प्रवचनसारः गाथा -49- भगवान की सर्वज्ञता
#3

आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश

गाथा -49,50


एक चीज में अनन्त गुण है यों अनन्त चोजें सारो ।
उन्हें नहीं सहसा यदि जाने कैसा पूर्ण बोध धारी ॥
हाँ जो ज्ञान पूरे क्रम से एकैक बात को लेकर के ।
यह अक्षायिक होता है वह कभी न सबको जान सके ॥ २५ ॥

गाथा -49,50

सारांश : - इस भूतल पर अनन्त द्रव्य हैं। इनमें से प्रत्येक में अनन्त गुण हैं और एक एक गुण की अनन्त पर्यायें होती हैं। इन सबको एक साथ न जानने वाला सर्वज्ञ कैसे हो सकता है? क्रमपूर्वक जानने वाले ज्ञान में एक को जानते समय दूसरे का ज्ञान नहीं और दूसरे को जानते समय पहिले वाले का ज्ञान नहीं रहता है, अतः क्रमबद्ध ज्ञान से सर्वज्ञता असंभव ही है।
यदि यह कहा जाय कि एक एक बात को जानकर जिस प्रकार हम बहुज्ञ बन जाते हैं वैसे ही सर्वज्ञ भी बन सकते हैं सो प्रथम तो ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि चीजें अनन्त हैं। एक एक करके उनका अंत ही नहीं आ सकता है। कदाचित् ऐसा मान भी लिया जावे तो अन्त में सब चीजों का ज्ञान हमको एक साथ हुआ, तभी तो सर्वज्ञ हुए। जैसे कि कोई मनुष्य एक एक चीज ला लाकर अपने भण्डार में रखता जा रहा हो और यों कुछ दिनों में सब चीजें इकट्ठी करके सर्वसम्पन्न हो जाता है। उस समय उसके पास सब चीजें होती हैं इसीलिये वह सर्व सम्पन्न कहलाता है। यदि वह इतर वस्तुओंका संग्रह करते करते पूर्व वस्तुओंको नष्ट करता जाय तो सर्व सम्पन्न नहीं बन सकता है। इसी प्रकार क्रमिक ज्ञान में कुछ का ज्ञान एकसाथ होता है और फिर इतर कुछ का ज्ञान होते समय पहिले वाली वस्तु का ज्ञान नहीं रहता क्योंकि ऐसा ज्ञान कर्मोदय के कारण क्षणस्थायी होता है। ऐसी दशा में सर्वज्ञ कैसे हो सकता है?
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प्रवचनसारः गाथा -49- भगवान की सर्वज्ञता - by Manish Jain - 08-10-2022, 07:50 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -49- भगवान की सर्वज्ञता - by sandeep jain - 08-10-2022, 08:02 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -49- भगवान की सर्वज्ञता - by sumit patni - 08-15-2022, 12:57 PM

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