12-24-2014, 10:22 AM
लोक (मध्य लोक) - धातकीखंड-द्वीप और पुष्करवर-द्वीप ... ... मध्य लोक के बिल्कुल बीचों-बीच थाली के आकार का 1,00,000 (एक लाख) योजन विस्तार वाला पहला द्वीप "जम्बू-द्वीप" है । आगे इसे चारों तरफ से घेरे हुए चूड़ी के आकार वाला पहला समुद्र लवण-समुद्र है, जो कि जम्बू-द्वीप से दूने विस्तार वाला है । - इसी प्रकार असंख्यात द्वीप और समुद्र मध्य-लोक में हैं, इन द्वीपों और समुद्रों का विस्तार आगे आगे दोगुना होता चला गया है ।
२ - धातकीखंड :- ----------------- - यह मध्य-लोक में दूसरा-द्वीप है, जिसका विस्तार "चार लाख योजन" है । - इसके नीचे (दक्षिण में) और ऊपर (उत्तर में) लवण-समुद्र और कालोद-समुद्र को स्पर्श करते हुए, 2 " इश्वाकार-पर्वत" हैं । जिससे धातकीखंड के 2 हिस्से हो जाते हैं । - अब जो पूर्वधातकीखंड और पश्चिमधातकीखंड हैं । उनकी रचना "जम्बू-द्वीप" जैसी ही समझनी चाहिए । जैसे जम्बू-द्वीप में भरत,ऐरावत आदि क्षेत्र हैं, हिमवान्, महाहिमवान् आदि कुलाचल पर्वत हैं, गंगा-सिंधु आदि नदियां है, धातकीखण्ड के दोनों भागों में वैसी ही रचना है । - पूर्वधातकीखंड के मध्य में या यूँ कहिये कि जम्बू-द्वीप के सुमेरु-पर्वत के सीधे-हाथ(पूर्व) में धातकीखण्ड में "विजय-मेरु" है, और ऐसे ही पश्चिमधातकीखंड में "अचल-मेरु" है । - दोनों ही धातकीखण्डों में जम्बू-द्वीप कि तरह भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक्, हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्र हैं । तो इस तरह से धातकीखण्ड में 2 भरत, 2 ऐरावत और बाकी सब 2-2 क्षेत्र हैं । - धातकीखण्ड को चारों तरफ से घेरे हुए आठ लाख योजन विस्तार वाला "कालोद-समुद्र" है ।
३ - पुष्करवर द्वीप :- ----------------- - कालोद-समुद्र को घेरे हुए सोलह लाख योजन विस्तार वाला मध्य-क्षेत्र का तीसरा "पुष्करवर द्वीप" है । - इसके बिलकुल बीचो-बीच चूड़ी के आकार वाला "मानुषोत्तर पर्वत" है ! - कालोद-समुद्र से मानुषोत्तर पर्वत तक के आधे क्षेत्र को "पुष्करार्द्धद्वीप" कहते हैं । - इसके अंदर की तरफ भी "धातकीखंड द्वीप" की तरह ही उत्तर और दक्षिण में दो " इश्वाकार-पर्वत" हैं । जिससे पुष्करार्द्धद्वीप के 2 हिस्से हो जाते हैं । अब जो पूर्वपुष्करार्द्धद्वीप और पश्चिमपुष्करार्द्धद्वीप हैं । उनकी रचना हू-ब-हू "धातकीखंड द्वीप" जैसी ही समझनी चाहिए । तो इस प्रकार पुष्करार्द्धद्वीप में भी धातकीखण्ड की तरह 2 भरत, 2 ऐरावत और बाकी सब 2-2 क्षेत्र हैं । - पूर्वपुष्करार्द्धद्वीप के मध्य में या यूँ कहिये कि जम्बू-द्वीप के "सुमेरु-पर्वत" और पूर्वधातकीखण्ड के "विजय-मेरु" के सीधे-हाथ(पूर्व) में "मंदर-मेरु" है, और ऐसे ही पश्चिमपुष्करार्द्धद्वीप में "विद्युन्माली-मेरु" हैं । इन्हे ही "पंच-मेरु" कहते हैं । - सुमेरुपर्वत 1,00,040 योजन है, बाकी के ये चारों मेरु 85,000 योजन ऊँचे हैं ।
- लोक (मध्य लोक) - अढ़ाई-द्वीप, पंच-मेरु ... , मध्य लोक में जम्बू-द्वीप, धातकीखंड-द्वीप और पुष्करवर-द्वीप कि रचना जानने के बाद अब उनसे सम्बंधित कुछ विषय, जो हम जिनवाणी-पूजन में अकसर पढ़ते-सुनते हैं, समझने में आसानी होगी ।
अढ़ाई-द्वीप :- --------------- - जम्बू-द्वीप, लवण-समुद्र, धातकीखंड-द्वीप, कालोद-समुद्र और पुष्करवर-द्वीप का मानुषोत्तर पर्वत तक का आधा भाग (पुष्करार्द्धद्वीप), "अढ़ाई-द्वीप" कहलाता है । - इसका विस्तार 45 लाख योजन का है । - मानुषोत्तर पर्वत तक ही मनुष्य जा सकते हैं, या कहिये कि अढ़ाई-द्वीप के आगे मनुष्य नहीं जा सकते । इसके आगे के असंख्यात द्वीपों में "जघन्य-भोग-भूमि" हैं, जिनमे असंख्यात त्रियंच-युगल रहते हैं । - इन अढ़ाई-द्वीपों से आगे कोई ऋद्धिधारी या विद्याधर मनुष्य भी नहीं जा सकता । ---------------
