06-10-2018, 12:23 PM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली दशम अध्याय भाग १
९०१-ॐ ह्रीं अर्हं दिग्वाससे नमः -दिशा रूप वस्त्रों को धारण करने/दिगंबर रहने से ,
९०२-ॐ ह्रीं अर्हं वातरशनाय नमः -वायु रूप करधनों को धारण करने से,
९०३-ॐ ह्रीं अर्हं निर्ग्रन्थेशाय नमः -निर्ग्रन्थ मुनियों के स्वामी होने से,
९०४-ॐ ह्रीं अर्हं दिगम्बराय नमः -निर्वस्त्र होने से,
९०५-ॐ ह्रीं अर्हं निष्किंचनाय नमः -परिग्रह रहित होने से,
९०६-ॐ ह्रीं अर्हं निराशंसाय नमः -इच्छा रहित होने से,
९०७-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानचक्षुषे नमः -ज्ञानरूपी नेत्रों के धारक होने से ,
९०८-ॐ ह्रीं अर्हं अमोमुहाय नमः -मोहरहित होने से ,
९०९-ॐ ह्रीं अर्हं तेजोराशाय नमः -तेज के समूह होने से,
९१०-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तौजसे नमः -अनंत प्रताप के धारक होने से,
९११-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानाब्धये नमः -ज्ञान के सागर होने से,
९१२-ॐ ह्रीं अर्हं शीलसागराय नमः -शील के सागर होने से,
९१३-ॐ ह्रीं अर्हं तेजोमयाय नमः -तेज का समूह होने से,
९१४-ॐ ह्रीं अर्हं अमितज्योतिषे नमः -अपरिमित ज्योति के धारक होने से,
९१५-ॐ ह्रीं अर्हं ज्योतिर्मूर्तये नमः -भास्वर शरीर होने से,
९१६-ॐ ह्रीं अर्हं तमोपहाय नमः -अज्ञानता रूप अन्धकार को नष्ट करने से,
९१७-ॐ ह्रीं अर्हं जगच्चूड़ामणये नमः -तीनों लोक के मस्तक पर रत्न के समान अतिशय ,श्रेष्ठ होने से,
९१८-ॐ ह्रीं अर्हं दीप्ताय नमः -देदीप्यमान होने से,
९१९- ॐ ह्रीं अर्हं शंवते नमः -सुखी/शांत होने से,
९२०-ॐ ह्रीं अर्हं विघ्नविनायकाय नमः -विघ्नों के नाशक होने से,
९२१-ॐ ह्रीं अर्हं कलिघ्नाय नमः -क्लेशों/पापो के नाशक होने
९२२-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मशत्रुघ्नाय नमः -कर्म शत्रुओं के घातक होने से,
९२३-ॐ ह्रीं अर्हं लोकलोकप्रकाशकाय नमः -लोक और अलोक को प्रकाशित करने से,
९२४-ॐ ह्रीं अर्हं अनिन्द्रालवे नमः -निंद्रा रहित होने से,
९२५-ॐ ह्रीं अर्हं अतन्द्रालवे नमः -आलस्य/प्रमाद रहित होने से
९२६-ॐ ह्रीं अर्हं जागरूकाय नमः -सदा जागृत रहने से,रहने से,
९२७-ॐ ह्रीं अर्हं प्रभामयाय नमः -ज्ञानमय होने,से
९२८-ॐ ह्रीं अर्हं लक्ष्मीपतये नमः -अनन्त चतुष्टाय रूप लक्ष्मी के स्वामी होने से,
९२९-ॐ ह्रीं अर्हं जगज्ज्योतिषे नमः -जगत को प्रकाशित करने से,
९३०- ॐ ह्रीं अर्हं धर्मराजाय नमः - धर्महोने ,राज-अहिंसा धर्म के राजा होने से,
९३१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रजाहिताय नमः -प्रजा के हितैषी होने से,
९३२-ॐ ह्रीं अर्हं मुमुक्षुवे नमः -मोक्ष के इच्छुक होने से,
