06-08-2018, 10:04 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली पंचम अध्याय भाग २
४५१-ॐ ह्रीं अर्हं पराध्यार्य नमः -उत्कृष्टतम होने से,
४५२-ॐ ह्रीं अर्हं परमेश्वराय नमः -सबसे अधिक समर्थ होने से,
४५३-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तर्धये नमः -की ऋद्धियाँ अनन्त होने से,
४५४-ॐ ह्रीं अर्हं अभयर्धर्ये नमः - की ऋद्धियाँ अभेय होने से ,
४५५-ॐ ह्रीं अर्हं अचिंत्यर्धर्ये नमः -ऋद्धियाँ अचिन्त्य होने से ,
४५६-ॐ ह्रीं अर्हं समग्रधीये नमः -की बुद्धि पूर्णावस्था प्राप्त होने से,
४५७-ॐ ह्रीं अर्हं प्राग्याय नमः -प्रमुखतम होने से,
४५८-ॐ ह्रीं अर्हं प्राग्रहराय नमः -मांगलिक कार्यों में स्मरणीय होने से,
४५९-ॐ ह्रीं अर्हं अभ्यग्राय नमः -लोक के अग्रभाग को प्राप्त करने के सम्मुख होने से
४६०-ॐ ह्रीं अर्हं प्रत्यग्राय नमः -सबसे विलक्षण /नवीन होने से
४६१-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रयाय नमः -सबके स्वामी 'होने से,
४६२-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रिमाय नमः -सबसे अग्रेसर होने से ,
४६३-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रजाय नमः -ज्येष्ठतम होने से,
४६४-ॐ ह्रीं अर्हं महातपसे नमः -अत्यंत कठिन तपश्चरण करने से ',
४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महातेजसे नमः -का महान तेज व्याप्त होने से,
४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महोदर्काय नमः --के तपश्चरण का फल बहुत बड़ा होने से,,
४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महोदयाय नमः -का दया होने से
४६८-ॐ ह्रीं अर्हं महायशसे नमः -का यश होने से
४६९-ॐ ह्रीं अर्हं महाधाम्ने नमः -विशाल तेज -प्रताप /ज्ञान के धारक होने से,
४७०-ॐ ह्रीं अर्हं महासत्त्वाय नमः -अपरम्पार शक्तियुक्त होने से ,
४७१-ॐ ह्रीं अर्हं महाधृतये नमः -महान धीरज होने से ,
४७२-ॐ ह्रीं अर्हं महाधैर्याय नमः - अत्यंत धैर्यवान ,कभी अधीर नही होते से ',
४७३-ॐ ह्रीं अर्हं महावीर्याय नमः -अनंत वीर्य धारक होने से ',
४७४-ॐ ह्रीं अर्हं महासम्पदे नमः -समवशरण रूप अद्वितीय विभूति के धारक होने से,
४७५-ॐ ह्रीं अर्हं महाबलाय नमः -अत्यंत बलवान होने से,
४७६-ॐ ह्रीं अर्हं महाशक्तये नमः -महान शक्ति धारक होने से ,
४७७-ॐ ह्रीं अर्हं महाज्योतिषे नमः -अतिशयकान्ति/केवलज्ञान युक्त होने से',
४७८-ॐ ह्रीं अर्हं महाभूतये नमः - अपार वैभव होने से,
४७९-ॐ ह्रीं अर्हं महाद्युतये नमः -शरीर अत्यंत द्युति वान होने से,
४८०-ॐ ह्रीं अर्हं महामतये नमः अतिशय बुद्धिमान होने से,
४८१-ॐ ह्रीं अर्हं महानीतये नमः - अतिशय न्यायवान होने से ,
