प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 14 जीवकी मनुष्यादि पर्यायो की क्रियाफलरूप
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पृथकत्व के लक्षण

हर वह चीज seperate कहलाएगी जिसमें प्रदेश भि न्नता हो। प्रदेश का अर्थ- जो space point होते हैं उसको प्रदेश बोलते हैं। आकाश के जो क्षेत्र हैं, उन क्षेत्रों में जो द्रव्य रह रहा है, दोनों के रहने का वह क्षेत्र जब तक अलग-अलग रहता है या भि न्न प्रदेशपना दोनों में घटित होता है, उसको हम पृथकत्व कहते हैं। भि न्नपना वास्त विक रूप से कहा जाता है। ‘सासणं हि वीरस्स’ ऐसा वीर भगवा न का शासन है। अब देखो! यहा ँ पर शासन का मतलब क्या हुआ? यह वीर भगवा न के द्वा रा कहा हुआ है, उपदेश है या यूँ कहें कि आज्ञा है। ‘शासनं आज्ञा निर् देशः इति एकार्थवाची’ शासन का मतलब पहले भी आपको बताया था , कि सी भी पदार्थ पर या व्यक्ति पर शासन करना नहीं है। शासन का मतलब उपदेश देना है। यह वीर भगवा न का जो शासन है, वीर भगवा न के उपदेश में यह बात आपको बड़ी हल्की भी लग सकती है और अगर आप इसको सोचने की कोशि श करे तो आपको बहुत गहरी भी लग सकती है। हल्की इसलि ए लगती है कि जब हमें कुछ knowledge नहीं होती है, तो हम अपने अनुसार कोई भी चीज को सोचते हैं, जानते हैं तो हमें उस चीज का जो वजन है उसका हमें पता नहीं रहता। अब आप कहोगे इतनी सी बात में क्या हो गया ? जो पृथकत्व है, उसका लक्ष ण बताया जा रहा था तो पृथक्त्व माने जो चीजें अलग-अलग space point में हो, अलग-अलग क्षेत्र में हो, जिनका अस्तित्व अलग-अलग हो, उसे हमने पृथक्त्व के रूप में define किया । इसमें विशेष बात क्या हो गई? इसलि ए कहना पड़ा कि वीर भगवा न का उपदेश है। यह इसलि ए विशेष बात हो गई कि आपको इसको समझने के लि ए अभी थोड़ा सा और पुरुषार्थ करना पड़े ड़ेगा और जो एक चीज आ रही है नीचे अगली लाइन में जिसकी व्याख्या कल नहीं हो पाई थी कि "अण्णत्त मतभावो" जो अन्यत्व है, अन्यपना है, वह अतद्भाव रूप होता है। ‘ण तब्भ वो होदि कथमेकको’ वह तद्भाव रूप नहीं होता है इसलि ए वे दोनों चीजें एक कैसे हो सकती हैं। अब यह तद्भाव औऱ अतद्भाव क्या है? कि सी भी चीज की भि न्नता को देखने के कई तरीके होते हैं। एक तो वह चीज भि न्न-भि न्न क्षेत्रों में रह रही हो तो भि न्न कहलाती है और एक भि न्नता उस समय पर भी परि लक्षि त होती है जब चीज एक ही क्षेत्र में हो लेकि न उसके गुण अलग-अलग रूप से