10-28-2022, 03:16 PM
श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -13 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -115 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
ण हयदि जदि सहव्वं असद्धवं हवदितं कहं दव्वं /
हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा दव्वं सयं सत्ता // 13 //
आगे सत्ता और द्रव्यका अभेद . दिखलाते हैं—[यदि] जो [द्रव्यं] गुणपर्यायात्मक वस्तु [सत्] अस्तित्वरूप [न भवति] नहीं हो [तदा] तो [ध्रुवं] ध्रुव अर्थात् निश्चित सत्तारूप वस्तु [असत् ] अवस्तुरूप [भवति हो जावे, तथा [तत्] वह सत्ता रहित वस्तु [द्रव्यं] द्रव्य स्वरूप. [कथं] कैसे [भवति होवे, [वा] अथवा [पुनः] फिर [अन्यत्] सत्तासे भिन्न द्रव्य [भवति] होवे / तस्मात इस कारण [द्रव्यं] द्रव्य स्वयं सत्ता] आप ही सत्तास्वरूप है, भेद नहीं है।
भावार्थ-जो द्रव्य सत्तारूप न होवे, तो दोष आते हैं / या तो द्रव्य असत् होता है, या सत्तासे जुदा होता है। परंतु जो द्रव्य असत् होगा, तो सत्ताके विना ध्रुव नहीं होगा, जिससे कि द्रव्यके नाशका प्रसंग आ जावेगा / और यदि सत्तासे द्रव्य पृथक् हो, तो द्रव्य सत्ताके विना भी अपने स्वरूपको धारण करे, जिससे कि सत्ताका कुछ प्रयोजन ही न रहे, क्योंकि सत्ताका कार्य यही है, कि द्रव्यके स्वरूपका अस्तित्व करे, सो यदि द्रव्य ही अपने स्वरूपको जुदा धारण करेगा, तो सत्ताका फिर प्रयोजन ही क्या रहेगा ? इस न्यायसे सत्ताका नाश होगा / परंतु जो द्रव्य सत्तारूप होगा, तो द्रव्य ध्रुव होगा, जिसके होनेसे द्रव्यका नाश न होगा / यदि सत्तासे द्रव्य पृथक् नहीं होगा, तो द्रव्य अपने स्वरूपको धारण करता हुआ, सत्ताके प्रयोजनको प्रगट करेगा, और सत्ताका नाश न होगा। इसलिये द्रव्य सत्रूप है / द्रव्य गुणी है, सत्ता गुण है / गुण-गुणीमें प्रदेश-भेद नहीं है, एक ही हैं
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
होता न द्रव्य यदि सत् मत हो तुम्हारा , कैसा बने ध्रुव असत् वह द्रव्य प्यारा ।
या सत्त्व से यदि निरा वह द्रव्य होवे , सत्ता स्वयं इसलिए फिर क्यों न होवे ll
अन्वयार्थ - ( जदि ) यदि ( दवं ) द्रव्य ( सद् ण हवदि ) स्वरूप से ही सत् न हो तो ( धुवं असद् हवदि ) निश्चय से यह असत् होगा ; ( तं कधं दवं ) जो असत् होगा वह द्रव्य कैसे हो सकता । है ? ( वा पुणो ) अथवा फिर वह द्रव्य ( अण्णं हवदि ) सत्ता से अलग होगा । ( चूँकि ये दोनों बातें नहीं हो सकतीं ) ( तम्हा ) इस कारण ( दव्वं सयं ) द्रव्य स्वयं ही ( सत्ता ) सत्तास्वरूप है
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार
गाथा -13 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -115 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )
ण हयदि जदि सहव्वं असद्धवं हवदितं कहं दव्वं /
हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा दव्वं सयं सत्ता // 13 //
आगे सत्ता और द्रव्यका अभेद . दिखलाते हैं—[यदि] जो [द्रव्यं] गुणपर्यायात्मक वस्तु [सत्] अस्तित्वरूप [न भवति] नहीं हो [तदा] तो [ध्रुवं] ध्रुव अर्थात् निश्चित सत्तारूप वस्तु [असत् ] अवस्तुरूप [भवति हो जावे, तथा [तत्] वह सत्ता रहित वस्तु [द्रव्यं] द्रव्य स्वरूप. [कथं] कैसे [भवति होवे, [वा] अथवा [पुनः] फिर [अन्यत्] सत्तासे भिन्न द्रव्य [भवति] होवे / तस्मात इस कारण [द्रव्यं] द्रव्य स्वयं सत्ता] आप ही सत्तास्वरूप है, भेद नहीं है।
भावार्थ-जो द्रव्य सत्तारूप न होवे, तो दोष आते हैं / या तो द्रव्य असत् होता है, या सत्तासे जुदा होता है। परंतु जो द्रव्य असत् होगा, तो सत्ताके विना ध्रुव नहीं होगा, जिससे कि द्रव्यके नाशका प्रसंग आ जावेगा / और यदि सत्तासे द्रव्य पृथक् हो, तो द्रव्य सत्ताके विना भी अपने स्वरूपको धारण करे, जिससे कि सत्ताका कुछ प्रयोजन ही न रहे, क्योंकि सत्ताका कार्य यही है, कि द्रव्यके स्वरूपका अस्तित्व करे, सो यदि द्रव्य ही अपने स्वरूपको जुदा धारण करेगा, तो सत्ताका फिर प्रयोजन ही क्या रहेगा ? इस न्यायसे सत्ताका नाश होगा / परंतु जो द्रव्य सत्तारूप होगा, तो द्रव्य ध्रुव होगा, जिसके होनेसे द्रव्यका नाश न होगा / यदि सत्तासे द्रव्य पृथक् नहीं होगा, तो द्रव्य अपने स्वरूपको धारण करता हुआ, सत्ताके प्रयोजनको प्रगट करेगा, और सत्ताका नाश न होगा। इसलिये द्रव्य सत्रूप है / द्रव्य गुणी है, सत्ता गुण है / गुण-गुणीमें प्रदेश-भेद नहीं है, एक ही हैं
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी प्रवचनसार
होता न द्रव्य यदि सत् मत हो तुम्हारा , कैसा बने ध्रुव असत् वह द्रव्य प्यारा ।
या सत्त्व से यदि निरा वह द्रव्य होवे , सत्ता स्वयं इसलिए फिर क्यों न होवे ll
अन्वयार्थ - ( जदि ) यदि ( दवं ) द्रव्य ( सद् ण हवदि ) स्वरूप से ही सत् न हो तो ( धुवं असद् हवदि ) निश्चय से यह असत् होगा ; ( तं कधं दवं ) जो असत् होगा वह द्रव्य कैसे हो सकता । है ? ( वा पुणो ) अथवा फिर वह द्रव्य ( अण्णं हवदि ) सत्ता से अलग होगा । ( चूँकि ये दोनों बातें नहीं हो सकतीं ) ( तम्हा ) इस कारण ( दव्वं सयं ) द्रव्य स्वयं ही ( सत्ता ) सत्तास्वरूप है