प्रवचनसारः गाथा -88 द्रव्य का लक्षण
#1

श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार

गाथा -88 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -95 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )


जो मोहरागदोसे णिहणदि उवलब्भ जोण्हमुवदेसं /
सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण // 88 //


आगे यद्यपि मोहके नाश करनेका उपाय जिनेश्वरका उपदेश है, परंतु उसके लाभमें भी पुरुषार्थ करना कार्यकारी है, इसलिये उद्यमको दिखलाते हैं—[यः] जो पुरुष [जैनं उपदेशं] वीतराग प्रणीत आत्मधर्मके उपदेशको [उपलभ्य] पाकर [मोहरागद्वेषान् ] मोह, राग, और द्वेषभावोंको [निहन्ति ] घात करता है, [सः] वह [ अचिरेण कालेन ] बहुत थोड़े समयसे [ सर्वदुःखमोक्षं] संपूर्ण दुःखोंसे भिन्न (जुदा ) अवस्थाको [प्रामोति] पाता है। 

भावार्थ-इस अनादि संसारमें किसी एक प्रकारसे तलवारकी धारके समान जिनप्रणीत उपदेशको पाकर, जो मोह, राग, द्वेषरूप शत्रुओंको मारता है, वह जीव शीघ्र ही सब दुःखोंसे मुक्त होकर (छूटकर ) सुखी होता है। जैसे कि सुभट तलवारसे शत्रुओंको मारकर सुखसे बैठता है / इसलिये मैं सब तरह उद्यमी होकर मोहके नाश करनेको पुरुषार्थमें सावधान हुआ बैठा हूँ //

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार गाथा 88
अन्वयार्थ - (जो) जो (जोण्हमुवदेसं) जिनेन्द्र के उपदेश को (उवलद्ध) प्राप्त करके (मोहरागदोसे) मोह, राग, द्वेष को (णिहणदि) हनता है, (सो) वह (अचिरेण कालेण) अल्पकाल में (सव्वेदुक्खमोक्खं पावदि) सर्व दुःख से मुक्त हो जाता है।


Manish Jain Luhadia 
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प्रवचनसारः गाथा -88 द्रव्य का लक्षण - by Manish Jain - 09-29-2022, 02:09 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -88 द्रव्य का लक्षण - by sumit patni - 09-29-2022, 02:15 PM
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