व्याख्यायि त कि ए जाते हो, उसकी पर्याय अलग-अलग रूप से व्याख्यायि त की जाती है, उनमें भी भि न्नता है। जैसे द्रव्य है, द्रव्य के गुण हैं, द्रव्य की पर्याय है। अब जहा ँ एक द्रव्य होगा वह ीं पर उसके अनेक गुण रहेंगे, वह ीं पर उसकी पर्याय रहेगी तो द्रव्य को हम अलग कहेंगे, गुण को अलग कहेंगे, पर्याय को अलग कहेंगे तो यह भी भि न्नता हो गई। अगर यह तीनों चीजें एक हैं तो फिर आप सबको एक ही कह दो और अगर यह अलग-अलग है, तो फिर यह भी अलग है और जो अलग-अलग द्रव्य है, वह भी अलग है। उन में क्या अन्तर है? इस भेद को बताने के लि ए यहा ँ यह वीर भगवा न का उपदेश कार्यकारी है। एक भेद तो वह है अलग-अलग द्रव्य हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों में अपना अलग अस्तित्व बना करके रखते हैं। एक ही क्षेत्र में भी रहेंगे तो भी उनका अस्तित्व अपना अलग-अलग है इसलि ए वह द्रव्य भि न्न-भि न्न कहलाएँगे, उसको तो कहा जाएगा पृथक्त्व। वह भि न्नता कौन सी कहलाएगी? पृथक्त्व रूप भि न्नता मतलब उसको हम कहेंगे seprateness और एक भि न्नता उस रूप है कि द्रव्य के गुण हैं और हम उसको अलग-अलग गुण कहेंगे। द्रव्य का यह ज्ञा न गुण है, द्रव्य का यह दर्श न गुण है, द्रव्य का यह सुख गुण है, ये गुण भी अलग-अलग हैं तो एक द्रव्य के गुणों में जो भि न्नता आएगी उसको हम क्या कहेंगे। आचार्य कहते हैं:- यह कहलाएगा अन्यत्व रूप भि न्नता। दोनों के नाम अलग-अलग हैं। यह अन्यत्व रूप भि न्नता का मतलब हो गया अतद्भाव माने वह तद्भाव नहीं हो गया , वह उस रूप नहीं हो गया । अतद्भाव का मतलब वह उस रूप नहीं हो गया , एकमेक नहीं हो गया । द्रव्य में गुण रहते हुए भी द्रव्य और गुण दोनों एकमेक नहीं हो गये। द्रव्य में ही पर्याय रहते हुए भी द्रव्य और पर्याय सर्वथा एकमेक नहीं हो गयी। उनके स्व भाव अलग हैं। उनका पृथक्त्वपना हमें उसके अन्यत्वपने से ज्ञा न में आएगा। उनमें भी आप भेद को देखो! उनमें भी आप भि न्नता को देखो! कि समें? द्रव्य में, गुण में, पर्याय में। समझ में आ रहा है? जो लोग लगातार सुनते आ रहे हैं उन्हें थोड़ा -थोड़ा समझ में आ रहा होगा। कुछ लोग जो नए आकर बैठ जाते हैं उन्हें लगता होगा कि आज कुछ समझ ही नही आ रहा , थोड़ी कोशि श करो। हमेशा सरल सरल चीजें ही मत सुना करो। कभी-कभी सैद्धा न्ति क चीजें भी सुना करो क्योंकि वीर भगवा न का उपदेश ऐसा नहीं हैं कि केवल कि स्से-कहानिय ों में ही नि पटता रहे। समझ आ रहा है?

