08-15-2022, 10:44 AM
आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश
गाथा -45,46
यद्यपि दिव्यध्वन्यादि क्रियायें औदयिकी है जिनजीके |
किन्तु मोहके बिना वहाँ वह क्षयंकरी होती नीके ॥
जिनवरजीकी तरह शुभ अशुभ अगर नहीं कोई होवे
तो फिर संसारावस्था में पड़ा कष्ट को क्यों जोवे ॥ २३ ॥
गाथा -45,46
सारांश: – मोहके न होनेसे श्री अरहन्त भगवान् अपने कम के उदयमें शुभ और अशुभ न होकर तटस्थ बने रहते हैं वैसे ही हम लोग भी यदि अपने मोहभाव को दबाकर अपने पूर्वोपार्जित शुभ तथा अशुभ कर्मों को मध्यस्थ भाव से सहन करते जावें और हर्ष विषाद न करें तो धीरे धीरे कर्मों से उऋण होकर अपने संसार भ्रमण का अभाव कर सकते हैं। जिस प्रकार श्री अरहंत देव ने कर बताया है परन्तु हम सबका तो यह हाल है कि
हम अपने शुभके उदयमें तो हर्षसे फूल जाते हैं और जब अशुभ का उदय आ जाता है तब उसे बुरा मानकर रोने लगते हैं। इसी दुर्ध्यान में अपनी आत्माको भूले हुए हैं। इसी कारण हमारा ज्ञान चञ्चल और वैभाविक बना हुआ है। किसी एक बात को भी यथार्थ रूप में नहीं जान रहा है किन्तु वीतराग भगवान् का ज्ञान सब बातों को एक साथ जानने वाला होता है
गाथा -45,46
यद्यपि दिव्यध्वन्यादि क्रियायें औदयिकी है जिनजीके |
किन्तु मोहके बिना वहाँ वह क्षयंकरी होती नीके ॥
जिनवरजीकी तरह शुभ अशुभ अगर नहीं कोई होवे
तो फिर संसारावस्था में पड़ा कष्ट को क्यों जोवे ॥ २३ ॥
गाथा -45,46
सारांश: – मोहके न होनेसे श्री अरहन्त भगवान् अपने कम के उदयमें शुभ और अशुभ न होकर तटस्थ बने रहते हैं वैसे ही हम लोग भी यदि अपने मोहभाव को दबाकर अपने पूर्वोपार्जित शुभ तथा अशुभ कर्मों को मध्यस्थ भाव से सहन करते जावें और हर्ष विषाद न करें तो धीरे धीरे कर्मों से उऋण होकर अपने संसार भ्रमण का अभाव कर सकते हैं। जिस प्रकार श्री अरहंत देव ने कर बताया है परन्तु हम सबका तो यह हाल है कि
हम अपने शुभके उदयमें तो हर्षसे फूल जाते हैं और जब अशुभ का उदय आ जाता है तब उसे बुरा मानकर रोने लगते हैं। इसी दुर्ध्यान में अपनी आत्माको भूले हुए हैं। इसी कारण हमारा ज्ञान चञ्चल और वैभाविक बना हुआ है। किसी एक बात को भी यथार्थ रूप में नहीं जान रहा है किन्तु वीतराग भगवान् का ज्ञान सब बातों को एक साथ जानने वाला होता है