प्रवचनसारः गाथा -28, 29 ज्ञेय और ज्ञायक संबंध
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श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार

गाथा -28 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -29 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )

णाणी णाणसहावो अट्ठा णेयप्पगा हि णाणिस्स /
रूवाणि व चक्खूणं णेवण्णोण्णेसु वहति // 28 //

अन्वयार्थ- (पाणी) आत्मा (णाणसाओ) ज्ञान स्वभाव है (अत्था हि) और पदार्थ (णाणिस्स) आत्मा के (र्णयप्पगा) ज्ञेय स्वरूप है, (रूवाणिव चक्खणं) जैसे कि रूप नेत्रों का ज्ञेय होता है, वैसे ही (अण्णोण्णेसु) वे एक-दूसरे में (णेव वट्ठति) नहीं वर्तते

आगे निश्चयसे ज्ञान न तो ज्ञेयमें जाता है, और न ज्ञेय ज्ञानमें जाता हैं, ऐसा कहते हैं- [हि] निश्चयकर [ज्ञानी] आत्मा [ज्ञानस्वभावः] ज्ञानस्वभाववाला है, तथा [अर्थाः] पदार्थ [ज्ञेयात्मकाः] ज्ञेयस्वरूप हैं। क्योंकि [ज्ञानिनः] ज्ञानीके [ते अर्थाः] वे पदार्थ [चक्षुषां] नेत्रोंके [रूपाणि इव] रूपी पदार्थोके समान [अन्योन्येषु] आपसमें अर्थात् सब मिलके एक अवस्थामें [नैव] नहीं [वर्तन्ते] प्रवर्तते हैं। भावार्थ-यद्यपि आत्मा और पदार्थोंका स्वभावसे ही ज्ञेय ज्ञायक संबंध आपसमें है, तो भी ज्ञानी आत्मा ज्ञानस्वरूप है, ज्ञेयस्वरूप नहीं है, और पदार्थ ज्ञेय (जानने योग्य) स्वरूप हैं, ज्ञानस्वरूप नहीं, अर्थात् अपने स्वरूपको छोड़कर एकरूप नहीं होते / जैसे कि नेत्र रूपी पदार्थों में प्रवेश किये विना ही उन पदार्थोके स्वरूप ग्रहण करनेको समर्थ हैं, और वे रूपी पदार्थ भी नेत्रोंमें प्रवेश किये विना ही अपना स्वरूप नेत्रोंके जनानेको समर्थ हैं / इसी प्रकार आत्मा भी न तो उन पदार्थोंमें जाता है, और न वे (पदार्थ ) आत्मामें आते हैं, अर्थात् ज्ञेय ज्ञायक संबंधसे सकल पदार्थों में प्रवेश किये विना ही आत्मा सबको जानता है, और वे पदार्थ भी आत्मामें प्रवेश नहीं करके अपने स्वरूपको जनाते हैं / इसी कारण आत्माको व्यवहारसे सर्वगत कहते हैं |

गाथा -29 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -30 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )

ण पविट्ठो णाविट्ठो णाणी येसु रूवमिव चक्खू /
जाणदि पस्सदि णियदं अक्खातीदो जगमसेसं // 29 //

अन्वयार्थ- (चक्खू रूवमिव) जैसे चक्षु रूप को (ज्ञेयों में अप्रविष्ट रहकर तथा अप्रविष्ट (असेसं जगम्) अशेष जगत् को (समस्त लोकालोक कोणेयेसु) ज्ञेयों में (ण पवि) अप्रविष्ट रहकर (णाविट्ठी) तथा अप्रविष्ट न रहकर (णियदं) निरन्तर (जाणदि पस्सदि) जानता-देखता है।

