08-27-2021, 07:18 AM
इन सोलह भावनाओं में से दर्शनविशुद्धि का होना आवश्यक है। सभी भावनाएं मै से कोई भी एक होने से भी तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है तथा अपायविचय धर्मध्यान भी विशेषरूप से तीर्थंकर प्रकृति बंध के लिए कारण माना गया है। वैसे यह ध्यान तपो भावना में ही अंतर्भूत हो जाता है।
यह षोडशकारण पर्व वर्ष में तीन बार आता है।
इस पर्व में षोडशकारण भावनाओं को भा करके परम्परा से तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया जा सकता है।
सोलह कारण भावनाएँ जीवन की श्रेष्ठतम भावनाओं में से एक है। जैन परम्परा में भावनाओं का बहुत महत्व है और यह कहा गया है-“यद भाव्यते, तद भवति।” मनुष्य जैसी भावना भाता है वैसा बन जाता है। सोलह कारण भावनाएँ तीर्थंकर प्रकृति के बन्ध में हेतु भूत भावनाएँ हैं। आज हम तीर्थंकर बनने के लिए सोलह कारण भावना नहीं भाते, भविष्य में हमें तीर्थंकरों का सानिध्य मिले इसलिए भी सोलह कारण भावना भाई जाती है।
आप लोग सोलह कारण व्रत कर रहे हैं, बहुत सारे लोग सोलह कारण के बत्तीस उपवास कर रहे हैं, बहुत सारे लोग सोलह उपवास करते हैं, बहुत से लोग एक आहार-एक उपवास करते हैं; बहुत सारे लोग सोलह दिन में एक आसन करते हैं, बीच-बीच में उपवास करते हैं; बत्तीस दिन में एक आसन करते हैं और बीच-बीच में उपवास भी करते हैं; तो यह सोलह कारण भावना का एक तपस्या का रूप है, यह बाहरी रूप है, त्याग तप करना यह बाहरी रूप है। लेकिन इन दिनों उनकी जापों को करना चाहिए और सोलह कारण के स्वरूप को समझकर बार-बार उसका स्मरण करना चाहिए।
इन सोलह कारण भावनाओं में सबसे प्रधान या प्रमुख भावना है-दर्शन विशुद्धि!
दर्शन विशुद्धि का मतलब- विश्व कल्याण की भावना से भरा हुआ, निर्मल सम्यक दर्शन! हमारे मन में सारे संसार के कल्याण की प्रगाढ़ भावना हो और निर्मल सम्यक दर्शन हो। संसार के कल्याण की भावना तो हो ही, हमारा सम्यक दर्शन निर्मल बना रहे, ऐसा प्रयास हमारा होना चाहिए। वही हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में गिने जाने योग्य है।
सम्यक दर्शन हमारा कैसे बने?
मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज बावनगजा जी बड़वानी, म.प्र.
षोडश कारण भावना प्रवचन
1. दर्शन विशुद्धि -
2. विनय सम्पन्नता -- जीवन में अकड़ नही विनम्रता रखो
3. शीलव्रतेष्वनतीचार भावना - पापों से बचने के सरल उपाय
4. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग भावना - जानें क्या है सच्चा ज्ञान
5. अभीक्ष्णसंवेग भावना - जीवन को भय मुक्त करने के उपाय
6. शक्तितस्त्याग -- जीवन का उद्धार संग्रह करने से नही त्यागने से होगा
7. शक्तिस्तप - तपस्या का प्रभाव और महिमा
8. साधुसमाधि भावना - साधु पर आई विपत्ति को दूर करना श्रावक का कर्तव्य
9. वैयावृत्य भावना - जानें जीवन में किसकी सेवा जरुर करनी चाहिए
10. 11. अरहन्त भक्ति , आचार्य भक्ति -
12. 13. बहुश्रुत भक्ति, प्रवचन - भक्ति -
14. आवश्यक अपरिहाणि - मुनि श्री क्षमासागर जी प्रवचन
15.16 मार्ग प्रभावना, प्रवचन वात्सल्य
