वास्तु शास्त्र के अनुसार आय आदि का विवरण
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वास्तु शास्त्र के अनुसार आय आदि का विवरण



1. आय (लाभ)
2. व्यय (नुकसान)
3. अन्श
4. नक्षत्र
5. योनि
6. वार-तिथि
जो इमारत के कुछ आयामों और इसके ज्योतिषीय संघों पर लागू होते हैं। अभ्यास का उद्देश्य घर की दीर्घायु और उसके मालिक के लिए उपयुक्तता का पता लगाना है। ये मानदंड मंदिरों पर भी लागू होते हैं।


आय शब्द को वृद्धि या प्लस या लाभ के लिए लिया जा सकता है;
व्यय - कमी या ऋण या हानि;
नक्षत्र, -
योनि - स्रोत या इमारत का अभिविन्यास;
सप्ताह के वार दिन; तिथि- निर्माण के निर्माण के लिए चंद्र कैलेंडर में दिन और वास्तु पुरुषा का आविष्कार करना ..


संरचना का क्षेत्र आयादी शद्वर्गा के प्रत्येक तत्व को सौंपा गया कुछ कारकों से विभाजित है; और भवन की उपयुक्तता या दीर्घायु को प्राप्त अनुस्मारक से पता लगाया गया है।


आय: -
भूखण्ड की लम्बाई व चौडाई का परस्पर गुणा कर के उस गुणन फल को ९से गुणा करे और उसमें आठ का भाग देने से एकादि शेष से क्रमशः १. ध्वज,.धुम्र ३.सिंह ४. श्वान,.गो (व्रष),.खर (गर्दभ),. इभ (गज) तथा ८.वायस(काक) में आठ आय होती हैं
उदाहरण के लिए शेष 1 या 3 या 5 है, तो फिर इन्हें गरुड़ गरभा, सिन्हा गर्भा और ऋषभ गर्भा कहा जाता है, जो शुभ हैं। इसलिए इमारत के प्लिंथ क्षेत्र को एक शुभ शेष पर पहुंचने के लिए छेड़छाड़ या बदला जाना चाहिए। शेष 1 से 8 को निम्न तालिका में दर्शाए गए अनुसार अच्छे या बुरे के रूप में व्याख्या किया जाता है।


नक्षत्र: - घर के क्षेत्रफल को 8 से गुणा किया जाता है और उत्पाद को 27 से विभाजित किया जाता है। अनुशात्रा है। घर केनक्षत्र से भूमि के नक्षत्र को गिनते है और उस संख्या को 9 तक विभाजित करें यदि शेष 3 है तो धन की हानि, अगर पांच गर्व की हानि और यदि यह सात है तो मकान मालिक की मौत।अन्य संख्या हो तो शुभ समझना चाहिये


व्यय - घर के क्षेत्रफल को 3 से गुणा से किया जाता है और ८ से भाग दो, शेष व्यय है। व्यय तीन प्रकार है। जब यह कम होता है तो आय यक्ष व्यय है और अधिक है तो यह राक्षस व्यय है और जब यह आय के बराबर है तो यह पिशाच व्यय है। यक्ष व्यय अच्छा है राक्षस व्यय और पिशाच व्यय मध्यम है।


वार: -घर के क्षेत्रफल को 3 से गुणा से किया जाता है और 7 से विभाजित करते है, शेष को सौर दिनों से मेल खाते हैं।शेष में पहले दिन को रविवार गिनते है,अगर यह रविवार या मंगलवार है तो घर के मालिक को आग का डर है बाकी दिनों में अच्छा है।

अंश: - घर के क्षेत्रफल 6 से गुणा से किया जाता है और इसे 9 के साथ विभाजित करें और शेष हमें प्राप्त करें जिसे अंश कहा जाता है। यदि यह एक है तो यह इन्द्रांश है, दो फिर यमांश और शून्य तो इसे राजंश कहा जाता है।

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वास्तु शास्त्र के अनुसार आय आदि का विवरण - by scjain - 10-29-2018, 11:12 AM

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