प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा -5 , छह द्रव्यो के लक्षण एवम सत् का अर्थ
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श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार


गाथा -5 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -107 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )


इह विविहलक्खणाणं लक्खमणमेगं सदिति सव्वगयं /
उवदिसदा खलु धम्मं जिणवरवसहेण पण्णत्तं // 5 //



आगे सादृश्यास्तित्व बतलाते हैं-
[इह] इस लोकमें [धर्म उपदिशता] वस्तुके स्वभावका उपदेश देनेवाले [जिणवरवृषभेण] गणधरादिदेवोंमें श्रेष्ठ श्रीवीतराग सर्वज्ञदेवने [प्रज्ञप्तं] ऐसा कहा है, कि [विविधलक्षणानां] नाना प्रकारके लक्षणोंवाले अपने स्वरूपास्तित्वसे जुदा जुदा द्रव्योंका [सत् इति] 'सत्' ऐसा [सर्वगतं] सब द्रव्योंमें पानेवाला [एक लक्षणं] एक लक्षण है। 

भावार्थ-स्वरूपास्तित्व विशेषलक्षणरूप है, क्योंकि वह द्रव्योंकी विचित्रताका विस्तार करता है / तथा अन्य द्रव्यसे भेद करके प्रत्येक द्रव्यकी मर्यादा करता है / और 'सत्' ऐसा जो सादृश्यास्तित्व है, सो द्रव्योंमें भेद नहीं करता है, सब द्रव्योंमें प्रवर्तता है, प्रत्येक द्रव्यकी मर्यादाको दूर करता है, और सर्वगत है, इसलिये सामान्यलक्षणरूप है। 'सत्' शब्द सब पदार्थों का ज्ञान कराता है, क्योंकि यदि ऐसा न माने, तो कुछ पदार्थ सत् हों, कुछ असत् हों, और कुछ अवक्तव्य हों; परंतु ऐसा नहीं है, संपूर्ण पदार्थ सत्रूप ही हैं, असदादिरूप नहीं हैं / जैसे-वृक्ष अपने अपने स्वरूपास्तित्वसे, आम, नीमादि भेदोंसे अनेक प्रकारके हैं, और सादृश्यास्तित्वसे वृक्ष जातिकी अपेक्षा एक हैं। इसी प्रकार द्रव्य अपने अपने स्वरूपास्तित्वसे 6 प्रकार हैं, और सादृश्यास्तित्वसे सत्की अपेक्षा सब एक हैं। सत्के कहनेमें छहों द्रव्य गर्भित हो जाते हैं / जैसे जब वृक्षोंमें स्वरूपास्तित्वसे भेद करते हैं, तब सादृश्यास्तित्वरूप वृक्षकी जातिकी एकता मिट जाती है, और जब सादृश्यास्तित्वरूप वृक्षजातिकी एकता करते हैं, तब स्वरूपास्तित्वसे उत्पन्न नाना प्रकारके भेद मिट जाते हैं, इसी प्रकार द्रव्योंमें स्वरूपास्तित्वकी अपेक्षा सत्रूप एकता मिट जाती है, और सादृश्यास्तित्वकी अपेक्षा नाना प्रकारके भेद मिट जाते हैं। भगवानका मत अनेकान्त है, जिस पक्षकी विवक्षा (कहनेकी इच्छा) करते हैं, वह पक्ष मुख्य होता है, और जिस पक्षकी विवक्षा नहीं करते हैं, वह पक्ष गौण होता है। अनेकान्तसे नय संपूर्ण प्रमाण हैं, विवक्षाकी अपेक्षा मुख्य गौण हैं

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार

इस वीडियो के माध्यम से हम जानेगे आखिर जिन शासन क्या है ? अन्य जैनेतर समाज कहती है आपके भगवान वीतरागी है फिर भी वह आप पर शासन कर रहे है।जिनशासन के सच्चे स्वरूप को इस वीडियो के माध्यम से अवश्य जाने।

◼ सत्ता क्या होती है? आज सत्तानाश को लोग सत्यानाश कहने लगे है जब कि यह  सत्यानाश नहीं सत्तानाश होता है। हम किसी की भी सत्ता को मिटाना चाहे लेकिन सत्ता किसी की नाश नही होती है।

◼ हमारे तीर्थंकर भगवान तीन लोक के नाथ कहे जाते हैं फिर भी उन्होंने जैन समुदाय के ऊपर शासन नहीं किया । हम सभी जैन लोग तीर्थंकर के आज्ञानुवर्ती हैं।



Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
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Tel: +91 141 6693948
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