पृथक्त्व रुप भिन्नता और अन्यत्व रुप भिन्नता
तत्त्व दृष्टि अगर बनानी है, द्रव्य, गुण, पर्याय का स्व रूप समझना है, तो हमें देखना है कि आचार्यों ने व्याख्या ओं में कि तनी साव धानी रखते हुए हमें समझाने का प्रया स किया है कि दो प्रकार की भि न्नताएँ जो हमारे जानने में आती हैं, उन भि न्नताओं को अलग-अलग नामों से बताया है। एक तो हो गया पृथक्त्व रूप और एक हो गया अन्यत्व रूप भि न्नता। इन दोनों भि न्नताओं का अन्तर जानने के लि ए ही यह गाथा है, जिसकी चर्चा कल नहीं हो पाई थी तो पृथक्त्व का मतलब क्या हो गया ? जब दो द्रव्य भि न्न-भि न्न रूप हैं तो वह पृथकत्व कहलाएँगे लेकि न एक ही द्रव्य के जब गुणों की, पर्याय ों की चर्चा करेंगे वह अन्यत्व रूप कहलाएँगे। यह भि न्नता ही दो प्रकार से व्याख्यायि त की गई है। अब वह अन्यत्व रूप क्यों है? क्योंकि द्रव्य, गुण और पर्याय ये तीनों चीजें द्रव्य में ही हैं लेकि न तीनों चीजों की अपनी identity अलग-अलग है। Identity जानते हो क्या ? पहचान। आपके शरीर में मान लो आठ अंग हैं तो सबकी अपनी identity अलग-अलग होती है कि नहीं होती? शरीर एक भी है और शरीर अनेक भी है। एक होते हुए भी उसके अंग सब अलग-अलग हैं और सबका अलग-अलग काम है। सबकी अपनी अलग-अलग identity है, तो इस अलग-अलगपने की जो identity है इसको कहा जाएगा- अन्यत्व और यह अन्यत्व क्यों है? यह अतद्भाव है। अब यह शब्दाव ली भी पकड़ ने की कोशि श करो। अतद्भाव और तद्भाव । तद्भाव का मतलब उसी रूप तद्! तद्! जैसे कभी सुना हो ततमसि ? वह ी तुम हो, तद्भाव उसी भाव । तद् माने होता है वह , वह ी भाव । जो वह ी भाव को बताए, वह तद्भाव है और जो उस भाव को न बताए, वह अतद्भाव है। जब हमने कहा आँख तो आँख का भाव अलग है। क्योंकि आँख का काम देखना है और जब हमने कहा कान तो कान का काम अलग है, कान का भाव अलग है। भाव माने उसका स्व रुप, उसका लक्ष ण, उसकी अपनी identity सब अलग है। है कि नहीं! सब एक ही शरीर में है लेकि न सब कैसे हैं? पाँचों ही इन्द्रिया ँ अपना अतद्भाव रखती हैं। माने एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय रूप नहीं हो जाती है। तद्भाव नहीं हो गया । एक शरीर में रहते हुए भी स्पर्श न इन्द्रिय , घ्रा ण इन्द्रिय नहीं हो जाएगी। घ्रा ण इन्द्रिय , स्पर्श न इन्द्रिय नहीं हो जाएगी। चक्षु, कर्ण नहीं हो जाएगा। कर्ण , चक्षु नहीं हो जाएगा। चीजें वह ी हैं, आप सब अनुभूत कर रहे हो लेकि न आपको यह ज्ञा न नहीं है कि ये चीजें कि स तरीके से, कैसे व्याख्यायि त हो सकती हैं या इन चीजों को हम कि स तरह से समझ सकते हैं। एक भी है, अनेक भी है। एक में अनेकपना कैसे आएगा? तो आचार्य कहते हैं- अतद्भाव रूप अन्यत्व को जानने से आएगा। क्या मतलब हुआ? अतद्भाव मतलब वह वह ी नहीं है। कान, आँख नहीं है; आँख, कान नहीं है। आँख, आँख है; कान, कान है। ऐसे ही द्रव्य, गुण नहीं है; गुण, द्रव्य नहीं है। द्रव्य, द्रव्य है; गुण, गुण है; पर्याय , पर्याय है। यह सब कि ससे कहेंगे? इस बीच जो यह अन्तर आ रहा है द्रव्य में, गुण में, पर्याय में, इस अन्तर को बताने के लि ए यह अन्यत्व भाव है। इसको कहते हैं