06-09-2018, 10:46 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली सप्तम अध्याय भाग १
६०१-ॐ ह्रीं अर्हं असंस्कृत सुसंस्काराय नमः -किसी के द्वारा संस्कृत हुए बिना ही स्वयं उत्तम संस्कारों धारण करने से,
६०२-ॐ ह्रीं अर्हं प्राकृताय नमः -स्वाभाविक होने से,
६०३-ॐ ह्रीं अर्हं वैकृतान्तकृताय नमः -रागादि विकारों के नष्ट होने से,
६०४-ॐ ह्रीं अर्हं अन्तकृते नमः -अंत अर्थात धर्म अथवा जन्म-मरण रूप संसार अवसान करने वाले होने से
६०५-ॐ ह्रीं अर्हं कान्तगवे नमः -सुंदर कांति ,वचन/ इन्द्रियों के धारक होने से ,
६०६-ॐ ह्रीं अर्हं कान्ताय नमः -अत्यंत सुंदर होने से,
६०७-ॐ ह्रीं अर्हं चिंतामणये नमः -इच्छित पदार्थों देने से,
६०८-ॐ ह्रीं अर्हं अभीष्टदाय नमः -भव्य जीवों के लिए अभीष्ट -स्वर्ग मोक्ष को देने से,
६०९-ॐ ह्रीं अर्हं अजिताय नमः -किसी के द्वारा जीते नही जाने से,
६१०-ॐ ह्रीं अर्हं जितकामरये नमः -कामरूप शत्रुओं को जीतने से , कहलाते है
६११-ॐ ह्रीं अर्हं अमिताय नमः -अवधिरहित होने से,
६१२-ॐ ह्रीं अर्हं अमितशासनाय नमः -अनुपम धर्म उपदेशक होने से,
६१३-ॐ ह्रीं अर्हं जितक्रोधाय नमः -क्रोधको जीतने से,
६१४-ॐ ह्रीं अर्हं जितमित्राय नमः -शत्रुओं पर जीत पाने से,
६१५-ॐ ह्रीं अर्हं जित क्लेशाय नमः -क्लेशों पर विजयी होने से,
६१६-ॐ ह्रीं अर्हं जितान्तकाय नमः -यमराज पर विजयी होने से,
६१७-ॐ ह्रीं अर्हं जिनेन्द्राय नमः -कर्मरूप शत्रुओं पर विजेताओं में सर्वश्रेष्ठ होने से,
६१८-ॐ ह्रीं अर्हं परमानन्दाय नमः -उत्कृष्ट आनन्द के धारक होने से,
६१९-ॐ ह्रीं अर्हं मुनीन्द्राय नमः -मुनियों के साथ होने से ,
६२०-ॐ ह्रीं अर्हं दुन्दुभिस्वनाय नमः -दुन्दुभि के समान गंभीर होने से,
६२१-ॐ ह्रीं अर्हं महेन्द्रवन्द्याय नमः -बड़े बड़े इन्द्रों द्वारा बंदनीय होने से,
६२२-ॐ ह्रीं अर्हं योगीन्द्राय नमः -योगियों के स्वामी होने से,
६२३-ॐ ह्रीं अर्हं यतीन्द्राय नमः -यतियों के स्वामी होने से,
६२४-ॐ ह्रीं अर्हं नाभिनन्दनाय नमः -नाभिमहाराज के पुत्र होने से,
६२५-ॐ ह्रीं अर्हं नाभेयाय नमः -नाभिराज महाराज की संतान होने से,
६२६-ॐ ह्रीं अर्हं नाभिजाय नमः -नाभिमहाराज से उत्पन्न होने से,
६२७-ॐ ह्रीं अर्हं जातसुव्रताय नमः -द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा जन्म रहित होने से,
६२८ - ॐ ह्रीं अर्हं मनवे नमः -कर्मभूमि की समस्त व्यवस्था बताने अथवा मनन-ज्ञानरूप रूप होने से
६२९-,ॐ ह्रीं अर्हं उत्तमाय नमः -उत्कृष्ट होने से,
६३०-ॐ ह्रीं अर्हं अभेद्याय नमः -किसी के भी द्वारा भेद्न करने नही होने से,
६३१-ॐ ह्रीं अर्हं अनत्ययाय नमः -विनाशरहित होने से,
६३२-ॐ ह्रीं अर्हं अनाश्वासे नमः -तपश्चरण करने से ,