आगे निश्चयनयसे यद्यपि पदार्थोंमें आत्मा प्रवेश नहीं करता है, तो भी  व्यवहारसे प्रविष्ट (प्रवेश किया) सरीखा है, ऐसी शक्तिकी विचित्रता दिखलाते हैं अक्षातीतः / इन्द्रियोंसे रहित अर्थात् अनंत अतीन्द्रियज्ञान सहित [ज्ञानी] आत्मा [ज्ञेयेषु] जानने योग्य अन्य पदार्थोंमें [प्रविष्टः न ] पैठता नहीं है, और [अविष्टः न ] नही पैठता ऐसा भी नहीं, अर्थात् व्यवहार कर पैठासा भी है / वह [रूपं] रूपी पदार्थोंको [चक्षुरिव] नेत्रोंकी तरह [अशेष जगत् ] सब संसारको [नियतं] निश्चित अर्थात् ज्योंका त्यों [जानाति] जानता है, और [पश्यति] देखता है / भावार्थ-अनन्त अतीन्द्रिय ज्ञानसहित आत्मा निश्चयनयसे ज्ञेयपदार्थों में प्रवेश नहीं करता है, परन्तु एकान्तसे सर्वथा ऐसा ही नहीं है, व्यवहारसे वह ज्ञेयपदार्थोंमें प्रवेश भी करता है, और जैसे-नेत्र अपने प्रदेशोंसे रूपीपदार्थों का स्पर्श नहीं करता, तथा रूपी पदार्थोंका भी उस (नेत्र) में प्रवेश नहीं होता, केवल उन्हें जानता तथा देखता है। परंतु व्यवहारसे 'उन पदार्थोंमें दृष्टि है। ऐसा कहते हैं / इसी प्रकार आत्मा भी ज्ञेय पदार्थोंमें निश्चयनयसे यद्यपि प्रवेश नहीं करता है, तो भी ज्ञायकशक्ति उसमें कोई ऐसी विचित्र है / इस कारण व्यवहारनयसे उसका ज्ञेयपदार्थोंमें प्रवेश  भी कहा जाता है



मुनि श्री प्रणम्य सागर जी

गाथा -28
ज्ञानी जीव को कहते है और उसका स्वभाव ज्ञान है ।जो पदार्थ ज्ञानी या केवलज्ञानी के ज्ञान के विषय बनते है वे ज्ञेय कहलाते है, अतः ज्ञेय मतलब जानने योग्य ,,ज्ञेय और ज्ञान में दोनों में अपनी-अपनी शक्ति हैं पदार्थ को जानने की और जनाने की,,दोनों का अपना अपना स्वभाव हैं ,कोई भी आपस मे एकरूप नही होता ,,जैसे आँखे पदार्थ को देखती हैं न की पदार्थ आँख में घुसता हैं या आँख पदार्थ में प्रवेश करती हैं ।ठीक इसी तरह ज्ञानी ज्ञान को देखता हैं।

गाथा -29
इस गाथा में बताया गया हैं कि भगवान सर्वगत क्यो हैं ? सारा संसार उनके ज्ञान में कैसे झलकता है ?क्योंकि जब इतने छोटे चक्षु से हम इतना बड़ा आकाश एक साथ देख सकते है तो इसी तरह हमारी आत्मा के ओर अनेक प्रदेशो में अंनत शक्ति हैं ,,औऱ जब वह शक्ति मिलकर एक साथ कैवल्य ज्ञान के रूप में भगवान के पास आती हैं उनके ज्ञान में विश्व के सम्पूर्ण पदार्थ एक साथ दिखते है ।सार यह है कि ज्ञानी आत्मा ज्ञेयों में प्रविष्ट करे बिना ही सकल जगत को देखता जानता हैं।


Manish Jain Luhadia 
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प्रवचनसारः गाथा -28, 29 ज्ञेय और ज्ञायक संबंध - by Manish Jain - 08-03-2022, 09:07 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -29, 30 - by sandeep jain - 08-03-2022, 09:57 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -28, 29 ज्ञेय और ज्ञायक संबंध - by sumit patni - 08-14-2022, 12:06 PM

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