"पूजा पीठिका" एवं "चत्तारि खंडक"
#1

ॐ जय जय जय !नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु 

अर्थ -ॐ =अ +अ +आ +उ +म 
ॐ = अरिहंत (अ),सिद्ध भगवान् के अशरीरी (अ),आचार्य (आ), उपाध्याय (उ),साधू (मुनि) (म) अर्थात पञ्च परमेष्ठी की जय हो जय हो जयहो,नमस्कार हो ,नमस्कार हो ,नमस्कार हो ! 
जय और नमस्कार तीन बार,.क्रमश:मन,वचन और काय से करते है ! 
णमो अरिहंताणं,णमो सिद्धाणं ,णमो आयरियाणं,णमो उवज्झायाणं,णमो लोए सव्व साहूणं !
अर्थ-णमो अरिहंताणं-अरिहंतो को नमस्कार हो !णमो सिद्धाणं-सिद्धों को नमस्कार हो !णमो आयरियाणं-आचार्यों को नमस्कार हो ! णमो उवज्झायाणं=उपाध्यायों को नमस्कार हो !णमो लोए सव्व साहूणं-लोक के सब (निर्ग्रन्थ जैन दिगंबर) साधुओ को नमस्कार हो! 
'णमोकार मंत्र' का रचना काल- लगभग १८००-१९०० वर्ष पूर्व आचार्य पुष्पदंत जी और आचार्य भूतबलि जी ने महानग्रन्थ 'षटखण्डागम जी',की रचना करते समय,आचार्य पुष्पदंत जी ने उसके प्रथम मंगलाचारण के रूप मे इस आर्यखंड गाथा को रचा है!इससे पूर्व के किसी भी ग्रन्थ(आचार्य गुणधर द्वारा रचित,कषाय पाहुड) में इस मंत्र का उल्लेख नहीं है!वहाँ पर 'णमो अरिहंताणं' पद लिखा है (न कि अरहंताणं /अरुहंताण,यद्यपि भावार्थ दोनों का एक ही है तथापि यही मूलपाठ है अत: यही उच्चारण करना अपेक्षित है!यह महा मंत्र सब दुखों को हरने वाला है!इससे पूर्व पञ्च परमेष्ठी की वंदना होती होगी किन्तु इस णमोकार मंत्र की गाथा के रूप में नहीं ! 
ॐ ह्रीं अनादिमूलमंत्रेभ्यो नमSadपुष्पांजलि क्षिपेत् )
अर्थ-इस अनादि मूल मंत्र को हम नमस्कार करते है!अंजलि में पुष्प (पीले चावल) लेकर उनका क्षेपण करते है अर्थात विश्व शांति की मनोकामना करता है 
चत्तारि दण्डक 
"चत्तारि मंगलं,अरिहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं !"
शब्दार्थ-चत्तारि=४, मंगलं-मंगलकारी है,,अरिहंता -अरिहंत,मंगलं-मंगलकारी है, सिद्धा-सिद्ध, मंगलं-मंगलकारी है, साहू -निर्गर्न्थ दिगंबर जैन साधु,मंगलं-मंगलकारी है, केवलि-केवलि द्वारा,पण्णत्तो-प्रणीत /बताया. धम्मो-धर्म, मंगलं -मंगल है 
अर्थ-चार मंगलकारी है-अरिहंत भगवान् मंगलकारी है,सिद्ध भगवान् मंगलकारी है,(निर्ग्रन्थ जैन दिगंबर) साधू परमेष्ठी मंगलकारी है और केवलि भगवान् द्वारा बताया धर्म मंगलकारी है !
मंगलकारी - सुख देने वाला है,आत्मा से लगे कर्म बंधों को नष्ट करने वाले (ये ही चार है ) !!
"चत्तारि लोगुत्तमा,अरिहंता लोगुत्तमा,सिद्धा लोगुत्तमा,साहू लोगुत्तमा,केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो!" 
