06-05-2018, 11:09 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली तृतीय अध्याय भाग १
२०१-ॐ ह्रीं अर्हं स्थविष्ठ नमः समीचीन गुणों की अपेक्षा अतिशय स्थूल होने से,',
२०२- ॐ ह्रीं अर्हं स्थविर नमः ज्ञानादि गुणों द्वारा वृद्ध होने से,
२०३-ॐ ह्रीं अर्हं ज्येष्ठ नमः तीनोलोकों में अतिशय प्रशस्त होने से ',
२०४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रष्ठ नमः सबके अग्रगामी होने से ,
२०५-ॐ ह्रीं अर्हं प्रेष्ठ' नमः सबको अतिशय प्रिय होने से,
२०६-ॐ ह्रीं अर्हं वरिष्ठधी नमः बुद्धि अतिशय श्रेष्ठ होने से,
२०७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थेष्ठ नमःस्थिर अर्थात नित्यहोने से,
२०८-ॐ ह्रीं अर्हं गरिष्ठ नमः अत्यंत गुरु होने से,
२०९-ॐ ह्रीं अर्हं बंहिष्ठ नमःगुणों की अपेक्षा अनेक रूप धारण करने से
२१०-ॐ ह्रीं अर्हं श्रेष्ठ नमःअतिशय प्रशस्त होने से,
२११-ॐ ह्रीं अर्हं अनिष्ठ नमःअतिशय सूक्ष्म होने से ,
२१२-ॐ ह्रीं अर्हं गरिष्ठगी नमः वाणी अतिशय से गौरवपूर्ण होने से,,
२१३-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वमुट नमःचतुर्गतिरूप संसार का क्षय होने से, ,
२१४-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वसृट नमः समस्त संसार की व्यवस्थापक होने से ,
२१५-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वेट नमः सर्व लोक के ईश्वर होने से,,
२१६-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वमुक नमःसमस्त संसार के रक्षक होने से ,
२१७-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वनायक नमःअखिल लोक के स्वामी होने से,,
२१८-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वासी नमः समस्त संसार में व्याप्त(केवलज्ञान की अपेक्षा) होने से,,
२१९-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वरूपात्म नमः केवलज्ञान स्वरुप ह/आत्मा अनेक रूप है अत:
२२०-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वजित नमः सबको जीतने वाले है अत:
२२१-ॐ ह्रीं अर्हं विजितान्तक नमःमृत्यु पर विजयी होने से,
२२२-ॐ ह्रीं अर्हं विभव नमः संसार भ्रमण समाप्त होने से ,
२२३-ॐ ह्रीं अर्हं विभय नमः भय रहि त होने से,,
२२४-ॐ ह्रीं अर्हं वीर नमः अनंत बलशाली होने से,
२२५-ॐ ह्रीं अर्हं विशोक नमः शोक रहित होने से,
२२६-ॐ ह्रीं अर्हं विजर नमः वृद्धावस्था से रहित होने से,,
२२७-ॐ ह्रीं अर्हं जरन नमः सबसे प्राचीन होने से ,
२२८-ॐ ह्रीं अर्हं विराग नमः रागरहित होने से ,
२२९-ॐ ह्रीं अर्हं विरत नमः समस्त पापों से विरत होने से,
२३०-ॐ ह्रीं अर्हं असंग नमः परिग्रह रहित होने से,',
२३१-ॐ ह्रीं अर्हं विवक्त नमः पवित्र होने से',
२३२-ॐ ह्रीं अर्हं वीतमत्सर नमः मात्सर्य रहित होने से