२ - धातकीखंड :- ----------------- - यह मध्य-लोक में दूसरा-द्वीप है, जिसका विस्तार "चार लाख योजन" है । - इसके नीचे (दक्षिण में) और ऊपर (उत्तर में) लवण-समुद्र और कालोद-समुद्र को स्पर्श करते हुए, 2 " इश्वाकार-पर्वत" हैं । जिससे धातकीखंड के 2 हिस्से हो जाते हैं । - अब जो पूर्वधातकीखंड और पश्चिमधातकीखंड हैं । उनकी रचना "जम्बू-द्वीप" जैसी ही समझनी चाहिए । जैसे जम्बू-द्वीप में भरत,ऐरावत आदि क्षेत्र हैं, हिमवान्, महाहिमवान् आदि कुलाचल पर्वत हैं, गंगा-सिंधु आदि नदियां है, धातकीखण्ड के दोनों भागों में वैसी ही रचना है । - पूर्वधातकीखंड के मध्य में या यूँ कहिये कि जम्बू-द्वीप के सुमेरु-पर्वत के सीधे-हाथ(पूर्व) में धातकीखण्ड में "विजय-मेरु" है, और ऐसे ही पश्चिमधातकीखंड में "अचल-मेरु" है । - दोनों ही धातकीखण्डों में जम्बू-द्वीप कि तरह भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक्, हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्र हैं । तो इस तरह से धातकीखण्ड में 2 भरत, 2 ऐरावत और बाकी सब 2-2 क्षेत्र हैं । - धातकीखण्ड को चारों तरफ से घेरे हुए आठ लाख योजन विस्तार वाला "कालोद-समुद्र" है ।
३ - पुष्करवर द्वीप :- ----------------- - कालोद-समुद्र को घेरे हुए सोलह लाख योजन विस्तार वाला मध्य-क्षेत्र का तीसरा "पुष्करवर द्वीप" है । - इसके बिलकुल बीचो-बीच चूड़ी के आकार वाला "मानुषोत्तर पर्वत" है ! - कालोद-समुद्र से मानुषोत्तर पर्वत तक के आधे क्षेत्र को "पुष्करार्द्धद्वीप" कहते हैं । - इसके अंदर की तरफ भी "धातकीखंड द्वीप" की तरह ही उत्तर और दक्षिण में दो " इश्वाकार-पर्वत" हैं । जिससे पुष्करार्द्धद्वीप के 2 हिस्से हो जाते हैं । अब जो पूर्वपुष्करार्द्धद्वीप और पश्चिमपुष्करार्द्धद्वीप हैं । उनकी रचना हू-ब-हू "धातकीखंड द्वीप" जैसी ही समझनी चाहिए । तो इस प्रकार पुष्करार्द्धद्वीप में भी धातकीखण्ड की तरह 2 भरत, 2 ऐरावत और बाकी सब 2-2 क्षेत्र हैं । - पूर्वपुष्करार्द्धद्वीप के मध्य में या यूँ कहिये कि जम्बू-द्वीप के "सुमेरु-पर्वत" और पूर्वधातकीखण्ड के "विजय-मेरु" के सीधे-हाथ(पूर्व) में "मंदर-मेरु" है, और ऐसे ही पश्चिमपुष्करार्द्धद्वीप में "विद्युन्माली-मेरु" हैं । इन्हे ही "पंच-मेरु" कहते हैं । - सुमेरुपर्वत 1,00,040 योजन है, बाकी के ये चारों मेरु 85,000 योजन ऊँचे हैं ।
- लोक (मध्य लोक) - अढ़ाई-द्वीप, पंच-मेरु ... , मध्य लोक में जम्बू-द्वीप, धातकीखंड-द्वीप और पुष्करवर-द्वीप कि रचना जानने के बाद अब उनसे सम्बंधित कुछ विषय, जो हम जिनवाणी-पूजन में अकसर पढ़ते-सुनते हैं, समझने में आसानी होगी ।
अढ़ाई-द्वीप :- --------------- - जम्बू-द्वीप, लवण-समुद्र, धातकीखंड-द्वीप, कालोद-समुद्र और पुष्करवर-द्वीप का मानुषोत्तर पर्वत तक का आधा भाग (पुष्करार्द्धद्वीप), "अढ़ाई-द्वीप" कहलाता है । - इसका विस्तार 45 लाख योजन का है । - मानुषोत्तर पर्वत तक ही मनुष्य जा सकते हैं, या कहिये कि अढ़ाई-द्वीप के आगे मनुष्य नहीं जा सकते । इसके आगे के असंख्यात द्वीपों में "जघन्य-भोग-भूमि" हैं, जिनमे असंख्यात त्रियंच-युगल रहते हैं । - इन अढ़ाई-द्वीपों से आगे कोई ऋद्धिधारी या विद्याधर मनुष्य भी नहीं जा सकता । ---------------