प्रवचनसारः गाथा -83,84 - जिनेद्रोक्त अर्थों के श्रद्धांन
#3

आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश

गाथा -83,84 

मोही जीव आपको परमय माना करता है इससे ।
हो विक्षुब्ध राग रोप किया करता मूढ अहो परसे ॥
मोह राग या रोषभावमय होकर नाना कर्म करे।
जीव जो कि इनसे दूर रहे वह मुक्तिरमा त्वरित वरे


इस पर प्रश्न होता है कि इस दृश्यमान सम्पूर्ण अनर्थ का मूल कारण एक मोहभाव है, तो इसके पहिचानने का क्या उपाय है? इसका उत्तर आगे देते हैं
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प्रवचनसारः गाथा -83,84 - जिनेद्रोक्त अर्थों के श्रद्धांन - by Manish Jain - 09-24-2022, 04:18 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -83,84 - जिनेद्रोक्त अर्थों के श्रद्धांन - by sumit patni - 09-24-2022, 04:43 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -83,84 - जिनेद्रोक्त अर्थों के श्रद्धांन - by sandeep jain - 09-25-2022, 07:59 AM

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