४८२-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्षांतये नमः -अतिशय क्षमावान होने से
४८३-ॐ ह्रीं अर्हं महादयाय नमः -अतिशय दयालु होने से,
४८४ -ॐ ह्रीं अर्हं महाप्राज्ञाय नमः -अत्यंत विवेकवान होने से,
४८५ -ॐ ह्रीं अर्हं महाभागाय नमः -अत्यंत भाग्यशाली होने से,
४८६-ॐ ह्रीं अर्हं महानन्दाय नमः -अत्यंत आनंद होने से,
४८७-ॐ ह्रीं अर्हं महाकवये नमः -श्रेष्टतम कवि होने से 'महाकवि',
४८८-ॐ ह्रीं अर्हं महामहसे नमः -अत्यंत तेजस्वी होने से,
४८९-ॐ ह्रीं अर्हं महाकीर्तिये नमः -विशाल कीर्ति धारक होने से,
४९०-ॐ ह्रीं अर्हं महाकान्तये नमः -अद्भुत कांति के धारक होने से',
४९१-ॐ ह्रीं अर्हं महावपुषे नमः -उतुंग शरीर होने से,
४९२-ॐ ह्रीं अर्हं महादानाय नमः -बड़े दानी होने से ,
४९३-ॐ ह्रीं अर्हं महाज्ञानाय नमः -केवलज्ञान होने से ',
४९४-ॐ ह्रीं अर्हं महयोगाय नमः -बड़े ध्यानी होने से,
४९५-ॐ ह्रीं अर्हं महागुणाय नमः -महानतम गुणों धारक होने से ',
४९६-ॐ ह्रीं अर्हं महामहपतये नमः -अत्यंत विशाल उत्सवों स्वामी होने से,
४९७--ॐ ह्रीं अर्हं प्राप्तमहापन्च कल्याणकाय नमः - गर्भादिक पांच कल्याणकों के होने से,
४९८-ॐ ह्रीं अर्हं महाप्रभवे नमः -सबसे बड़े स्वामी होने से,
४९९-ॐ ह्रीं अर्हं महाप्रातिहार्याधीशाय नमः -अशोकवृक्षादि अष्ट महाप्रातिहार्य के स्वामी होने से
५००- ॐ ह्रीं अर्हं महेश्वराय नमः -सब देवों के अधीश्वर होने से
४५१-ॐ ह्रीं अर्हं पराध्यार्य नमः -उत्कृष्टतम होने से,
४५२-ॐ ह्रीं अर्हं परमेश्वराय नमः -सबसे अधिक समर्थ होने से,
४५३-ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तर्धये नमः -की ऋद्धियाँ अनन्त होने से,
४५४-ॐ ह्रीं अर्हं अभयर्धर्ये नमः - की ऋद्धियाँ अभेय होने से ,
४५५-ॐ ह्रीं अर्हं अचिंत्यर्धर्ये नमः -ऋद्धियाँ अचिन्त्य होने से ,
४५६-ॐ ह्रीं अर्हं समग्रधीये नमः -की बुद्धि पूर्णावस्था प्राप्त होने से,
४५७-ॐ ह्रीं अर्हं प्राग्याय नमः -प्रमुखतम होने से,
४५८-ॐ ह्रीं अर्हं प्राग्रहराय नमः -मांगलिक कार्यों में स्मरणीय होने से,
४५९-ॐ ह्रीं अर्हं अभ्यग्राय नमः -लोक के अग्रभाग को प्राप्त करने के सम्मुख होने से
४६०-ॐ ह्रीं अर्हं प्रत्यग्राय नमः -सबसे विलक्षण /नवीन होने से
४६१-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रयाय नमः -सबके स्वामी 'होने से,
४६२-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रिमाय नमः -सबसे अग्रेसर होने से ,
४६३-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रजाय नमः -ज्येष्ठतम होने से,
४६४-ॐ ह्रीं अर्हं महातपसे नमः -अत्यंत कठिन तपश्चरण करने से ',
