महावीराष्टक स्तोत्र:
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महावीराष्टक स्तोत्र:

यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचित:,समम भांति धौव्य व्यय जानी लसंतोंन्तरहिता:/जगत्साकाशी मार्ग प्रकटन परो भानुरिव यों,महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//1//

भावार्थ:जिनके चैतन्यरूप ज्ञान मे धौव्य व्यय उत्पाद संयुक्त,अनंत् चेतन और अचेतन पदार्थ दर्पण के समान युगपत भासित होते हे.जगत् को साक्षात्कार करने वाले रवि के समान जो मोक्षमार्ग के प्रकाशक हे वे महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के मार्ग प्रदर्शक होवे.

अताम्रम यच्चक्षु: कमलयुगलम स्पंदरहितम,जनन कोपापायम प्रकटयति वाभ्यंतरमपि/
स्फुटम मुर्तियस्य प्रशमितमयी वाति विमला,महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//2//

भावार्थ:लालिमारहित झपकन रहित जिनके नयनकमल युगल मनुष्यों के बाह्य आभ्यंतर क्रोध के अभाव को भी प्रकट करते.जिनकी मुद्रा या बिंब स्पष्ट रूप से परम् शान्ति की धारी हे.और अत्यन्त विमल या मल रहित निर्मल हे.वे महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के मार्ग प्रदर्शक होवे.

नमन्नाकेंद्राली मुकुट मणि भा जाल जटिलम,लसत्पादाम्भोज द्वयमिह यदीयम तनु भृताम/भवज्ज्वालाशांत्यै प्रभवति जलम वा स्मृतमपि,महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//3//

भावार्थ:तव सुशोभित चरण कमल युगल से उत्सर्जित, नमित देवंद्र समूहों के शिरोमुकुट की मणियों से परावर्तित करती प्रभापुंज से व्याप्त इह लोक शरीरधारी देहिनो की संसार ज्वाला की शान्ति के लिए समर्थ हे हे अथवा जिनका पुण्य स्मरण भी शीतल उदक सम भवज्वाला की शान्ति के लिए समर्थ हे वे महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के (मोक्ष)पथ प्रदर्शक होवे.

यदर्चा भावेन प्रमुदितमना दर्दुर इह,क्षणादासित स्वर्गीगुण गण समृध्द:सुखनिधि/
लभंते सदभक्ता शिव सुख समाजम किमु तदा,महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//4//

भावार्थ:जिनकी पुजा भाव से हर्षित चित्त संपन्न मेंढक इस लोक से क्षणांत में गुण गण संपन्न सुख निधान स्वर्ग का देव हो गया(इसमे कथचित भी अतिरेक नहीं क्योकि पुजापथ पर कमल दल लिए मेंढक क्षेणिक के हाथी के पैरों तले दब कर प्राणांत हो क्षण में मेंढक चिन्हित मुकुट धारी देव हो गया),फिर सद् भक्त जन मोक्ष सुख समूह का लाभ क्यो नहीं पावेंगे.इसमे क्या आश्चर्य?वे महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के मोक्ष मार्ग के प्रदर्शक होवे.

कनत्स्वर्णाभासोप्यपगत तनुर्ज्ञान निवहो,विचित्रात्माप्येको नृपति वर् सिध्दार्थ तनय:/
अजन्मापि श्रीमान विगतभवरागोदभुत गति:महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//5//

भावार्थ:तरल आप्त स्वर्णसम प्रभावान काया विहीन विचित्र आत्मा होकर भी, अजन्मा होकर भी श्रेष्ठ शासक सिध्दार्थ के नंदन, आप हे.सांसारिक रागों से हीन ऎसे अदभुत शक्तिधारी ज्ञानपुंज महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के मोक्ष मार्ग के प्रदर्शक होवे.

यदीया वाग्गंगा विविधनय् कल्लोल विमला,वृहत्ज्ञानाम्भोर्जगति जनताम या स्नपयति/इदानीमप्येषा बुध जन मराले: परिचिता,महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//6//

भावार्थ:जिनकी बहुनय रूप तरंगों से प्रकाशित उज्ज्वल वाणी रुपी गंगा विपुल ज्ञान रूपजाल से इह लोक के जीवों का अभिषेक करके उनके संतापो को शांत करती हे.आज भी ज्ञानमानसरोवर से विद्वजन रुपी हंस परिचित हो रहे हे,वे महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के मोक्ष मार्ग के प्रदर्शक होवे.

अनिर्वारोद्रेकस्त्रिभुवन जयी काम सुभट:,कुमारावस्थायामपि निज़ बलाद येन विजित:/स्फुरन्नित्यानंद प्रशम पद राज्याय स जिन:,महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//7//

भावार्थ:कुमार अवस्था में भी अंतर प्रज्वलित नित नित्य(स्थायि) अविरल प्रशांत शिव(कल्याणकारी)पद राज्य पाने के लिए अपने आत्मबल से दुर्निवार रोद्रेक त्रिभुवन विजेता कामजयी हे,वे महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के मोक्ष मार्ग के प्रदर्शक होवे.

महा मोहांतक प्रशमन पराकस्मिक भिषग,निरापेक्षो बन्धुविर्दित महिमा मंगल कर:/
शरण्य:साधूनाम भव भयभृतामुत्तम गुणों:, महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु में//8//

भावार्थ:मोह के महा आतंक को सर्वथा शांत करने को तत्पर आकस्मिक वैद्य बिना अपेक्षा(फीस या यश) के सर्वंविदित परम्बन्धु महिमावान मंगल कारक हे.संसार भय से भयभीत साधुजनो को शरण देने वाले परमोत्कृष्ट गुणवान महावीर स्वामी मेरे नेत्रों के मोक्ष मार्ग के प्रदर्शक हो
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महावीराष्टक स्तोत्र: - by scjain - 11-20-2014, 06:31 AM

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