identity। यह अन्तर कि ससे पड़ा ? identity से। एक शरीर दूसरे शरीर से भि न्न है। जो एक शरीर है वह दूसरा शरीर नहीं है। ये जो अलग-अलग शरीर दिखाई दे रहे हैं, यह जो पृथकत्वता का लक्ष ण रूप भि न्नता है, तो इसको कहेंगे ये separate हैं। समझ आया ? कोशि श करो ऐसी कोई बहुत बड़ी बात नहीं है कि समझ में न आए। दो द्रव्य के बीच की भि न्नता पृथक्त्व रूप हो गयी और एक ही द्रव्य के अन्दर जो गुण है और जो पर्याय हैं उसको हम अलग-अलग define कर रहे हैं, वह जो भि न्नता है, वह ही अन्यत्व है। समझदार हो! आप तो समझ गये एक ही बार में। कठि न चीजों को भी समझ जाओ फिर कोई बात ही नहीं और वह शब्दाव ली कठि न है और कुछ नहीं। आपको एक उदाह रण से ही समझ में आ गया । शरीर एक है लेकि न उस एक शरीर के ही ये सब part हैं लेकि न हम कहेंगे कि इनके अभाव में भी शरीर नहीं है और शरीर के बि ना ये भी नहीं है। आँख, कान के अभाव में भी शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है। धड़ , सि र, हाथ , पैर के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व नहीं और शरीर के बि ना भी इनका अलग से कोई अस्तित्व नहीं। इसी को हम समझें द्रव्य, गुण और पर्याय । अब चलो हो सकता है यह उदाह रण हमने आपको थोड़ा सा समझाने के लि ए, विषय में प्रवेश करने के लि ए दिया है। अब इसी को और सूक्ष्मता से समझने के लिय े दूसरा उदाह रण दे रहा हूँ। पहला उदाह रण इसलि ए दिया कि जिससे आपकी मोटी बुद्धि थोड़ी पतली हो जाय े। फिर पतली को और पतली करने कि लि ए दूसरा उदाह रण दिया जाएगा। कोई भी ऐसी छैनी है, कोई भी औजार है एकदम से तो पतला नहीं हो जाता। पहले वह मोटा है, तो पहले पतला करना पड़े ड़ेगा। पतले के बाद ही और ज़्या दा पतला होगा। अब आपको इतना तो समझ में आने लगा कि अन्यत्व क्या ? पृथक्त्व क्या ?

गुण और गुणी का भेद
अब अन्यत्व को और अच्छे ढंग से समझने के लि ए इससे भी बारीक उदाह रण है। इसमें भी आप को ऐसा लग सकता है कि बि ना हाथ , पैर के भी शरीर कुछ हो सकता है या बि ना शरीर के भी हाथ , पैर भी अलग हो सकते हैं। क्या समझ आ रहा है? अब इसी को और बारीकी से समझने के लि ए आगे का दूसरा उदाह रण देते हैं जिसको हम समझ सकते हैं गुण और गुणी के भेद के साथ । क्या बोला? गुण माने खाने वा ला गुड़ नहीं। quality जो गुण हैं, हर एक द्रव्य के अन्दर जो गुण हैं और गुण जिस द्रव्य में रहते हैं, वह द्रव्य हो गया गुणी। गुण को धारण करने वा ला गुणी है। गुण हो गयी quality और गुणी माने जो उस quality को रखता है, धारण करता है। Possesser of quality- गुणी और केवल quality- गुण। समझ आ रहा है? जैसे आपके पास में धन और धन को धारण करने वा ला धनी। ऐसे ही गुण और गुणी। अब देखो! आपका सफ़े फ़े द वस्त्र है। वस्त्र क्या हो गया ? यह एक द्रव्य हो गया । जितना भी वस्त्र है, वह कैसा है? सफेद है। सफेदी उसका क्या हो गई? गुण हो गया । whiteness is the quality of that cloth. समझ आ रहा है? थोड़ा english इसलि ए बोलता हूँ कि कुछ लोग ऐसे बैठे रहते हैं जिनको हिन्दी समझ में नहीं आती। थोड़ा उन्हें समझ में आने लगे तो whiteness क्या हो गई? यह quality