६३३-ॐ ह्रीं अर्हं अधिकाय नमः -सर्वश्रेष्ठ होने / वास्तविक सुख प्राप्त करने से,
६३४-ॐ ह्रीं अर्हं अधिगुरुवे नमः -श्रेष्ठ गुरु होने से,
६३५-ॐ ह्रीं अर्हं सुगिरे नमः -उत्तम वचन के धारक होने से,
६३६-ॐ ह्रीं अर्हं सुमेधसे नमः -उत्तम बुद्धि के धारक होने से,
६३७-ॐ ह्रीं अर्हं स्वामिने नमः -पराक्रमी होने से,
६३८-ॐ ह्रीं अर्हं अधिपति नमः -सबके स्वामीहोने से,
६३९-ॐ ह्रीं अर्हं दुरधर्षाय नमः -किसी के द्वारा अनादर ,हिंसा/निवारण आदि नही किये जाने से,
६४०-ॐ ह्रीं अर्हं निरुत्सकाय नमः -सांसारिक विषयकोंकी उतकंठा से रहित होने से,
६४१-ॐ ह्रीं अर्हं विशिष्टाय नमः -विशेष रूप होने से,
६४२-ॐ ह्रीं अर्हं शिष्टभुजे नमः -शिष्ट पुरुषों का पालन करने से ,
६४३-ॐ ह्रीं अर्हं शिष्टाय नमः -सदाचारपूर्ण होने से,
६४४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रत्ययाय नमः -ज्ञानरूप होने से,
६४५-ॐ ह्रीं अर्हं कॉमनाय नमः -मनोहर होने से
६४६-ॐ ह्रीं अर्हं अनघाय नमः -पाप से रहित होने से
६४७-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमीणे नमः -कल्याण से युक्त होने से,
६४८-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमंकराय नमः -भव्य जीवों का कल्याण करने से,
६४९-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षय्याय नमः -क्षय रहित होने से,
६५०-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमधर्मपतये नमः -कल्याणकारी धर्म के स्वामी होने से,
६०१-ॐ ह्रीं अर्हं असंस्कृत सुसंस्काराय नमः -किसी के द्वारा संस्कृत हुए बिना ही स्वयं उत्तम संस्कारों धारण करने से,
६०२-ॐ ह्रीं अर्हं प्राकृताय नमः -स्वाभाविक होने से,
६०३-ॐ ह्रीं अर्हं वैकृतान्तकृताय नमः -रागादि विकारों के नष्ट होने से,
६०४-ॐ ह्रीं अर्हं अन्तकृते नमः -अंत अर्थात धर्म अथवा जन्म-मरण रूप संसार अवसान करने वाले होने से
६०५-ॐ ह्रीं अर्हं कान्तगवे नमः -सुंदर कांति ,वचन/ इन्द्रियों के धारक होने से ,
६०६-ॐ ह्रीं अर्हं कान्ताय नमः -अत्यंत सुंदर होने से,
६०७-ॐ ह्रीं अर्हं चिंतामणये नमः -इच्छित पदार्थों देने से,
६०८-ॐ ह्रीं अर्हं अभीष्टदाय नमः -भव्य जीवों के लिए अभीष्ट -स्वर्ग मोक्ष को देने से,
६०९-ॐ ह्रीं अर्हं अजिताय नमः -किसी के द्वारा जीते नही जाने से,
६१०-ॐ ह्रीं अर्हं जितकामरये नमः -कामरूप शत्रुओं को जीतने से , कहलाते है
६११-ॐ ह्रीं अर्हं अमिताय नमः -अवधिरहित होने से,
६१२-ॐ ह्रीं अर्हं अमितशासनाय नमः -अनुपम धर्म उपदेशक होने से,
६१३-ॐ ह्रीं अर्हं जितक्रोधाय नमः -क्रोधको जीतने से,
६१४-ॐ ह्रीं अर्हं जितमित्राय नमः -शत्रुओं पर जीत पाने से,
६१५-ॐ ह्रीं अर्हं जित क्लेशाय नमः -क्लेशों पर विजयी होने से,
६१६-ॐ ह्रीं अर्हं जितान्तकाय नमः -यमराज पर विजयी होने से,