२३३-ॐ ह्रीं अर्हं विनेयजनता नमःबंधु-अपने शिष्य जनों हितैषी होने से'
२३४-ॐ ह्रीं अर्हं विलीनाशेषकल्मष नमः समस्त कर्मों के क्षय होने से
२३५-ॐ ह्रीं अर्हं वियोग नमः मन ,वचन, काय के निमित्त से होने वाले आत्मप्रदेशों के परिस्पन्द हित होने से,
२३६-ॐ ह्रीं अर्हं योगविद् नमः योग/ध्यान के स्वरुप के ज्ञाता होने से योगविद',
२३७-ॐ ह्रीं अर्हं विद्वान नमः समस्त पदाथों के ज्ञाता होने से,
२३८-ॐ ह्रीं अर्हं विधाता नमः धर्म रूप सृष्टि के कर्ता होने से,
२३९-ॐ ह्रीं अर्हं सुविधि नमः के कार्य अति उत्तम होने से,
२४०-ॐ ह्रीं अर्हं सुधि नमः उत्तम बुद्धि के धारक होने से ,
२४१-ॐ ह्रीं अर्हं क्षान्तिभाक् नमः उत्तम क्षमा धारण करने से ,
२४२-ॐ ह्रीं अर्हं पृथ्वीमूर्ती नमः पृथिवी के समान सहनशील होने से,
२४३-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिभाव नमः शांति के उपासक होने से ,
२४४-ॐ ह्रीं अर्हं सलिलात्मक नमः जल के समान शीतलता प्रदायक होने से,
२४५-ॐ ह्रीं अर्हं वायुमूर्ती नमः वायु के समान पर पदार्थों के संसर्ग रहित होने से',
२४६-ॐ ह्रीं अर्हं असंगात्मा नमः परिग्रह रहित होने से
२४७-ॐ ह्रीं अर्हं वहग्निमूर्ती नमः अग्नि के समान कर्मरूपी ईंधन को जलाने वाले होने से,
२४८-ॐ ह्रीं अर्हं अधर्मधक नमः अधर्म को जलाने वाले होने से ',
२४९-ॐ ह्रीं अर्हं सुयज्वा नमः कर्मरूपी सामग्री को भली प्रकार होम करने से ,
२५०-ॐ ह्रीं अर्हं यजमानात्मा- नमःनिज स्वभाव के आराधक होने से,
२०१-ॐ ह्रीं अर्हं स्थविष्ठ नमः समीचीन गुणों की अपेक्षा अतिशय स्थूल होने से,',
२०२- ॐ ह्रीं अर्हं स्थविर नमः ज्ञानादि गुणों द्वारा वृद्ध होने से,
२०३-ॐ ह्रीं अर्हं ज्येष्ठ नमः तीनोलोकों में अतिशय प्रशस्त होने से ',
२०४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रष्ठ नमः सबके अग्रगामी होने से ,
२०५-ॐ ह्रीं अर्हं प्रेष्ठ' नमः सबको अतिशय प्रिय होने से,
२०६-ॐ ह्रीं अर्हं वरिष्ठधी नमः बुद्धि अतिशय श्रेष्ठ होने से,
२०७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थेष्ठ नमःस्थिर अर्थात नित्यहोने से,
२०८-ॐ ह्रीं अर्हं गरिष्ठ नमः अत्यंत गुरु होने से,
२०९-ॐ ह्रीं अर्हं बंहिष्ठ नमःगुणों की अपेक्षा अनेक रूप धारण करने से
२१०-ॐ ह्रीं अर्हं श्रेष्ठ नमःअतिशय प्रशस्त होने से,
२११-ॐ ह्रीं अर्हं अनिष्ठ नमःअतिशय सूक्ष्म होने से ,
२१२-ॐ ह्रीं अर्हं गरिष्ठगी नमः वाणी अतिशय से गौरवपूर्ण होने से,,
२१३-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वमुट नमःचतुर्गतिरूप संसार का क्षय होने से, ,
२१४-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वसृट नमः समस्त संसार की व्यवस्थापक होने से ,
२१५-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वेट नमः सर्व लोक के ईश्वर होने से,,