शब्दार्थ-लोगुत्तमा=लोक में उत्तम /सर्वश्रेठ 
अर्थ-लोक में चार उत्तम/सर्वश्रेष्ठ है-अरिहंत भगवान् लोक में उत्तम है,सिद्ध भगवान् लोक में उत्तम है,(निर्गरंथ दिगंबर जैन) साधु लोक में उत्तम है,केवलि भगवान् (की दिव्य ध्वनि द्वारा) बताया गया धर्म लोक में उत्तम है !
"चत्तारि सरणं पव्वज्जामि,अरिहन्ते सरणं पव्वज्जामि,सिद्धे सरणं पव्वज्जामि,साहू सरणं पव्वज्जामि !केवलि पण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि "
शब्दार्थ-चत्तारि-चार की,सरणं-शरण,पव्वज्जामि- को होता है प्राप्त 
अर्थ-चारो की शरण को प्राप्त होता हूँ !अरिहंत भगवान् की शरण को प्राप्त होता हूँ, सिद्ध भगवान् की शरण को प्राप्त होता हूँ,(निर्ग्रन्थ दिगंबर जैन)साधू की शरण को प्राप्त होता है,केवलि भगवान् द्वारा कहे गये धर्म को प्राप्त होता हूँ ! 
ॐ नमोऽर्हंते स्वहा !(पुष्पांजलि क्षिपेत्)
शब्दार्थ :-ॐ -पंचपरमेष्ठी,नमो =नमस्कार कर ,अर्हंते-अरिहंत भगवान् को. स्वहा-समर्पित करता हूँ !(पुष्पांजलि क्षिपेत्)-विश्व शान्ति की भावना से पुष्प अर्पित करता हूँ 
अर्थ- मै पञ्चपेर्मेष्ठिओं को नमस्कार कर,अरिहंत भगवान् को पुष्प समर्पित करता हूँ !(विश्व शांति की भावना से पुष्प अर्पित करते है!)
अपवित्र: पवित्रो वा सुस्थितो दु:स्थितोऽपि वा ! ध्यायेत्पंच-नमस्कारं सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥१॥
शब्दार्थ-अपवित्र:-अपवित्र,पवित्रो-पवित्र,वा सुस्थितो-अच्छी स्थिति में हो,दु:स्थितोऽपि-बुरी स्थिति में हो,वा !
ध्यायेत्पंच-नमस्कारं-पञ्च नमस्कार मंत्र का ध्यान करने से,सर्व-समस्त,पापैः- पापों से,प्रमुच्यते-छूट जाता है !
अर्थ-पवित्र /अपवित्र,अच्छी/ बुरी किसी भी अवस्था में,पञ्च नमस्कार मंत्र का ध्यान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते है!
“अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा!यः स्मरेत् परमात्मानं स बाह्याभ्यंतरे शुचि: “॥२॥
शब्दार्थ-अपवित्रः-अपवित्र हो,पवित्रो-पवित्र, वा-हो,सर्वावस्थां-सब अवस्थाओं को प्राप्त हुआ हो, गतोऽपि-गतिमान भी ,वा-हो ,यः -जो,स्मरेत्-स्मरण करता है,परमात्मानं-परमात्मा/ णमोकार मंत्र /पञ्च परमेष्ठियों का,स-वह, बाह्या-बाह्य,अभ्यंतरे-आंतरिक,शुचि:-पवित्र हो जाता है ! 
अर्थ-जो अपवित्र अथवा पवित्र हो,अथवा गतिमान भी हो ,सभी अवस्था को प्राप्त हुआ /णमोकार मंत्र /पञ्च परमेष्ठियों का स्मरण करता है वह बाह्य और अंतरंग से पवित्र हो जाता है !
विशेष-१ -चत्तारि दंडक कितना प्राचीन है ?
इसकी प्राचीनता के विषय में कोई उल्लेख शास्त्रों में यही मिलता है!यह गणधर देव के समय से ही प्रचलन में है ऐसा प्रतीत होता है कि इसके रचियेता,प्रणेता गणधर देव ही हो !