यह षोडशकारण पर्व वर्ष में तीन बार आता है।
- भादों वदी एकम् से आश्विन वदी एकम् तक
- माघ वदी एकम् से फाल्गुन वदी एकम् तक
- चैत्र वदी एकम् से वैशाख वदी एकम् तक
इस पर्व में षोडशकारण भावनाओं को भा करके परम्परा से तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया जा सकता है।
सोलह कारण भावनाएँ जीवन की श्रेष्ठतम भावनाओं में से एक है। जैन परम्परा में भावनाओं का बहुत महत्व है और यह कहा गया है-“यद भाव्यते, तद भवति।” मनुष्य जैसी भावना भाता है वैसा बन जाता है। सोलह कारण भावनाएँ तीर्थंकर प्रकृति के बन्ध में हेतु भूत भावनाएँ हैं। आज हम तीर्थंकर बनने के लिए सोलह कारण भावना नहीं भाते, भविष्य में हमें तीर्थंकरों का सानिध्य मिले इसलिए भी सोलह कारण भावना भाई जाती है।
आप लोग सोलह कारण व्रत कर रहे हैं, बहुत सारे लोग सोलह कारण के बत्तीस उपवास कर रहे हैं, बहुत सारे लोग सोलह उपवास करते हैं, बहुत से लोग एक आहार-एक उपवास करते हैं; बहुत सारे लोग सोलह दिन में एक आसन करते हैं, बीच-बीच में उपवास करते हैं; बत्तीस दिन में एक आसन करते हैं और बीच-बीच में उपवास भी करते हैं; तो यह सोलह कारण भावना का एक तपस्या का रूप है, यह बाहरी रूप है, त्याग तप करना यह बाहरी रूप है। लेकिन इन दिनों उनकी जापों को करना चाहिए और सोलह कारण के स्वरूप को समझकर बार-बार उसका स्मरण करना चाहिए।
इन सोलह कारण भावनाओं में सबसे प्रधान या प्रमुख भावना है-दर्शन विशुद्धि!
दर्शन विशुद्धि का मतलब- विश्व कल्याण की भावना से भरा हुआ, निर्मल सम्यक दर्शन! हमारे मन में सारे संसार के कल्याण की प्रगाढ़ भावना हो और निर्मल सम्यक दर्शन हो। संसार के कल्याण की भावना तो हो ही, हमारा सम्यक दर्शन निर्मल बना रहे, ऐसा प्रयास हमारा होना चाहिए। वही हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में गिने जाने योग्य है।
सम्यक दर्शन हमारा कैसे बने?
- देव-शास्त्र-गुरु के प्रति दृढ़ श्रद्धा हो;
- छः अनायतनों एवं तीन मूढ़ताओं से अपने आप को दूर करें;
- आठ अंग का पालन करें;
- आठ मद रहित पऋणति हो और
- साथ में तत्व के श्रद्धान के साथ आत्मा के प्रति अभिरुचि बढ़े।
मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज बावनगजा जी बड़वानी, म.प्र.
षोडश कारण भावना प्रवचन
1. दर्शन विशुद्धि -
2. विनय सम्पन्नता -- जीवन में अकड़ नही विनम्रता रखो
3. शीलव्रतेष्वनतीचार भावना - पापों से बचने के सरल उपाय
4. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग भावना - जानें क्या है सच्चा ज्ञान
5. अभीक्ष्णसंवेग भावना - जीवन को भय मुक्त करने के उपाय
6. शक्तितस्त्याग -- जीवन का उद्धार संग्रह करने से नही त्यागने से होगा
7. शक्तिस्तप - तपस्या का प्रभाव और महिमा
8. साधुसमाधि भावना - साधु पर आई विपत्ति को दूर करना श्रावक का कर्तव्य
9. वैयावृत्य भावना - जानें जीवन में किसकी सेवा जरुर करनी चाहिए
10. 11. अरहन्त भक्ति , आचार्य भक्ति -
12. 13. बहुश्रुत भक्ति, प्रवचन - भक्ति -
14. आवश्यक अपरिहाणि - मुनि श्री क्षमासागर जी प्रवचन
15.16 मार्ग प्रभावना, प्रवचन वात्सल्य