९३३-ॐ ह्रीं अर्हं बंध मोक्षज्ञाय नमः -बंध और मोक्ष के स्वरुप के ज्ञाता होने से,
९३४-ॐ ह्रीं अर्हं जिताक्षाय नमः -इन्द्रियों को जीतने से,
९३५-ॐ ह्रीं अर्हं जितमन्मथाय नमः -काम पर विजेता होने से,
९३६-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशांतरसशैलूषाय नमः -अत्यंत शान्तरूपी रस प्रदर्शित करने के लिए नट के समान होने से,
९३७-ॐ ह्रीं अर्हं भवयपेटकनायकाय नमः -भव्य जीवों के समूह के स्वामी होने से,
९३८- ॐ ह्रीं अर्हं मूलकत्रै नमः -धर्म के आद्य वकता होने से,
९३९-ॐ ह्रीं अर्हं अखिलज्योतिषे नमः -पदार्थों को प्रकाशित करने से,
९४०-ॐ ह्रीं अर्हं मलघ्नाय नमः -कर्ममल नष्ट करने से,
९४१-ॐ ह्रीं अर्हं मूलकारणाय नमः -मोक्षमार्ग के मुख्य कारण होने से,
९४२-ॐ ह्रीं अर्हं आप्ताय नमः -यथार्थ वक्ता होने से,
९४३-ॐ ह्रीं अर्हं वागीशवराय नमः -वचनो के स्वामी होने से,
९४४-ॐ ह्रीं अर्हं श्रेयसे नमः -कल्याणरूप होने से,
९४५-ॐ ह्रीं अर्हं श्रायसोक्तये नमः -कल्याण रूप वाणी के होने से,
९४६-ॐ ह्रीं अर्हं निरुक्त्तवाचे नमः -सार्थक वचन होने से,
९४७-ॐ ह्रीं अर्हं प्रवक्त्रे नमः -श्रेष्ठ वक्ता होने से,
९४८-ॐ ह्रीं अर्हं वचसामीशाय नमः -वचनों के स्वामी होने से,
९४९-ॐ ह्रीं अर्हं मारजिते नमः -कामदेव को जीतने से,
९५०-ॐ ह्रीं अर्हं विष्वभावविदे नमः -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता होने से,
९०१-ॐ ह्रीं अर्हं दिग्वाससे नमः -दिशा रूप वस्त्रों को धारण करने/दिगंबर रहने से ,
९०२-ॐ ह्रीं अर्हं वातरशनाय नमः -वायु रूप करधनों को धारण करने से,
९०३-ॐ ह्रीं अर्हं निर्ग्रन्थेशाय नमः -निर्ग्रन्थ मुनियों के स्वामी होने से,
९०४-ॐ ह्रीं अर्हं दिगम्बराय नमः -निर्वस्त्र होने से,
९०५-ॐ ह्रीं अर्हं निष्किंचनाय नमः -परिग्रह रहित होने से,
९०६-ॐ ह्रीं अर्हं निराशंसाय नमः -इच्छा रहित होने से,
९०७-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानचक्षुषे नमः -ज्ञानरूपी नेत्रों के धारक होने से ,
९०८-ॐ ह्रीं अर्हं अमोमुहाय नमः -मोहरहित होने से ,
९०९-ॐ ह्रीं अर्हं तेजोराशाय नमः -तेज के समूह होने से,
९१०-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तौजसे नमः -अनंत प्रताप के धारक होने से,
९११-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानाब्धये नमः -ज्ञान के सागर होने से,
९१२-ॐ ह्रीं अर्हं शीलसागराय नमः -शील के सागर होने से,
९१३-ॐ ह्रीं अर्हं तेजोमयाय नमः -तेज का समूह होने से,
९१४-ॐ ह्रीं अर्हं अमितज्योतिषे नमः -अपरिमित ज्योति के धारक होने से,
९१५-ॐ ह्रीं अर्हं ज्योतिर्मूर्तये नमः -भास्वर शरीर होने से,
९१६-ॐ ह्रीं अर्हं तमोपहाय नमः -अज्ञानता रूप अन्धकार को नष्ट करने से,
