08-14-2022, 06:46 AM
आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश
गाथा -1,2
तर सुर असुर आदि से पूजित घातिघात कर्त्ता भगवान् ।
वर्द्धमान् तीर्थङ्कर हैं उनको मेरा हो नमन महान् ॥
ऐसे ही जो और तीर्थंकर होवेंगे होगये च हैं ।
केवलि सिद्ध साधु उनके चरणों में भी करबद्ध रहें ॥ १ ॥
गाथा -1,2,3,4
सारांशः—यहाँ प्रथम वृत्तमें स्वामी कुन्दकुन्दाचार्य देवने भगवान् वर्द्धमान् तीर्थङ्करको नमस्कार किया है। सो इसमें विचारकी बात यह है कि- कुन्दकुन्दाचार्य के समयमें तो श्री वर्द्धमान स्वामी आठों कर्मोंसे रहित हो चुके थे, फिर भी यहाँ पर उनके लिये घातिघातकर्ता ही क्यों कहा गया है?
तो इसका उत्तर यह हैं कि- आत्माके द्वारा जीतने योग्य यद्यपि आठ कर्म हैं परन्तु उनमें से ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय इसप्रकार इन घातिया कहलानेवाले चार कर्मों पर तो प्रयत्नपूर्वक विजय प्राप्त करनी पड़ती है, बाकींके अघातिया कहलानेवाले चार कर्म तो उन पूर्वोक्त पातियाकर्मीको दूर हटा देने पर फिर समयानुसार अनायास ही इस आत्मासे दूर हो जाया करते हैं एवं धर्मतीर्थ प्रवर्तक तथा सकलज्ञ भी घातिकर्मोके नाश होते ही हो जाते हैं। इसी बातको ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री ने ऐसा लिखा है।
गाथा -1,2
तर सुर असुर आदि से पूजित घातिघात कर्त्ता भगवान् ।
वर्द्धमान् तीर्थङ्कर हैं उनको मेरा हो नमन महान् ॥
ऐसे ही जो और तीर्थंकर होवेंगे होगये च हैं ।
केवलि सिद्ध साधु उनके चरणों में भी करबद्ध रहें ॥ १ ॥
गाथा -1,2,3,4
सारांशः—यहाँ प्रथम वृत्तमें स्वामी कुन्दकुन्दाचार्य देवने भगवान् वर्द्धमान् तीर्थङ्करको नमस्कार किया है। सो इसमें विचारकी बात यह है कि- कुन्दकुन्दाचार्य के समयमें तो श्री वर्द्धमान स्वामी आठों कर्मोंसे रहित हो चुके थे, फिर भी यहाँ पर उनके लिये घातिघातकर्ता ही क्यों कहा गया है?
तो इसका उत्तर यह हैं कि- आत्माके द्वारा जीतने योग्य यद्यपि आठ कर्म हैं परन्तु उनमें से ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय इसप्रकार इन घातिया कहलानेवाले चार कर्मों पर तो प्रयत्नपूर्वक विजय प्राप्त करनी पड़ती है, बाकींके अघातिया कहलानेवाले चार कर्म तो उन पूर्वोक्त पातियाकर्मीको दूर हटा देने पर फिर समयानुसार अनायास ही इस आत्मासे दूर हो जाया करते हैं एवं धर्मतीर्थ प्रवर्तक तथा सकलज्ञ भी घातिकर्मोके नाश होते ही हो जाते हैं। इसी बातको ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री ने ऐसा लिखा है।