३-णमोकार मंत्र बोलने का समय -कही भी जा रहे हो,घर में प्रवेश कर रहे हो,सोने से पूर्व,प्रात:उठने के बाद कोई यात्रा प्रारम्भ करते समय, अस्वस्थ हो तो लेटे लेटे,सभी अवस्थाओं में णमो कार मंत्र बोल/चिंतन कर सकते है!मरीज को हॉस्पिटल ले जाते समय इस मंत्र का चिंतवन करे !
पञ्च परमेष्ठी भगवान कि जय!णमो कार मंत्र की महिमा -
अपराजित-मंत्रोऽयं -सर्व-विघ्न-विनाशनः।मंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं मंगलंमतः॥३!!
शब्दार्थ-अपराजित-किसी से भी नहीं हारने वाला,-मंत्रोऽयं(मंत्र+अयं)-यह मंत्र है,सर्व-सभी,विघ्न-विघ्नों को विनाशनः-विनाश करने वाला है ,मंगलेषु-मंगलों में,च-और,सर्वेषु-समस्त,प्रथमं-पहला,मंगलं-मंगल ,मतः-माना गया है !
अर्थ-यह(णमोकार मंत्र) किसी से हारने वाला नहीं है,समस्त विघ्नों का नाशक है और समस्त मंगलों में प्रथम मंगल माना गया है अर्थात समस्त मंगलकारी मंत्रो में प्रथम णमोकार मंत्र है!
एसो पञ्च णमो यारो सव्व-पावप्पणा-सणो!मंगलाणं च सव्वेसिं पढ़मं होइ मंगलं !!४!!
शब्दार्थ-एसो-ऐसा,पंच-पांच,णमोयारो-नमस्कार मंत्र,सव्व-समस्त,पावप्प-पापों को,णासणो-नाश करने वाला है 
मंगलाणं-मंगलों में,च-और,सव्वेसिं-समस्त,पढ़मं-पहला,होइ-होता है,मंगलं-मंगल 
अर्थ-यह पञ्च नमस्कार मंत्र समस्त पापों का नाश करने वाला है और समस्त मंगलों में पहिला मंगल होता है
अर्हं-मित्य-क्षरं ब्रह्म:-वाचकं परमेष्ठिनः।सिद्ध-चक्रस्य सद्बीजं सर्वतःप्रणमाम्यहम् ॥५!!
शब्दार्थ-अर्हं-मित्य-क्षरं(अर्हं+इति+अक्षरं)-अर्हं;यह बीजाक्षर,ब्रह्म:-आत्मा को ,वाचकं- बताने वाला है, परमेष्ठिनः-परमेष्ठी की,सिद्ध-सिद्धपरमेष्ठी ,चक्रस्य-समूह का,सद्बीजं-सुन्दर/श्रेष्ठ बीजाक्षर है,सर्वतः-सब प्रकार से ,प्रणमाम्यहम् (प्रणमामि +अहं )-मै प्रणाम करता हूँ !
अर्थ-यह 'अर्हं'बीजाक्षर,अर्हंत परमेष्ठी की आत्मा को बताने वाला है अर्थात अर्हन्त परमेष्ठी का वाचक है!
सिद्धपरमेष्ठी के समूह का श्रेष्ठ मूल बीजाक्षर है (सिद्ध यंत्र के मध्य में लिखा जाता है)मै सब प्रकार(मन वचन काय,कृत,कारित,अनुमोदना) से इस 'अर्हं' बीजाक्षर को प्रणाम करता हूँ !
सिद्ध भगवान् कि वंदना-
कर्माष्टक विर्निमुक्तं,मोक्ष लक्ष्मी-निकेतनं।सम्यक्तवादि-गुणोपेतं-सिद्धचक्रं नमाम्यहम्॥६!!