९१७-ॐ ह्रीं अर्हं जगच्चूड़ामणये नमः -तीनों लोक के मस्तक पर रत्न के समान अतिशय ,श्रेष्ठ होने से,
९१८-ॐ ह्रीं अर्हं दीप्ताय नमः -देदीप्यमान होने से,
९१९- ॐ ह्रीं अर्हं शंवते नमः -सुखी/शांत होने से,
९२०-ॐ ह्रीं अर्हं विघ्नविनायकाय नमः -विघ्नों के नाशक होने से,
९२१-ॐ ह्रीं अर्हं कलिघ्नाय नमः -क्लेशों/पापो के नाशक होने
९२२-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मशत्रुघ्नाय नमः -कर्म शत्रुओं के घातक होने से,
९२३-ॐ ह्रीं अर्हं लोकलोकप्रकाशकाय नमः -लोक और अलोक को प्रकाशित करने से,
९२४-ॐ ह्रीं अर्हं अनिन्द्रालवे नमः -निंद्रा रहित होने से,
९२५-ॐ ह्रीं अर्हं अतन्द्रालवे नमः -आलस्य/प्रमाद रहित होने से
९२६-ॐ ह्रीं अर्हं जागरूकाय नमः -सदा जागृत रहने से,रहने से,
९२७-ॐ ह्रीं अर्हं प्रभामयाय नमः -ज्ञानमय होने,से
९२८-ॐ ह्रीं अर्हं लक्ष्मीपतये नमः -अनन्त चतुष्टाय रूप लक्ष्मी के स्वामी होने से,
९२९-ॐ ह्रीं अर्हं जगज्ज्योतिषे नमः -जगत को प्रकाशित करने से,
९३०- ॐ ह्रीं अर्हं धर्मराजाय नमः - धर्महोने ,राज-अहिंसा धर्म के राजा होने से,
९३१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रजाहिताय नमः -प्रजा के हितैषी होने से,
९३२-ॐ ह्रीं अर्हं मुमुक्षुवे नमः -मोक्ष के इच्छुक होने से,
९३३-ॐ ह्रीं अर्हं बंध मोक्षज्ञाय नमः -बंध और मोक्ष के स्वरुप के ज्ञाता होने से,
९३४-ॐ ह्रीं अर्हं जिताक्षाय नमः -इन्द्रियों को जीतने से,
९३५-ॐ ह्रीं अर्हं जितमन्मथाय नमः -काम पर विजेता होने से,
९३६-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशांतरसशैलूषाय नमः -अत्यंत शान्तरूपी रस प्रदर्शित करने के लिए नट के समान होने से,
९३७-ॐ ह्रीं अर्हं भवयपेटकनायकाय नमः -भव्य जीवों के समूह के स्वामी होने से,
९३८- ॐ ह्रीं अर्हं मूलकत्रै नमः -धर्म के आद्य वकता होने से,
९३९-ॐ ह्रीं अर्हं अखिलज्योतिषे नमः -पदार्थों को प्रकाशित करने से,
९४०-ॐ ह्रीं अर्हं मलघ्नाय नमः -कर्ममल नष्ट करने से,
९४१-ॐ ह्रीं अर्हं मूलकारणाय नमः -मोक्षमार्ग के मुख्य कारण होने से,
९४२-ॐ ह्रीं अर्हं आप्ताय नमः -यथार्थ वक्ता होने से,
९४३-ॐ ह्रीं अर्हं वागीशवराय नमः -वचनो के स्वामी होने से,
९४४-ॐ ह्रीं अर्हं श्रेयसे नमः -कल्याणरूप होने से,
९४५-ॐ ह्रीं अर्हं श्रायसोक्तये नमः -कल्याण रूप वाणी के होने से,
९४६-ॐ ह्रीं अर्हं निरुक्त्तवाचे नमः -सार्थक वचन होने से,
९४७-ॐ ह्रीं अर्हं प्रवक्त्रे नमः -श्रेष्ठ वक्ता होने से,
९४८-ॐ ह्रीं अर्हं वचसामीशाय नमः -वचनों के स्वामी होने से,
९४९-ॐ ह्रीं अर्हं मारजिते नमः -कामदेव को जीतने से,
९५०-ॐ ह्रीं अर्हं विष्वभावविदे नमः -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता होने से,