09-25-2022, 07:59 AM
आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश
गाथा -83,84
मोही जीव आपको परमय माना करता है इससे ।
हो विक्षुब्ध राग रोप किया करता मूढ अहो परसे ॥
मोह राग या रोषभावमय होकर नाना कर्म करे।
जीव जो कि इनसे दूर रहे वह मुक्तिरमा त्वरित वरे
इस पर प्रश्न होता है कि इस दृश्यमान सम्पूर्ण अनर्थ का मूल कारण एक मोहभाव है, तो इसके पहिचानने का क्या उपाय है? इसका उत्तर आगे देते हैं
गाथा -83,84
मोही जीव आपको परमय माना करता है इससे ।
हो विक्षुब्ध राग रोप किया करता मूढ अहो परसे ॥
मोह राग या रोषभावमय होकर नाना कर्म करे।
जीव जो कि इनसे दूर रहे वह मुक्तिरमा त्वरित वरे
इस पर प्रश्न होता है कि इस दृश्यमान सम्पूर्ण अनर्थ का मूल कारण एक मोहभाव है, तो इसके पहिचानने का क्या उपाय है? इसका उत्तर आगे देते हैं