प्रवचनसारः गाथा -7
#1

श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः

गाथा -7
चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो समो ति णिदिडो /
मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हु समो॥7॥


आगे निश्चयचारित्रका स्वरूप कहते हैं---

[खलु चारित्रं धर्मः] निश्चयकर अपनेमें अपने स्वरूपका आचरणरूप जो चारित्र वह धर्म अर्थात् वस्तुका स्वभाव है, जो स्वभाव है, वह धर्म है / इस कारण अपने स्वरूपके धारण करनेसे भस्त्रिका नाम धर्म कहा गया है / [यः धर्मः तत्साम्यमिति निर्दिष्टम् ] जो धर्म है, वही समभाव है, ऐसा श्रीवीतरागदेवने कहा है। वह साम्यभाव क्या है ? [मोहक्षोभविहीनः आत्मनः परिणाम:] उद्वेगपने ( चंचलता ) से रहित आत्माका परिणाम कही साम्यभाव है। अभिप्राय यह है, कि वीतरागचारित्र वस्तुका स्वभाव है / वीतरागचारित्र, निश्चयचारित्र, धर्म, समपरिणाम ये सब एकार्थवाचक हैं, और मोहकर्मसे जुदा निर्विकार जो आत्माका परिणाम स्थिररूप सुखमय वही चारित्रका स्वरूप है |

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी


Manish Jain Luhadia 
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प्रवचनसारः गाथा -7 - by Manish Jain - 07-29-2022, 12:27 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -7 - by sandeep jain - 08-01-2022, 09:40 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -7 - by sumit patni - 08-14-2022, 07:22 AM

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