४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महातेजसे नमः -का महान तेज व्याप्त होने से,
४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महोदर्काय नमः --के तपश्चरण का फल बहुत बड़ा होने से,,
४६५-ॐ ह्रीं अर्हं महोदयाय नमः -का दया होने से
४६८-ॐ ह्रीं अर्हं महायशसे नमः -का यश होने से
४६९-ॐ ह्रीं अर्हं महाधाम्ने नमः -विशाल तेज -प्रताप /ज्ञान के धारक होने से,
४७०-ॐ ह्रीं अर्हं महासत्त्वाय नमः -अपरम्पार शक्तियुक्त होने से ,
४७१-ॐ ह्रीं अर्हं महाधृतये नमः -महान धीरज होने से ,
४७२-ॐ ह्रीं अर्हं महाधैर्याय नमः - अत्यंत धैर्यवान ,कभी अधीर नही होते से ',
४७३-ॐ ह्रीं अर्हं महावीर्याय नमः -अनंत वीर्य धारक होने से ',
४७४-ॐ ह्रीं अर्हं महासम्पदे नमः -समवशरण रूप अद्वितीय विभूति के धारक होने से,
४७५-ॐ ह्रीं अर्हं महाबलाय नमः -अत्यंत बलवान होने से,
४७६-ॐ ह्रीं अर्हं महाशक्तये नमः -महान शक्ति धारक होने से ,
४७७-ॐ ह्रीं अर्हं महाज्योतिषे नमः -अतिशयकान्ति/केवलज्ञान युक्त होने से',
४७८-ॐ ह्रीं अर्हं महाभूतये नमः - अपार वैभव होने से,
४७९-ॐ ह्रीं अर्हं महाद्युतये नमः -शरीर अत्यंत द्युति वान होने से,
४८०-ॐ ह्रीं अर्हं महामतये नमः अतिशय बुद्धिमान होने से,
४८१-ॐ ह्रीं अर्हं महानीतये नमः - अतिशय न्यायवान होने से ,
४८२-ॐ ह्रीं अर्हं महाक्षांतये नमः -अतिशय क्षमावान होने से
४८३-ॐ ह्रीं अर्हं महादयाय नमः -अतिशय दयालु होने से,
४८४ -ॐ ह्रीं अर्हं महाप्राज्ञाय नमः -अत्यंत विवेकवान होने से,
४८५ -ॐ ह्रीं अर्हं महाभागाय नमः -अत्यंत भाग्यशाली होने से,
४८६-ॐ ह्रीं अर्हं महानन्दाय नमः -अत्यंत आनंद होने से,
४८७-ॐ ह्रीं अर्हं महाकवये नमः -श्रेष्टतम कवि होने से 'महाकवि',
४८८-ॐ ह्रीं अर्हं महामहसे नमः -अत्यंत तेजस्वी होने से,
४८९-ॐ ह्रीं अर्हं महाकीर्तिये नमः -विशाल कीर्ति धारक होने से,
४९०-ॐ ह्रीं अर्हं महाकान्तये नमः -अद्भुत कांति के धारक होने से',
४९१-ॐ ह्रीं अर्हं महावपुषे नमः -उतुंग शरीर होने से,
४९२-ॐ ह्रीं अर्हं महादानाय नमः -बड़े दानी होने से ,
४९३-ॐ ह्रीं अर्हं महाज्ञानाय नमः -केवलज्ञान होने से ',
४९४-ॐ ह्रीं अर्हं महयोगाय नमः -बड़े ध्यानी होने से,
४९५-ॐ ह्रीं अर्हं महागुणाय नमः -महानतम गुणों धारक होने से ',
४९६-ॐ ह्रीं अर्हं महामहपतये नमः -अत्यंत विशाल उत्सवों स्वामी होने से,
४९७--ॐ ह्रीं अर्हं प्राप्तमहापन्च कल्याणकाय नमः - गर्भादिक पांच कल्याणकों के होने से,
४९८-ॐ ह्रीं अर्हं महाप्रभवे नमः -सबसे बड़े स्वामी होने से,
४९९-ॐ ह्रीं अर्हं महाप्रातिहार्याधीशाय नमः -अशोकवृक्षादि अष्ट महाप्रातिहार्य के स्वामी होने से
५००- ॐ ह्रीं अर्हं महेश्वराय नमः -सब देवों के अधीश्वर होने से