प्रवचनसारः गाथा - 61 - ज्ञेय अनुरूप ज्ञान
#1

श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार

गाथा -61 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -63 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )


णाणं अत्थंतगदं लोगालोगेसु वित्थडा दिट्ठी।
णट्ठमणिट्ठं सव्वं इट्ठं पुण जं तु तं लद्धं ॥ 61॥


आगे फिर भी केवलज्ञानको सुखरूप दिखाते  हैं- [अर्थान्तगतं] पदार्थोके पारको प्राप्त हुआ [ज्ञानं ] केवलज्ञान है / [तु] तथा [ लोकालोकेषु ] लोक और अलोकमें [विस्तृता] फैला हुआ [दृष्टिः ] केवलदर्शन है, जब [ सर्व अनिष्टं] सब दुःखदायक अज्ञान [ नष्टं] नाश हुआ [पुनः] तो फिर [यत्] जो [इष्टं] सुखका देनेवाला ज्ञान हैं, [तत् ] वह [लब्धं ] प्राप्त हुआ ही।

भावार्थ-जो आत्माके स्वभावका घात करता है, उसे दुःख कहते है, और उस घातनेवालेका नाश वह सुख है / आत्माके स्वभाव ज्ञान और दर्शन हैं / सो जबतक इन ज्ञान दर्शनरूप स्वभावोंके घातनेवाले आवरण रहते हैं, तबतक सब जानने और देखनेकी स्वच्छन्दता नहीं रहती, यही आत्माके दुःख है / घातक आवरणके नाश होनेपर ज्ञान दर्शनसे सबका जानना और देखना होता है / यही स्वच्छंदतासे निराबाध (निराकुल) सुख है / इसलिये अनन्तज्ञान दर्शन सुखके कारण हैं, और अभेदको विवक्षासे ( कहनेकी इच्छासे ) जो केवलज्ञान है, वही आत्मीक सुख है, क्योंकि केवलज्ञान सुखस्वरूप ही है / आत्माके दुःखका कारण अनिष्टस्वरूप अज्ञान है, वह तो केवलअवस्थामें नाशको प्राप्त होता है, और सुखका कारण इष्टस्वरूप जो सबका जाननारूप ज्ञान है, वह प्रगट होता है / सारांश यह है, कि केवलज्ञान ही सुख है, अधिक कहनेसे क्या ?

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार गाथा - 61



अन्वयार्थ - (णाणं) ज्ञानं (अत्थंतगदं) पदार्थों के पार को प्राप्त है, (दिट्ठी) और दर्शन (लोगालोगेसु वित्थडा) लोकालोक में विस्तृत है, (सव्वं अणिट्ठं) सर्व अनिष्ट (णट्ठं) नष्ट हो चुका है, (पुण) और (जं) जो (इट्ठं) इष्ट है (तं) वह सव (लद्धं) प्राप्त हुआ है (इसलिए केवलज्ञान सुखस्वरूप है)।


* जो पदार्थ जिस रूप में है, वह उसी रूप में भगवान के केवलज्ञान में झलकता है। वह हर ज्ञेय को उसके अंत तक जानते हैं।
•अगर वह पदार्थ अंतहीन हैं तो उसको उसी रूप में जानेंगे।
* ज्ञेय जैसा होगा वैसा ही भगवान जानेंगे।
* यह भाव करना की भगवान के ज्ञान में जैसा दिख रहा है वैसा ही होगा और कोई पुरुषार्थ नहीं करना एकांत मिथ्यात्व है।
* इष्ट अनिष्ट वस्तु का मोहनीय और अंतराय कर्म के उदय से होता है ।



Manish Jain Luhadia 
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प्रवचनसारः गाथा - 61 - ज्ञेय अनुरूप ज्ञान - by Manish Jain - 08-25-2022, 12:33 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा - 61 - ज्ञेय अनुरूप ज्ञान - by sandeep jain - 08-25-2022, 12:34 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा - 61 - ज्ञेय अनुरूप ज्ञान - by sumit patni - 08-25-2022, 12:40 PM

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