श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली पंचम अध्याय भाग २
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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली पंचम अध्याय भाग २



४५१-ॐ ह्रीं अर्हं पराध्यार्य  नमः   -उत्कृष्टतम होने से,

४५२-ॐ ह्रीं अर्हं परमेश्वराय  नमः  -सबसे अधिक समर्थ होने से,

४५३-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तर्धये नमः  -की ऋद्धियाँ अनन्त  होने से,

४५४-ॐ ह्रीं अर्हं अभयर्धर्ये  नमः  - की  ऋद्धियाँ  अभेय  होने से ,

४५५-ॐ ह्रीं अर्हं अचिंत्यर्धर्ये  नमः  -ऋद्धियाँ अचिन्त्य होने से ,

४५६-ॐ ह्रीं अर्हं समग्रधीये   नमः  -की बुद्धि पूर्णावस्था प्राप्त  होने से,

४५७-ॐ ह्रीं अर्हं प्राग्याय   नमः   -प्रमुखतम होने से,

४५८-ॐ ह्रीं अर्हं प्राग्रहराय  नमः  -मांगलिक कार्यों में स्मरणीय  होने से,

४५९-ॐ ह्रीं अर्हं अभ्यग्राय  नमः  -लोक के अग्रभाग को प्राप्त करने के सम्मुख  होने से

४६०-ॐ ह्रीं अर्हं प्रत्यग्राय  नमः   -सबसे विलक्षण /नवीन  होने से

४६१-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रयाय  नमः   -सबके स्वामी 'होने से,

४६२-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रिमाय  नमः   -सबसे  अग्रेसर   होने से ,

४६३-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रजाय   नमः   -ज्येष्ठतम होने से,

४६४-ॐ ह्रीं अर्हं महातपसे  नमः   -अत्यंत  कठिन  तपश्चरण करने से ',

४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महातेजसे  नमः   -का महान तेज  व्याप्त होने से,

४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महोदर्काय  नमः   --के तपश्चरण का फल बहुत बड़ा होने से,,

४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महोदयाय  नमः   -का दया होने से 

४६८-ॐ ह्रीं अर्हं महायशसे  नमः    -का यश होने से 

४६९-ॐ ह्रीं अर्हं महाधाम्ने  नमः   -विशाल तेज -प्रताप /ज्ञान के धारक होने से,

४७०-ॐ ह्रीं अर्हं महासत्त्वाय   नमः -अपरम्पार  शक्तियुक्त होने से ,

४७१-ॐ ह्रीं अर्हं महाधृतये नमः   -महान धीरज होने से ,

४७२-ॐ ह्रीं अर्हं महाधैर्याय   नमः  - अत्यंत धैर्यवान ,कभी अधीर नही होते से  ',

४७३-ॐ ह्रीं अर्हं महावीर्याय  नमः   -अनंत वीर्य धारक होने  से ',

४७४-ॐ ह्रीं अर्हं महासम्पदे  नमः  -समवशरण रूप अद्वितीय विभूति के धारक होने से,

४७५-ॐ ह्रीं अर्हं महाबलाय  नमः   -अत्यंत बलवान होने से,

४७६-ॐ ह्रीं अर्हं महाशक्तये नमः   -महान शक्ति धारक होने से  ,

४७७-ॐ ह्रीं अर्हं महाज्योतिषे नमः   -अतिशयकान्ति/केवलज्ञान युक्त होने से',

४७८-ॐ ह्रीं अर्हं महाभूतये  नमः   - अपार  वैभव होने से,

४७९-ॐ ह्रीं अर्हं महाद्युतये नमः   -शरीर अत्यंत   द्युति वान   होने से,

४८०-ॐ ह्रीं अर्हं महामतये  नमः   अतिशय बुद्धिमान होने से,

४८१-ॐ ह्रीं अर्हं महानीतये नमः   - अतिशय न्यायवान होने से ,

४८२-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्षांतये नमः   -अतिशय क्षमावान होने से 

४८-ॐ ह्रीं अर्हं महादयाय   नमः   -अतिशय दयालु होने से,

४८४ -ॐ ह्रीं अर्हं महाप्राज्ञाय नमः   -अत्यंत विवेकवान होने से,

४८५ -ॐ ह्रीं अर्हं महाभागाय  नमः   -अत्यंत भाग्यशाली होने से,

४८६-ॐ ह्रीं अर्हं महानन्दाय   नमः   -अत्यंत आनंद होने से,

४८७-ॐ ह्रीं अर्हं महाकवये  नमः    -श्रेष्टतम कवि होने से 'महाकवि',

४८८-ॐ ह्रीं अर्हं महामहसे  नमः   -अत्यंत तेजस्वी होने से,

४८९-ॐ ह्रीं अर्हं महाकीर्तिये नमः   -विशाल कीर्ति धारक होने से,

४९०-ॐ ह्रीं अर्हं महाकान्तये  नमः   -अद्भुत कांति के धारक   होने से',

४९१-ॐ ह्रीं अर्हं महावपुषे  नमः   -उतुंग शरीर होने से

४९२-ॐ ह्रीं अर्हं महादानाय  नमः   -बड़े दानी होने से ,

४९३-ॐ ह्रीं अर्हं महाज्ञानाय  नमः   -केवलज्ञान होने से ',

४९४-ॐ ह्रीं अर्हं महयोगाय  नमः   -बड़े ध्यानी होने से,

४९५-ॐ ह्रीं अर्हं महागुणाय  नमः   -महानतम गुणों धारक  होने से ',

४९६-ॐ ह्रीं अर्हं महामहपतये नमः   -अत्यंत विशाल उत्सवों  स्वामी होने से,

४९७--ॐ ह्रीं अर्हं प्राप्तमहापन्च कल्याणकाय  नमः   - गर्भादिक पांच कल्याणकों के होने से

४९८-ॐ ह्रीं अर्हं महाप्रभवे   नमः   -सबसे बड़े स्वामी होने से,

४९९-ॐ ह्रीं अर्हं महाप्रातिहार्याधीशाय   नमः    -अशोकवृक्षादि अष्ट महाप्रातिहार्य के  स्वामी होने से

५००- ॐ ह्रीं अर्हं महेश्वराय  नमः   -सब देवों के अधीश्वर होने से
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