हो गई, यह गुण हो गया और जो वस्त्र है वह द्रव्य हो गया । ठीक है न! द्रव्य को ही गुणी कहते हैं। गुण कि समें होते हैं? गुणी में। गुणी कौन कहलाता है? जिसमें गुण हो। शब्दों का खेल है थोड़ा सा। गुण कि समें होंगे? गुणी में। गुणी कौन कहलाय ेगा? जो द्रव्य होगा, जो गुणों को धारण कर रहा होगा। जैसे सफेदी कहा ँ रहेगी? कपड़े में तो कपड़ा क्या होगा? सफेद गुण को धारण करने वा ला हो गया । Whiteness को धारण करने वा ला हो गया । अब इस कपड़े में जो सफेदी है वह सफेदी तो हो गयी उसका शुक्ल गुण। क्या बोलते हैं? उसको whiteness कह लो, quality of whiteness या शुक्ल गुण। शुद्ध संस्कृ स्कृ त में शुक्ल गुण हो गया । जो द्रव्य है वह उसका कपड़ा हो गया , वस्त्र हो गया । अब हमें इन दोनों चीजों में क्या समझें? यह दोनो चीजें भि न्न हैं या एक है? जो वस्त्र है वह ी सफेदी है या सफेदी अलग है वस्त्र अलग है। अगर वस्त्र अलग है तो सफेदी के बि ना कैसे? और सफेदी अलग है तो वस्त्र कि बि ना कैसे? अगर अलग है तो है, एक नहीं कह सकते और अगर एक है, तो हम अलग-अलग फिर उनको रख नहीं सकते कि एक को बुलाओ तो दूसरा अपना आप आ जाएगा। वस्त्र को खींचो तो सफेदी भी खि ंच जाएगी या नहीं या सफेदी को अलग खि ंचना पड़े ड़ेगा, वस्त्र को अलग खींचना पड़े ड़ेगा। तो क्या समझ में आ रहा है? इसमें भि न्नता भी है और अभि न्नता भी है। कि समें? गुण में और गुणी में। द्रव्य में और गुण में भि न्नता भी है और अभि न्नता भी है। भि न्नता कि स रूप में है? नाम अलग-अलग हैं। एक का नाम वस्त्र है, एक का नाम सफेदी है। एक का नाम द्रव्य है, एक का नाम गुण है। काम भी अलग-अलग है। द्रव्य का काम अलग है, गुण का काम अलग है। लक्ष ण उसके अलग-अलग समझ में आ जाते हैं। क्या समझ आ रहा है? लक्ष ण भी अलग-अलग होंगे क्योंकि द्रव्य को तो हम कि सी भी इन्द्रिय से ग्रह ण कर सकते हैं लेकि न उसका जो शुक्लत्व गुण है, whiteness है वह तो चक्षु इन्द्रिय से ही ग्रह ण करने में आएगी। अन्तर हो गया न। द्रव्य को, कपड़े ड़े को हम कि सी भी इन्द्रिय से ग्रह ण कर सकते हैं, स्पर्श न इन्द्रिय से भी समझ सकते हैं कि हा ँ! यह वह ी कपड़ा है। रसना इन्द्रिय से भी समझ सकते हैं। कपड़े ड़े में भी taste होता है। नहीं देखा! खाते तो रहते हो, चबाते तो रहते हो कई बार देखा है, मैंने। कोई अपना पल्लू चबा रहा है, दुपट्टा चबा रहा है। अभी भी चबा रहे हैं कुछ लोग। क्या समझ आ रहा है? उसमें भी taste है कि नहीं! कुछ स्वा द आता है कि नहीं आता! उससे भी ग्रह ण करने में आ जाता है कि यह कपड़ा में चबा रहा हूँ। समझ आ रहा है? उसमें कुछ गंध भी होती है। घ्रा ण इन्द्रिय का भी विषय बन जाती है और कर्ण इन्द्रिय का विषय भी बन जाएगा, वह कपड़ा । अगर उससे हवा की जाए तो आपको पता पड़ेगा कि हा ँ! यह कपड़े की हवा है। हवा की आवा ज अन्दर जाएगी। ये सब चीजें आप वस्त्र के साथ घटित कर सकते हो लेकि न उसकी जो सफेदी है, शुक्लत्व है, उसके साथ घटित नहीं कर सकते हो। शुक्लत्व माने whiteness is the subject only of our eyes. समझ आ रहा है? whiteness जो होगा वह तो केवल आँखों का ही विषय होगा। यह