्रीं अर्हं शाश्वताय नमः -सदैव विध्यमान रहने से शाश्वत,
२९- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वोतमुखाय नमः -के समवशरण में चारों दिशाओं में मुख दिखने से /
३०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वकर्मणे नमः -कर्मभूमि की व्यवस्था करते समय लोगो की आजीविका हेतु;असी ,मसि आदि षट कार्यों के उपदेशक होने से,
३१- ॐ ह्रीं अर्हं जगज्ज्येष्ठाय नमः -जगत में सर्वश्रेष्ठ होने से,
३२- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वमूर्तये नमः -अनन्तगुणमय अथवा समस्त पदार्थों के आकार उनके ज्ञान में प्रतिफलित होने से ,
३३- ॐ ह्रीं अर्हं जिनेश्वराय नमः -कर्म शत्रुओं को जीतने वाले सम्यग्दृष्टि जीवों के ईश्वर होने से ,
३४- ॐ ह्रीं अर्हं विष्वदृशे नमः -का संसार के समस्त पदार्थों का सामान्यावलोकन करने से ,
३५- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वभूतेशाय नमः -समस्त प्राणियों के ईश्वर होने से,
३६- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वज्योतिषे नमः -की केवलज्ञान रुपी ज्योति अखिल संसार में व्याप्त होने से ,
३७- ॐ ह्रीं अर्हं अनीश्वराय नमः -सबके स्वामी होने से किन्तु उनका कोई स्वामी नही होने से
३८ ॐ ह्रीं अर्हं जिनाय नमः - के घातिया कर्मरूपी शत्रुओं पर विजयी होने से,
३९- ॐ ह्रीं अर्हं विष्णवे नमः -का कर्मरूपी शत्रुओं को जीतना ही शील / से ,
४०- ॐ ह्रीं अर्हं अमेयात्मने नमः -की आत्मा अर्थात उनके अनंत गुणों को किसी के द्वारा भी नही जान सकने से ,
४१- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वरीशाय नमः -पृथिवी के ईश्वर होने से,
४२- ॐ ह्रीं अर्हं जगतपतये नमः -तीनों लोको के स्वामी होने से ,
४३- ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तजिते नमः -अनंत संसार/मिथ्या दर्शन पर विजेता होने से,
४४- ॐ ह्रीं अर्हं अचिन्त्यात्मने नमः -की आत्मा का चिंतवन मन से भी नही किया जा सकने से ,
४५- ॐ ह्रीं अर्हं भव्यबन्धवे नमः -भव्य जीवों के हितैषी होने से ,
४६- ॐ ह्रीं अर्हं अबन्धनाय नमः -कर्म बंध से रहित होने से,
४७- ॐ ह्रीं अर्हं युगादिपुरुषाय नमः -कर्मभूमि रुपी युग में प्रारम्भ में उत्पन्न होने से,
४८- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मणे नमः -के केवलज्ञानादि गुण वृह्णं अर्थात वृद्धि को प्राप्तहोने से ,
४९- ॐ ह्रीं अर्हं पंच ब्रह्माय नमः -पंचपरमेष्ठी स्वरुप होने से ,
५०- ॐ ह्रीं अर्हं शिवाय नमः -आनंद स्वरुप होने से ,