08-14-2022, 11:45 AM
आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश
गाथा -22,23
नहीं जानने लायक जिनके रहा जरा भी तो बाकी ।
समुपलब्ध हो चुकी सदाके लिए अतीन्द्रिय विद्याकी ॥
ज्ञानमात्र वस्तुतया आत्मा ज्ञान ज्ञेय मित होता है।
ज्ञेय अलोक लोक सब ऐसे सर्वज्ञपनको ढोता है ॥ १२ ॥
गाथा -24,25,26
ज्ञान अधिक यदि हो आत्मा से तो वह ज्ञान अचेतन हो
यदि हो हीन हन्त वह आत्मा ज्ञान बिना ज्ञाता न कहो
जगको जितनी चीज ज्ञानका विषय सभी हैं यों करके
ज्ञानो जिनसर्वग सब चीजें सदा आत्मगत जिनवरके ॥ १३ ॥
गाथा -22,23, 24,25,26
सारांश :- आत्मा गुणी है और ज्ञान उसका गुण एवं ज्ञान और आत्मामें तादात्म्य है। ज्ञान आत्माको छोड़कर कहीं अन्यत्र नहीं रहता है और ज्ञानसे शून्य आत्माका एक भी प्रदेश कभी नहीं होता है। भगवान् आत्माका ज्ञान सम्पूर्ण संसारके सभी पदार्थोंको एक साथ स्पष्ट जानता है। कोई भी पदार्थ उनके ज्ञानसे बाहर नहीं है। वह सम्पूर्ण लोकाकाशके पदार्थोंकी तरह अलोकाकाशको भी जानता है, अतः विषय विषयीके रूपमें वह सर्वगत है। ज्ञान आत्मारूप है किन्तु आत्माके ज्ञानरूप होते हुए भी उसमें और भी गुण पाये जाते हैं, यही बताते हैं
गाथा -22,23
नहीं जानने लायक जिनके रहा जरा भी तो बाकी ।
समुपलब्ध हो चुकी सदाके लिए अतीन्द्रिय विद्याकी ॥
ज्ञानमात्र वस्तुतया आत्मा ज्ञान ज्ञेय मित होता है।
ज्ञेय अलोक लोक सब ऐसे सर्वज्ञपनको ढोता है ॥ १२ ॥
गाथा -24,25,26
ज्ञान अधिक यदि हो आत्मा से तो वह ज्ञान अचेतन हो
यदि हो हीन हन्त वह आत्मा ज्ञान बिना ज्ञाता न कहो
जगको जितनी चीज ज्ञानका विषय सभी हैं यों करके
ज्ञानो जिनसर्वग सब चीजें सदा आत्मगत जिनवरके ॥ १३ ॥
गाथा -22,23, 24,25,26
सारांश :- आत्मा गुणी है और ज्ञान उसका गुण एवं ज्ञान और आत्मामें तादात्म्य है। ज्ञान आत्माको छोड़कर कहीं अन्यत्र नहीं रहता है और ज्ञानसे शून्य आत्माका एक भी प्रदेश कभी नहीं होता है। भगवान् आत्माका ज्ञान सम्पूर्ण संसारके सभी पदार्थोंको एक साथ स्पष्ट जानता है। कोई भी पदार्थ उनके ज्ञानसे बाहर नहीं है। वह सम्पूर्ण लोकाकाशके पदार्थोंकी तरह अलोकाकाशको भी जानता है, अतः विषय विषयीके रूपमें वह सर्वगत है। ज्ञान आत्मारूप है किन्तु आत्माके ज्ञानरूप होते हुए भी उसमें और भी गुण पाये जाते हैं, यही बताते हैं