६१७-ॐ ह्रीं अर्हं जिनेन्द्राय नमः -कर्मरूप शत्रुओं पर विजेताओं में सर्वश्रेष्ठ होने से,
६१८-ॐ ह्रीं अर्हं परमानन्दाय नमः -उत्कृष्ट आनन्द के धारक होने से,
६१९-ॐ ह्रीं अर्हं मुनीन्द्राय नमः -मुनियों के साथ होने से ,
६२०-ॐ ह्रीं अर्हं दुन्दुभिस्वनाय नमः -दुन्दुभि के समान गंभीर होने से,
६२१-ॐ ह्रीं अर्हं महेन्द्रवन्द्याय नमः -बड़े बड़े इन्द्रों द्वारा बंदनीय होने से,
६२२-ॐ ह्रीं अर्हं योगीन्द्राय नमः -योगियों के स्वामी होने से,
६२३-ॐ ह्रीं अर्हं यतीन्द्राय नमः -यतियों के स्वामी होने से,
६२४-ॐ ह्रीं अर्हं नाभिनन्दनाय नमः -नाभिमहाराज के पुत्र होने से,
६२५-ॐ ह्रीं अर्हं नाभेयाय नमः -नाभिराज महाराज की संतान होने से,
६२६-ॐ ह्रीं अर्हं नाभिजाय नमः -नाभिमहाराज से उत्पन्न होने से,
६२७-ॐ ह्रीं अर्हं जातसुव्रताय नमः -द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा जन्म रहित होने से,
६२८ - ॐ ह्रीं अर्हं मनवे नमः -कर्मभूमि की समस्त व्यवस्था बताने अथवा मनन-ज्ञानरूप रूप होने से
६२९-,ॐ ह्रीं अर्हं उत्तमाय नमः -उत्कृष्ट होने से,
६३०-ॐ ह्रीं अर्हं अभेद्याय नमः -किसी के भी द्वारा भेद्न करने नही होने से,
६३१-ॐ ह्रीं अर्हं अनत्ययाय नमः -विनाशरहित होने से,
६३२-ॐ ह्रीं अर्हं अनाश्वासे नमः -तपश्चरण करने से ,
६३३-ॐ ह्रीं अर्हं अधिकाय नमः -सर्वश्रेष्ठ होने / वास्तविक सुख प्राप्त करने से,
६३४-ॐ ह्रीं अर्हं अधिगुरुवे नमः -श्रेष्ठ गुरु होने से,
६३५-ॐ ह्रीं अर्हं सुगिरे नमः -उत्तम वचन के धारक होने से,
६३६-ॐ ह्रीं अर्हं सुमेधसे नमः -उत्तम बुद्धि के धारक होने से,
६३७-ॐ ह्रीं अर्हं स्वामिने नमः -पराक्रमी होने से,
६३८-ॐ ह्रीं अर्हं अधिपति नमः -सबके स्वामीहोने से,
६३९-ॐ ह्रीं अर्हं दुरधर्षाय नमः -किसी के द्वारा अनादर ,हिंसा/निवारण आदि नही किये जाने से,
६४०-ॐ ह्रीं अर्हं निरुत्सकाय नमः -सांसारिक विषयकोंकी उतकंठा से रहित होने से,
६४१-ॐ ह्रीं अर्हं विशिष्टाय नमः -विशेष रूप होने से,
६४२-ॐ ह्रीं अर्हं शिष्टभुजे नमः -शिष्ट पुरुषों का पालन करने से ,
६४३-ॐ ह्रीं अर्हं शिष्टाय नमः -सदाचारपूर्ण होने से,
६४४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रत्ययाय नमः -ज्ञानरूप होने से,
६४५-ॐ ह्रीं अर्हं कॉमनाय नमः -मनोहर होने से
६४६-ॐ ह्रीं अर्हं अनघाय नमः -पाप से रहित होने से
६४७-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमीणे नमः -कल्याण से युक्त होने से,
६४८-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमंकराय नमः -भव्य जीवों का कल्याण करने से,
६४९-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षय्याय नमः -क्षय रहित होने से,
६५०-ॐ ह्रीं अर्हं क्षेमधर्मपतये नमः -कल्याणकारी धर्म के स्वामी होने से,