शब्दार्थ-कर्माष्टक-अष्ट कर्मो,विर्निमुक्तं-से मुक्त/रहित है,मोक्ष-मोक्ष रूपी ,लक्ष्मी-लक्ष्मी के,निकेतनं-निवासी है,सम्यक्तवादि-सम्यक्त्व आदि आठ,गुणोपेतं(गुण+उपेतं) गुणों सहित है ,सिद्धचक्रं -सिद्धों के समूह को ,नमाम्यहम्-मैं नमस्कार करता हूँ !
अर्थ-जो अष्ट कर्मों से रहित हो गए है,और मोक्ष लक्ष्मी जिनका निवास है (मोक्ष लक्ष्मी सहित हो गए है), सिद्धालय में विराजमान है,सम्यक्त्वादि आठ गुणों सहित है,ऐसे सिद्धों के समूह को मैं नमस्कार करता हूँ !
विशेष -१-सिद्ध परमेष्ठी में अष्ट कर्मों के नष्ट होने से उत्पन्न अष्ट गुण -
मोहनीय कर्म के चार घातिया कर्म नष्ट होने से;क्षायिक सम्यक्त्व/अनन्त सुख ,दर्शनावरणीय कर्म से अनंतदर्शन,ज्ञानावरणीय कर्म से अनंतज्ञान,और अंतरायकर्म से अनंतवीर्य,ये अनंत चतुष्टाय गुण सिद्ध परमेष्ठी को प्राप्त होते है!चार;अघातिया कर्मों के नाश से;वेदनीयकर्म के नाश से अव्याबाधात्व,नामकर्म से सूक्ष्मत्व, आयु कर्म से अवगाह्नत्व,गोत्रकर्म से अगुरुलघुत्व,ये चार गुण,सिद्ध भगवान् को प्राप्त होते है!
२-समस्त सिद्ध भगवान् लोक के अंत में,तनुवातवलय के अन्तिम छोर को स्पर्श करते ५२५ धनुष मोटे और ४५ लाख योजन विस्तार के सिद्धालय में,कुछ खड़गासन और कुछ पद्मासन में विराजमान है!उससे आगे अनंत अलोकाकाश में वे धर्म द्रव्य के अभाव में नहीं जाते!जब भी हम अनन्तानत सिद्ध भगवान्(निकल परमात्मा भी कहते है) का ध्यान करे तो इसी रूप में करे ,इसी रूप में उन्हें नमस्कार करे!
३-बीजाक्षर- अनेक अर्थ गर्भित शब्दो को बीजाक्षर कहते है !जैसे' एक ॐ 'बीजाक्षर शब्द में ;अरिहन्त,सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय साधू पांच परमेष्ठी का अर्थ गर्भित है !'ह्रीं' बीजाक्षर में २४ तीर्थंकर भगवान् गर्भित है ! 'श्रीं ' लक्ष्मी किन्तु इसमें अनेक अर्थ गर्भित है ,जैसे मोक्ष लक्ष्मी !
"विघ्नौघाः प्रलयं-यान्ति,शाकिनी-भूत-पन्नगाः!विषं निर्विषतां याति,स्तूयमाने, जिनेश्वरे ॥७॥"
पुष्पांजलि क्षिपेत 
शब्दार्थ-विघ्नौघाः-विघ्न-विघ्नो के,औधा-समूह,प्रलयं-नाश को,यान्ति-प्राप्त हो जाते है,शाकिनी- डाकिनी,भूत-भूत,पन्नगाः-सर्प,विषं-विष,निर्विषतां-निर्विष, याति-हो जाता है, स्तूयमाने-स्तवन करने से,जिनेश्वरे-जिननेन्द्र भगवान् का 
अर्थ-जिनेन्द्र भगवान् का स्तवन करने से विघ्नों का समूह नष्ट हो जाते है,डाकिनी ,भूत और सर्प का भय भी समाप्त हो जाता है,विष;निर्विषत(अमृत्व ) को प्राप्त हो जाता है ! 
पुष्प अर्पित करता हूँ !
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"पूजा पीठिका" एवं "चत्तारि खंडक" - by scjain - 04-21-2016, 07:32 AM

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