अन्तर हो गया । कि तना बड़ा अन्तर हो गया ? आपने कभी महसूस किया कि नहीं किया ? रोज कपड़े पहनते हो, फाड़ ते रहते हो, कभी सफेद रखते हो, कभी लाल ले लेते हो। देखा कि तना अन्तर अपने को समझ में आता है। समझ आ रहा है न? यह अन्तर जो हमें अलग-अलग शब्दावलिय ों के साथ बताया जा रहा है, यह वीर भगवा न का उपदेश है। द्रव्य में जो गुण होते हैं, वह गुण कथंचित द्रव्य के स्व भाव से अलग होते हैं। द्रव्य का जो लक्ष ण है वह अलग और जो गुण का लक्ष ण है, वह अलग है। इसलि ए तो उन्हें अलग-अलग कहा जाता है। नहीं तो सब को द्रव्य ही कह देते या सबको गुण ही कह देते। जब हमने उनको अलग-अलग नाम दिया है, अलग-अलग उनकी संज्ञा है, अलग-अलग उनके लि ए पुकारा जा रहा है, तो इसका मतलब है कि उनमें भि न्नता है। एक ही चीज में रहते हुए भी भि न्नता है। कि सकी अपेक्षा से? उसके नाम की अपेक्षा से। नाम अलग-अलग हैं, उसके जो characteristic हैं, जो उसकी पहचान के जो लक्ष ण हैं, सब अलग हैं। उनके प्रयोजन भी अलग-अलग हैं। द्रव्य में अनेक गुण रह सकते हैं। क्या सुन रहे हो? द्रव्य में रहते ही हैं। द्रव्य में अनन्त गुण रहते हैं। अनेक गुण रहते हैं लेकि न गुण में कोई गुण नहीं रहता है, गुण अपना अलग ही रहेगा। द्रव्य में अनेक गुण हैं। वस्त्र में जिस स्थान पर सफेदी है, उसी स्था न पर स्पर्श गुण भी है। सफेदी हो गया रूप गुण और जैसा आपको कोमल या कठोर स्पर्श हो रहा है, वह उसका हो गया स्पर्श गुण। उसी स्था न पर उसका रस गुण है, उसी स्था न पर गंध गुण भी है। लेकि न जिस स्था न पर जिस गुण के रूप में जो सफेदी रह रही है उस गुण में कोई दूसरा गुण नहीं आ सकता। गुण अलग-अलग रहेंगे। एक ही point पर रहेंगे लेकि न गुणों का अलग-अलग रहना होगा और वे एक ही द्रव्य के गुण कहलाएँगे तो एक द्रव्य में गुण तो अनेक हो जाएँगे लेकि न एक गुण में एक ही गुण रहता है। गुण में कोई दूसरा गुण नही आता है। यह गुण का सबसे बड़ा दुर्गु ण है। क्या समझ आ रहा है? वह अपने गुण में कि सी दूसरे गुण को समाहि त नही करेगा।

Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
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प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 14 जीवकी मनुष्यादि पर्यायो की क्रियाफलरूप - by Manish Jain - 10-29-2022, 12:08 PM
RE: प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 14 जीवकी मनुष्यादि पर्यायो की क्रियाफलरूप - by Manish Jain - 10-29-2022, 12:12 PM
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RE: प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 14 जीवकी मनुष्यादि पर्यायो की क्रियाफलरूप - by Manish Jain - 10-29-2022, 02:28 PM
RE: प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 14 जीवकी मनुष्यादि पर्यायो की क्रियाफलरूप - by sumit patni - 10-29-2022, 02:44 PM
RE: प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 14 जीवकी मनुष्यादि पर्यायो की क्रियाफलरूप - by sandeep jain - 10-29-2022, 03:26 PM

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