२१६-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वमुक नमःसमस्त संसार के रक्षक होने से ,
२१७-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वनायक नमःअखिल लोक के स्वामी होने से,,
२१८-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वासी नमः समस्त संसार में व्याप्त(केवलज्ञान की अपेक्षा) होने से,,
२१९-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वरूपात्म नमः केवलज्ञान स्वरुप ह/आत्मा अनेक रूप है अत:
२२०-ॐ ह्रीं अर्हं विश्वजित नमः सबको जीतने वाले है अत:
२२१-ॐ ह्रीं अर्हं विजितान्तक नमःमृत्यु पर विजयी होने से,
२२२-ॐ ह्रीं अर्हं विभव नमः संसार भ्रमण समाप्त होने से ,
२२३-ॐ ह्रीं अर्हं विभय नमः भय रहि त होने से,,
२२४-ॐ ह्रीं अर्हं वीर नमः अनंत बलशाली होने से,
२२५-ॐ ह्रीं अर्हं विशोक नमः शोक रहित होने से,
२२६-ॐ ह्रीं अर्हं विजर नमः वृद्धावस्था से रहित होने से,,
२२७-ॐ ह्रीं अर्हं जरन नमः सबसे प्राचीन होने से ,
२२८-ॐ ह्रीं अर्हं विराग नमः रागरहित होने से ,
२२९-ॐ ह्रीं अर्हं विरत नमः समस्त पापों से विरत होने से,
२३०-ॐ ह्रीं अर्हं असंग नमः परिग्रह रहित होने से,',
२३१-ॐ ह्रीं अर्हं विवक्त नमः पवित्र होने से',
२३२-ॐ ह्रीं अर्हं वीतमत्सर नमः मात्सर्य रहित होने से
२३३-ॐ ह्रीं अर्हं विनेयजनता नमःबंधु-अपने शिष्य जनों हितैषी होने से'
२३४-ॐ ह्रीं अर्हं विलीनाशेषकल्मष नमः समस्त कर्मों के क्षय होने से
२३५-ॐ ह्रीं अर्हं वियोग नमः मन ,वचन, काय के निमित्त से होने वाले आत्मप्रदेशों के परिस्पन्द हित होने से,
२३६-ॐ ह्रीं अर्हं योगविद् नमः योग/ध्यान के स्वरुप के ज्ञाता होने से योगविद',
२३७-ॐ ह्रीं अर्हं विद्वान नमः समस्त पदाथों के ज्ञाता होने से,
२३८-ॐ ह्रीं अर्हं विधाता नमः धर्म रूप सृष्टि के कर्ता होने से,
२३९-ॐ ह्रीं अर्हं सुविधि नमः के कार्य अति उत्तम होने से,
२४०-ॐ ह्रीं अर्हं सुधि नमः उत्तम बुद्धि के धारक होने से ,
२४१-ॐ ह्रीं अर्हं क्षान्तिभाक् नमः उत्तम क्षमा धारण करने से ,
२४२-ॐ ह्रीं अर्हं पृथ्वीमूर्ती नमः पृथिवी के समान सहनशील होने से,
२४३-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिभाव नमः शांति के उपासक होने से ,
२४४-ॐ ह्रीं अर्हं सलिलात्मक नमः जल के समान शीतलता प्रदायक होने से,
२४५-ॐ ह्रीं अर्हं वायुमूर्ती नमः वायु के समान पर पदार्थों के संसर्ग रहित होने से',
२४६-ॐ ह्रीं अर्हं असंगात्मा नमः परिग्रह रहित होने से
२४७-ॐ ह्रीं अर्हं वहग्निमूर्ती नमः अग्नि के समान कर्मरूपी ईंधन को जलाने वाले होने से,
२४८-ॐ ह्रीं अर्हं अधर्मधक नमः अधर्म को जलाने वाले होने से ',
२४९-ॐ ह्रीं अर्हं सुयज्वा नमः कर्मरूपी सामग्री को भली प्रकार होम करने से ,
२५०-ॐ ह्रीं अर्हं यजमानात्मा- नमःनिज स्वभाव के आराधक होने से,