तत्वार्थ सुत्र अध्याय ८ भाग ५
#1

आदितस् तिसृणामन्तरायस्यचत्रिंशत्सागरोपमकोटिकोट्य:परास्थिति:!१४!!

संधि विच्छेद:-आदितस्+तिसृणाम्+अन्तरायस्य+च +त्रिंशत्सागरोपम+कोटि+कोट्य:+परा+स्थिति:
शब्दार्थ:-
आदितस् -आदि के तीन (ज्ञानावरण,दर्शनावरण और वेदनीय ) तिसृणाम -इन तीन ,अन्तरायस्य -अंतराय ,च -और ,त्रिंशत्सागरोपम -तीस सागरोपम , कोटि-कोड़ा, कोट्य: -कोडी ,परा-उत्कृष्ट ,स्थिति:- बंध की अवधि  है 
भावार्थ-ज्ञानावरण,दर्शनावरण,वेदनीय ,इन  तीन कर्म और अंतराय कर्म के बंध की उत्कृष्ट स्थिति ३० कोड़ा कोडी सागर है !
विशेष-१-इस उत्कृष्ट स्थिति का बंध सैनी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक  मिथ्यादृष्टि जीव के ही होता है !
२- कोड़ा कोडी =१ करोड़ X १ करोड़ ,सागर=दस कोड़ा कोडी अद्धा पल्य !
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति -
सप्ततिर्मोहनीयस्य !!१५!!
संधि विच्छेद -सप्तति: +मोहनीयस्य 
शब्दार्थ-सप्तति:-७०  ,मोहनीयस्य -मोहनीय कर्म  की उत्कृष्ट स्थितिबंध -(सूत्र १४ से लिया परास्थितिSmileहै
अर्थ-मोहनीय कर्म  के बंध की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोड़ा कोडी सागर है !
विशेष-१-मोहनीय कर्म के  मोहनीय और चारित्र मोहनीय आदि २८ भेदों  में दर्शन मोहनीय की  उत्कृष्ट स्थिति  ७० कोड़ा कोडी सागर और चारित्र मोहनीय की४० कोड़ा   कोडी सागर  तथा  जघन्य स्थिति अंतर्मूर्हत है !
२-अनंतानुबंधी क्रोधादि कषायों की स्थिति संख्यात,असंख्यात और अनंत भव  हो सकती  है!क्रोध का  जघन्य स्थितिबंध २ माह,मान का १ माह,माया का १५ दिन और लोभ का अंतर्मूर्हत प्रमाण है!
नाम और गोत्रकर्म की उत्कृष्ट स्थिति -
विंशतिर्नामगोत्रयो :!!१६!!
विच्छेद-विंशति:+नाम+गोत्रयो
शब्दार्थ-विंशति-बीस,नाम, गोत्र कर्म : की उत्कृष्ट स्थिती (उत्कृष्ट स्थितिबंध है-सूत्र १४ से लिया परास्थितिSmile है
अर्थ-नाम और गोत्र कर्म के बंध की उत्कृष्ट स्थिति २० कोड़ा कोडी सागर है!
विशेष-नीच गोत्रकर्म की उत्कृष्ट स्थिति २० कोड़ाकोडीसागर और उच्च गोत्रकर्म की १० कोड़ाकोडीसागर है 
२१-४ -१६ 


आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थितिबंध -  
त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुष:!!१७!!
संधि विच्छेद:-त्रयस्त्रिंशत्+सागरोपमाण्य +आयुष : 
शब्दार्थ-त्रयस्त्रिंशत्-३३,सागरोपमाण्य-सागर प्रमाण,आयुष:-आयु कर्म की (उत्कृष्ट स्थितिबंध है-सूत्र १४ से लिया परास्थितिSmile
अर्थ-आयुकर्म का उत्कृष्ट स्थितिबंध  ३३ सागर है!(यह देवायु और नारकायु है)
मनुष्यायु और तिर्यगायु की उत्कृष्ट ३ पल्य और जघन्य स्थिति अंतर्मूर्हत है!नारकी की जघन्य आयु १०००० वर्ष है !

वेदनीय कर्मों का जघन्य स्थितिबंध :-

अपराद्वादशमुहूर्तावेदनीयस्य !!१८!!
संधि विच्छेद -अपरा+द्वादश+मुहूर्ता+वेदनीयस्य
शब्दार्थ-अपरा-जघन्य स्थिति, द्वादश-बारह,मुहूर्ता-मूर्हूत ,वेदनीयस्य -वेदनीय कर्म की है !
अर्थ:-वेदनीय कर्म की जघन्य  स्थिति बारह  मुर्हूत  है !
भावार्थ-वेदनीय कर्म बंध कम से कम १२ मुर्हूत का होता है!
 नाम और गोत्र कर्म का  जघन्य स्थिति बंध-
नामगोत्रयोरष्टौ !!१९ !
संधि विच्छेद-नाम+गोत्र:+अरष्टौ
शब्दार्थ- नाम-नाम ,गोत्र:-गोत्र कर्म की,अरष्टौ-आठ मुर्हूत जघन्य स्थित बंध(सूत्र १८ से अपरा ,स्थिति: सूत्र १४ से लिया) है !
अर्थ:नाम और गोत्र कर्म के जघन्य स्थितिबंध आठ मुर्हूत है !
भावार्थ -नाम और गोत्र कर्म का स्थिति बंध न्यूनतम/जघन्य ८ मुर्हूत का होता है !
शेष पांचों कर्मों का जघन्य स्थिति बंध-
शेषाणामन्तर्मुहूर्ता: !!२० !!
संधिविच्छेद :-शेषाणाम्+अन्तर्मुहूर्ता:
शब्दार्थ:-शेषाणाम शेष कर्मों की,अन्तर्मुहूर्ता:-अन्तर्मुहूर्त है !
अर्थ:-
शेष ५ कर्मों;ज्ञानावरण,दर्शनावरण,मोहनीय,आयु और अंतरायकर्मों  का स्थितिबंध जघन्य अन्तर्मुहूर्त (सूत्र १४ से स्थित: और अपरा  १८ से लिया)है!
भावार्थ:-
ज्ञानावरण,दर्शनावरण,मोहनीय,आयु और अंतरायकर्म का स्थितिबंध न्यूनतम/जघन्य अन्तर्मुहूर्त होगा! 
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तत्वार्थ सुत्र अध्याय ८ भाग ५ - by scjain - 04-23-2016, 09:20 AM
RE: तत्वार्थ सुत्र अध्याय ८ भाग ५ - by Manish Jain - 07-17-2023, 10:48 AM

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